चौबे जी की चौपाल  

आज चौबे की चौपाल लगी है बरहम बाबा के
 चबूतरा पर । चुनाव की उद्घोषणा से भरा-पूरा है चौपाल । खुसुर-फुसुर के बीच चौबे जी ने कहा कि "आजकल अपने उत्तरप्रदेश मा जातिवाद के गरमागरम मुद्दे के साथ सगरो चुनाव प्रचार गरमाने लगा है राम भरोसे।जातिवाद के गज़रे लगाए और धर्म के लाल-पीले-नीले-हरे लिपस्टिक लगाए प्रत्याशी ताली बजा-बजाके ग्राहकों का मन टटोलने में लगे है। भले हीं राज्य का विकास हो ना हो,कवनो कीमत पर ससुरी जातिवाद फलै-फुले के चाहीं।भले हीं रोजगार खातिर दर-दर की ठोकर खाए लईकन लोग,जाति का सिर ऊँचा रहै के चाहीं।भले हीं पेट को दो वक़्त की रोटी ना मिलै,जाति का पेट ससुरी भरल रहै के चाहीं। भले ही तन पर कपड़ा बचे ना बचे,जातिवाद सुनहरी-चादर सी दमकै के चाहीं।भले हीं सिर पर झोपडी की छाया रहे ना रहे,जाति का मजबूत साया बनल रहै के चाहीं।भले ही घर की इज्जत बचावल मुश्किल हो जाए,जाति का तमगा जरूर बचल रहै के चाहीं।भले ही जान-माल  बचावल मुश्किल हो जानता खातिर,मगर जाति को आंच नाही आवे कै चाही।भले ही जाति का नेता बड़हन गुंडा ही क्यों न हो,जाति के नाम पर वोट ओकरे मिले के चाहीं।भले ही जाति का नेता बड़हन लुटेरा ही क्यों न हो,जाति के नाम पर ओकराके लूटै के पूरा छूट मिलै के चाही।यानी देश बड़ा न भईया,जाति बनी खेवईया।" 

"सही कहत हौ चौबे जी। राजनीति की  कोई जाति नाही होत। ईहाँ तक कि जो राजनीति जाति के नाम पर की जात हैउसकी भी कोई जाति नाही होत । उहाँ जाति की राजनीति होत हैराजनीति की जाति नहीं होत । अब बताईये कि जब बैलेट बॉक्स से निकलत हैं जाति के जिन्न,काहे नेता लोग उठैहें चुनाव खातिर विषय भिन्न-भिन्न।बेदिमाग वाले हीं हमरी मुर्खता पर हँसेंगे मगर हम्म तो चौबे जी उसी को वोट देंगे जो सोशल इंजीनियरिंग के नाम पर हमरी जाति के दलदल में फंसेंगे।काहे कि जाति आन है-वान है-शान है,जाति स्वाभिमान का दूसरा नाम है। आप माने या ना माने मगर ईहे सच है चौबे जी कि जाति नही तो ससुरी राजनीति कईसन ?" बोला राम भरोसे  

"एकदम्म सहीविल्कुल सोलह आने सच। जाति का राजनीति में वही महत्व है राम भरोसे जो खिचड़ी में घी का है।जैसे  धन के बिना आज धर्म का टिका रहना मुश्किल है वैसे ही जाति के बिना नेता का राजनीति में टिकना कठिन है । इसलिए जो आज भारतीय राजनीति में हो रहा हैवह एक दिन विश्व राजनीति में भी होगा और हमरे काबिल नेता एक दिन स्विस बैंक से धन निकालके विश्व राजीनीति की अगुवाई करेंगे और हम शान से कहेंगे वसुधैव जातिकम ।" बोला गजोधर 

यह सब सुनकर रमजानी मियाँ की दाढ़ी में खुजली होने लगी।पान की पिक पिच्च से फेंककर अपनी लंबी दाढ़ी सहलाते हुए फरमाया कि "बरखुरदार,दुष्यंत साहब कहते थे कि - आप बचकर चल सकें,ऐसी कोई सूरत नही। रहगुजर घेरे हुए,मुर्दे खड़ें हैं बेशुमार।अब देखो हाथी ठुमक-ठुमक चलते हुए आज जहां अपनी चाल पर मस्त है,वहीँ साईकिल अपने लल्ला को सिट पर बैठाकर  चुनाव प्रचार में व्यस्त है।हाथ धीरे-धीरे बढ़ रहा आम आदमी की ओर और फूल खिलने को बेताब है चहूँ ओर। मियाँकवन दूध का धुला है यहाँ सब बाबन गज के  2012 का चुनावी समर जीतने के लिए सियासी लड़ाकों को जाति की तलवार चाहिएयानि जाति की ओट में वोट के लिए भावनाओं पर चोट। बेचारी जनता अभाव तले विलख रही है,पर वोट के नाम पर ससुरी जातियां चमक रही है। इसी मौजू पर दुष्यंत साहब का एक और शेर अर्ज़ है क़ि तुम्हारे पावों के नीचे कोई जमीन नही,कमाल ये है क़ि फिर भी तुम्हें यकीन नही ।"

"बाह-बाह क्या शेर पटका है रामाजानी भईया । हम जईसन मंदबुद्धि के जे समझ में आवत है ओकरे अनुसार राजनीति मा जातिवाद का मतलब होत है मलाई मारे के परमानेंट सोर्स। ससुरी पार्टी कवनो होए जाति के वोट तs मिलवे करिहें । ना मिलिहें तs जईहें कहाँ ज़रा सोचs क़ि जातिवाद  की संस्कृति के नित नया आयाम देवे में हमनी के जन-हितैषी राजनेता लोग केतना महत्वपूर्ण योगदान करत हौअन  सत्ता पावे के ई मतलब ना होला कि हमेशा वसुधैव कुटुंबकम खातिर काम कएल जाए । आपन और आपन जाति के भला सोचेवाला जब सस्ते में विधायक बन सकत हैं तब दोसर जाति के लोगन के रिझावे के का मतलब ? अरे दोसर जाति के अल्पसंख्यक लोग झक मारी के अपने आप वोट गिरा दिहें उनके पक्ष में ।आखिर जल में रहके मगर से बैर कवन करी चाची ?" गुलटेनवा बोला 

इतना सुनकर तिरजुगिया की माई चिल्लाई "का चाची-चाची रट लगावत हौ गुलटेनवा  ज़रा सोचs लोगन क़ि जवन कौम कs पेट गले तक भरा हो ऊ अगर जाति का झंडा बुलंद करे तs समझ मा आवत है, मगर जवन प्रदेश के शरीर से दर्द के झरने बहत हैं उहाँ के लोग रोटी-कपड़ा और मकान की चिंता छोड़के जातिवाद के नारा लगयिहें तs ऊ प्रदेश के का हाल होई एक दिन ?"

"वही होगा जो मंजूरे खुदा होगा चाची।" पान की गुलगुली दबाये रमजानी मियाँ ने चुटकी लेते हुए कहा।

इतना सुनके चौबे जी सीरियस हो गए और कहा क़ि "सब जानत हैं क़ि आदमी के खून से ओकर जात के पता नाही चल सकत, फिर भी हमरे प्रदेश मा ई सच के दफना दिहल गईल बा। आपन फ़ायदा खातिर जातियों के सैकड़ों छोटे-छोटे खाने में बाँट दिहल गईल बा । राष्ट्रीयता की भावना पर आसानी से जातीयता का मुलम्मा चढ़ा दिहल गईल बा । बेहतर भविष्य खातिर जनता जाति में बँटत तई खेल के वैध ठहरावल जा सकत रहे,लेकिन जवन जाति की राजनीति की जहर इहवाँ फैलल बाटे,ओकरा प्रभावी हो जाए से पूरा सामाजिक ढांचा एकदिन चौपट हो जाई । अगर हम चाहत हईं क़ि नया ज़माना आए तो काबिल लोगों को आप अपना रहनुमा बनाएं,चाहे ऊ कवनो जात के होखे, कवनो दल के होखे। प्रदेश कs बेहतर भविष्य खातिर जातिवादी चक्रव्यूह को हम सब को मिलकर तोड़ना होगा तिरजुगिया की माई ।" इतना कहके चौबे जी ने चौपाल अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया।

रवीन्द्र प्रभात 

2 comments:

आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.

 
Top