चौबे जी की चौपाल
आज चौबे जी कुछ शायराना मूड में हैं। देश के घटनाक्रम पर अपनी चुटीली टिप्पणी से गुदगुदाते हुए चौबे जी ने कहा कि " राजनैतिक निजाम भी ससुरा मौसम की तरह तिरछा हो गया है आजकल । कभी उपवास का मौसम तो कभी यात्राओं का । शुरू हो गया झांसी से रामलीला पार्ट टू । मीडिया भी चना जोर गरम बाबू मैं लायी मजेदार कह-कहके जनता जनार्दन को जीभ लपलपाने के लिए विवश कर रही है । अन्ना बुढऊ और सलवार वाले बाबा ने उपवास का अईसा चस्का लगाया, कि बरकऊ,मंगरुआ,ढोरयीं सब ससुरा बात-बात में उपवास रखने की धमकी देने लगे है। नेता परेशान कि आखिर माल कहाँ रखे और खाल कहाँ रखे । अब हर किसी के पास मोदी जईसन रुतवा तो है नाही कि एयरकंडीशंड कक्ष मा एकादशी ब्रत का उपवास ठोक दे और जब प्रतिक्रिया की बात आये तो अपने लालू भाई की तरह बिन मौसम बरसात हो जाए। गुड़गुडाने लगे हुक्का बिलावजह । ज़माना बदल गया है रामभरोसे, नेताओं की तरह रागदरबारी लेखक भी हाई टेक होने लगे हैं । एयरकंडीशंड कक्ष मा बैठके मेघ का वर्णन करने लगे हैं और बाबा लोगों की बात मत पूछो एक्सरसाईज के बदले रथ की साईज ठीक करवाने में लगे हैं । हम तो कहेंगे कि बाबाजी को रथयात्रा का पेटेंट करा ही लेना चाहिए । एक-दो और ट्रस्ट बन जायेंगे, एक-दो और बाल-गोपाल पैदा हो जायेंगे ।"
"एकदम्म सही कहत हौ महाराज अपने खुरपेचिया जी जब से सुने हैं कि देश मा यात्राओं का मौसम आ गया है तो वे भी "पराजय रथ" निकालने की तैयारी मा हैं। कह रहे हैं कि हम्म शायर,सिंह,सपूत थोड़े न हैं कि लिक से हटकर चलेंगे । अपनी खटारा एम्बेसडर को अर्जुन के रथ की भाँती सजाने में मशगूल हैं आजकल। थोड़ा भी मलाल नाही है खुरपेचिया जी को कि काहे किसी ने अपनी यात्रा कS नाम स्वाभिमान यात्रा, क्रान्ति यात्रा, सेवा यात्रा रखी है। जब कुछ बढ़िया नाम नाही बचा तS खुरपेचिया जी ने पराजय यात्रा शुरू करने की सोची है । उनका मानना है कि इस नए नामाकरण की स्पष्टवादिता से प्रभावित होकर सहस्त्रो बुद्धिमानों का उन्हें समर्थन मिलेगा ।वे गाँव-गाँव जाकर धुआंधार भाषण देंगे कि हम्म भी हैं पाईपलाईन में उन नेताओं की तरह जो भूख,बेरोजगारी,भ्रष्टाचार ,जातिवाद और धार्मिक संकीर्णता जैसे असुरों को पराजित करने का वचन देते हैं मगर पराजित करने के चक्कर में खुद पराजित हो जाते हैं । हम्म भी लगवाएंगे जेवें अपनी लंगोट में ताकि भावी पीढ़ी के लिए कुछ बचा सके । घूस का पटेंट करवाएंगे ताकि फिर कोई अन्ना टाईप बुढऊ उपवास रखने की हिमाकत ना कर सके । ज़रा सोचिये महाराज कितने उच्च विचार है हमरे खुरपेचिया जी के । आखिर इंसान घूस नाही खायेगा तो क्या घास-फूस खायेगा ?" बोला राम भरोसे।
इतना सुनकर रमजानी मियाँ से रहा नही गया, अपनी लंबी दाढ़ी सहलाया और मुंह के पान पर हल्का सा चुना तेज़ करके फरमाया " बरखुरदार, देश गरीबी की कैद मा है । गरीबी फाईलों की कैद मा है । फाईलें अफसरशाही की कैद मा है । अफसरशाही नेताओं की कैद मा है और नेता न कबो केहू की कैद में रहे हैं और ना रहेंगे । इत्ती सी बात नही समझ मा आती है हमरी देश की जनता को । बात-बात मा उपवास करे के धमकी और उसके पीछे भेंड चाल की भीड़ । अन्ना बाबा के उपवास का का हुआ परिणाम...ईमान पहिले जैसा अभी भी सलामत है और बईमानी की छौंक थोड़ा संभालकर तड़का मार रही है । जवन काम पहिले दुई सौ मा होई जात रहे ऊ काम बच-बचाके चार सौ मा होत है । पहिले भी ईमान के समोसे के साथ चाय ठोकने की परंपरा थी अब समोसे की जगह पेस्टिज ने ले लिया है और चाय की जगह कॉफ़ी ने । यानी भ्रष्टाचार का प्रमोशन हो गया है। रिश्वत भी सही,अन्ना भी सही ताकि ईमान सलामत रहे । का गलत कहत हईं गजोधर ?"
"अरे नाही रमजानी भैया, तू और गलत कबो नाही हो सकत" बोला गजोधर ।
मगर तिरजुगिया की माई से ना रहल गईल । कहली कि "रामाजानी मियाँ ई बताओ, कि जब उपवास और यात्रा की बदबू से ना भागी भ्रष्टाचार रुपी चुड़ैल तो फिर कैसे भागी ई हमरे देश से ?"
हम्म तोके बतावत हईं चाची, इतना कहके बीच में कूद पडा गुलटेनवा । बोला "हमरे देश मा भ्रष्टाचार कS आलम ई हS कि बिना पैसे सरकारी दफ्तरों में फाईल नाही खिसकत। बाबू निगाह नाही उठावत। अफसर बात नाही सुनत। लक्ष्मी मईया कS दीदार होत चट मंगनी पट वियाह होई जात हैं। गरीब और गरीब होई जात हैं और अमीर और अमीर होई जात हैं,फिर भी नेतवन के कहना बा कि हमरे देश मा जनता के राज हS। थाने में चले जाइए- गरीब की पीड़ा कोई नाही सुनत और मालदार मनई के देख के कुर्सी छोड़ के उठ जात हैं थानेदार साहेब ।अपराधी के शरीफ और शरीफ के .मुजरीम सिद्ध करे में इनके मिनटों नाही लगत। गरीब किसानन खातिर तमाम सरकारी या गैर सरकारी योजनाए हैं मगर पहिले कमीशन फिर लाभ । बैंक मा बिना व्यवहार बढाए कर्जा नाही मिलत। अगर वास्तव में हमरे देश मा जनता का राज होत तS हर हाथ के काम होत । हर पेट के रोटी मिलत । हर सिर पर छत होत । ई देश मा कवनो काम खातिर घूस नाही देवे के पडत । घूस की इतनी बड़ी कौम पैदा नाही होत । राजनीति मा भ्रष्ट लोगन के बोलबाला नाही होत । कुल मिलाके हम ईहे कहब कि उपवास और यात्रा से कुछ फरक नाही पडी रमजानी भैया कुछ हमही लोगन के करे के पडी । तभी ई देश मा भ्रष्टाचार की जगह विकास की गंगोत्री बही ।
एकदम्म ठीक कहत हौ गुलटेन, सुभानाल्लाह ! का हमरे मन की बात ठोकी है हमरे ऊपर भैया गुलटेन । ईहे मौजू पर दुष्यंत साहेब का एक शेर अर्ज है कि " अब तो इस तालाब का पानी बदल दो,ये कमल के फूल कुम्हलाने लगे हैं ...!" रमजानी मियाँ ने फरमाया ।
बाह-बाह क्या बात है रमजानी मियाँ ! एकदम्म सही कहे हो यानी सोलह आने सच बचवा । अब हमनी के एगो संकल्प लेबे के पडी कि जईसे चुनावजीतला कs बाद सरकार निरंकुश हो जाला,वैसहीं निरंकुश हो जायब सs हमनी के भी चुनाव के बखत, ईंट कs जबाब पत्थर से देबे खातिर । सबकी सहमति के साथ इतना कहके चौबे जी ने चौपाल अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया ।
रवीन्द्र प्रभात
(दैनिक जनसंदेश टाइम्स/०९.१०.२०११)
गज़ब की चौपाल है! अफसोस यही है कि कागजे में लगत है, अउर डोलत है कम्प्यूटर में जैसे कागद की नाव डोले है समुंदर में।
जवाब देंहटाएंए हो रबीन्दर जी ! हम त पहिलहीं कह दिए थे के अन्ना जी के अनसन का हमरे अफिसवा मं त कउनो फर्क परबे नहीं किया है .......नहीं ...हाँ ! पड़ा त है.....पहिले लोग डरता था के कहीं पउडर वाला नोटवा थमाय के भितराय त न देगा....अब कहता है के जा.....जा....कबूतर उड़ जा ....तोर बतिया सुनने बाला अभी पैदए नहीं हुआ है. अब त अफिसवा का बाबू लोग नोटवओ ले लेता है अ कमवओ नहीं करता है.
जवाब देंहटाएंअन्ना जी ! बहुत बढ़ियाँ माणूस हैं ....पर का करें ....बाकी माणूस कहता है के हम त बदलबे नहीं करेंगें .....अभी एतना ज़ल्दी कलजुग को कइसे ख़तम कर देंगे......अबे त कलजुग का जबानी चल रहा है .....
माल कहाँ रखें और खाल कहाँ.....गजबै कई दिया है बाबू ! देखना कहीं आपौ क कउनो नोटिस-फोटिस न आ जाय !
जवाब देंहटाएंज़ोर का लपेटे हो गुरु !
कल 11/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
आजकल जउनी तिरा कै माहौल बना भवा है, वहि पर बड़ी बढि़या पोस्ट लिखेव है आप तौ, यहि के खातिर बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंचौपाल के माध्यम से आज की व्यवस्था पर एक बेहतर व्यंग्यात्मक चोट के लिए साधुवाद !
जवाब देंहटाएंअच्छी अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंजोरदार व्यंग्य व्यवस्था के खिलाफ, बधाईयाँ !
जवाब देंहटाएंमाल कहाँ रखें और खाल कहाँ....जोरदार व्यंग्य !
जवाब देंहटाएंVERY NICE
जवाब देंहटाएंहम तो मौन व्रत धारण किए हुए हैं बबुआ :)
जवाब देंहटाएंवाह ....बहुत बढि़या ।
जवाब देंहटाएंराउर ठीके कहले बानी,बहुत अच्छी प्रस्तुति,बधाई !
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