लालटेन की लौ को तेज कर के जैसे ही वो अपनी किताबें उठाकर चटाई पर बैठी , उसे अपने बाप की आवाज सुनायी दी - " क्या नौटंकी कर रही है ! जा , चौके में जाकर अम्मा का हाथ बंटा , कुछ घर का काम काज सीख | तुझे पढ़ा कर हमें बैरिस्टर नहीं बनाना | "
" जी , बाबू जी |"
वो उठी , उसने एक नजर आँगन में बेफिक्र होकर खेलते अपने भाई की ओर देखा और मन मसोसकर चौके की तरफ बढ़ दी--
मेरी आजादी गुम सी है,
दो प्यासी आँखें नम सी हैं ,
मुझको भी तो उड़ना है ,
इस पिंजरे को हटवा दो ,
पंख मेरे भी लगवा दो ||
जो तुमसे पाया , उतने में
अब तक सारी खुशियाँ देखीं ,
खिड़की से नजरें दौड़ाकर ,
अब तक ये दुनिया देखी ,
मुझको खुद कुछ पाना है ,
जो बेड़ी हैं वो खुलवा दो ,
पंख मेरे भी लगवा दो ||
मुझमें भी तुम सी हिम्मत है ,
मेरे भी ऊंचे अरमां हैं ,
उस पार मुझे भी जाना है ,
दीवार खड़ी है , गिरवा दो ,
पंख मेरे भी लगवा दो ||
..............
आज फिर एक दिन का खर्चा है
आज फिर एक नोट कम होगा।
ज़िंदगी की सुनहरी गुल्लक से
खाली से दिन का बोझ कम होगा।
ऐसे खर्चे है रोज दिन का नोट
हाथों से बस फिसल गया जैसे।
आदतन खूब संभाला उसको,
वक्त का नोट उड़ गया जैसे।
फिर से गुल्लक को लेके हाथों
उम्र का वजन तौलना होगा।
नोट तो रोज़ खर्च होता है
बदले में मिल गए मुझे चिल्लर
शाम को घर पे अपनी गुल्लक में
डाल देता हूं यादों के चिल्लर
और मैं देखता हूं गुल्लक को
आज तो कुछ वजन बढ़ा होगा।

ऐसा ही एक वक्त आएगा
नोट सारे ही खर्च होंगे जब,
सिर्फ यादों के ढेर से सिक्के
मेरी गुल्लक में ही रहेंगे तब
खूब खनकाउंगा मैं वो गुल्लक
उससे सांसों का बोझ कम होगा।
सारे नोटों के खर्च होने पर
सिक्को से भर चुकी हुई गुल्लक।
वक्त की बेरहम सी ठोकर पर
फूट जाएगी सुनहरी गुल्लक।
सारे चिल्लर बिखर से जाएंगे
दोस्तों को भी तजुर्बा होगा।
फूटते ही सुनहरी गुल्लक के
लोग लूटेगें उसकी कुछ बातें,
कुछ की आंखों से अश्क छलकेंगे
कुछ के दिल को मिलेगी सौगातें।
एक गुल्लक मिलेगी मिट्टी में