घोटू के दोहे
(1)
नए नए हम सीरियल ,देखा करते नित्य ।
किसको फुर्सत है भला ,पढ़े नया सहित्य ॥
(2)
ना तो मीठे बोल है,ना सुर है ना तान ।
चार दिनों तक गूंजते ,फिर खो जाते गान ॥
(3)
वो गजलों का ज़माना,मन भावन संगीत ।
अब भी है मन में बसे ,वो प्यारे से गीत ॥
(4)
साप्ताहिक था धर्मयुग ,या वो हिन्दुस्थान ।
गीत,लेख और कहानी,भर देते थे ज्ञान ॥
(5)
कवि सम्मलेन रात भर,श्रोता सुनते मुग्ध ।
प्रहसन ,सस्ते लाफ्टर ,कर देते है क्षुब्ध ॥
(6)
अंगरेजी का गार्डन ,फूल रहा है फ़ैल ।
एक बरस में एक दिन,बोते हिंदी बेल ॥
(7)
छोटे छोटे दल बने,सब में है बिखराव ।
तो फिर कैसे आयेगा ,भारत में बदलाव ॥
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
जन्म-22-2-1942, शिक्षा-मेकेनिकल इंजिनियर(बनारस विश्वविद्यालय-1963), लेखन-गत 50 वर्षों से कविताएं,प्रकाशन-1-साडी और दाडी, 2-बुढ़ापा, निवास- नोएडा।
बहुत ही प्रासंगिक दोहे ....प्रभावपूर्ण प्रस्तुति के लिए बधाई!
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति ... आभार !
जवाब देंहटाएंआज की ब्लॉग बुलेटिन क्योंकि सुरक्षित रहने मे ही समझदारी है - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
वाह गुरुवर कमाल प्रस्तुति | आभार
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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बिलकुल सही कहा -यही हो रहा है!
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