पिछले दिनों मियाँ मुसर्रफ के द्वारा पाकिस्तान में आपात स्थिति लगाने की खूब चर्चा रही . लोगों ने मियाँ मुसर्रफ के किसी भी हद तक जाने की बात करते हुए उसकी जमकर आलोचना की और कहा कि मियाँ कुर्सी के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते हैं, यहाँ तक कि अपने मुल्क के चरमपंथियों को गुमराह करने के उद्देश्य से वह यदि ज़रूरत महसूस हुई तो फिर से कश्मीर का मुद्दा उठा सकते हैं या फिर भारत के साथ कूटनीतिक युद्ध की तैयारी भी .हो सकता है कि नए कारगिल युद्ध का बीजारोपण कर दें मियाँ मुसर्रफ . वैसे भी मियाँ मुसर्रफ अन्य तानाशाहों से भिन्न प्रतीत नहीं होते .सच तो यह है कि मियाँ मुसर्रफ की स्थिति कमोवेश वैसी ही है जो कभी जनरल जिया-उल- हक और सद्दाम हुसैन की थी .आगे कुआं पीछे खाई जाएँ तो जाएँ कहाँ ? गीता में भगवान् कृष्ण कहते हैं कि - मनुष्य स्वयं ही अपना शत्रु है , जब वह अपने मन , इन्द्रियों सहित शरीर के सामने घुटने टेक देता है तो वही मनुष्य उसीप्रकार दु:खों से दु:खी रहता है जिस प्रकार शत्रुओं द्वारा सताया जाता हुआ मनुष्य . मियाँ मुसर्रफ स्वयं में ही अपना शत्रु बन बैठे हैं इसमें कोई संदेह नही .राष्ट्र के नाम संदेश में मियाँ मुसर्रफ के चहरे पर वह दु:ख स्पष्ट परिलक्षित हो रहा था उस दिन .चिंता की स्पष्ट लकीरें दिखाई दे रही थी उसके चहरे पर . वह एक घायल शेर की मानिंद हर किसी को कच्चा चबा जाने को आतुर दिखाई दे रहा था .एक तानाशाह की अंत: पीडा देखने लायक थी उस दिन ।क्या फिर से एक नए युद्ध का आगाज़ है ये इमरजेंसी , पाकिस्तान के अन्दर और पाकिस्तान के बाहर यानी पड़ोसी मुल्क के लिए ? भाई इसका जबाब तो मियाँ मुसर्रफ के सिवा और भला कौन दे सकता है ? मैंने अपने एक मित्र के द्वारा पूछे गए प्रश्न के जबाब में कहा तो उसने फिर कहा कि रवीन्द्र भाई , तुम देख लेना फिर दूसरा कारगिल होकर ही रहेगा . हो जाये क्या फर्क पङता है, हम डरते हैं क्या पाकिस्तान से . इस बात पर तिलमिलाते हुए उसने बड़ी मासूमियत के साथ कहा कि , यार रवीन्द्र उसके पास परमाणु बम है .मेरी झुंझलाहट और बढ़ गयी मैंने कहा - क्या हमारे पास नही है ? मैं कहाँ कह रहा हूँ की नही है , मगर क्योंकि हम मानव विध्वंस के ख़िलाफ़ हैं , साथ ही हमारे हाथ समझौते से बंधे हैं इसलिए हम इस्तेमाल नही कर सकते परमाणु हथियार को , मगर वहतो सनकी तानाशाह है कुछ भी कर सकता है .अब कौन समझाए अपने इस मित्र को .मैंने कहा यार आशुतोष , किसी शायर ने कहा है कि - " जो काम होना होगा वह टल नही सकता , निजाम- ए - गर्दिश - ए - दौरा बदल नही सकता , तेरे ख़याल को तू अपने पास रहने दे - तेरे ख़याल से नक्शा बदल नही सकता ."फिर मैंने कहा यार जहाँ तक मुसर्रफ का प्रश्न है तो इसपर भी किसी शायर ने कहा है कि -" मूजी से वफादारी की उम्मीद गलत है, जो काम इन्हें करना है ये करके रहेंगे! तुम मन्त्र पढो या इन्हें दूध पिलाओ , फितरत में जो डसना है बहरहाल दसेंगे !!"बहुत पहले जब बार -बार पाकिस्तान के द्वारा भारत को कश्मीर की आड़ में अप्रत्यक्ष युद्ध की खुली चुतौती दी जा रही थी और कारगिल युद्ध को सही ठहराया जा रहा था( यहाँ यह कहना प्रासंगिक होगा कि अप्रत्यक्ष रुप से कारगिल युद्ध के शुत्रधार मियाँ मुशर्रफ़ ही थे ) तो उसवक्त मेरे कवि मन ने पाकिस्तान की खुली चुनौती का जबाब कुछ इसप्रकार दिया था ,पहली वार इस ग़ज़ल को मेरे द्वारा अलीगंज के एक कवि सम्मेलन में पढा गया और श्रोताओं ने इस ग़ज़ल की जमकर तारीफ़ की( जिसकी तस्वीर ऊपर दी गयी है , ऊपर वाली तसवीर में कविता पाठ मैं कर रहा हूँ और नीचे गीतेश ) . आज वही ग़ज़ल प्रसंगवश यहाँ प्रस्तुत है ---
यहाँ नही कुछ खास हमारे पास मियाँ !
मन में बस विश्वास हमारे पास मियाँ !!

फटी
लंगोटी, झोपड़पट्टी है लेकिन -
जीवन का उल्लास हमारे पास मियाँ !!


एटम - बम का खौफ दिखाते हो लेकिन -
पृथ्वी , अग्नि, आकाश हमारे पास मियाँ !!

पेरिस की हर शाम मुबारक हो तुमको -
आस-पास मधुमास हमारे पास मियाँ !!

घर की मर्यादा खातिर हम सह जाते -
होता जब बनवास हमारे पास मियाँ !!

हम हैं हिन्दुस्तानी हमें डराओ मत -
रहती गर्म उसांस हमारे पास मियाँ !!

मेरे भीतर गांधी भी है और भगत भी -
विश्मिल - वीर सुभाष हमारे पास मियाँ !!

कुछ कविता, कुछगीत,ग़ज़ल के लिए"प्रभात"
हर दिन है अवकाश हमारे पास मियाँ !!

() रवीन्द्र प्रभात

9 comments:

  1. बेहतरीन गजल है, रविन्द्र भाई. आनन्द आ गया.

    घर की मर्यादा खातिर हम सह जाते -
    होता जब बनवास हमारे पास मियाँ !!

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  2. बहुत बढिया गजल है पढ़ कर आंनद आ गया।

    मेरे भीतर गांधी भी है और भगत भी -
    विश्मिल - वीर सुभाष हमारे पास मियाँ !!

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  4. मेरे भीतर गांधी भी है और भगत भी -
    विश्मिल - वीर सुभाष हमारे पास मियाँ !!

    वाह रविन्द्र भाई अति उत्तम. मज़ा आ गया. लिखा आपने एकदम सही है. वक्त आने पर दिखा देंगे. हम क्या है और क्या सकते है. इसकी (पाकिस्तान की ) किस्मत मे पिटना लिखा है और ये पिट के रहेगा.

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  5. मुशर्रफ तो अपने खुद के बन्दी हैं। हम भी किसी के प्रति आसक्त हो जायें तो हम भी वैसे ही हो जायेंगे।

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  6. आपकी गजल की प्रस्तुति दिल को छू गयी.
    दीपक भारतदीप

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  7. गजल अच्छी है. आपने जग के साथ साथ अपना भी परिचय दिया है. आपकी देशभक्ति की भावना उभर कर सामने आ गई है.

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  8. प्रिय रवीन्द्र जी,
    एक बार फिर वेहद सुंदर और सामयिक प्रस्तुति हेतु बधाईयाँ!बहुत अच्छा है हुज़ूर. पते की बात कह गए आप.

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  9. व्यंज़ल नुमा ग़ज़ल बेहतरीन है मियाँ
    इसी तेवर के ग़ज़ल और कहेंगे मियाँ

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