(Courtesy Google images)


" सफर  अंधा, मोड़  अंधे,मजबूर   है  ज़िंदगी ।
  जागते    रहना   यही,   मुकर्रर    है  बंदगी..!!"


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प्रिय मित्रों,
 
आपने, बचपन के दिनों में, कबड्डी, गिल्ली डंडा, कौड़ी पांसा, कंचा-बाटी जैसे खेल में हिस्सा अवश्य लिया होगा..!!
 

ऐसा ही एक खेल था, जिसे हम,`अंधा भैंसा` के नाम से,खेलते थे । 

`अंधा भैंसा` लड़कों का एक खेल है, जिसमें वे आँखों पर पट्टी बाँधकर, एक दूसरे को छूकर, उसका नाम बताते और तब उसे भैंसा बनाकर उस पर सवारी करते हैं ।
 
गुजरात में इसे,`आँधरो पाटो -Blind Bandage` के नाम से खेला जाता है । `आँधरो पाटो` खेल में, खिलाड़ी की संख्या के हिसाब से, एक सीमांकित जगह तय करने के बाद, दाँव देने वाले लड़के की आँख पर, एक कपड़े की पट्टी, कस कर बांध दी जाती है ।  दाँव देनेवाला दोस्त जब, कोई भी खिलाड़ी को छू लेता है या पकड़ता है  तब, पकड़े जानेवाले खिलाड़ी के सिर,  दूसरा दाँव देने की बारी आ जाती है ।
 
मेरा तो मानना है कि, बचपन में, खेले गए, ये सारे खेल, हमें  जीवन जीने की अद्भुत कला सिखाते है..!! निजी स्वार्थ साधने के मलिन इरादे से, हमारे आसपास, रातदिन घूमनेवाले,कुछ मक्कार इन्सान, हमारी आंख पर, अलग-अलग नाम के  संबंध की पट्टी बांधकर, हमारी नज़रबंदी करके, हमारे साथ, `अंधा भैंसा`  या `आँधरो पाटो` की भाँति, धोखाधड़ी का खेल खेलते रहते हैं..!!
 
`अंधा भैंसा` खेल में भी,दाँव देनेवाले दोस्त की आँख पर पट्टी बँधी होने की वजह से, उसके साथ खेल खेलने वाले दोस्तों को, सिर्फ अनुमान के आधार पर ही पकड़ कर, खुद विजयी होना पड़ता है..!!
 
मुझे लगता है कि, इस संसार में, `भगवान` नाम के हमारे प्रिय सखा ने  भी, हमारी आँख पर, `अज्ञानता` नाम की पट्टी कस कर बाँध के, हमें `अंधा भैंसा` खेलने के लिए, बंधन  मुक्त (स्वतंत्र) कर दिया है..!!
 
हमारी आँख और मन पर बँधी, इस अज्ञानता की पट्टी के कारण, जन्म से मृत्यु पर्यंत,  हमें लगातार परेशान कर रहे स्वार्थी इन्सान, विपरीत समय, प्रतिकूल संयोग, अनभिज्ञ और अनचाही घटनाओं को, कभी  न तो अपने वश में कर पाते हैं, न ही उसे पकड़कर पछाड़ पाते हैं..!! परिणाम स्वरूप, हमें बार-बार हार का मुँह देखना पड़ता है ।
 
कभी-कभार,  एक-दो बार, ग़लती से हम अगर विजयी हो भी जाते है, तो तुरंत `अंधा भैंसा` खेल के दूसरे सभी खिलाड़ी, हमें पकड़ कर फिर से, वही दाँव देने पर मजबूर कर देते हैं..!!
 
अगर संक्षेप में कहें तो, इस नाशवंत, अर्थशून्य संसार में, `अंधा भैंसा` के इस व्यर्थ खेल में हम सदा उलझे रहते हैं और बार-बार शिकस्त मिलने पर, हमारी मजबूरी को हम, `प्रारब्ध या नसीब` का नाम देकर, अपनी सामर्थ्यहीनता को छिपाने की कोशिश करते हैं..!!
 
`अंधा भैंसा` के इस व्यर्थ खेल को, कुछ पहुँचे हुए, अभ्यस्त चतुर खिलाड़ी, दाँव आने पर, अपनी आँख की पट्टी के साथ छेड़छाड करके, पट्टी को ढीला कर लेते है, या फिर दूसरे खिलाड़ी के साथ, सांठगांठ करके, हम ही को ठग लेते हैं और दाँव देने की हमारी बारी लगातार आती रहती है..!!
 
सचमुच, दूसरों कों इस तरह बार बार फँसा कर, दाँव देने पर मजबूर करनेवाले, ऐसे ही होशियार इन्सान (खिलाड़ी), आजकल सफल उद्योगपति,राजनीतिज्ञ या किसी ख़ैराती सामाजिक संस्थाओं के सर्वोच्च पद पर तैनात हो पाते हैं..!!
 
भोलेभाले लोगों को बेवकूफ़ बनाकर,ऐसे होशियार इन्सान (खिलाड़ी), जैसे-जैसे पर्याप्त पैसा,पावर और समाज में अपना स्थान मज़बूत कर लेते हैं, तुरंत उनके चापलूस,ख़ुदग़र्ज़, सहयोगी, खेल शुरू होने से पहले ही, ऐसे होशियार खिलाड़ी की आँख की पट्टी शिथिल बाँधने में, उसे सहायता करके, हमारे मुकाबले उसे, खेल शुरू होने से पहले ही,  विजयी घोषित करने का जुगाड़ कर लेते हैं..!!
 
अब सब से अहम सवाल यह है कि, हमारे साथ ऐसी धोखाधड़ी करने वाले इन्सानों को पराजित कर, हम विजय कैसे प्राप्त करें?
 
जवाब बिलकुल सरल है, हमारे भीतर छुपी हुई अज्ञात चेतना को जाग्रत करके, संसार के हर एक खेल में, उन धूर्त खिलाड़ी की कुटिलता का, सटीक पूर्वानुमान करके, ऐसे कुछ पहुँचे हुए, अभ्यस्त, चतुर खिलाड़ी को हम धोबीपछाड़ दे सकते हैं..!! पर ऐसा करने के लिए, हमें किसी कुशल जापानी `समुराई योद्धा` की तरह, आघात-शीघ्रता आत्मसात करना अति आवश्यक है ।
 
समुद्र में सफर कर रहे जहाज़ के नाविक के पास, असीमित समुद्र के पानी के बीच, दूर का दृश्य देखने के लिए, पितल के मिश्र धातु की, लंबी नली वाला एक दूरबीन होता है, जिसमें एक आँख बंद करके, दूसरी खुली आँख से,दूर के किसी दृश्य को स्पष्ट देखा जा सकता है । नाविक इसी दूरबीन के सहारे, महत्व के सारे निर्णय करता है ।
 
अमेरिकन`रॉयल कनडियन नॅवी` के  एडमिरल  जनरल, Horatio Nelson Lay (23 January 1903 Skagway, Alaska, USA - 1988 Dundas, Ontario), इस बारे में अपने अनुभव बाँटते हुए कहते हैं कि,  " समुद्री सफर के युद्ध में, सिर्फ एक ग़लत सिग्नल, सारे जहाज़ और अनेक नाविकों की ज़िंदगी तबाह कर सकता है..!!" उनका ये भी कहना है कि," I have only one eye - and I have a right to be blind sometimes... I really do not see the signal."
 
कई बार आने वाली मुसीबत-समस्या के बारे में ज्ञात होने के बावजूद, अज्ञात होने का ढोंग रचा कर, समुद्र के बीच मजबूरी में खेली जानेवाली,`अंधा भेंसा` जैसी इस पद्धति को नॅवी की भाषा में,`Putting the glass to his blind eye.`कहते हैं ।

हमारे जीवन में भी कई बार, स्वार्थ में लिप्त किसी इन्सान द्वारा पैदा की गई, ऐसी समस्या का समाधान पाने के बारे में, एक आयरिश प्रवासी कॅथेरिन व्हीलमॉट Catherine Wilmot (1773 – 1824), अपने विचार कुछ इस तरह  दर्शाता हैं," Turn a blind eye and a deaf ear every now and then, and we get on marvelously well."
 
अर्थात, ऐसी कोई समस्या जिसका आपके पास, तोड़ न हो, ऐसे में, जब तक समस्या के समाधान का सही वक़्त पास न आ जाए, दूर का दृश्य देखने वाली खुली आँख और दूर की आवाज़ सुनने वाले कान को भी आप बंद कर लें..!!
 
हालाँकि, बाद में, व्हीलमॉट का यह कथन एक अकसीर सूत्र के रूप में, सारी दुनिया में प्रचलित हो गया ।
 
अब आप कहेंगे,ये तो शुतुरमुर्ग (ostrich) की पलायन नीति हो गई? अगर शुतुरमुर्ग नीति भी असफल हो जाएं,तब क्या करें?
 
यह सवाल ज़रा गंभीर और मुश्किल सा लगता है, पर इसका जवाब बिलकुल सरल है ।
 
सन- १९६३ में,श्री बी.आर.चोपड़ाजी की सफल फिल्म, `गुमराह` प्रदर्शित हुई थी, जिस में अशोक कुमार, सुनिलदत्त, माला सिन्हा और शशीकला ने बेहतरीन अभिनय किया था । फिल्म में श्री साहिर लुधियानवींजी का लिखा हुआ,संगीतकार श्रीरविजीका संगीतबद्ध किया हुआ और श्री महेन्द्र कपूर जी का गाया हुआ, एक गीत है," 

चलो, एक बार फिर से अजनबी बन जाए हम दोनों" याद हैं ना? 

इस गीत का अन्तरा है,"वो अफ़साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन, उसे एक ख़ूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा ।"
 
दोस्तों, हैं ना बढ़िया समाधान..!! 

हमारे यहाँ एक लोकोक्ति बहुत प्रचलित है,"जहाँ  सड़न दिखे, वहीं से काट देना चाहिए ।" जी हाँ, चाहे फिर वो समस्या हो,संबंध हो या फिर अपने मन को पीड़ा देनेवाले विचार हो..!!
 
मैंने जैसे, इस लेख में कहा है कि, ईश्वर नाम के हमारे प्रिय मित्र ने, हमारी आँख पर, अज्ञानता की पट्टी बाँधकर, भले ही हमें, जगह-जगह पर अंधे मोड़ वाले संसार में, स्वतंत्र भेज दिया हो..!! 

पर, हमें यह बात याद रखना चाहिए कि, ईश्वर ने हमें  साथ ही में यह स्वतंत्रता भी दी है कि, 

हमें कौन सा खेल खेलना चाहिए? 

किसके साथ खेलना चाहिए? 

कितनी बार खेलना चाहिए? 

हम ही हैं,जो अपना धैर्य गँवा कर,`अंधा भैंसा` के इस व्यर्थ खेल में, कुछ पहुँचे हुए, अभ्यस्त चतुर खिलाड़ी के हाथों बार बार शिकस्त खा कर, निरंतर दाँव लेते रहते हैं..!!
 
भगवान, हमारा मार्गदर्शन कुछ ऐसे करते हैं कि," संसार का सफर  अंधा लगता है, मोड़  अंधे लगते हैं, ज़िंदगी मजबूर लगती है, ऐसे में जो इन्सान सदा जाग्रत रहकर, मेरी मुकर्रर बंदगी करता है, उसे कभी अपनी दोनों आँख और दोनो कान बंद नहीं करने पड़ते ।
 
वैसे, `BLIND TURNING`,का सही अर्थ होता है, `To knowingly  refuse  to acknowledge  something  which you know to be real." 
 
है ना,बड़ी मज़ेदार बात? 
 
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प्यारे दोस्तों, आप की क्या राय है?

 
मार्कण्ड दवे । 
http://mktvfilms.blogspot.in/

13 comments:

  1. प्रारब्ध को दोष दिये बगैर समस्या का नहीं समाधान का हिस्सा बनाना होगा हमें ।“अंधा भैंसा” के इस व्यर्थ खेल का परित्याग करना होगा। इस खेल के अभ्यस्त-चतुर खिलाड़ियों के द्वारा फैलाये जा रहे कुप्रचारों को तथ्यों और तर्कों से गलत साबित करना होगा । सकारात्मक तरीके से कवियों-लेखको और विचारकों के लेखन को सामने लाना होगा । इसके साथ ही धर्म, राजनीति और सांप्रदायिकता के दायरे को अंधविश्वास के घटाटोप से बाहर लाने और उसके वैज्ञानिक भौतिकवादी नज़रिये पर चर्चा करनी होगी। पैसा-पावर के बल पर समाज मे नफ़रतों का माहौल बनाने की सोच पैदा करने वाले चतुर खिलाड़ियों की पोल खोलते हुये उनके नज़रिये पर बहस चलाने की भी हमारी कोशिश होनी चाहिए ।

    आपने विलकुल सही सवाल उठाया है कि हमारे साथ ऐसी धोखाधारी करने वाले इन्सानों को पराजित कर हम विजय कैसे प्राप्त कर सकते हैं ? इसका समाधान भी आपने अत्यंत सटीक ढंग से दिया है कि हमारे भीतर छुपी हुई अज्ञात चेतना को जाग्रत करके, संसार के हर एक खेल में, उन धूर्त खिलाड़ी की कुटिलता का, सटीक पूर्वानुमान करके, ऐसे कुछ पहुँचे हुए, अभ्यस्त, चतुर खिलाड़ी को हम धोबीपछाड़ दे सकते हैं..!!

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  2. मार्कन्डेय जी,
    यह सही है हम अपना धैर्य गँवा कर,`अंधा भैंसा` के इस व्यर्थ खेल में, कुछ पहुँचे हुए, अभ्यस्त चतुर खिलाड़ी के हाथों बार बार शिकस्त खा कर, निरंतर दाँव लेते रहते हैं..!! लेकिन इसकी गहराई मे जब आप जाएँगे तो पाएंगे कि इस समाज मे जो जिस उत्तरदायित्व को निभा रहा है कमोवेश सभी इस अंधा भैंसा के खेल से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़ा है । एक बड़ी समस्या यह है कि प्रशासनिक स्तर पर जन-कलयांकारी योजनाएँ लागू करने मे बहुत भ्रष्टाचार होता है, जिसकी वजह से पूरे समाज मेन अकर्मण्यता की स्थिति है ।
    जब तक हर कोई अपने-अपने भीतर की यात्रा नहीं करेगा इस अंधा भैंसा के खेल से मुक्त नहीं हो सकेगा ।

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  3. "वो अफ़साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन, उसे एक ख़ूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा ।"

    यही समस्या भी है और यही समाधान भी, सोचिए बार-बार सोचिए समाधान अवश्य निकलेगा !

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  4. धाराप्रवाह लेखन, बहुत कुछ समेटे हुए| आज एक अलग ही अनुभव हुआ पढ़ते हुए|

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  5. खेल कोई भी हो, शिकस्त के साथ सबक भी हाथ आते हैं . पलायनवादी नीति भी वक़्त की माँग होती है . यदि प्रभु आँख पर पट्टी न बांधें तो न हम औंधे मुंह गिरेंगे न सीखेंगे , कई बार तो उम्र के आखिरी पड़ाव तक हम गिरते हैं , जानते हुए कि सामनेवाला बेईमानी कर रहा है . भले इस गिरने से हम अपाहिज हो जाएँ , पर आगत की आँखें खुल जाती हैं .

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  6. खींच-तानकर कद को इतना लंबा नहीं किया करते, लंबी परछाई का ढलते सूरज से इक रिश्ता है !....

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  7. खेल तो खेल ही होता है और खेल मे जीत भी होती है और हार भी, लेकिन वह खेल जिसमें कुटिलता सन्निहित हो उसे त्याग कर पलायन करने के वजाए जरूरी है कि हम दृढ़ता के साथ उसका प्रतिरोध करें, जबतक प्रतिरोध नहीं होगा यह समाज ऐसे खेल को पराश्रय देता रहेगा ।

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  8. सुखद-सार्थक और महत्वपूर्ण चर्चा !

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  9. अश्रानता ही सारी समस्या की मूल है और वह है अशिक्षा से तथा शिक्षा के लिए वास्तविक शिक्षक चाहिए होगे न कि सरकारी शिद्वाा व्यवस्था और उस जैसे शिक्षक...यह बीड़ा हमी आपको उठाना होगा

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  10. सार्थकता लिए हुए सटीक लेखन ... प्रस्‍तुति के लिए आपका आभार ।

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  11. वाह...बहुत सुन्दर, सार्थक और सटीक!
    आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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