पिछले 13-14-15 सितंबर 2013 को परिकल्पना सम्मान समारोह का आयोजन काठमाण्डू में हुआ। यह आयोजन हिन्दी ब्लॉगजगत के लिए मील का पत्थर बन जाएगा यह मैंने सोचा भी नहीं था । हाँ बहुत पहले यानि वर्ष-2010 में जब मैंने "परिकल्पना ब्लॉगोत्सव" का आयोजन अंतर्जाल पर किया तो मेरे समर्थन में बढ़े थे रश्मि प्रभा जी, अविनाश वाचस्पति जी, ज़ाकिर अली रजनीश जी, ललित शर्मा जी और रणधीर सिंह सुमन जी जैसे कई मित्रों के कदम। अविनाश जी ने तो इस उत्सव का एक ऐसा पंचलाईन (अनेक ब्लॉग नेक हृदय) दिया जिसने इस उत्सव को आयामित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। रश्मि जी के द्वारा लगातार 2010,2011,2012 के "परिकल्पना ब्लॉगोत्सव" का संचालन ही नहीं किया गया, अपितु हर कार्य के समन्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई गयी। रणधीर सिंह सुमन जी और ज़ाकिर भाई क्रमश: एक-एक वर्ष प्रायोजक की भूमिका में भी रहे। नेपथ्य से स्नेह-समर्थन और सहयोग करने वालों में अग्रणी रहे रवि रतलामी जी, डॉ सुभाष राय जी, डॉ अरविंद मिश्र जी, शाहनवाज़ जी, गिरीश बिल्लोरे मुकुल जी, गिरीश पंकज जी, शैलेश भारतवासी जी, बी एस पावला जी, संतोष त्रिवेदी जी, मुकेश कुमार सिन्हा जी और विनय प्रजापति जी (तकनीक दृष्टा)आदि।
यह कारवां और बड़ा हो गया जब मेरे कुछ साहित्यिक ब्लॉगर मित्रों ने मेरे समर्थन में अपने कदम बढ़ाए, मसलन डॉ गिरिराजशरण अग्रवाल जी, प्रेम जनमेजय जी, दीविक रमेश जी, पूर्णिमा वर्मन जी,सुशीला पुरी जी, डॉ रमा द्विवेदी जी, डॉ नमिता राकेश जी, मुकेश तिवारी जी, सम्पत देवी मुरारका जी, कृष्ण कुमार यादव जी, सिद्धेश्वर जी, आकांक्षा यादव जी, सुनीता प्रेम यादव जी, अल्का सैनी जी, भोजपुरी कवि मनोज भावुक जी और उडिया अनुवादक दिनेश माली जी आदि।
हिन्दी साहित्य के प्रखर स्तंभ आदरणीय मुद्रा राक्षस जी, डॉ रामदारश मिश्र जी, प्रभाकर श्रोत्रिय जी, अशोक चक्रधर जी, बिरेन्द्र यादव जी, सुधाकर अदीब जी, शैलेंद्र सागर जी, शकील सिद्दीकी जी के अलावा देश के प्रमुख समाजसेवी विश्व बंधु गुप्ता जी और रंगकर्मी राकेश जी आदि की शुभकामनायें और स्नेह भी प्राप्त हुआ। प्रथम परिकल्पना सम्मान, द्वितीय परिकल्पना सम्मान और तृतीय परिकल्पना सम्मान समारोह के उदघाटनकर्ता क्रमश: रमेश पोखरियाल निशंक जी ( उत्तराखंड के तात्कालिक मुख्य मंत्री), उद्भ्रांत जी (वरिष्ठ हिन्दी साहित्यकार) और अर्जुन नरसिंह केसी जी ( नेपाली कॉंग्रेस के महासचिव और संविधान सभा के अध्यक्ष) ने इन समारोहों के मुख्य अतिथि बनकर हमारा मान रखा।
इन समारोहो ने हिन्दी ब्लॉगजगत को आलोचना कर्म से भी जोड़ा। शुरुआत अनवर जमाल जी ने की और हवा देने का महत्वपूर्ण कार्य किया भाई खुशदीप जी ने। दिनेश राय द्विवेदी जी ने प्रथम परिकल्पना सम्मान समारोह की गंभीर आलोचना भी की। अनूप शुक्ल जी भी जहां-तहां अपनी प्रतिक्रियाएँ व्यक्त करने से नहीं चुके। यानि इस महत्वपूर्ण परिकल्पना के साथ-साथ आलोचना-कर्म भी आगे बढ़ता रहा और काफिले से जुडते रहे अनेक नए-नए ब्लॉग-आलोचक, मसलन महेंद्र श्रीवास्तव जी, पवन कुमार मिश्र जी, डॉ रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी आदि। हिन्दी ब्लॉग जगत की परिपक्वता की दिशा में यह एक शुभ संकेत था। काफी नर्म और गर्म चर्चाएं भी हुयी, व्यक्तिगत भड़ास भी निकाले गए और प्रसंगवश उद्धरण भी दिये गए।
नेपाल में भारतीय साहित्यकारों और नेपाली साहित्यकारों का संगमन इस यात्रा की बड़ी उपलब्धि रही। चार प्रमुख नेपाली साहित्यकार परिकल्पना सम्मान समारोह से जुड़े, जिनमें प्रमुख हैं नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान के सदस्य सचिव श्री सनत रेग्मी जी, नेपाल अवधी विकास संस्थान के प्रमुख डॉ विक्रम मणि त्रिपाठी, नेपाल के वरिष्ठ साहित्यकार कुमुद अधिकारी और परिकल्पना नेपाली साहित्य सम्मान से नवाज़े गए श्री सुमन पोखरेल और सुश्री उमा सुवेदी।
इसके अलावा नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान में आयोजित अंत: क्रियात्मक संगोष्ठी की संचालक डॉ संजीता वर्मा, नेपाली साहित्यकार धर्मराज बराल,गोपाल अश्क,राम भरोस कापडी भ्रमर, आलोक कुमार तिवारी, विजयकान्त करवा, गणेश कुमार मण्डल आदि का भावनात्मक स्नेह हमें प्रकंपित कर गया।
राजीवशंकर मिश्रा बनारस वाले आजकल काठमाण्डू में ही हैं और उन्होने काठमाण्डू के बारे में समस्त प्रतिभागियों का ऐसा मार्गदर्शन किया जो हमेशा के लिए हमारे दिल में जगह बनाली।
राजीवशंकर मिश्रा बनारस वाले आजकल काठमाण्डू में ही हैं और उन्होने काठमाण्डू के बारे में समस्त प्रतिभागियों का ऐसा मार्गदर्शन किया जो हमेशा के लिए हमारे दिल में जगह बनाली।
इस वर्ष परिकल्पना सम्मान समारोह से मेरे एक और साहित्यिक मित्र जुड़े हैं, नाम है डॉ राम बहादुर मिश्र, हिन्दी और अवधी के प्रखर साहित्यकार जिनके संचालन में काठमाण्डू का कार्यक्रम परवान चढ़ा ।
डॉ राम बहादुर मिश्र जी ने काठमाण्डू का यात्रा संस्मरण 18 पृष्ठों में लिखा है, नाम दिया है "बिंदास ज़िंदगी को झकास यात्रा" । इसमें उन्होने स्वीकार किया है, कि "परिकल्पना के इन आयोजनों से ब्लॉगजगत ही आंदोलित नहीं हुआ है, अपितु साहित्य जगत के स्वयंभू मठाधीशों की नींद भी उड़नछू हो गयी है।"
यह संस्मरण "परिकल्पना समय" के अक्तूबर 2013 अंक में प्रकाशित किया गया है, जो शीघ्र ही आप तक पहुंचेगी।
मैं आभारी हूँ उन सभी मित्रों और आलोचकों का जिन्होने परिकल्पना के इन सपनों को पंख देकर हौसला बढ़ाने का काम किया है।
main teeno blogotsav me shamil tha, ye mere liye garv ki baat hai :)
जवाब देंहटाएंaapka yeh prayas atyant srahniye hai..badhai..oct ke ank ki pratiksha hai
जवाब देंहटाएंयूं ही आगे बढते रहें ..
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं !!
आपका यह प्रयास नित नए कीर्तिमान स्थापित करे इन्हीं शुभकामनाओं के साथ बहुत-बहुत बधाई ......
जवाब देंहटाएंपरिकल्पना के लिए शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रयासों में लगे रहें,ऐसी कामना है।
परिकल्पना के लिए शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रयासों में लगे रहें,ऐसी कामना है।
ब्लॉगर्स के मन में उत्साह का सृजन कर उन्हें प्रेरणा देने का महती कार्य परिकल्पना ने किया है। आलोचनाएं तो होती हैं और होती रहेगीं। यह तो नकारा नहीं जा सकता कि परिकल्पना ने ब्लॉगिंग को सागरमाथा तक पहुंचाया है, मेरी अशेष शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंसागर में उठती लहरें उसकी जीवन्तता की द्योतक होती है, वर्ना नीरसता सी लगती है. सराहनीय प्रयास… शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंयूं ही आगे बढते रहें ..
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं
मेरे लिए तो यह एक नयी उपलब्धि हेँ अभी और कुछ नही कह सकता
जवाब देंहटाएंयूं ही आगे बढते रहें ..
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं !!
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