बलि के बकरे सा मन
सिकुड़े शरीर के साथ मेमियाता है
......... अदृश्य में कोई रस्सी खींचता जाता है
घसीटते हुए बढ़ जाता है शरीर
धुल देख फफकता है मन
...........
लगता है - सिर्फ मैं हूँ वह मन
पर यहाँ तो भीड़ है
परम्परा की चाह बुदबुदाती है
- पहले सब कितना अच्छा था
सब पास पास थे
कभी कभार बजती फोन की घंटी
किलकारियों से खुश हो जाती थी
अब तो बातों का सिलसिला इतना लंबा है
कि - उबन होने लगी है
स्विच ऑफ होता है मोबाइल
या ...... कई तरीके हैं नेटवर्क से हटने के
सबकुछ मशीनी !
मन से कोई कुछ सुनता ही नहीं
कोई न कोई धुन लगी रहती है
सब भागने की फिराक में
..........
क्या अब वे दिन नहीं आयेंगे कभी ?
रश्मि प्रभा
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ये कैसा यथार्थ !!!
कुल्टा कुलच्छिनी
सोई आज,
हम उम्र चचेरे चाचा के साथ
मिटा दी मर्यादा
कटा दी नाक ।
उफ़ ! उम्र का ये बढ़ता बोझ
संभाला न गया
न कर सकी इंतज़ार बाप
की खोज का !!!
पीट-पीट कर माई ने
जब डाला अन्दर हाँथ
सौ रुपए के नोट ने
फाड़ दिए जज़्बात ।
पसीने से कुछ गीला
मुड़ा-तुड़ा वो नोट
ले गया साथ अपने
बेटी का जिस्म नोच ।
कल ही तो रो रही थी मै
इस नोट के लिए
मिल जाये गर तो जाऊँ
किसी डॉक्टर के पास
ले आऊँ दवा जिससे
हो जाये गर्भपात !
चार-चार बच्चे हैं
और अब न चाहिए
रोटी इनकी अटती नहीं
जान मेरी मिटती नहीं
कहते हुए जब खानी चाही थी
गोली मैंने धतूरे की
रोक लिया था मेरा हाँथ
न करो माँ ऐसा,
सब ठीक हो जायेगा ।
न समझी थी दिलासा का
मतलब उस वक्त मै
सोचा था उठा लूंगी कोई
भार खुद से भारी
न सोचा था मगर
बेटी न रहेगी कुँवारी ।
अब क्या करूँ इस नोट का
ये सोचते हुए
पकड़ कुलच्छिनी बेटी का हाँथ
ले जाती है खींच वो अपने साथ
कराने होंगे अब
दो-दो गर्भपात !!!
...वाह री स्त्री!...कब बदलेंगे तेरे दिन?...कब इस नर्क से तुझे छुटकारा मिलेगा?
जवाब देंहटाएंउफ़फ्फ़... दिल काँप गया... :(
जवाब देंहटाएं~सादर!!!
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंये कैसा यथार्थ !!!
जवाब देंहटाएंसच ...
ak talkh sachhayee
जवाब देंहटाएंak talkh sachhayee
जवाब देंहटाएं" क्या अब वे दिन नहीं आयेंगे कभी ? " यही सवाल खोज रहा है आज अपना अस्तित्व !!!
जवाब देंहटाएंरचना शामिल करने के लिए आभार।
सादर
इंदु
हाय रे नारी तेरी यही कहानी..
जवाब देंहटाएं:(
जवाब देंहटाएंउफ...मार्मिक रचना
जवाब देंहटाएंमार्मिक प्रस्तुति ,दोनों रचनाएँ बढ़िया हैं नारी की कहानी अलग अलग जुबानी
जवाब देंहटाएं'उबन होने लगी है' हाँ रशिम दीदी।और जब मशीनी हो जाना स्व-चयनित हो तब और टीसता है।थोड़े संजीदा प्रयासों से इससे बचा जा सकता है।
जवाब देंहटाएंशाबास इंदु लाजवाब अभिव्यक्ति..