चौबे जी की चौपाल
आज चौबे जी कुछ शायराना मूड में हैं। उत्तरप्रदेश के आगामी चुनाव पर अपनी चुटीली टिप्पणी से गुदगुदाते हुए कह रहे है कि "घोषणा हो चुकी है रामभरोसे, कि मेला लगेगा यहाँ पर,काहे कि बड़कऊ,मंगरुआ,ढोरयीं के साथ-साथ अपना लाल बिहारी लाल भी कपडे बदलकर रथ पर सवार हो गया है। गरम है अनुमान की आंच, देखे के खुबई मिलिहें अबकी बार भी जमपुरिया के नाच। जनता खातिर चार दिन की चाँदनी और फिर अँधेरी रात के ई पांच साला मेले में कवन बनेगा राजा और कवन बनेगी रानी ? कवन खायेगा मथुरा का पेंडा और कवन भरेगा काशी मा पानी ? ई तS बाद में पता चली ,मगर इतना तय बाटे कि अबकियो बार खुलिहें जरूर खजाना कS मुंह। गरीब जनता, गरीब राज्य मा चंद दिन खुबई चलिहें शो अमीरी के। जे जितिहें ऊ नए जोश मा होली खेलिहें। राज करिहें । जे हारिहें ऊ जहर बुझल तीर चलईहें। बारी-बारी से गरिईहें सबके। जनता काल्हो तमाशबीन रहली, आजो तमाशबीन हैं और कल भी रहेगी ।"
"बाह-बाह चौबे जी महाराज,एकदम्म सटीक सुनाये हैं आप मौसम कs आँखों देखा हाल। एक साथ रहते हुए भी न इनके ताल मिलत है,न मेल होत है। पांच साल तक ससुरा यही खेल होत है।एक दल से बन जात हैं अनेक और चुनाव के बखत एकता की बात करके तालमेल होई जात हैं। आजकल हर कोई जोड़-तोड़ में जुटा है। चाहे वो धन का हो या वोट का। कोट का हो या लंगोट का। देश जाए भांड में आपन काम चकाचक ।इसीको कहते हैं वोट का कमाल,लाल की बदली चाल।" कहलें राम भरोसे ।
तभी चहकते हुए गुलटेनवा ने कहा कि "अपने खुरपेंचिया जी उन नेताओं के विरुद्ध कम्पैन चलाने जा रहे हैं जो भ्रष्टाचार में विश्वास नही रखते। कितना महान सोच है अपने खुरपेंचिया जी की ।उनका मानना है कि धनसंग्रहों के टुटपुंजिया तरीकों का स्थान योजनाबद्ध तरीकों से सरकारी सौदों की दलाली से पैसा बनाना कोई आसान काम थोड़े न है ? ऐसे राजनेता को समाज में श्रेष्ठ नैतिक आचरण के लिए आदर्श माना जाना चाहिए । विकास का मतलब हर तरफ विकास दिखाई दे, न कि केवल बायपास दिखाई दे । विकास हर मरद में,हर लुगाई में होना चाहिए । विकास भ्रष्टाचार में,मंहगाई में होना चाहिए। राजनीति को राजनेताओं के सदाचार से छुटकारा दिलाना है। तभी सरकार के मंत्री और अफसर समाज के लोगो को गोलमाल करके नही बहलाएँगे,वल्कि सीधे-सीधे कहेंगे इतना दो और इतना ले लो । सब्जियों की तरह हमारी गृहणियां घूस में भी तोलमोल कर सकेंगी ।सबका भला होगा,सबका विकास होगा। फिर न आंकड़े उदास रहेंगे और न भ्रष्टाचार की करतूतें बायपास रहेंगी। चुनाव के समय नेताओं को यह हिसाब देना होगा कि कवन पार्टी भ्रष्टाचार और सदाचार में संतुलन बनाने में सफल रही है, उसी को वोट दिया जाए।"
इतना सुन के रमजानी मियाँ ने अपनी लंबी दाढ़ी सहलाया और फरमाया,कि "बरखुरदार लकीर मत पीट,जो घट गया सो घट गया। वो घोटाला कहाँ रहा जो आपस में बँट गया ? बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि भ्रष्टाचार से नफ़रत करो भ्रष्टाचारियों से नही । इसीलिए हमारे मजबूर मंत्री जी कोर्ट की लक्षमण रेखा को नही मानते और कहते हैं कि अदालत का तो काम ही है बिना वजह ऊंगली करना । ज़रा सोचिये कि जब हम लक्ष्मण रेखा पर निगाह रखेंगे तो विकास कैसे करेंगे ? इसपर एक शेर फेंक रहा हूँ लपक सकते हो तो लपक लो मियाँ, अर्ज़ किया है - रहनुमाओं की अदाओं पर फ़िदा है दुनिया, इस बहकती हुई दुनिया को संभालो यारों ।"
"बाह-बाह-बाह, शुभानाल्लाह मियाँ क्या शेर फेंका है ? हमरे देश की ई सबसे बड़ी बिडंबना है कि सबसे कम योग्यता पर आप विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का चुनाव लड़ सकते हैं । विधायक बनाने की परीक्षा में बैठ सकते हैं ।जनता की कोर्ट में जा सकते हैं । हमरे देश की जनता वेचारी इतनी सीधी है कि वह प्रत्याशी की कोई योग्यता नही देखती । वह प्रत्याशी का कोई ऐब नही देखती । वह कभी भी अपने निवर्तमान विधायक से यह नही पूछती कि उसने पांच साल में क्या-क्या कारनामे किये ? कौन-कौन से गुल खिलाये ? पांच साल में करोड़ों रुपये कहाँ-कहाँ, कैसे-कैसे ठिकाने लगाए ? वह पूछती नही और वे बताते नही । सबसे अहम् मुद्दा सबसे गौण हो जाता है । अगर वह पूछे तो उसे पता चले कि किसी वर्तमान विधायक ने विकास कोष से मिलने वाली धनराशी का ७० फीसदी से ज्यादा खर्च नही किया । ये पब्लिक है सब जानती है, अगर ये सच है तो फिर नकारा,भ्रष्ट और अपराधी नेताओं को वो बाहर का राश्ता क्यों नही दिखाती ? राजनीति से अपराधीकरण का खात्मा क्यों नही करती ? वास्तव में जनसेवक बनने लायक लोगों को अपना रहनुमा क्यों नही बनाती ? है किसी के पास जबाब ?" पूछा गजोधर ।
इतना सुन के तिरजुगिया के माई के ना रहल गईल, कहली कि "जे नेता न काम के न काज के हैं, मगर दुश्मन अनाज के हैं ...अईसन नेता के बाहर का रास्ता दिखा दS लोगन । ना रही भ्रष्टाचारी बांस, ना बाजी फटही बांसुरी ।"
इतना सुनके चौबे जी सेंटीमेंटल हो गए और कहने लगे कि " नैतिकता का तकाजा तो यही है कि खुद सभी राजनितिक दल ऐसी नियमावली बनाए जिससे जनसेवा करने वाले असली चहरे हीं आगे आयें पर सवाल यह उठता है कि जब अपने साथ रहने वाले सभी बदमाश शरीफ नज़र आते हों तो ऐसे में पहल करेगा कौन ?इतना कहकर चौबे जी ने चौपाल अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया।
रवीन्द्र प्रभात
(दैनिक जनसंदेश टाइम्स/१६.१०.२०११ )
hariyar bans ke karchi se pitayal wali chot dihle han....choubeji..
जवाब देंहटाएंjhakkas post......boojhin ta' damplat post ba.........
pranam.
भैया ई चौबे जी के बात तS निराली हS ...आनंद आ गईल चौपाल के मिनट पढ़के,बहुत-बहुत बधाई रामभरोसे !
जवाब देंहटाएंदेश के मौजूदा हालात पर सही और सार्थक कटाक्ष है चौबे जी की चौपाल, रवीन्द्र जी आपने व्यंग्य की एक मौलिक विधा इजाद की है, जो शायद अबतक अछूती थी,इसके लिए आभार आपका !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया, एकदम झक्कास !
जवाब देंहटाएंसुन्दर व्यंग्य, जबरदस्त कटाक्ष !
जवाब देंहटाएंई तो फार द पीपल भाई द पीपल आप द पीपल, पीपल के झाड पर पीपल जैसन होइ गवा :)
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंरचना चर्चा-मंच पर, शोभित सब उत्कृष्ट |
जवाब देंहटाएंसंग में परिचय-श्रृंखला, करती हैं आकृष्ट |
शुक्रवारीय चर्चा मंच
http://charchamanch.blogspot.com/