चौबे जी की चौपाल
आज गांधी जयंती है । रामभरोसे की मडई के बाहर बैठिके में चौपाल लगाए हैं चौबे जी। गांधी बाबा की तस्वीर को फूल मालाओं से लादके ध्यान मग्न मुद्रा में है पूरी चौपाल । "वैष्णव जन तो तैने कहिये जे पीर पराई जाने रे..." की धुन पर मंद-मंद स्वर लहरियां प्रसारित हो रही है । गांधी जी को नमन करने के बाद बोले चौबे जी, कि
"जीवन में यदि विवादों से मुक्त रहना है तो गांधी जी के बन्दर बनो, मस्त कलंदर नाही । पिछले साल गांधी बाबा के आशीर्वाद से एगो बहुत बड़हन मुसीबत से बच गए थे अपने खुरपेचिया जी ।"
ऊ कईसे महाराज ? पूछा राम भरोसे
"बात ई हs बचवा कि पिछले साल आज ही कs दिन सुबह -सुबह मुहनोचवा के स्कूल मा गए रहेन खुरपेचिया जी चीफ गेस्ट बनके। गांधी जयंती समारोह के दौरान हेडमास्टरनी के कुछ सिरफिरे गोली मार के भाग गए । थोड़ी देर मा पुलिस इंस्पेक्टर भी आ गयेन तहकीकात खातिर । आंखी तरेर के खुरपेचिया जी से पूछें कि ई बताईये खुरपेंचिया जी,कि कातिल का हुल्लिया कईसा था ? खुरपेंचिया जी बोले कि साहब देखा ही नहीं तो कईसे बताएं कि कईसा था ससुरा ? मतलब ? मतलब ई इन्स्पेक्टर साहेब कि हम्म कोई ऐरे- गैरे तो हैं नाही...असली गांधी-भक्त हैं हुजूर । अव्वल तो हम्म भजन में पूरी तरह डूबे हुए थे । आँखें बंदकर रसास्वादन कर रहे थे । ऐसे में हम्म क्या देखते अऊर देखा भी होता तो झट से आंख बंद कर लेते क्योंकि हम्म कोई भी बुरा काम देख नहीं सकते हुजूर । इन्स्पेक्टर साहेब झेंपते हुए खुरपेंचिया जी के बगल में बईठे नक्कट्यिया के परधान से पूछे कि परधान जी आप कुछ बताएँगे ? आपने तो गोलियों की आवाज़ सुनी होगी ? अरे हुजूर जब हमरे चीफ गेस्ट जी बुरा नाही देख सकत त हम्म कईसे सुन सकत हईं हुजूर ? सुनता तो जरूर बताता । अच्छा तो आप दो नंबर वाले बन्दर हैं ? अब जो समझिये ...आपकी मर्जी...ही...ही..करते हुए परधान जी एक ओर खिसक लिए । इन्स्पेक्टर साहेब ने एक नज़र चारो ओर दौडाई अऊर उहाँ अपने अकलूआ के देख के बोला...सुन इधर आ ...तुमने जरूर देखा होगा...हाँ सर जी देखा था । शाबास ! तुमने गोलियों की आवाज़ भी सुनी होगी ...हाँ सुनी थी साहेब । वैरी गुड...वैरी-वैरी गुड । ह्त्या की पूरी बात बताओ ...इतना कहके इन्स्पेक्टर मुस्कुराया । अकलूआ कुछ आगे बोले तभी वहीं खड़े कातिल ने उसे इशारों-इशारों में धमकाया । इतना देखते ही अकलूआ को भी गांधी जी का आदर्श याद आया । उसने कहा कि हुजूर मैंने सब कुछ देखा-सुना जरूर था लेकिन कुछ बोल नहीं सकता । क्यों ? क्योंकि मैं गांधी जी का तीसरा बन्दर हूँ ।" चौबे जी ने फरमाया ।
इतना सुन के पूरा चौपाल ठहाकों में परिवर्तित हो गया । रमजानी मियाँ ने दाढ़ी सहलाते हुए कहा कि "अम्मा यार चौबे जी, ज़माना बदल गया है । हर चीज मशीनी हो गयी है , यहाँ तक कि भावनाएं भी । भावनाओं की कब्र पर उग आये हैं घास छल- प्रपंच और बईमानी के , ऎसी स्थिति में लोग गांधी के उपदेशों को उलटा-पुलटा करके नाही सोचिहें तs का जान मुसीबत मा डालिहें ? जान बचे त लाख उपाए ।"
"सही कहत हौ रमजानी भैया, हम्म तोहरी बा क समर्थन करत हईं । हमरे एगो मित्र हैं हरिश्चन्द्र शर्मा जी , अफसोस तो ई है कि सुन्दर- सुन्दर वातें करने वाले हमरे शर्मा जी हर दूसरे-तीसरे दिन सच बोलने के कारण किसी न किसी हादसे की चपेट में आ ही जाते हैं । एक बार कॉलेज के कुछ मनचलों को राह चलते गांधी- दर्शन का पाठ पढाने के चक्कर में शर्मा जी ने अपने हाथ- पैर तुड़वा लिए । जब अस्पताल में हम गएँ और हिदायत दीं कि ऐसे राह चलते गांधीगिरी न किया करो शर्मा तो जानते हो का कहा ससुरा ?"
"का कहा गजोधर ?"
"कराहते हुये कहा कि- यार दिल है कि मानता ही नहीं । अब शर्मा के कौन समझाये कि यार शर्मा जी, ज़माना बदल गया है गांधीवाद के असली अनुयायी ऊहे मानल जात हैं जे गांधी जी दिखाए रहिया पर चलत जरूर हैं मगर खाली पैर नाही । मचरै-मचर करत चांदी कs जूता पहिन के ।" इतना कहके चुप हो गया गजोधर ।
तभी गुलटेनवा से नहीं रहा गया, बोला " अब हमके समझ मा आया कि अपने खुरपेंचिया जी कईसे सफल हैं नेतागिरी मा ?"
"कैसे सफल हैं गुलटेन बबुआ ?" तपाक से पूछ बैठी तिरजुगिया कs माई ।
"बात ई हs चाची, कि गांधीवादी सिद्घांतों की व्यावहारिकता मा घुस के बईठ गए हैं अपने खुरपेंचिया जी, असली गांधीवादी नेता की तरह । कहते हैं कि गांधी जी दांडी मार्च किये थे तो हम्म भी बार-बार स्विटजरलैंड मा पास के कवनो होटल-शोटल से स्विस बैंक तक मार्च करत हईं साल में दुई-तीन बार । इससे मार्च कs सम्मान भी होई जात है अऊर देश का भला भी । गांधी जी असहियोग की बात करत रहेन हम्म हर ईमानदार के साथ असहियोग करके उनके ई सिद्धांत कs सम्मान करत रहत हईं हमेशा । गांधी जी बात मा खिलाफत की बात करत रहेन....हम्म भी उनके पदचिन्हों पर चलके खूबे खिलाफत करते हैं विपक्ष के हर अच्छे कामों का । इससे गांधीवाद का सम्मान भी होई जात है और ससुरी अपनी राजनीति की इज्जत भी रह जात है । कितने ऊँचे विचार हैं अपने खुरपेंचिया जी के ? एकदम्म दिव्य दृष्टि संपन्न हैं अपने खुरपेंचिया जी ।"
बरखुरदार क्या फरमाया है खुरपेंचिया जी के सम्मान मा अदम साहब का एगो शेर फेंक रहा हूँ कि "लगी है होड़-सी देखो अमीरी औ गरीबी में/ये गांधीवाद के ढाँचे की बुनियादी खराबी है।" रमजानी मियाँ ने फरमाया ।
इतना सुनते हीं गंभीर हो गए चौबे जी और कहने लगे कि बबुआ गांधीवाद के सही मायने नाही समझे हमरे देश कs नेता लोग । अपने-अपने ढंग से करते रहे व्याख्या । इसीलिए हम्म विकास के बदले विनाश की ओर अग्रसर हैं । गांधी के इस देश में खो गया है गांधी । चलो मिलके ढूँढते हैं । इतना कहके चौबे जी ने चौपाल अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया ।
() रवीन्द्र प्रभात
(दैनिक जनसंदेश टाइम्स /०२ अक्तूबर २०११)
चौपाल की चर्चा सार्थक है।
जवाब देंहटाएंगाँधी अब बाज़ार हैं,औजार हैं,
जवाब देंहटाएंहम लाचार और शर्मसार हैं !
फिर भी हे मोहन ! आज तुम बहुत याद आ रहे हो
गांधी के इस देश में खो गया है गांधी । चलो मिलके ढूँढते हैं । यही सच है चौबे जी महाराज !
जवाब देंहटाएंखूब जमी है चौपाल चौबे जी की ...अपने आप में अनूठा है यह व्यंग्य !
जवाब देंहटाएंसच्चाई तो यह है कि आज हाशिये पर है गांधी के विचार !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब,बहुत बढ़िया, गांधी के देश में ही खो गया है गांधी ....एक और जहां सस्ते व्यंग्य लिखकर लोग वाहवाही लेने लगे हैं वहीँ आप जैसे व्यंग्यकार व्यंग्य की गरिमा को बचाए हुए हैं.आपने तो व्यंग्य का अंदाज़ ही बदल दिया है.
जवाब देंहटाएंलगी है होड़-सी देखो अमीरी औ गरीबी में/ये गांधीवाद के ढाँचे की बुनियादी खराबी है।........
जवाब देंहटाएंdhinchak vyang....
pranam.