चौबे जी की चौपाल
आज चौबे जी की चौपाल लगी है राम भरोसे की मडई में । चटकी हुई है चौपाल । चुहुल भी खुबई है । खुले बरामदे में पालथी मारके बैठे हैं चौबे जी महाराज और कह रहे हैं कि "जब से ससुरी चुनाव की तारीख तय हुई है गुरु घंटाल टाईप बाबाओं की बाल्ले-बल्ले हो गयी है राम भरोसे। वईसे बाबागिरी होत है बहुत फायदेमंद चीज । मेहनत भी कम लागत हैं और करोड़ों का फायदा भी। यानी राजनीति मा गुरु घंटाल का मतलब न हिंग लगे न फिटकरी रंग चोखा । सच पूछो तो देश में सर्वश्रेष्ठ करियर बाबा बनने में है। बाबागिरी से बेहतर कुछ भी नाही है रे । काहे कि आपन देश बाबाओं का देश है बबुआ । ईहाँ के कण-कण में बाबा विद्यमान हैं। सुबह से लेकर शाम तक नाना प्रकार के चैनलों पर भाँति-भांति के बाबा अवतरित होत रहत हैं। रिमोट के कवनो बटन दबाओ, परिणाम में एक नए बाबा के अवतरण होई जात है। अब देखो नs अपना रमाकांतवा बहुत बड़हन ज्योतिष बन गया है ससुरा,रामलाल नेता को साईत बता रहा है आजकल । उपन्यास पढके वियाह करावे वाला पंडितवा हमरे जवार के नेता जी का घोषणा पत्र रोकवाये दिया है। कहता है खरमास में कवनो कीमत पर घोषणा पत्र जारी नहीं होना चाहिए नहीं तो नेता जी को नुकसान होगा ।"
अरे नाही चौबे जी, ई कलमुंहा ज्योतिष बड़ी पावरफूल चीज होत हैं। चुनाव से पहिले नेतवन के भीतर डर पैदा कर देत है। नेतवन के साथ तो ज्योतिषी का चोली-दामन का रिश्ता है महाराज । नेता बाबाजी के चरण चांपत हैं और बदले में अनवरत सत्ता के आशीर्वाद पावत हैं। अपना के बड़हन ज्योतिषी कहे वाला रामाकांतवा के पौ बारह है चौबे जी। यानी नेता मजबूरी में मेहरवान का भईलें ज्योतिषी जी पहलवान हो गईलें। जानते हैं एक बार का हुआ रमाकांतवा के साथ ? अमावास की रात ओकरे घर मा चोरी हुई, रमाकांत ज्योतिषी ने चारो ओर देखा। ओकर मेहरारू कहली कि शोर मचावs लोगन,गाँव वालन के जगावs। रमाकांत कहलें चुप रहो-चुप रहो,लेये जाय दो सब सामान। समय-संयोग अभी शोर माचवे के अनुमति नहीं देत है। चोर सब सामान लेके फरार और ज्योतिषी जी शोक में हो गईलें बीमार। जब पूर्णिमा की रात आई तो आधी रात को ससुरा रमाकान्तवा चोर-चोर कहके लगा चिल्लाने। आवाज़ सुनी के जब हम और अकलूआ पहुंचे तो ज्योतिषी जी कहलें कि चोर तs अमावश की रतिया में आईल रहे। आज शोर मचावे के साईत होए के करण हम चिल्लाए हैं। यानी ज्योतिषी भयो गुरु घंटाल,जनता भयो बेहाल अऊर जनसेवक मालामाल भयो हमरे प्रदेश मा।" बोला राम भरोसे।
इतना सुनके रमजानी मियाँ ने अपनी लंबी दाढ़ी सहलाई और पान की गुलगुली दबाये कत्थई दांतों पर चुना मारते हुए कहा कि "लाहौल विला कूबत लानत है ऐसी बाबागिरी पर,लेकिन मियां इसमें केवल बाबा का हीं कोई दोष नाही है। बिचारे बाबा भी का करें। हमरे ईहाँ के आदमी लोग है ही बला का धार्मिक। सुबह बाबाओं के चरण चांप कर निकलत है और उनके आशीर्वादस्वरूप शाम को रिश्वत से भरी जेब लिए लौटत है। सुबह बाबा का आशीर्वाद लेकर सामानों में मिलावट करत है और उनके भलीभांति खपने पर प्रसाद चढ़ा देत है। इस पर मियाँ एक शेर अर्ज़ कर रहा हूँ कि मेरा निकाह पढ़ाया गया महजवीं के साथ,पर बेगम हुई फरार उसी मौलवी के साथ।''
रमजानी मियां का शेर सुनकर उछल पडा गुलटेनवा। करतल ध्वनि करते हुए बोला "वाह-वाह रमजानी मियाँ वाह, का तुकबंदी मिलाये हो मियाँ ! एकदम्म सोलह आने सच बातें कही है तुमने। ई विषय पर अपने खुरपेंचिया जी भी कहते हैं कि राजनीति मा बुरापन कवनो मायने नाही रखत। अपने खुर्पेंचिया जी कहते हैं कि राजनीति मा बुरापन के ढके खातिर बाबा से बढ़िया सलाहकार और केहू नाही हो सकत। काहे कि पहिले राजनीति मा दादागिरी के बोलबाला रहे और अब बाबागिरी का। हमरे समझ से गांधीगिरी में अब भलाई नहीं रही ससुरी, कुछ हाँथ पैर देखे के हुनर सिख लेयो, कुछ योगाशन-भोगाशन और बतकही फेंके के आदत डाल लेयो ....बाकी योग्यता की कोई जरूरत नाही । उलटा-सीधा एड्वायिज देत रहो और बदले में तिजोरी भारत रहो ।'गांधीगिरी से केवल आत्मा के संतुष्ट कएल जा सकत है, मगर बाबागिरी में करोड़ों कमाए बगैर, मन की धन भूख ससुरी शांत ही नाही होत।"
लेओ रमजानी भईया के शेर पर एक सवा शेर हमरे तरफ से भी सुन लेयो। बाबाओं के इस देश पर अर्ज़ किया है कि ''बहुत मशहूर है आएं जरूर आप यहाँ,ये मुल्क देखने के लायक तो है,हसीन नहीं।....अछैबर बोले ।
"इसका मतलब ई हुआ अछैबर कि ज्योतिषी जी यानी गुरु घंटाल की राय और आशीर्वाद के बिना अपने प्रदेश मा सरकार नाही बनेगी ?"पूछा गजोधर ।
" बनी गजोधर भैया बनी, उहे सरकार बनी । मगर हमरे देश मा सबके कमाए खाए के अधिकार है । काहे केहू के पेट पर लात मारत हौअ। जे होत है उहो ठीक है, जे नाही होत उहो ठीक है । जे होईहें उहो ठीक होईहें। सब ऊपर वालन के माया है गजोधर भईया। ऊ जे करिहें अच्छा हीं करिहें । आजकल हमार प्रदेश इहे थेयोरी पर चल रहा है । यानी जबतक बरकरार रही हमरे प्रदेश मा अईसन थेयोरी, ज्योतिषी के पौ बारह ही नाम रही, बल्कि पाँव भी भारी रही गजोधर भईया । आप मानs या ना मानs मगर इहे सच है भईया कि जबतक हमरे देश मा मंगरू-ढोरायीं जईसन नेतवन के पैदावार होत रही, गुरु घंटाल ज्योतिषी के पैदावार केहू नाही रोक सकत।" गुलटेनवा बोला।
इतना सुनके तिरजुगिया की माई से ना रहल गईल, कहली कि -"वुद्धिभ्रष्ट हो गई है तुम सब की। कर्म के बदले नेतवन के भीतर अंधविश्वास पैदा करे वाला ज्योतिषी आदर्श कईसे हो सकत है। भाग्य के सहारे जिए वाला कबो ताक़तवर नाही बन सकत।ऊपर वाले के भरोसे सब कुछ छोड़ के लंबी चादर तान के सोये वाला कबो सफल नाही हो सकत। हमनी के यूनाईटेड होके अंधविश्वास के प्रति जंग छेड़े के पडी, तबे प्रदेश की किस्मत चमकी चौबे जी । का गलत कहत हईं?"
तिरजुगिया की माई की बतकही सुनके चौबे जी सीरियस हो गए और उन्होंने कहा कि ""तोहरी बात मा दम है तिरजुगिया की माई। राजनीति के मैदान मा अईसन-अईसन बल्लेवाज़ पैदा हो गए हैं, कि पूछौ मत। खून में न तो संस्कार है और न शिष्टाचार से कवनो लेना-देना।बाबा की अंधभक्ति में कवनो कुकर्म करे से परहेज नाही होत अईसन नेतवन के । जनता की भावनाओं को भुनाके चुनाव जितिहें, हर क्षण हराम की दौलत कमाए के फिराक में रहिहें। ज्योतिषी के इशारों पर आम-आदमी के बलि भी चढ़ावे से कवनो गुरेज ना रखिहें। अईसन अंधविश्वासियों के खिलाफ हमनी के मिलके जंग छेड़े के पडी,तबे बदली प्रदेश की तस्वीर। " इतना कहके चौबे जी ने चौपाल अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया ।
रवीन्द्र प्रभात
(जनसंदेश टाइम्स/15.01.2011)
(जनसंदेश टाइम्स/15.01.2011)
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