मुझे राजेश तलवार से कोई हमदर्दी नही , लेकिन कहीं ऐसा न हो कि पुलिस और अब सी बी आई असली कातिल को ढूंढ ही न पाये और पीड़ित परिवार पूरी तरह टूटकर बिखर जाए...! इसी से मिलाती-जुलती एक ख़बर पर पिछले दिनों मेरी नजर गयी जो एक दैनिक में प्रकाशित हुयी थी , कि कैनवेरा में फांसी के ८६ साल बाद एक व्यक्ति निर्दोष पाया गया । हुआ यों कि एक व्यक्ति जिसे ८६ वर्ष पूर्व एक वालिका के कत्ल के इल्जाम में फांसी पर लटका दिया गया था, निर्दोष निकला। दोबारा हुयी जांच के दौरान पता चला कि उस पर झूठा इल्जाम लगाया गया था। अदालत ने उसे माफ़ कर दिया मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी ।
एक दु:खद घटना जो ग़लत न्याय की वजह से घटी है
उस अखबार के अनुसार कोर्लिन कैम्पबेल रोज को १९२१ में दक्षिण आस्ट्रेलियाई शहर मेलबौर्न में एक १२ वर्षीय वालिका एल्मा तिर्तिस्क के कत्ल का दोषी पाया गया था। विक्टोरिया केअतौर्नी जेनरल रॉब हाल्स के मुताबिक यह एक दुखद मामला था जिसमें ग़लत न्याय की वजह से एक व्यक्ति फांसी पर चढ़ा दिया गया । रोज का मामला शुरू से ही विवादास्पद रहा था । एक गवाह ने भी कहा था कि वह घटना के समय रोज के साथ काम पर था । कुछ शोधकर्ताओं ने १९९५ में रोज के ख़िलाफ़ सबूत के तौर पर प्रयोग किए गए बालों की जांच की तो पता चला कि वह घटना स्थल के नही थे। इस पर रॉब हाल्स ने दो वर्ष पूर्व इस मामले की दोबारा जांच कराबायी। न्यायधीशों ने पाया कि रोज निर्दोष था । लोगों ने महसूस किया कि असल हत्यारा पकडा नही गया और निर्दोष को फांसी हो गयी। अब इसकी भरपाई कौन करेगा ?
मीडिया, पुलिस, सी बी आई और राजनीति में उलझ कर रह न जाए सच
जैसा कि यह अंदेशा है , कहीं मीडिया, पुलिस, सी बी आई और राजनीतिज्ञों के चक्रव्यूह में उलझ कर रह न जाए सच। क्योंकि विगत की अनेकों घटनाओं पर नजर डालें तो ख़ुद महसूस होने लगेगा कि आज तपेदिक हो गया सच को , कल्पनाएं लूली- लंगडी हो गयी है और मर्यादा की गलियारों में घूमते हुए अमर्यादित लोग बार- बार सामना करते हैं अपनी गलतियों का और कहते हैं-
शायद विधाता को यही मंजूर है .....!
शायद विधाता को यही मंजूर है .....!
अब इस नाटक का पटाक्षेप हो जाना चाहिए
लगभग एक माह बीतने को है , जांच का परिणाम शून्य । आख़िर कहाँ गया हत्यारा आसमान खा गया या फ़िर धरती लील गयी ? खैर इस हत्याकांड की आड़ में मीडिया चैनलों के द्वारा इस पूरे प्रकरण को जिस प्रकार उछाला जा रहा है वह पूरी तरह भारतीय परिवार को प्रदूषित कर रहा है । जब भी टी वी खोलो मीडिया चैनलों के द्वारा बाप- बेटी के रिश्तों पर आपत्तिजनक टिप्पणियों को देखकर जहाँ हर परिवार में एक पिता की आँखे शर्म से झुक जाती होगी वहीं उसकी बेटी किसी न किसी वहाने वहाँ से टलने का प्रयास करने लगती होगी । मैं तो यही कहूंगा कि अब इस नाटक का पटाक्षेप हो जाना चाहिए । क्योंकि इसको मिर्च मसाला लगाकर बार-बार कवरेज देने से हमारे परिवार का , समाज का माहौल बिगड़ रहा है ।
आपका कहना सही है पर मुझे लगता है कि इस मामले में कुछ ऐसा है जो छिपाया जा रहा है। यह मामला प्रचार माध्यमों की वजह से अधिक उलझा यह सच है पर यह भी सच है कि अगर वह इस मामले पर इतनी पैनी नजर नहीं रखते तो असली अपराधी पकड़े नहीं जा सकते ।
जवाब देंहटाएंदीपक भारतदीप
इस मामले में अपराधी का पता लगाना असंभव सा लग रहा है और और सजा कराना तो पूरी तरह नामुमकिन।
जवाब देंहटाएंइस मामले की छानबीन शुरु से ही संद्धिग्ध लग रही थी. मुझे नहीं लगता कि सही कातिल कभी भी पहचाना जायेगा या किसी को सजा होयेगी अगर कोई चमत्कार ही न हो जाये तो.
जवाब देंहटाएंओह, यह मामला तो ध्यान दिया ही नहीं। समाज की सड़ांध पर कितना गौर करें।
जवाब देंहटाएंsab apni apni roti seenk rahe hai...media to bas khabar sunghta rahta hai....
जवाब देंहटाएंइसमे ही क्या सभी मामलो के न्याय मे इतना विलम्ब होता है कि अन्तोत्गात्वा वो अन्याय का रूप हो जाता है.
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