कहानियाँ किस्से सुनना
अब भाता नहीं मुझे
खुद की कहानियों किस्से
सुनाने से ही फुर्सत नहीं
कैसे किसी और की कहानियां सुनूं
मेरी कहानीयों में भी सब कुछ है
हंसना रोना ,प्यार नफरत
इर्ष्या द्वेष
जब और कुछ बचा ही नहीं
नहीं कहानियाँ सुन कर क्या करूँ
कहीं ऐसा ना हो
कुछ ऐसा सुनने को मिल जाए
जो मेरी कहानियों में नहीं है
डर लगता रहेगा
कहीं मेरे साथ भी ना हो जाए
खुदा से दुआ करता हूँ
नयी कहानियाँ मत बनाना
20-09-2012
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.