हमारे देश में इस वक्त दो अति-महत्वपूर्ण किंतु ज्वलंत मुद्दे हैं - पहला नक्सलवाद का विकृत चेहरा और दूसरा मंहगाई का खुला तांडव । आज के इस क्रम की शुरुआत भी हम नक्सलवाद और मंहगाई से ही करने जा रहे हैं ।फ़िर हम बात करेंगे मजदूरों के हक के लिए कलम उठाने वाले ब्लॉग , प्राचीन सभ्यताओं के बहाने कई प्रकार के विमर्श को जन्म देने वाले ब्लॉग और न्यायलय से जुड़े मुद्दों को प्रस्तुत करने वाले ब्लॉग की ....!
आम जन के दिनांक २३.०६.२००९ के अपने पोस्ट नक्सली कौन? में संदीप द्विवेदी कहते हैं ,कि " गरीबी के अपनी ज़िन्दगी काट रहे लोग क्यों सरकार के ख़िलाफ़ बन्दूक थाम लेते है....इसे समझने के लिए आपको उनकी तरह बन कर सोचना होगा.....सरकार गरीबी और बेरोज़गारी खतम करने कि पुरी कोशिश कर रही है लेकिन ये दिनों दिन और भयानक होती जा रही है.....इसका कारण हम आप सभी जानते है....रोजाना छत्तीसगढ़ और झारखण्ड के अर्द्धसैनिक बलों के जवान नक्सली के हांथों मरे जाते है......और जो बच जाते है वो मलेरिया या लू कि चपेटे में आ कर अपने प्राण त्याग देते हैं.....क्या अब सरकार नक्सालियों का खत्म लिट्टे की तरह करेगी.....लेकिन इतना याद रखना होगा कि लिट्टे ने अपने साथ १ लाख लोगो कि बलि ले ली.....क्या सरकार इसके लिए तैयार है.....नक्सलियों के साथ आर पार कि लड़ाई से बेहतर है कि हम अपनी घरेलू समस्या को घर में बातचीत से ही सुलझा ले....वरना एक दिन ये समस्या बहुत गंभीर हो जायेगी.....!"
वहीं मंहगाई के सन्दर्भ में हवा पानी पर प्रकाशित एक कविता पर निगाहें जाकर टिक जाती है जिसमे कहा गया है कि "हमनें इस जग में बहुतों सेजीतने का दावा कियापर बहुत कोशिशों के बाद भीहम मँहगाई से जीत नहीं पाये। " वहीं कानपुर के सर्वेश दुबे अपने ब्लॉग मन की बातें पर फरमाते हैं -" कुछ समय बाद किलो में,वस्तुएं खरीदना स्वप्न हो जायेगा , १० ग्राम घी खरीदने के लिए भी बैंक सस्ते दर पर कर्ज उपलब्ध कराएगा ....!" नमस्कार में प्रो.सी.बी.श्रीवास्तव की कविता छपी है जिसमें कहा गया है कि-"मुश्किल में हर एक साँस है , हर चेहरा चिंतित उदास हैवे ही क्या निर्धन निर्बल जो , वो भी धन जिनका कि दास हैफैले दावानल से जैसे , झुलस रही सारी अमराई !घटती जाती सुख सुविधायें , बढ़ती जाती है मँहगाई !!"
सरकार सुनती नही - अमल करती नही और आम जन पिसती जा रही है कदम -दर-कदम मंहगाई में । क्या करे बेचारा सच बोलेगा तो सरकारी चक्रव्यूह में फंस कर दम तोड़ देगा , नही बोलेगा तो जब तक हिम्मत होगी ख़ुद को व्यवस्थित करेगा और जिस दिन व्यवस्थित कराने कि स्थिति में नही होगा .....उपरवाले के सामने आत्म समर्पण कर देगा यह कहते हुए कि शायद विधाता को यही मंजूर है ....!
आमजन से मेरा अभिप्राय उन मजदूरों से है जो रोज कुआँ खोदता है और रोज पानी पीता है । मजदूरों कि चिंता और कोई करे या न करे मगर हमारे बिच एक ब्लॉग है जो मजदूरों के हक़ और हकूक के लिए पूरी दृढ़ता के साथ विगुल बजा रहा है । जी हाँ वह ब्लॉग है बिगुल । यह ब्लॉग अपने आप को नई समाजवादी क्रान्ति का उद्घोषक मानता है और एक अखबार कि मानिंद मजदूर आंदोलनों की खबरे छापता है । यह ब्लॉग तमाम मजदूर आंदोलनों की खबरों से भरा-पडा है । चाहे वह गोरखपुर में चल रहे मजदूर आन्दोलन की ख़बर हो अथवा गुरगांव या फ़िर लुधियाना का मामला पूरी दृढ़ता के साथ परोसा गया है ।
आईये अब चलते हैं एक ऐसे ब्लॉग पर जहाँ होती है प्राचीन सभ्यताओं की वकालत । जहाँ बताया गया है कि प्रारंभ में अदि मानव ने संसार को कैसे देखा होगा ? गीजा का विशाल पिरामिड २० साल में एक लाख लोगों के श्रम से क्यों बना ? फिलिपीन के नए लोकसभा भवन के सामने मनु की मूर्ति क्यों स्थापित कि गई है ? ऐसे तमाम रहस्यों कि जानकारी आपको मिलेगी इस ब्लॉग मेरी कलम से पर ।
इस ब्लॉग के दिनांक ०५.०४.२००९ के प्रकाशित आलेख -यूरोप में गणतंत्र या फिर प्रजातंत्र ने मुझे बरबस आकर्षित किया और मैं इस ब्लॉग को पढ़ने के लिए विवश हो गया । इस आलेख में बताया गया है कि -"यूरोप के सद्य: युग में गणतंत्र (उसे वे प्रजातंत्र कहते हैं) के कुछ प्रयोग हुए हैं। इंगलैंड में इसका जन्म हिंसा में और फ्रांस में भयंकर रक्त-क्रांति में हुआ। कहा जाता है, 'फ्रांस की राज्य-क्रांति ने अपने नेताओं को खा डाला।' और उसीसे नेपोलियन का जन्म हुआ, जिसने अपने को 'सम्राट' घोषित किया। और इसीमें हिटलर, मुसोलिनी एवं स्टालिन सरीखे तानाशाहों का जन्म हुआ। कैसे उत्पन्न हुआ यह प्रजातंत्र का विरोधाभास ?"
इसमें यह भी उल्लेख है कि -"व्यक्ति से लेकर समष्टि तक एक समाज-जीवन खड़ा करने में भारत के गणतंत्र के प्रयोग संसार को दिशा दे सकते हैं। कुटुंब की नींव पर खड़ा मानवता का जीवन शायद 'वसुधैव कुटुंबकम्' को चरितार्थ कर सके।"
प्राचीन सभ्यताओं कि वकालत के बाद आईये चलते है सार्वजनिक जीवन से जुड़े व्यवहारों - लोकाचारों में निभाती-टूटती मानवीय मर्यादाओं पर वेबाक टिपण्णी करने वाले और कानूनी जानकारियाँ देने वाले दो महत्वपूर्ण ब्लॉग पर । एक है तीसरा खंबा और दूसरा अदालत ।
तीसरा खंबा के ब्लोगर दिनेशराय द्विवेदी पेशे से वकील हैं , किंतु क़ानून के साथ-साथ उनकी पकड़ साहित्य, समाज, पठन,सामाजिक संगठन लेखन,साहित्यिक सांस्कृतिक गतिविधियों में भी है जिसकी साफ झलक उनके ब्लॉग पोस्ट में दिखाई देती है ।
ऐसा ही एक आलेख उनके ब्लॉग पर मेरी नजरों से दिनांक ३१.०५.२००९ को गुजरा । आलेख का शीर्षक था आरक्षण : देश गृहयुद्ध की आग में जलने न लगे । इसमें एक सच्चे भारतीय कि आत्मिक पीड़ा प्रतिविंबित हो रही है । उन्होंने लिखा है , कि "यह एक दुखद लेकिन गंभीर है, यहाँ तक कि एक खतरनाक स्थिति है। एक राज्य में दो लड़ाका जातियाँ हथियार लिए आमने सामने खड़ी हैं, और राजनीति उन के बीच अपराधी की भांति सिर झुकाए खड़ी है। इन घटनाओं ने आरक्षण आधारित सामाजिक न्याय के पूरे कार्यक्रम और उस के औचित्य पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। राजनीति में आज भले ही न सोचा जा रहा हो, लेकिन आरक्षण की इस व्यवस्था को किसी अन्य विकल्प से प्रतिस्थापित करने की स्थिति नहीं लायी गई, तो यह हो सकता है कि कुछ ही वर्षों मे देश गृहयुद्ध की आग में जल रहा हो।" इस तरह के अनेको चिंतन से सजा हुआ है यह ब्लॉग ।
सच तो यह है कि अपने उदभव से आज तक यह ब्लॉग अनेक सारगर्भित पोस्ट देये हैं , किंतु वर्ष-२००९ में यह कुछ ज्यादा मुखर दिखा ।
आईये अब वहां चलते हैं जहाँ बार-बार कोई न जाना चाहे , जी हाँ हम बात कर रहे हैं अदालत की । मगर यह अदालत उस अदालत से कुछ अलग है । यहाँ बात न्याय की जरूर होती है , फैसले की भी होती है और फैसले से पहले हुयी सुनबाई की भी होती है मगर उन्ही निर्णयों को सामने लाया जाता है जो उस अदालत में दिया गया होता है । यानि यह अदालत ब्लॉग के रूप में एक जीबंत इन्सायिक्लोपिदिया है ।
मुकद्दमे में रूचि दिखाने बालों के लिए यह ब्लॉग अत्यन्त ही कारगर है , क्योंकि यह सम सामयिक निर्णयों से हमें लगातार रूबरू कराता है । सबसे बड़ी बात तो यह है कि भिलाई छतीसगढ़ के लोकेश के इस ब्लॉग में दिनेशराय द्विवेदी जी की भी सहभागिता है , यानि सोने पे सुहागा !
आज बस इतना ही मिलते हैं एक अल्प विराम के बाद...!
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श्रखला बढ़िया चल रही
जवाब देंहटाएंअदालत जैसे प्रयास को सम्मान देने हेतु आपका आभार
एक निवेदन, नाम ठीक करे लें
निलेश नहीं, लोकेश है :-)
आज इस पोस्ट पर अपने तीसरा खंबा और अदालत की चर्चा देख कर मन प्रसन्न हुआ। आप ने जिक्र करने के लिए जिस पोस्ट को चुना मैं अनुमान ही कर सकता हूँ कि वह कितना श्रम साध्य रहा होगा। इस श्रम के लिए आप का बहुत बहुत आभार। दो बातें और आप को बताना चाहूँगा। एक तो यह कि इन दोनों ब्लागों पर सर्च से आने वालों की संख्या एग्रीगेटर्स के मुकाबले आठ से दस गुना है। दूसरा यह कि तीसरा खंबा पर कानूनी सलाह के लिए जो प्रश्न आ रहे हैं उन में ब्लागरों की संख्या नगण्य है। उन्हें सामान्य नेट उपयोगकर्ता भेज रहे हैं। वे मुझे रोमन हिंदी, देवनागरी और अंग्रेजी तीनों में प्राप्त होती हैं। इस से पता लगता है कि ब्लागर समुदाय के अलावा भी इन दोनों ब्लागों पर पाठक है और वे ब्लाग के साथ अंतर्क्रिया में भी संलग्न हैं।
जवाब देंहटाएंआप के द्वारा किया गया तीसरा खंबा का यह उल्लेख मेरे लिए किसी बड़े सम्मान से कम नहीं है।
बहुत उपयोगी लिंक्स मिले .. ब्लाग जगत के समुद्र में से मोती निकालने का काम आप कर रहे हैं .. आपकी मेहनत की दाद देनी होगी !!
जवाब देंहटाएंबहुत उपयोगी ब्लॉग लिंक्स मिले है , इस श्रम के लिए आप का बहुत बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंमेरी नजरों से श्रृंखला बढ़िया चल रही हैं ...मेरी कलम से,आम जन,तीसरा खंबा और अदालत उपयोगी ब्लॉग है।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया है जी,यानि सोने पे सुहागा !
जवाब देंहटाएंएक और चमत्कारिक विश्लेषण रविन्द्र जी...खासकर "आमजन" से परिचय करवाने का बहुत-बहुत शुक्रिया!
जवाब देंहटाएंबढ़िया रही यह भी ..रोचक लगे कई लिंक्स ..शुक्रिया
जवाब देंहटाएंआपको लेख पसन्द आ रहे हैं - इसका शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंपिछली कई कडि़यों को भी देखा।
जवाब देंहटाएंसम्भव हो तो कुछ प्रशंसित नये चिट्ठों व चिट्ठाकारों का उल्लेख भी कर दें ?