कार्यक्रम के बाद ब्लॉग पर कई लोगों की प्रतिक्रियाएँ देखने को मिली, कई लोगों ने मुद्दे अच्छे उठाए जैसे रवि रतलामी जी ने कहा "जिनके चेहरों से परिचित हैं उनके ब्लॉग से परिचित नहीं .. काश एक परिचय सत्र होता !"
मैं भी मानता हूँ कि भोजनोपरांत यदि 'परिचय सत्र' होता तो सबको सबसे परिचय मिल जाता। 'परिचय सत्र ' की मांग उचित ही है। आगे के कार्यक्रमों में इस बात का ध्यान रखा जाएगा रवि जी।
हिन्दी ब्लॉगिंग से आठ साल से भी अधिक समय से जुड़े होने वाले एक फुरसतिया ब्लॉगर ने भी यह माना, कि "खूब शानदार कार्यक्रम हुआ। आयोजकों ने खूब मेहनत की। तमाम घोषणायें हुईं। लोग एक दूसरे से मिले मिलाये। खूब सारी यादें समेटे हुये लोग अपने-अपने स्थान को गम्यमान हुये। हिन्दी ब्लॉगिंग के इतिहास में एक सुनहरा पन्ना जुड़ गया। " शुक्रिया ।
लेकिन उन्होने प्रेमचंद के उस वयान को भी अंकित किया कि “क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे” ? क्यों नहीं कहोगे भाई, कहो जी खोलकर कहो । हमारी एक फितरत से तो आप वाकिफ हो ही कि सम्मान करना मेरे फितरत में शामिल है । दूसरी भी फितरत जान लो कि हम सुनना भी जानते हैं, करना भी जानते हैं और अंतत: विजयी होना भी....।
क्षद्म आलोचना को अपनी अभिव्यक्ति का धार बनाने वाले एक प्रबुद्ध साहित्यकार हैं डॉ रूप चंद शास्त्री मयंक जो आधारहीन बातें करके सुर्खियां बटोर रहे हैं आजकल । आगत अतिथियों का स्वागत करके आयोजकों के फोटो को दिखाकर यह साबित करना चाह रहे हैं कि आयोजक गण सम्मानित हो रहे हैं । वहीं कानपुर के डॉ पवन कुमार मिश्र ने तो मुझपर गंभीर आरोप ही लगा दिया कि मैंने पैसे लेकर सम्मान दिया है । और भी कई तथ्यहीन आरोप हैं, उपरोक्त दोनों पोस्ट का स्नेप शॉट ले लिया गया है, कानून के विशेषज्ञों से वार्ता की जा रही है । शीघ्र ही कार्यवाही की प्रक्रिया होगी ।
अरुण चन्द्र राय और कुश्वंश ने यह सवाल किया था, कि रश्मि प्रभा जी आख़िरकार क्यों नहीं आयीं कार्यक्रम में, लीजिये उन्हीं से सुन लीजिये :

रश्मि प्रभा
शामिल न हो पाने का दुःख हमेशा रहेगा …. पर तबीयत ने इजाज़त नहीं दी .
यह देखकर दुख होता है कि हमारा यह ब्लोगजगत एक अ -सहिष्णु क्लेशवादी समाज बनता जा रहा हैं । किसी की ख़ुशी देख के हम नांच नहीं सकते, तो कम से कम आँगन को तो टेढा बताने की सुविधा न लिया जाय । मुझे लगता है कि हममें- आपमें आत्म विश्लेषण या अंतर्निरीक्षण करने का साहस नहीं रहा, यही कारण है कि हम-आप अपने मन के उन दर्रों मे झांक नहीं पा रहे हैं जो अन्यथा हममें-आपमें छुपी हुयी है । अपनी असफलताओं से बौखलाकर दूसरों के प्रति दुराग्रह का भाव अंतत: स्वयं के नुकसान का हीं कारण बनता है । कार्यक्रम में क्या कमियाँ रही, आगे कैसे दुरुस्त किया जाये ....आदि-आदि विषयों पर मैं तो आत्म विश्लेषण कर रहा हूँ और यह भी महसूस कर रहा हूँ कि आपके दुराग्रह में स्वयं का ज्यादा और दूसरों का सम्मान नगण्य है । यह सर्व विदित है कि अनेक व्यक्ति अपनी भूलों की तो उपेक्षा करते रहते हैं लेकिन दूसरे व्यक्तियों के कार्यों की जांच बड़ी कटुता से करते हैं । हमें इस दृष्टिकोण को पलटकर दूसरों की त्रुटियों को क्षमा करके अपनी त्रुटियों की कठोरता पूर्वक जांच करनी चाहिए ।
कुछ ऐसी प्रतिक्रियाएं जिससे हमारी आतंरिक उर्जा में बढ़ोत्तरी हुयी, आभार सहित रख रहा हूँ :

यह अपौरुषेय काम आपके ही वश का है रवीन्द्र जी -बहुत बहुत बधाई सम्मानितों को और आपको भी और आत्मार्पित भी
सभी को बधाइयाँ ।
रवीन्द्र प्रभात को खासतौर पर ।
पुरस्कार-सम्मान का मसला निपटाने के बाद इसे एक सफल आयोजन की
शक्ल देना बड़ी बात है ।
रवीन्द्र प्रभात को खासतौर पर ।
पुरस्कार-सम्मान का मसला निपटाने के बाद इसे एक सफल आयोजन की
शक्ल देना बड़ी बात है ।
परिकल्पना – तस्लीम टीम और विशेष तौर पर रवीन्द्र जी, जाकिर जी को इस आयोजन को बेहद सफल बनाने के लिए बधाई. और भविष्य में उत्तरोत्तर विराट समारोह के लिए शुभकामनाएं.
जिन्होंने मुझे हिम्मत दी, उनका शुक्रिया :
नमस्कार ,,आदाब,,
जब से मैं सम्मेलन से वापस आई हूँ लेखों की भरमार दिखाई दे रही है ब्लॉग्स पर ,,हर कोई अपनी बुद्धि और समझ के अनुसार लिख रहा है जहाँ अभद्र भाषा तक का प्रयोग हो रहा है ,,ख़ैर आयोजन कितना सफल था ,या उसके positive and negative points क्या क्या थे इन पर यदि आप लोग चाहेंगे तो फिर कभी चर्चा होगी लेकिन इस समय ये मेल मैं केवल इसलिये कर रही हँ कि आप लोग इन बातों से विचलित न हों हर आयोजन में कुछ कमियाँ रह जाती हैं जिन्हें अगले कार्यक्रम में सुधार लिया जाता है ,,आप लोगों ने मेहनत कर के इतना बड़ा कार्यक्रम किया उस के लिये आप लोग मुबारकबाद के अधिकारी हैं ,, हम लोग निर्मम आलोचना करने में ज़रा भी नहीं चूकते लेकिन जब स्वयं को ऐसा कुछ करना पड़े तब समस्याओं का भान हो पाता है ....मेरी ओर से आप की टीम बधाई की हक़दार है ! मनुष्य सदैव सीखता रहता है ,,आप लोगों ने इतना बड़ा कार्यक्रम करने की हिम्मत की यही बात बहुत बड़ी है ,,लोगों की बातों पर ध्यान न दें !
सादर
इस्मत जैदी
प्रिय रवींद्र प्रभात जी ,
परिकल्पना ब्लोगोत्सव की सर्वत्र आनंदमयी चर्चा है . आपकी प्रतिभा और कार्यशीलता के आगे मैं नतमस्तक हूँ . इस ऐतिहासिक सफलता के लिए आपको और आपके सहयोगियों को नाना बधाईयाँ और शुभ कामनाएँ . आपको अपने ज़ेहन में रख कर मैंने ग़ज़ल का मतला कहा है -
तुम्हारे जोश को ही देख कर महसूस करता हूँ
कि जैसे मुश्किलों की खाई से मैं भी उबरता हूँ !
प्राण शर्मा
प्रिय रवीन्द्र प्रभात जी,
इतिहास बनाने वाले ब्लोगर अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन की सफलता की कहानी जानने के लिए बेहद उत्सुकता थी |आशा के अनुकूल ही सूरजमुखी सुबह और मोरपंखी शाम के मध्य यह आयोजन सम्पन्न हुआ जिसकी चर्चा की खुशबू का दूर -दूर तक अंत नहीं |समस्त आयोजकों व इसमें शामिल होने वालों को पुन :बधाई |
सुधा भार्गव
डॉ अरविन्द मिश्र के अनुसार :
अब परिकल्पना सम्मान की सूची पर आप नज़र डालें तो यह आपको भान हो जाएगा कि ये सारे सम्मानित लोग तो ब्लॉगर ही हैं अपनी बिरादरी के ही हैं ..फिर इतना क्षोभ ,इतनी पीड़ा आखिर क्यों ? इससे तो यही लगता है कि खुद का निगलेक्ट होना ही लोगों को कचोट रहा है ..
डॉ अरविन्द मिश्र के अनुसार :
अब परिकल्पना सम्मान की सूची पर आप नज़र डालें तो यह आपको भान हो जाएगा कि ये सारे सम्मानित लोग तो ब्लॉगर ही हैं अपनी बिरादरी के ही हैं ..फिर इतना क्षोभ ,इतनी पीड़ा आखिर क्यों ? इससे तो यही लगता है कि खुद का निगलेक्ट होना ही लोगों को कचोट रहा है ..
रवि रतलामी जी ने ब्लोगोत्सव-2010 में एक साक्षात्कार के दौरान परिकल्पना सम्मान को कहा हिन्दी ब्लागिंग का आस्कर, क्योंकि इसके अंतर्गत व्यक्ति नहीं कई वर्गों में समूह सम्मानित होता है ...आपका आभार रवि जी ...!
और काजल कुमार जी का यह कार्टून भी अच्छा रहा, आलोचनाओं का तनाव कम कर गया, आभार काजल जी .

और अंत में :

हम चाहें न चाहें पर किसी न किसी भाव में हम अपनी पहचान बता जाते हैं, जिसकी जीतनी समझ थी उसने वैसा कृत्य किया, हमारा क्या -
" हम तो दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है, जिस तरफ से जायेंगे वह रास्ता हो जाएगा ।"
परिकल्पना ब्लॉग उत्सव का ये कारवां बढ़ चला है। फिर होगा उत्सव, इससे भी बड़ा, इससे भी भव्य ......पहली बार दिल्ली में हुआ, दूसरी बार लखनऊ में और तीसरी बार .....? कयास लगाएं, मिलता हूँ एक विराम के बाद !
जय हो ! खूँटा गाड़ दिया है ।
जवाब देंहटाएंकुछ तो लोग कहेंगे
जवाब देंहटाएंलोगों का काम है कहना...
सूचनाओं और प्रतिक्रियाओं से जाहिर हुआ कि कार्यक्रम बढिया था। कार्यक्रमों में कुछ छोटी मोटी त्रुटियां हो जाती हैं। उनके सामने आने पर सुधारने का मौका मिलता है। आलोचक अपना धर्म निभा रहे हैं आप अपना कर्म निभाईए
जवाब देंहटाएंपरिकल्पना की समस्त टीम को बढिया कार्यक्रम के साधुवाद एवं बधाई।
रवीन्द्र जी,
जवाब देंहटाएंआप तो हिन्दी ब्लोगजगत के कोहिनूर हैं, आपसे फुरसतिया की क्या तुलना । उन्हें फुर्सत में हमेशा ही उलूल-जुलूल लिखकर ब्लॉगरों को चिकोटी काटने में बड़ा मजा आता है । ऐसे खुरपेंचिया यानि फुरसतिया को ज्यादा महत्व देने की कोई जरूरत नहीं । उन्होने आखिर चिकोटी काटने के सिवा किया ही क्या है आठ वर्षों में । आप अपना काम करते जाइए उन्हें बोलने दीजिये ...हर समाज में कुछ ऐसे लोग होते हैं उन्हें भी ढोना पड़ता है । रही उत्तराखंडी शास्त्री और पछुआ पवन की बात तो यह समझ लीजिये कि एक साठ की उम्र पर कर चुका है यानि सठिया गया है और दूसरा अभी नर्सरी का बच्चा है । दोनों की बातों को तबजजो ही न दीजिये । बस अपना काम करिए । ये सब हवा-हवाई हो जाएँगे ।
प्रिय श्रीरविन्द्रजी, खुश रहें और अपनी राष्ट्रभाषा की उन्नति के लिए दिनरात अथक अपना काम करते रहें,यही शुभकामना के साथ..अनेकानेक अभिनंदन ।
जवाब देंहटाएंमेरे लिए लखनऊ आना एक नई उड़ान के जैसा रहा...उन लोगों से प्रत्यक्ष रूप से मिलना जिनसे अप्रत्यक्ष रूप से बात की सुखद अनुभव...नये लोगों से भी परिचय हुआ...और सबसे खास कर मेरी बात कि-"आभासी रिश्ते सिर्फ़ आभासी नहीं होते" को बल मिला...कार्यक्रम वास्तव में अनूठा था...परिकल्पना/तसलीम की पूरी टीम का आभार ...भविष्य मे और भी अच्छे आयोजन के लिए शुभकामनाएँ ...
जवाब देंहटाएंआपने सचमुच वह कर दिखाया है, जिसके बारे मे अमूमन लोग यही सोचते हैं, कि यह कार्य असंभव है । एक सफल और विमर्श से परिपूर्ण आयोजन हेतु बधाइयाँ !
जवाब देंहटाएंआमीन .......... अगले उत्सव का ऐलान हो
जवाब देंहटाएंएक सफल आयोजन के लिए आपको और आपकी समस्त टीम को बहुत बहुत बधाई. आगे भी यह कार्यम्रम इससे भी बड़े रुप में आयोजित होता रहेगा, इस बात का मुझे पूर्ण विश्वास है.
जवाब देंहटाएंफिल्म गुरु में एक डायलॉग था न:
जब लोग तुम्हारी बुराई करने लगें तो समझो तरक्की कर रहे हो...
अनेक शुभकामनाएँ.
बहुत - बहुत बधाई कार्यक्रम की सफलता के लिए ...अनंत शुभकामनाएं आपका हर प्रयास सफ़ल हो ...
जवाब देंहटाएंसादर आभार
लगभग 3 साल से हम लोग एक दूसरे के ब्लॉग पर आते जाते रहे है और 27 अगस्त को पहली बार आपसे मिलना हुआ !
जवाब देंहटाएंजिसको बुराइयाँ देखनी है वो तो कहीं न कहीं से कोई न कमी निकाल ही लेगा ... उसका कोई हल है भी नहीं ... हम लोग अपनी अपनी रिश्तेदारी मे जाते है तो क्या वहाँ उनसे अपने टिकिट के पैसे वसूलते है ... नहीं न ... इतने लोगो से मिलना हुआ यह क्या कम है !
कहने को कहने वाले इस ब्लॉग जगत को एक परिवार कहते है पर जब मामला परिवार को साथ ले कर चलने का होता है तब न जाने काहे सब से पहले यही लोग परिवार मे दरार डालने वालों मे सब से आगे होते है !
बहुत दुख होता है यह सब देख कर ! मैं और मेरे जैसे और भी कई साथी ब्लॉगर बंधु केवल और केवल वहाँ एक दूसरे से मिलने गए थे ... और यकीन जानिए जो खुशी हमें एक दूसरे से मिल कर हुई है वो हमारे लिए सब से बड़ी है ! अपने 3 साल से अनुभव के आधार पर कह रहा हूँ आज हल्ला सब से ज्यादा वो ही मचा रहा है जिसको केवल अपने प्रचार से मतलब है चाहे जैसे भी हो ... रो कर, गा कर ... चीख कर , चिल्ला कर ... कुछ भी हो बस सब की निगाहों मे आना चाहिए !
मैं भी मानता हूँ कुछ कमियाँ थी ... कुछ गलतियाँ हुई ... किस से नहीं होती ... मुझे पूरी उम्मीद है अगले साल आप इन सब बातों से सबक लेते हुये इस से भी कामयाब आयोजन करेंगे !
मेरी हार्दिक शुभकामनायें आपके और आपकी टीम के साथ है !
nice
जवाब देंहटाएंsapna sach hua...
जवाब देंहटाएंaur isko aapne roop diya...
abhar...
सच ! अब इसमें रंज कैसा, मुहब्बत हमने की है
जवाब देंहटाएंकहीं दिल को लगी है, तो कहीं दिल को चुभी है !!
परिकल्पना की समस्त टीम को बढिया कार्यक्रम के साधुवाद एवं बधाई।
जवाब देंहटाएंभविष्य मे और भी अच्छे आयोजन के लिए शुभकामनाएँ ...
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंrajendra tela
15:58 (2 hours ago)
to me
माननीय रविन्द्र्जी
ब्लॉग सम्मलेन के सफल आयोजन के लिए हार्दिक बधायी.जिसके सर पर ताज होता है वही उसका वज़न भी जानता है.आप लगे रहे आगे बढ़ते रहे ,ना थकें ना भटकें ,ना ही व्यथित हों कभी ,मेरी पसंदीदा दो पंक्तियाँ याद रखें "सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग" रोग मुक्त रहो निरंतर चलते रहो....
स्नेह के साथ
राजेंद्र
निस्संदेह यह काम आसान नहीं था जो आपने किया है ,कुछ बेहतरीन विद्वानों को सम्मान देने के साथ साथ, कई नवोदितों को भी हिम्मत बंधाने का कार्य किया है ! कुछ बिंदुओं पर मतभेद के बावजूद, मैं आपको बधाई देता हूँ !
जवाब देंहटाएंरविन्द्र प्रभात जी शायद आप मेरे ब्लॉग पर नहीं आये मैंने तो एक एक क्षण जो मैंने सम्मलेन में जिए हैं उनको बयान किया है मुझे ही नहीं मेरे पति जिनको मैं जबरदस्ती लाइ थी उनको भी वहां जाकर बहुत अच्छा लगा जबकि वो किसी को जानते भी नहीं थे मेरे लिए तो वो एक यादगार दिवस रहा रही बात और लोगों की जिनके मन में कोई शिकायत थी ,तो किसी भी इतने बड़े सम्मलेन में कोई ना कोई तो भूल हो ही जाती है ये समझना चाहिए आपके ये आयोजन खूब परवान चढ़ें मेरी मंगल कामना यही है |
जवाब देंहटाएंसफल आयोजन के लिये बधाई...
जवाब देंहटाएंजिंदाबाद .....!
जवाब देंहटाएंbolne waalon ka mujh kaun thaam saka hai ..
जवाब देंहटाएंbahut badiya aayojan ke liye haardik badhai..
Saadar!
रविंद्र जी, आप जो भी कर रहे हैं वह ब्लागिंग में मील का पत्थर है। दो बड़े आयोजन आप कर चुके हैं। इन दो आयोजनों की समीक्षा करें और अगले आयोजन में गुणात्मक वृद्धि के लिए प्रयत्न करें। सभी ब्लागर आप के साथ हैं। जो नाराज हैं वे भी।
जवाब देंहटाएंरवीन्द्र जी मैने कोई आरोप नही लगाये है ये कुछ डाऊट्स थे आप उस पर अपनी स्पष्ट राय रख सकते थे किंतु ऐसा न हुआ.स्वतंत्र ब्लाग अकादमी बनाने का आज भी मै विरोध करूंगा माना कि आप ईमानदार है किंतु सब आप की तरह नही होंगे. फिर जो स्थिति होगी उसका जिम्मेदार कौन होगा? रही बात शास्त्री जी की तो बडो की कडवी बातो को भी आदर के साथ लिया जाना चाहिये. दरिया बनने का दावा करते है तो अपनी आलोचनाओ से इस तरह उखड गये कि "कानूनी कार्यवाही" की धमकी देने लगे. जरा अपने साथियो की भी अभद्र भाषा का ध्यान कर लीजियेगा.उनके साथ कैसे निपटेगे लगे हाथ यह भी बता दीजियेगा.
जवाब देंहटाएंउम्मीद है आप मेरी बात को समझने की कोशिश करेग...शुभकामनाओ के साथ आपका डा पवन कुमार मिश्र
लगातार तो नहीं लेकिन जब भी मौका मिला परिकल्पना की परिक्रमा करने आ गए... खूबसूरत और सफल आयोजन के बारे में पढ़ कर बेहद खुशी हुई...बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंसफल आयोजन के लिए आपको और आपकी समस्त टीम को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंइतने बड़े कार्यक्रम में कुछ कमियाँ रह जाना बहुत स्वाभाविक बात है.मैं भी उस कार्यक्रम में था.उस कार्यक्रम की ज़बरदस्त कामयाबी के आगे छोटी-मोटी कमियाँ गौण-सी लगती है.दरअसल किसी से expectation ज़ियादा रखने में शिकायतें जन्म लेती हैं.इस कार्यक्रम के बाद उत्पन्न शिकायतें भी इन्हीं कारणों से है.मैं तो रवीन्द्र जी और ज़ाकिर जी की मेहनत को सलाम करता हूँ.
जवाब देंहटाएंइसे ही कहते हैं करारा तमाचा
जवाब देंहटाएंजो उन्हीं को मारा जाता है
जो अपने होते हैं
और आप सब अपने हैं
अपने गलती करते हैं
उन्हें घर से नहीं निकाला जाता
सिर्फ डांटा डपटा जाता है
अगले बरस फुरसत वालों
को कर देंगे सम्मानित
अभी तम्मा तम्मा कर रहे हैं
अगली बार चमक जाएंगे
और बिजी हो जाएंगे
फिर पत्थर बटोरना भूल जाएंगे
वे हमें अच्छे लगेंगे
हम उन्हें भाएंगे
हिंदी ब्लाॅगिंग के वर्तमान
को प्रकाशवान बनाएंगे
ब्लाॅगर हैं हम
ब्लाॅगिंग को जीवन बनाएंगे।
सम्मलेन की सफलता के लिए बधाई|
जवाब देंहटाएंहम भी सम्मलेन में आये थे और कई ब्लॉग लेखक बंधुओं से मिलकर अभिभूत है|
जहाँ तक सम्मलेन के लिए व्यवस्थाओं की बात है बढ़िया थी हमें तो कोई कमी नहीं खली|
रही बात आलोचकों की तो आलोचना करने वाले एक आध सम्मलेन करके खुद देखले पता चल जायेगा कि कितना आसान है या नहीं!!
हर आलोचना हमें ताकत देती है. हर आयोजन हमें और बेहतर करने का हौसला देता है. मैं इस आयोजन को बेहद सफल मानता हूँ. जो कमियाँ रह गयीं, वे हमेशा रहती आयी हैं. हम सबको संतुष्ट नहीं कर सकते. और यह तो यग्य है. या तो माफिया बन जाओं सरकार की गोद में जा कर बैठ जाओं, तब देखिये सुविधा ही सुविधा. लेकिन ब्लागर बचे हुए है. इसलिए वे अर्थ नहीं जुटा पाते.लेकिन वे अर्थवान होते हैं कुछ परेशानी हुयी. कोई बात नहीं. लोग तो जुटे, विचार-विमर्श हो....सुन्दर भावनाओं का प्रसार हो. यही शुभकामना है..मेरी और सभी की. मैंने वहा भाषण देते हुए अचानक एक शेर गढ़ा था, उसे फिर दुहरा रहा हूँ की
जवाब देंहटाएंकोई तकरार लिखता है, कोई इंकार लिखता है
मगर जो अच्छा ब्लॉगर है हमेशा प्यार लिखता है.
परिकल्पना सम्मान समारोह की सफलता के लिये पूरी
जवाब देंहटाएंटीम को बहुत२ बधाई,,,, अगली बार इससे भी अच्छा कार्यक्रम करने के लिये अग्रिम शुभकामनाये,,,,,
सफल आयोजन के लिए सभी साथियों सहयोगियों को बहुत बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंकारवाँ जारी रहे
जब लोगबाग अपने ब्लॉग को ही न संभाल पा रहा हों,ऐसे में किसी भी व्यक्ति,संस्था अथवा समूह द्वारा किसी अन्य को पुरस्कृत करने की सोचना भी-और वह भी बिना किसी आर्थिक आधार अथवा सहयोग की अपेक्षा के- निश्चय ही बेहद श्रमसाध्य और इसलिए सराहनीय है,चाहे विजेता जो हो। गली-कूचे से लेकर नोबल पुरस्कारों तक पर विवाद का साया रहता है। फिर भी,प्रयास जारी रहते हैं कि चयन समावेशी,अधिकतम निष्पक्ष और व्यापक अपेक्षा के यथासंभव अनुकूल हो। उम्मीद की जानी चाहिए कि परिकल्पना समूह भी आगामी आयोजनों में,अब तक की चिह्नित गलतियों से सबक लेगा।
जवाब देंहटाएंमेरा आग्रह है कि भविष्य के आयोजनों में ऐसी हस्तियों को न बुलाया जाए जो दूर से ही कहें कि मुझे ब्लॉगिंग का कुछ नहीं पता या कि लगता है,यहां आकर फंस गया। ऐसे लोगों के हितोपदेश से अच्छा है,ब्लॉगरों को आपसी विचार-विमर्श का समय दिया जाए। ग़ज़ल सुनाने पर भी पाबंदी हो,क्योंकि उसके लिए दूसरे मौक़े हैं। जिन्हें पुरस्कार मिले,उन्हें मंच पर बुलाने के पश्चात्,प्रमाणपत्र देने से पूर्व,उनके ब्लॉग और उस पर हुए काम के महत्व का संक्षिप्त परिचय दिया जाए। इसमें समय अवश्य लगेगा,लेकिन जब आप किसी को साल भर के काम के लिए पुरस्कृत कर रहे हैं,तो वह इतनी पात्रता तो रखता ही है। आयोजकों की ओर से छायांकन(सशुल्क सही) का बंदोवस्त भी होना चाहिए ताकि अल्पज्ञात विजेताओं को मंच पर अपनी तस्वीर खिंचवाने के लिए अपना मोबाइल अथवा कैमरा किसी अनजान को न देना पड़े।
अभी तक तो मुझे इस आयोजन में किसी तरह के साजिश की बू नहीं आ रही थी, लेकिन जिस तरह से आप अनूप शुक्ल और शास्त्री जी जैसे वरिष्ठ ब्लॉगरों का अपमान कर रहे हैं और आयोजन पर उठने वाले हर प्रश्न को सिरे से नकार रहे हैं, उससे तो यही लगता है कि कुछ गडबड है.
जवाब देंहटाएंमेरा एक प्रश्न था कि सम्मान देने का आधार क्या है? चूँकि हमलोगों से वोट डलवाए गए थे तो ये जानना चाहूँगी कि किसे कितने वोट मिले और ये किस आधार पर तय किया गया कि अगर 'विनर' नहीं आएगा तो 'रनर' को सम्मान दे दिया जाएगा. यदि ये सम्मान आप बिना हमारे वोट के देते तो मैं ऐसा प्रश्न नहीं पूछ सकती थी, पर चूँकि हमने अप्रत्यक्ष रूप से भागीदारी की थी, इसलिए पूछा.
शेष, सम्मान पाने वाले ब्लॉगर साथियों को मेरी ओर से बधाइयाँ और आपको भी साधुवाद कि आपने अपना बहुमूल्य समय, श्रम और धन लगाकर इतना बड़ा आयोजन किया.
जिसने आयोजन किया, श्रम किया उसकी सौ गलतिया माफ़। जिसका पेट दुख रहा हो गलतिया नजर आ रही हो तो घर मै बैठ की बोर्ड चपकने के बजाये इससे बेहतर कार्यक्रम कर के दिखाये तब बात करे तो शोभा देता है। सम्मानित किसे किया जाये और किसे नही यह भी श्रम करने वालो का सर्वाधिकार है। हर किसी को तो सम्मानित नही किया जा सकता और चयन मे त्रुटिया भी हो ही जाती है। यह कोई विशेष मुद्दा नही है।
जवाब देंहटाएंन आ सकने का अफ़सोस है। आशा है अगली बार के आयोजन मे जरूर शामिल हो पाउंगा। सफ़ल कार्यक्रम के लिये बधाईया और साधु वाद
" और भी कई तथ्यहीन आरोप हैं, उपरोक्त दोनों पोस्ट का स्नेप शॉट ले लिया गया है, कानून के विशेषज्ञों से वार्ता की जा रही है । शीघ्र ही कार्यवाही की प्रक्रिया होगी । "
जवाब देंहटाएंRidiculous!! condemnable attitude!!
इतने बड़े सम्मेलन के आयोजन और इतने सारे ब्लॉगर्स को मिलने-जुलने का एक मंच उपलब्ध कराने के लिए आप बधाई के पात्र हैं.
जवाब देंहटाएंपर आलोचनाओं को सार्थक रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए... और आप जैसे वरिष्ठ ब्लॉगर दूसरे ब्लॉगर्स के लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करें यह अच्छा नहीं लगता...
कानूनी कार्रवाई वाली बात पढ़कर मन खिन्न हुआ. एक तरफ अभिव्यक्ति के माध्यम 'ब्लॉगिंग’ के विकास के लिए सम्मेलन, सम्मान और अकादमी की बात और दूसरी तरफ किसी के अपने ब्लॉग पर आलोचना करने पर कानूनी कार्रवाई…अगर परिकल्पना सम्मान और आयोजकों की आलोचना (गलत ही सही) पर किसी को जेल या जुर्माना हो जाये तो फिर तो दुनिया के लाखों ब्लॉगर्स को फांसी हो जानी चाहिए जो ऑस्कर, नोबेल और भारत रत्न जैसे सम्मानों की खुल कर आलोचना करते हैं, पक्षपात के आरोप लगाते हैं और गरियाने में मनमोहन सिंह से लेकर बराक ओबामा तक को कहीं का नहीं छोड़ते..
भविष्य के लिए ढेर सारी शुभकामनाएँ..
जवाब देंहटाएंMayank Saxena
10:32 (1 hour ago)
to me
आदरणीय रवींद्र जी,
लखनऊ के कार्यक्रम की झलकियां तस्वीरों में देखीं, सारगर्भित जानकारी लेखों में पढ़ी...चंडीदत्त शुक्ल, निरुपमा जी और तमाम साथियों से भी तारीफ सुनी। सुनकर गर्व हुआ कि हिंदी ब्लॉगिंग इस स्तर तक आ गई है, अच्छा लगा कि मेरे अपने शहर लखनऊ में ये आयोजन हुआ और साथ ही बहुत सारा दुख भी हुआ कि मैं इस आयोजन में शरीक न हो सका।
जब से पहली बार इस कार्यक्रम की घोषणा हुई थी, लखनऊ का बाशिंदा होने की वजह से लगभग तय था कि ज़रूर इस उत्सव का हिस्सा बनूंगा पर किन्ही कारणवश न आ पाया पर हां आयोजन के लिए भूरि भूरि प्रशंसा और बधाईयां मेरे दिल से निकलती हैं। ऐसे अवसर जो अब तक कम आते थे, अब आते रहने चाहिए।
मैं चाहता हूं कि इस कार्यक्रम की तरह हम साल भर और शहरों में भी कार्यक्रम आयोजित करते रहें, इसके अलावा एक अहम लड़ाई सरकार और साम्प्रदायिक-दमनकारी-अराजक ताकतों के खिलाफ जारी रखनी है, सरकार की ओर से वेब सेंसरशिप की तैयारी है, हमें इसके खिलाफ कानूनी के अलावा सड़क से संसद तक लड़ाई लड़नी पड़ सकती है, इसके अलावा कई ब्लॉगर साथियों के उत्पीड़न और आर्थिक-सामाजिक कष्टों के निवारण के लिए भी आगे आना होगा। ऐसे में मुझे और कई और साथियों को हिंदी ब्लॉगरों के एक मानक-व्यापक और प्रामाणिक कानूनी संगठन (रजिस्टर्ड) की आवश्यक्ता अहम जान पड़ती है।
अगर हम ऐसा एक राष्ट्रीय संगठन बना पाते हैं, तो न केवल ऐसे आयोजनों के लिए होने वाले संसाधनों की कमी को साध पाएंगे, बल्कि आने वाले भविष्य में अभिव्यक्ति की आज़ादी की लड़ाई को भी लड़ते रह पाएंगे।
इस कार्यक्रम की सफलता और ब्लॉगरों का उत्साह बढ़ाने वाले पुरस्कारों को वितरित करने के लिए आप सब बधाई के पात्र हैं। हमारे शहर लखनऊ के लिए किसी शायर ने कहा था,
लखनऊ बस गुम्बद ओ मीनार नहीं,
ये महज कूचा-ओ-बाज़ार नहीं
इसके दामन में मोहब्बत के फूल खिलते हैं,
इसकी गलियों में फरिश्तों के पते मिलते हैं
हम साथ रहेगे तो गलियों में फरिश्ते भी मिलते रहेंगे और दामन में फूल भी खिलते रहेंगे....
आपका
मयंक सक्सेना
अदना सा हिंदी ब्लॉगर
#
जवाब देंहटाएंदरिया हो तो बहते रहो.
किसी दरिया ने वैधानिक कार्यवाही कब की है ?
प्रगतिशील ब्लॉगर सोनिया से लेकर रामदेव तक की आलोचना करते हैं बल्कि उपहास तक करते हैं.
क्या क्षमा करने का परामर्श केवल दूसरों के वास्ते है ?
विसंगतियाँ
विडंबना
और त्रासदी.
घोर आपत्ति .
यद्यपि मुझे पता है कि यह केवल एक धमकी मात्र है.
एक बाम्मन को दंड देकर ब्रह्म हत्या का पाप कोई नहीं लेना चाहेगा.
परन्तु धमकी भी क्यों ?
आलोचना पर प्रतिक्रिया आलोचित की सहन शक्ति के स्तर को सामने लाती है.
@मुक्ति जी
जवाब देंहटाएंआपके माध्यम से कुछ अन्य लोगों की आशंकाओं और गलतफहमियों को दूर करना चाहता हूँ:
फ्लैशबैक में जाइए जब रवीन्द्र जी ने सम्मान के लिए अनूप शुक्ल जी,सतीश सक्सेना जी आदि को वोटिंग-विकल्प में डाला था,सतीश जी ने सार्वजानिक रूप से अपने नाम को वापस लिया था जबकि अनूप जी ने सम्मान-समारोहों को लेकर एक व्यंग्यात्मक-पोस्ट 'सदी का ब्लॉगर ' लिख मारा था.तब मैंने भी इस मुख्य बात पर उनसे सहमति जताई थी कि इस तरह के सम्मान न विश्वसनीय होते हैं और न हम जैसों के लिए अपेक्षित.बाद में रवीन्द्र जी ने बताया कि अनूप जी से उन्होंने संवाद स्थापित करने का प्रयास किया पर इसमें उनकी कोई रूचि नहीं थी.
पुनः बाद में इस प्रक्रिया को लेकर रवीन्द्र जी ने जो राय मांगी,उसमें भी सब ऊट-पटाँग तरीके सुझाये गए.सो ,अंतत बहुमत से उन्हें अपने अनुसार परिकल्पना-समारोह करने का मंतव्य दिया गया.
इस कार्यक्रम में संयोंग से मुझे भी सम्मानित किया गया जबकि मेरा उद्देश्य मिलना-मिलाना और परिचर्चा में भाग लेना रथ,जिसका मैंने खूब आनंद उठाया.
कार्यक्रम के तुरत बाद अनूप जी ने फ़िर केवल नकारात्मक रिपोर्टिंग की जो मुझे भी खली और मैंने लिखा भी.सबसे बड़ी बात यही है कि जिस कांसेप्ट को आप शुरू से ही गरिया रहे हो तो उसके लिए आप किस तरह की आलोचना करेंगे? अनूप जी को उस आयोजन में कुछ भी भला नहीं लगा.उन्हें तब अच्छा लगता यदि वहाँ आपस में जूता-लात चल जाता.
शाश्त्री जी पूरे कार्यक्रम में घूम-घूमकर फोटो खिंचा रहे थे,मंच तक अपने कार्ड बाँट रहे थे,महज़ सत्र स्थगित होने को लेकर इतना बखेडा कर देना ठीक नहीं रहा.उल्लेखनीय है कि इन्हीं शास्त्री जी को जील के यहाँ कुछ समय पहले पिता बनाय गया फ़िर जील के ही कारिंदों द्वारा अपमानित किया गया और उन्होंने उफ़ तक नहीं किया.
...रही बात,सम्मान पाने वालों का तो बस मैं तो लोगों से मिलकर आनंदित हूँऔर यह भी समझता हूँ कि मुझसे कई गुना लायक लोग इससे वंचित रहे.
...सो आग लगाने का और रंजिश निकालने का काम रवीन्द्र जी के बजाय और लोगों ने किया है.
...इस कार्यक्रम के सहारे यदि ब्लॉगर-पीठ हथियाने का एजेंडा भी रवीन्द्र जी का है,तो भी हम उनके साथ हैं.केवल की-बोर्ड चलाकर आप वाहवाही लूटना चाहते हैं तो यह मिथ्या भ्रम है !
--- "यही लगता है कि खुद का निगलेक्ट होना ही लोगों को कचोट रहा है".....
जवाब देंहटाएं----सही तो यही है आयोजनों में यह निगलेक्ट फीलिंग किसी को नहीं होनी चाहिए...अन्यथा कचोटेगी तो है ही...
--- और ये कानूनी बातें और कार्यवाही कहाँ से आगईं साहित्यिक कार्यों में ...बेकार की बातें है....जाने भी दो यारो...
संतोष जी,
जवाब देंहटाएंआपके जवाब से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अनूप जी का नाम लिस्ट से इसलिए हटा दिया गया क्योंकि उन्होंने आयोजन की आलोचना की थी. इससे तो यही लग रहा है कि जो आलोचना करेगा वह आयोजकों की कृपा का पात्र नहीं होगा.
फिर ये नाम तब क्यों हटाया गया, जब वोटिंग हो चुकी थी. अगर आपको उन्हीं को पुरस्कार (क्षमा कीजियेगा 'सम्मान') देना था जो सिर्फ आपकी तारीफ़ करें, तो वोटिंग ही नहीं कराना चाहिए था.
मुक्ति जी,
जवाब देंहटाएंकहीं से बहुत बड़ी गलतफहमी हुई है आपको . वोट की प्रक्रिया पूरी हुई थी और प्राप्त वोट के आधार पर ही सम्मान की उद्घोषणा हुई , किसी का नाम नहीं हटाया गया था. इस वोटिंग में १५९८ लोगों ने हिस्सा लिया. वरीयता क्रम में आये वोट के आधार पर प्रथम स्थान पर पूर्णिमा वर्मन जी थी, दूसरे स्थान समीर लाल समीर जी, तीसरे स्थान पर रवि रतलामी जी, चौथे स्थान पर रश्मि प्रभा जी और पांचवें स्थान पर अविनाश वाचस्पति जी. आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस वोटिंग प्रक्रिया में अनूप शुक्ल बीसवें स्थान पर हैं . दूर-दूर तक कहीं भी वे वोटिंग में अग्रणी नहीं हैं पूरी वोटिंग प्रक्रिया के लिए निम्नलिखित लिंक देखें :
http://www.parikalpnaa.com/2012/05/blog-post_354.html
http://www.parikalpnaa.com/2012/05/blog-post_14.html
http://www.parikalpnaa.com/2012/05/blog-post_2828.html
http://www.parikalpnaa.com/2012/05/blog-post_1389.html
http://www.parikalpnaa.com/2012/06/blog-post_07.html
अभी-अभी फुरसतिया के ब्लॉग का भ्रमण करके लौटा हूँ , उसपर रवि रतलामी जी ने शुकुल जी को समझहते हुये कहा है की "दरअसल जो जेनुइन मुद्दे आपने अपने पिछले पोस्ट में उठाए थे, उनपर किसी ने तवज्जो ही नहीं दी और लोगों ने मामले को हाईजैक कर लिया और टेबल राइटिंग कर अनाप-शनाप बातें कहने लगे. उदाहरण के तौर पर एक तथाकथित बड़े पत्रकार बंधु जिन्होंने इस आयोजन की बेहद कटु आलोचना की, उन्हें ये ही नहीं पता कि पूर्णिमा वर्मन कौन हैं! (यह बात उन्होंने अपनी टिप्पणी में स्वीकारी है!) फिर भी इस आयोजन के विरुद्ध खम ठोंक कर लिख रहे हैं. आयोजन से पहले उन्होंने अपने किसी पोस्ट में प्रतिभागियों के बेसलेस एयरफेयर मिलने की बात भी कही थी! हद है! एक नॉनसेंस किस्म का मुद्दा उठाया गया कि शिखा वार्ष्णेय मंचासीन हैं और वरिष्ठ पीछे खड़े हैं – तो जो ब्लॉग और उसकी प्रवृत्ति को नहीं जानते वे ही ऐसी बात कह सकते हैं. ब्लॉग में कोई छोटा-बड़ा वरिष्ठ गरिष्ठ नहीं होता. और किसी के लिए होता भी होगा तो वो एक फोटोसेशन का चित्र था जो प्रेस के लिए खासतौर पर आयोजित था जिसमें प्रथम सत्र के मंचासीन अतिथियों के साथ पुरस्कृतों का था. एक नामालूम से अखबार की सुर्खी – लम्पट शब्द को लेकर भी हो हल्ला मचाया गया. जबकि यह अखबारी सुर्खियाँ बटोरने की शीर्षकीय चालबाजी से अधिक कुछ भी नहीं था. इस आयोजन के लिए बेसिर-पैर और खालिस टेबल राइटिंग जैसी निम्नस्तरीय आलोचनाओं की बाढ़ सी आई है जिसमें शीत निद्रा से जागा हर ब्लॉगर अपना हाथ धो लेना चाहता है. इसी तरह की निम्नस्तरीय आलोचनाएँ प्रतिष्ठित इंडीब्लॉगीज पुरस्कारों को बंद करने में एक बड़ा कारण रही हैं. जबकि मेरा ये मानना है इस तरह के आयोजन होते रहें तो ब्लॉगिंग में तेजी भी आती है. हालिया उदाहरण को ही लें. बहुत से ब्लॉग शीत निद्रा से उठे और बहुत से नामालूम किस्म के ब्लॉगों की रीडरशिप – क्षणिक ही सही, तेजी से बढ़ी!जो भी हो, इस नामालूम से आयोजन को, जिसकी खबर एक दिन में फुस्स हो जानी थी, उस पर आपके पिछले पोस्ट ने स्ट्रीसेंड प्रभाव डाल दिया और इस लिहाज से यह बेहद सफल रहा – सप्ताह भर से लोग रस ले ले कर इसकी जमकर लानत-मलामत भी कर रहे हैं तो घोर प्रशंसा भी, जो शायद अगले एक महीने तक जारी रहेगी.
जवाब देंहटाएंएक बेहद सफल आयोजन का यह शानदार प्रतीक है
मैं आयोजकों को फिर से बधाई देना चाहूंगा और निवेदन भी – भविष्य के आयोजनो में, इस आयोजन की जो जेनुइन कमियाँ गिनाई गई हैं, उन्हें दूर करने का प्रयास करें और इससे भी बढ़िया, बेहतर आयोजन करें....मेरा मानना है कि ऐसे आयोजन होते रहने चाहिएं – एक नहीं, दर्जनों – ताकि हिंदी ब्लॉग जगत में तो हलचल मची ही रहे और साथ ही उस शहर के निवासियों को ब्लॉगिंग में और भी दिलचस्पी जागे.
इसके बाद भी कुछ कहना है मुक्ति जी ?
फूल और कॉंटे दोनों ही साथ रहते हैं, बड़ा मुश्किल है बस एक को ही सराह पाना.
जवाब देंहटाएंअभी-अभी फुरसतिया के ब्लॉग का भ्रमण करके लौटा हूँ , उसपर रचना बजाज जी ने शुकुल जी को समझहते हुये कहा है कि " वैसे तो चुप रहना ही समझदारी है, लेकिन आप ही की तर्ज पर २/३ बातें कहनी हैं –
जवाब देंहटाएंआपने कहा -
//हमने न ब्लॉगर मीट को निरस्त किया है न पुरस्कारों को।
हमने भोले-भाले ब्लॉगरों को जमावड़े के रूप में इस्तेमाल करने की मंशा का विरोध किया है। //
– मेरी समझ से यहां न तो कोई भोला है और न ही भाला !
//आम तौर पर लोग आंख मूंदकर समर्थन या फ़िर विरोध करते हैं //
- आपने ये कैसे तय कर लिया ??
// सब लोग खूब सम्मान प्राप्त करें। खूब खुश हों। //
— ये हिन्दी ब्लॊगिंग या ब्लॊगर की सहज प्रवृत्ति बिल्कुल नही है ! मीन- मेख , ईर्ष्या, वन- अप होना, दूसरे की टांग खींचना आदि .. सहज मानवीय या ब्लॊगीय प्रवृत्तियां हैं..
आप खुश हुए क्या जो दूसरों को सलाह दे रहे हैं … ?
और वाह जी वाह! तमाम बौखलाहट और कटाक्ष के बाद आप कहें कि आपको इससे या उससे कोई आपत्ति नही है …..
और ज्यादा कुछ नही बस ये —
जो कहता मै जग को जानूं,
वो जग से अनजान बहुत है
कह्ते सब, पर सुने न कोई,
शोर मे उस, सुनसान बहुत है
“मै” से बाहर कुछ भी ना हो,
भीड़ मे उस वीरान बहुत है ………..
रचना."
इसके बाद और कुछ कहना है मुक्ति जी ?
@It is really amazing how Mukti is pleading the case of shri Anup Shukla just like an advocate or an appointed spokes person!
जवाब देंहटाएंIt is indicative of her vote being cast in his favour only.But alas he came on 20th position.I am sorry for him and for Mukti ji as well.
Better try next time! :-)
@अरविन्द जी,
जवाब देंहटाएंमैं किसी की वकालत नहीं कर रही, बल्कि जिस तरह से इस ब्लॉग पर अपनी आलोचना करने वालों को अपना दुश्मन करार दिया जा रहा है, उसके विरुद्ध हूँ. और किसी के भी ऊपर व्यक्तिगत आरोप लगाने के विरुद्ध हूँ, जैसा कि अभी-अभी आपने मेरे ऊपर लगाया कि मैंने अनूप जी की वकालत की. ऊपर मेरी पहली टिप्पणी शायद आपने नहीं देखी, जिसमें मैंने शास्त्री जी का भी नाम लिया है.
मैंने कुछ आपत्तियां उठाईं थीं बस, जिनके जवाब ऊपर रवीन्द्र जी ने दिए हैं. जितने भी लोग सम्मानित हुए हैं, मैं स्वयं उनका बहुत सम्मान करती हूँ और उनके ब्लॉग पढ़ती भी हूँ.
बस, मुझे चिढ़ होती है तो मठाधीशी की फितरत से और जी हुजूरी से.
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं****ओह तो मेरी मोबाईल से की गयी आंग्ल भाषा -टिप्पणी प्रकाशित हो गयी थी ...मैंने तो अब हिन्दी में भी लिख दिया है -यह वैसे तो अब अनावश्यक है मगर लिख दी है तो चेप दे रहा हूँ -
जवाब देंहटाएंआराधना तो जैसे एक अधिवक्ता की तरह बहस करती जा रही हैं या फिर नियुक्त प्रवक्ता हैं अनूप शुक्ल जी की ...उनके अभिमत (वोट) का संकेत भी फुरसतिया के पक्ष में ही लगता है -मगर तब भी उनका नम्बर बीसवां आया -अफसोसनाक ! :-(
अपनी पोस्ट डाक्टरल छोड़कर अब यही सब फैसला कार कर ही छोडिये नहीं तो आर टी आई की मदद लीजिए !
यह तो सचमुच ब्लागिंग का आस्कर हो गया लोगों की प्रवंचित भावनाओं ने परिकल्पना को बहुत ऊंचा स्तर दे दिया है ,सचमुच!
अब चूंकि मैं इतनी चापलूसी कर रहा हूँ तो अगली बार रवीन्द्र जी मुझे मुख्य अतिथि या विशिष्ट अतिथि बना ही देगें!
@मुक्ति: किसी के पक्ष का समर्थन कभी बुरा नहीं होता बशर्ते आप साफ़ और पारदर्शी होकर समर्थन में बनी रहें -मैंने कोई तोहमत नहीं लगायी बल्कि तोहमत तो आपने आयोजकों पर लगा दी है -अनूप शुक्ल या मैं क्या इतने महत्वपूर्ण हो गए हैं कि कोई आयोजक उन पर इतना समय जाया करेगा ??
आपको ऐसे आरोप और पक्षधरता से बचना चाहिए था .....
कथित वरिष्ठ कितने निष्कृष्ट होते हैं यह देखा है सारे हॉल ने
जवाब देंहटाएंरवीन्द्र प्रभात और सभी को बधाइयाँ ।
जवाब देंहटाएं।