भरा हर्ष वन में मन, नवोत्कर्ष छाया .
किसलय-वसना नव-वय-लतिका
मिली मधुर प्रिय-उर तरु पतिका,
मधुप-वृंद वंदी पिक़- स्वर नभ गहराया .
लता-मुकुल -हार- गंध-भार भर
बही पवन मन्द-मन्द मदंतर ,
जागी नयनों में वन यौवन की माया .
आवृत सरसी-उर-सरसिज उठे ,
केसर के केश काली के छुटे ,
स्वर्ण- शस्य - अंचल पृथ्वी का लहराया .
- महाप्राण निराला
वैसे तो उनका जन्म बंगाल की रियासत महिषादल (जिला मेदिनीपुर) में माघ शुक्ल एकादशी संवत १९५५ तदनुसार २१ फरवरी सन १८९९ में हुआ था, लेकिन वसंत पंचमी पर उनका जन्मदिन मनाने की परंपरा १९३० में प्रारंभ हुई . इसीलिए हम आज के दिन इस कालजयी साहित्यकार को स्मरण करते हुए उनके आदर्शों पर चलने की प्रेरणा लेते हैं .
बताया जाता है कि इस महान छायावादी कवि को याद करते हुए उत्तर प्रदेश में अक्सर ईलाहाबाद और उन्नाव की ही चर्चा होती है लेकिन उनके जीवन के कई वर्ष न सिर्फ लखनऊ में बीते बल्कि उन्होंने यहाँ कई महत्वपूर्ण कृतियाँ या उनके अंश लिखे . मैं अपने आप को सौभाग्यशाली समझता हूँ कि उस शहर में हमें रहने का सौभाग्य मिला है जहां की गलियों में कभी ग़ालिब ही नहीं निराला की भी कवितायें गूंजती थी ,क्योंकि यह जगजाहिर है कि दोनों में से एक उर्दू के और दुसरे हिन्दी के अमर रचनाकार हैं .
महाकवि निराला के बारे में बताया जाता है कि निराला वर्ष-१९२८ के करीब लखनऊ आये थे . उन्होंने दुलारे लाल भार्गव की गंगा पुस्तक माला के लिए काम किया और सुधा पत्रिका में टिप्पणियाँ लिखी . लखनऊ से ही उनकी प्रसिद्द कृति "परिमल" का प्रकाशन हुआ . उन्होंने "अप्सरा", "निरुपमा ", "अलका" "लिली" "प्रभावती " उपन्यासों , कहानी संग्रहों या उसके ज्यादातर अंशों का लेखन किया .यह भी बताया जाता है कि लखनऊ प्रवास के दौरान ही उन्होंने तुलसीदास काव्य के बहुतेरे छंद लिखे .
साहित्यकार अमृत लाल नागर और राम बिलास शर्मा के अनुसार महाप्राण निराला ने लखनऊ के लालकुआं , भुसामंडी , लाटूश रोड , चौक आदि इलाकों में लगभग एक दशक का समय गुजारा .नागर जी ने निराला से जुड़े अपने संस्मरण में उनके लखनऊ प्रवास को याद करते हुए लिखा है कि निराला जी पैसों के अभाव से बीसों बार नारियल वाली गली और भुसामंडी वाले मकानों से चलकर चौक में मेरे यहाँ आते थे .फिर वहां डा. राम विलास शर्मा , नरोत्तम नागर और पधिश जी भी देर-सवेर आ जाते फिर घंटों चौकरी जमती.
महाकवि निराला को याद करते हुए आज से हम शुरू कर रहे हैं परिकल्पना पर " बसंतोत्सव " जिसके अंतर्गत हिंदी के कालजयी साहित्यकारों के साथ- साथ आज के कुछ महत्वपूर्ण कवियों की वसंत पर आधारित कवितायें प्रस्तुत की जायेंगी और फगुनाहट की यह बयार थमेगी होली की मस्ती के साथ . इसमें कवितायें भी होंगी , व्यंग्य भी , ग़ज़ल भी , दोहे भी और वसंत की मादकता से सराबोर गीत भी . इस श्रृंखला में हम देंगे आपकी भी स्तरीय रचनाओं को सम्मान और प्रकाशित करेंगे परिकल्पना पर ...शर्त है कि आपकी रचना बड़ी न हो . तो देर किस बात की आप अपनी एक छोटी रचना चाहे वाह व्यंग्य हो , कविता हो , गीत हो अथवा ग़ज़ल यूनिकोड में टाईप कर भेज दीजिये निम्न लिखित यी-मेल आई डी पर - mailto:ravindra.prabhat@gmail.com
हम आपकी रचनाओं को केवल प्रकाशित ही नहीं करेंगे बल्कि एक सर्वश्रेष्ठ रचना का चुनाव करते हुए उन्हें सम्मानजनक नगद राशि के साथ " फगुनाहट सम्मान " से नवाजेंगे भी .
मैं तो कविता लिखती नहीं मगर परिकल्पना पर प्रकाशित वसंत की मादकता से परिपूर्ण कविता और व्यंग्य का आनंद जरूर लूंगी ...एक नए सम्मान की उद्घोषणा के लिए बधाई !
जवाब देंहटाएंmain bhi bhej rahaa hoon vasant ki maadakataa se saraabor ek geet aapake paas ...aashaa hai pasand karenge aap !
जवाब देंहटाएंफागुन पर अपने आप में एक अनूठा प्रयोग ...शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंरवीन्द्र जी अभी थोडा ठहर जाईये न प्लीज ,,थोडा वातावरण में फगुनाहट तो आने दीजिये
जवाब देंहटाएंठण्ड से बुरा हाल है !
अच्छा प्रयास!
जवाब देंहटाएंवसंत पंचमी कि हार्दिक शुभ कामनाएँ...यह वाकई एक अच्छा प्रयास है..आभार
जवाब देंहटाएंरविन्द्र प्रभात जी
जवाब देंहटाएंआपको बसंत पंचमी की हार्दिक बधाई।
दीपक भारतदीप
बेहतरीन प्रयास ! आभार ।
जवाब देंहटाएंवसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएं--------
औरतों के दाढ़ी-मूछें उग आएं तो..?
ज्योतिष के सच को तार-तार करता एक ज्योतिषाचार्य।