चौबे जी की चौपाल
आज चौबे जी की चौपाल में आये हैं खुरपेंचिया जी,कह रहे हैं कि "लोकपाल रूपी जिन्न से मन खिन्न हो गया था हमरी पार्टी का। ससुरी बहुत मगजमारी के बाद आखिरकार हम्म संसद में पास करा ही लिए लोकपाल को । अन्ना बुढऊ बेमतलब का खुराफात कर रहा है । ज़रा सोचिये चौबे जी कि यदि लोकपाल स्वतंत्र संस्था हो गया तो चारा,तारकोल,सीमेंट आदि-आदि कैसे खायेंगे हमरे भूतपूर्व या अभूतपूर्व मंत्री लोग ? ए जी, ओ जी,टू जी,थ्री जी या फिर सी डब्ल्यू जी के साथ ऊ लाला, ऊ लाला कैसे गायेंगे संसदीय थियेटर में सरकारी नुमायंदे ? कैसे करेंगे जनतांत्रिक मुद्दों पर गरथैया का नाच संसद के केन्द्रीय कक्ष में ? तिहाड़ में नेताओं की संख्या बढ़ जायेगी और मजबूरन हमरे मजबूर प्रधान मंत्री को संसद के शीत सत्र के बाद आगामी तिहाड़ सत्र की तैयारी करनी पड़ जायेगी । भारतीय राजनीति में सच्चाई का मतलब होता है चांदी की थाली में गोबर परोसना । हमरे भारतीय लोकतंत्र की पञ्चलाईन है ...नेता बनो दौलत कमाओ,राजनीति करो बेहतर भविष्य पाओ। जनता का क्या उसे रोटी के सिवा कुछ भी नही दीखता, इसलिए खुद खाओ टुंडे का कबाब, के ऍफ़ सी -मैकडोनाल्ड की बोटी और उन्हें देते रहो आश्वासनों की लुभावनी रोटी । लोकलाज को त्यागो,लोकपाल से भागो....जनपथ से जनपद तक सियासत का नगर है ये.....यहाँ दगा देना अपराध नही है चौबे जी, दगा न देना अपराध है ।"
खुरपेंचिया की बात सुनकर चौबे जी कुछ कहें उससे पहले राम भरोसे ने चुटकी लेते हुए कहा,कि "एकदम्म सही फरमाए हैं नेता जी, मगर यह भी सच है कि "हमरे देश की राष्ट्रीय पक्षी है -- मोर...राष्ट्रीय संस्कृति है -- पश्चिम की ओर.. राष्ट्रीय दर्शन है -- तोड़-फोड़,शोर...राष्ट्रीय चिंतन है -- कुर्सी के लिए जोर.... राष्ट्रीय व्यवस्था है -- छिन्न-भिन्न, कमजोर..राष्ट्रीय प्रगति है -- महंगाई की ओर... राष्ट्रीय खेल है -- जनसंख्या में होड़ इसलिए हम हो गए 125 करोड़.. राष्ट्रीय बजट है -- घाटा बेहिसाब...... राष्ट्रीय अतिथि है --अजमल कसाब....और देश के बहुसंख्यक मंत्री-संत्री बेईमान फिर भी सरकार कहती है कि हो रहा भारत निर्माण ।"
भारत निर्माण की बात सुनि के गुलटेनवा की हंसी नही रुकी, ठहाका मारी के हंसते हुए कहा कि "ये चौबे बाबा,जहां सौ में निन्यानवे बेईमान उहाँ ई कईसन भारत निर्माण ? अब अपना गाँव में अइसहीं जीवन सत्याग्रही भइल जाता. बिजली रहत नइखे। गैस मिलत नइखे. जरावन खतम हो गइल बा। माल-गोरू हइये नइखन सँ कि गोईंठा होखो. महँगाई अतना बढ़ गइल बा कि साबुन तेल कीने में पसीना छूटि जात बा । मंहगाई कs राज हो गईल,सच्चाई कs खुजली-खाज हो गईल, केतने घर मा अब फाका कट रहल बाटे, राशन खाली कागजे पर बँट रहल बाटे, दल-रोटी पर भी आफत-बिपत्त, कुर्सी पर बैठ गईल बाटे एक से एक चिक्कट...सूना हो गईल बा खेत खरिहान ,सगरो रो रहल बा मजदूर-किसान ....का यही कs नाम हs भारत निर्माण ?"
इतना सुनकर पान की गुलगुली दबाये कत्थई दांतों पर चुना मारते हुए रमजानी मियाँ ने कहा कि "मियाँ खडा होके कहाँ मांग रहा है रोटी,ये सियासत का नगर है सिर्फ दगा देता है । अंग्रेजों से जब हमने आज़ादी पायी और सत्ता नेताओं के हाथ में सौंपी तो यह सपना देखा था कि भारत फिर सोने की चिड़िया बनेगा । देश तो सोने की चिड़िया नही बन पाया बरखुरदार पर राजनीति का क्षेत्र जरूर सोना पैदा करने की खान बन गया ।अब सदनों में लखपति कम और करोडपति जादा दिखाई देत हैं गजोधर।"
"एकदम्म सही कहत हौ रमजानी भैया । हम्म तोहरी बात क समर्थन करत हईं । ई कलमुंही राजनीति चीज ही ऐसी होत है जहां आते-आते सुखी जात है नदी-नाला ।" भारी मन से बोला गजोधर ।
मगर तिरजुगिया की माई से ना रहल गईल, कहली कि " ई बताओ गजोधर कि जवन देश की आधी आवादी रोटी खातिर तरसत हैं, ऊ देश मा जनसेवक सोने की चम्मच से खाना कईसे खा सकत हैं ? जवन देश की बहुसंख्यक आवादी पेट काटके तन ढांपने को विवश है, एक-एक साड़ी में औरतन महीनों गुजार देत हैं, उहाँ हमरे जनसेवक के शरीर पर हीरा-मोती जडल कुर्ता कईसे फब सकत हैं ? जवन देश की वहुसंख्यक आवादी बेघरवार है, उहाँ जनसेवक आलिशान बंगलों में कईसे रह सकत हैं चौबे जी ? जवन देश के बच्चा लोग प्राईमरी से उच्च शिक्षा तक अभाव में चार कदम नाही चल सकत, उहाँ जनसेवकों के बच्चे विदेशों में मंहगी पढाई कईसे कर सकत हैं ? ई कहे के पीछे हमार ई मंशा नाही है चौबे जी कि जनसेवक का हाल जनता की तरह हो जाए। हमार कहे के मतलब ई ह कि जबतक हर भारतीय को रोजी-रोतो-कपड़ा-मकान-शिक्षा और चिकित्सा नाही मिलत तबतक नैतिकता के नाते कुछ सुविधाओं के बलिदान तो जनसेवकों को करनी ही चाहिए। का गलत कहत हईं चौबे जी ?"
"अरे नाही तिरजुगिया की माई,तू कभी गलत हो ही नही सकती। हमरे समझ से अब बक्त का यही तकाजा है कि जाति-धर्म और मूंछ के झगड़ों से ऊपर उठकर सत्ता पक्ष भी सोचे, विपक्ष भी सोचे, मीडिया भी और इस देश की जनता भी। सरकारी योजनायें हाथी की चाल से हमेशा ही चलती आई है, आगे भी ठुमक-ठुमक चलती रहेगी।पर इससे काया पलट नही हो सकती भले ही किसी का भी राज हो। अपने इस अभावग्रस्त देश के लिए कुछ अलग हटकर करने की जरूरत है,सामूहिक रूप से करने की जरूरत है। कुछ ऐसा हो कि एक सरकारी या गैर सरकारी ट्रस्ट बने,उसका एक जनता कोष हो,जिसमें जिसकी जीतनी हैसियत हो उतना पैसा जमा करे,वह पैसा सीधे जनता पर खर्च हो,उसके उत्थान पर खर्च हो।" चौबे जी ने कहा ।
माहौल संजीदा होते देख एक शॉर्टब्रेक के बाद चौबे जी ने फिर कहा कि "हर माह लगभग एक करोड़ रुपये उठाने वाले हमरे विधायक-सांसद क्या इस राशि को जनता पर कुर्बान करने की पहल करेंगे ? यह मुश्किल है पर असंभव नही।"इतना कहकर चौबे जी ने चौपाल अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया।
रवीन्द्र प्रभात
उल्टी-सीधी चाल आपकी चौबे जी,
जवाब देंहटाएंचकाचक चौपाल आपकी चौबे जी.
चुटकी- छुटकी, बात है गहरी -
करती सदा धमाल आपकी चौबे जी .
मस्त है और जबरदस्त है चौबे जी की चौपाल !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया व्यंग्य, अपने आप में अनूठा !
जवाब देंहटाएंचौबे जी, बढ़िया है !
जवाब देंहटाएंचौबे जी, बढ़िया है !
जवाब देंहटाएंगिड़गिड़ाने क यहा कोई असर होता नहीं
जवाब देंहटाएंपेट भर कर गालियां दो, अह भरकर बद्दुआ।[दुश्यंत]
सही तथ्य सामने रखे है।
जवाब देंहटाएंनिरामिष शाकाहार प्रहेलिका 2012