प्यार के तीन रुप -
(एक)
मन में उम्मीदों की चाहत भरो ,
डरो न किसी से , खुद से डरो ,
यही ज़िंदगी का सही फलसफा है -
प्यार जिससे करो डूबकर के करो !

(दो)
प्यार देवता है , प्यार ही है अल्ला,
सच्चीमोहब्बत में यार ही है अल्ला ,
खुद को जो समझा , खुदाई को समझा -
खुद पे किया एतवार ही है अल्ला !

(तीन )

हो सके तो ये जीवन सरल कीजिए ,
प्रेम के कुछ सबालों का हल कीजिए,
जिससे दिल टूट जाये किसी का यदि -
ऐसी कोई भी अब न पहल कीजिए !

और अंत में , समाज के एक ऐसे ज्वलंत मुद्दे , जिसने प्यार की परिभाषा हीं बदल दी , यानी कि प्यार को कलंकित कर दिया -

कैद में तितलियाँ पल रही है तो क्या ?
बॉक्स में मछलियाँ चल रही है तो क्या ?
शर्म कर ऐसे लोगों जो ये कह रहे -
बेवजह बेटियाँ जल रही है तो क्या ?
() रवीन्द्र प्रभात
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6 comments:

  1. बहुत प्यारी रचना.... जीवन मे सरलता है तो स्नेह है और यही सत्य है.... प्रेम ही सत्य है... जिसे करो बस यही कहो.... तू ही तू.... मैं को तू में समाहित करके..

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  2. जिससे दिल टूट जाये किसी का यदि -
    ऐसी कोई भी अब न पहल कीजिए !
    --------------------------

    नसीहत के लिये धन्यवाद। रोज के काम में डांट फटकार करते समय ध्यान रखने योग्य।

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  3. हो सके तो ये जीवन सरल कीजिए ,
    प्रेम के कुछ सबालों का हल कीजिए,
    जिससे दिल टूट जाये किसी का यदि -
    ऐसी कोई भी अब न पहल कीजिए !
    ------------------------------
    बहुत बढिया पंक्तियाँ
    दीपक भारतदीप

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