वसंतोत्सव के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत आचार्य  जी पर केन्द्रित पोस्ट पर अपनी टिपण्णी देते हुए श्री अरविन्द मिश्र ने कहा कि आदरणीय जानकी वल्लभ शास्त्री जी हिन्दी साहित्यं के एक जीवित किवदंती हैं -कला साधना, कुंद छुरी से दिल को रेते जाना,  अटल आंसुओं के सागर में सपने खेते जाना....जैसी अमर पंक्तियों के प्रणेता ....वहीँ हिमांशु जी की टिपण्णी काफी भावात्मक रही कि शास्त्री जी के व्यक्तित्व और कृतित्व दोनॊ की उदात्तता का कायल हूँ । उनकी बहुत-सी कवितायें पढ़ कर मुग्ध होता रहा हूँ, और उनकी प्रतिभा से चमत्कृत ! निराला द्वारा उनको लिखे गये पत्रों का संकलन उनके स्नेह-संबंधों का जीवंत दस्तावेज है, और उस संकलन की भूमिका शायद किसी भी भूमिका से अधिक जीवंत और विद्वतापूर्ण ! राधा खण्डकाव्य के बारे में कुछ कहने की सामर्थ्य नहीं ! श्रद्धावनत !........... आज हम लेकर आये हैं आचार्य जी के समकालीन रहे बहुचर्चित गीतकार कविवर गोपाल सिंह नेपाली का एक सुमधुर गीत !




कविवर गोपाल सिंह नेपाली हिंदी के छायावादोत्तर काल के कवियों में महत्वपूर्ण स्थान रखते थे। वे उस काल के कवियों में से थे जब बड़े बड़े साहित्यकार और कवि फ़िल्मों के लिए काम करते थे। 1944 से 1963 तक मृत्यु पर्यंत वे बंबई में फ़िल्म जगत से जुड़े रहे। उन्होंने एक फ़िल्म का निर्माण भी किया। वे पत्रकार भी थे और उन्होंने कम से कम चार हिंदी पत्र-पत्रिकाओं रतलाम टाइम्स, चित्रपट, सुधा और योगी का संपादन किया। फ़िल्मों के लिए लिखे गए उनके कुछ गीत अत्यंत लोकप्रिय हुए। 1962 में भारत-चीन युद्ध के समय उन्होंने देशभक्ति की अनेक कविताएँ रचीं। कविता के क्षेत्र में गोपाल सिंह नेपाली ने देश प्रेम, प्रकृति प्रेम, तथा मानवीय भावनाओं का सुंदर चित्रण किया है।














!! वसंत गीत !!


ओ मृगनैनी , ओ पिक बैनी ,
तेरे सामने बाँसुरिया झूठी है !
रग-रग में इतना रंग भरा,
कि रंगीन चुनरिया झूठी है !


मुख भी तेरा इतना गोरा,
बिना चाँद का है पूनम !
है दरस-परस इतना शीतल ,
शरीर नहीं है शबनम !
अलकें-पलकें इतनी काली,
घनश्याम बदरिया झूठी है !





रग-रग में इतना रंग भरा,
कि रंगीन चुनरिया झूठी है !

क्या होड़ करें चन्दा तेरी ,
काली सूरत धब्बे वाली !
कहने को जग को भला-बुरा,
तू हंसती और लजाती !
मौसम सच्चा तू सच्ची है,
यह सकल बदरिया झूठी है !


रग-रग में इतना रंग भरा,
कि रंगीन चुनरिया झूठी है !

() () ()
जारी है वसंतोत्सव , मिलते हैं एक छोटे से विराम के बाद ...!

6 comments:

  1. बहुत सुन्दर गीत! धन्यवाद!

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  2. गोपाल सिंह नेपाली जी हिन्दी साहित्य में गीतों के राजकुमार के नाम से जाने जाते हैं , सचमुच उनके गीतों में जो लालित्य और रागात्मकता देखने को मिलती है वह अन्यत्र नहीं ....उनकी इस रचना को पढ़कर मुग्ध हो गयी मैं ..... नेपाली जी ने वर्ष 1957 में आई देवेंद्र गोयल की फिल्म 'नरसी भगत' के लिए 'दर्शन दो घनश्याम' भजन लिखा था। इसके संगीतकार रवि थे। पिछले दिनों 'स्लमडॉग मिलियनेयर में इसे सूरदास का बताकर का अपमान किया गया , जो इस देश के लिए शर्मनाक है !

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  3. वसंतोत्सव पर बसंत जैसी प्रस्तुति के लिये धन्यवाद गोपाल सिंह नेपाली जी के बारे में कमेन्ट के माधयम से भी नई जानकारी मिली है। आभार माला जी का भी

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  4. जिसने तलवार शिवा को दी
    रोशनी उधार दिवा को दी
    पतवार थमा दी लहरों को
    खंजर की धार हवा को दी
    अग-जग के उसी विधाता ने, कर दी मेरे आधीन कलम
    मेरा धन है स्वाधीन कलम....जैसे अमर वाक्य के रचनाकार कविवर गोपाल सिंह नेपाली के इस वासंती गीतों ने आपके वसंतोत्सव की गरिमा प्रदान की है ...अच्छा लगा पढ़कर !

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  5. ओह यह तो हमसे छूटा हुआ ही था, बहुत बढ़िया रचना, पढ़वाने के लिये शुक्रिया।

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  6. इन गीतों को कितना विस्मृत कर बैठा है यह मानस ! इन गीतों का लालित्य अदभुत है, मनहर है इनकी लय!

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