चौबे जी की चौपाल (व्यंग्य)
रवींद्र प्रभात
भारतीय सेना में लेटर बम विष्फोट से आहत जनरल सिंह के मुद्दे पर अपनी चुप्पी तोड़ते हुए चौबे जी ने कहा कि " जनरल सिंह आपन मांद मा बईठे रहे और उधर ससुरै भ्रष्टाचारी घुसपैठिए करी गए गोपनीयता मा सुराख। बट्टा लगा गए सुरक्षा की शाख मा,मगर एंटनी अभी भी हैं जनरल को पटकनी देवे के ताक मा। बोलो का होगा हाल, मामला ठन-ठन गोपाल। ज़रा सोचो कि चार्वाक के ई देश मा अउर 'यावत् जीवेत सुखं जीवेत' वाले युग मा जब भ्रष्टाचार फैशन का रूप ले चुका है तो अईसे में का जरूरत थी जनरल के विद्रोह के फुलझड़ी फोड़े के ? ऊ इतना भी नाही समझ सका कि जुआरियों का अड्डा होत हैं ससुरी राजनीति,जहां वातावरण की पवित्रता कोई मायने नाही रखत । उहाँ झूठ के भी अलग ईमान होत हैं। और तो और उहाँ स्व से ऊंचा चरित्र नाही होत। उहाँ नाप-तौल विभाग के ठेंगा दिखाके सब धन बाईस पसेरी कर दिहल जात है । फिर चोर-चोर मौसेरे भाई एक होई जात हैं । राजनीति बड़ी घाघ चीज होत हैं राम भरोसे,जो समझा नेता और जो नाही समझा ऊ जनरल के कैटोगरी में रख दिहल जात हैं। का समझें ?
एकदम्म सही कहत हौ चौबे जी, हम्म आपकी बात कs समर्थन करत हईं । जब शंकराचार्य जईसन विद्वान् जगत के मिथ्या कहके चल गईलें तs ऐसे में मिथ्या जगत की सारी चीजें मिथ्या ही हुई नs ! तुलसीदास के अनुसार जगत सपना है तो सपना मा का झूठ और का सच ? आज तुलसीदास भी जीवित होते तो ईहे कहते महाराज कि -नेतन को नहीं दोष गोसाईं। बोला राम भरोसे।
इतना सुनके रमजानी मियाँ ने अपनी लंबी दाढ़ी सहलाई और पान की गुलगुली दबाये कत्थई दांतों पर चुना मारते हुए कहा कि "बरखुरदार, नेतागिरी से तो अल्ला मियाँ भी पार नहीं पा सकते, फिर बेचारे जनरल बी.के. सिंग की का औकात ? अपना तो बस एक ही फंडा है कि जब जैसा,तब तैसा। ससुरी सच्चाई के अहंकार मा जकडे रहने में कवन बडाई है भईया ! कवन चतुराई है लकीर के फ़कीर बने रहने में ! इसी लकीर के फकीर बने रहने के चक्कर मा महात्मा गांधी मारल गईलें । इसामशीह के सूली पर चढ़ा दिहल गईल बगैरह-बगैरह। कुछ भी कहो मगर ईहे सच है भईया कि चाहे बाबू हो चाहे अफसर, चाहे नेता हो चाहे उसका चहेता खाने-खिलाने में हम हिन्दुस्तानियों का जबाब नाही । हम्म तो बस इतना जानते हैं राम भरोसे भैया कि खाए जाओ, खाए जाओ, नेतन के गुण गाये जाओ और क्या राजा क्या चोर चहूँ ओर मनमोहनी मुस्कान बिखराए जाओ ।
वाह-वाह रमजानी मियाँ वाह, का तुकबंदी मिलाये हो मियाँ ! एकदम्म सोलह आने सच बातें कही है तुमने। ई विषय पर अपने खुरपेंचिया जी भी कहते हैं कि समाजसेवियों की निगाह मा जे झूठ है ऊ झूठ राजनीतिज्ञों की नज़र मा डिप्लोमेसी होई जात है ससुरी । काहे कि राजनीति मा झूठ रस से भरे होत हैं -रस की चासनी में सराबोर,मीठे-मीठे,मधुर-मधुर। साक्षात मधुराष्टकम होत हैं । कुछ सिद्धमुख झूठों के झूठ मा हर बार नवलता होत है - क्षणे-क्षणे यन्नवतामुपैती...। यानी कि इनके झूठ रमणीय होत हैं, जेकरा के कोई 'लेम एक्सक्यूज' या थोथा बहाना नाही कह सकत। यानी राजनीति मा झूठ'सत्यं,शिवं,सुन्दरम' होत हैं, कहलें गजोधर ।
इतना सुनके तिरजुगिया की माई चिल्लाई -"अरे सत्यानाश हो तुम सबका । झूठ कs महिमा मंडित करत हौअs लोगन । इतना भी नाही जानत हौअsकि सत्य परेशान होई सकत हैं,पराजित नाही ।
तोहरी बात मा दम्म है चाची,मगर अब ज़माना बदल गवा है । जईसे डायविटिज के पेशेंट चीनी खाय से डरत हैं,वईसहीं आपन देश के नेता लोग सत्य के सेवन से कतरात हैं । काहे कि झूठ मा जे मिठास है ऊ सच मा कहाँ चाची ! विश्वास ना हो तो मनमोहन चच्चा से पूछ लेयो। ई उम्र मा भी ऊ गुड़ कुल्ला कईके खुबई खात हैं अऊर गुलगुले से परहेज रखत हैं।
गुलटेनवा की बतकही सुनके चौबे जी गंभीर हो गए और कहा कि “हम्म ऐसे नेताओं पर भरोसा करते हैं जो किसी पर भरोसा नही करते। हर पल झूठ बोलना जिनकी फितरत मा शामिल है । हर पल धोखा देना जिसकी आदत है । उनपर हमरी मेहरवानी क्यों ? क्यों ऐसे नेताओं को हम आगे बढ़ा रहे हैं ? क्यों उनका महिमा मंडन कर रहे हैं ? क्यों हम सुधर नही रहे हैं ?"
सांस तेज़ी से खींचते हुए एक शॉर्ट ब्रेक के बाद इतना कहके चौपाल अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया कि "बिन पानी के नदी होई सकत हैं,लेकिन बिना झूठ के राजनीति नाही चल सकत ।"
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