आज ईद का त्यौहार है, जब कभी भी ईद आता है याद आ जाते हैं बरबस हमारे रमजानी चाचा जो इस दुनिया में नहीं रहे। बरसों पहले उनका इंतकाल हो गया । वैसे तो रमजानी चाचा पेशे से दर्जी थे , मगर थे हमारे पड़ोसी । टूटी-फूटी भाषा में शायरी करना उनकी फितरत में शामिल था, इंसानियत कूट-कूट कर भरी थी उनमें। कभी हमारे साथ बैठकर पूरा का पूरा हनुमान चालीसा बांच जाते तो कभी कुरान शरीफ की आयतों को बांचते हुये पाक इस्लाम की हकीकत से रूबरू करा जाते।
मैंने पहली वार अपने रमजानी चाचा से ही जाना था रमजान के पाक माह की हकीकत । कहते थे रमजानी चाचा कि रमजान के तीस दिन यानी इबादत के तीस दिन । तीन भावनाओं से मिलकर बनती है इबादत -पहला वफादारी यानी सम्पूर्ण निष्ठा , दूसरा इताअत यानी अल्लाह के द्वारा बनाए गए मार्ग पर चलना, तीसरा ताजीम यानी मालीक द्वारा बनाए गए इज़्ज़त - अदब, पेश करने के तरीकों पर अमल करना- सबकी सलामती के लिए दुआ करना। न छल न प्रपंच , न धोखा न फरेब, कुछ भी नही था उनमें । उर्दू भाषा की समझ, इस्लामी तह्ज़ीव से जुडी बातें, शायरी की इल्म और अलीफ, वे, ते, जिम , से, दाल, जाल...........का ककहारा सबकुछ उनकी गोद में लोटते हुये हीं मैंने सीखा था ।
वे अपना खाली समय मेरे घर में हीं बिताते , उनका मेरे घर में आना जाना मेरे पिताजी को अच्छा लगता था , मगर मेरी माँ को अच्छा नही लगता था । पुराने विचार हावी थे उनपर लेकिन रमजानी चाचा की अच्छी- अच्छी बातें उन्हें भी अच्छी लगती थी। मगर जब संस्कार उनपर हावी हो जाता तो चिढ़ती हुयी कहती कि मियाँ लोगों का ब्रह्मण परीवार में उठना- बैठना अच्छी बात नहीं , किसी दिन मेरे बेटे को बधिया करबा के मियाँ मत बना देना रमजानी ! यह सुनकर रमजानी चाचा खुलकर ठहाका लगाते और कहते कैसी बातें करती हो भाभी , क्या फर्क पङता है अगर हमारे दिल में अल्लाह और आपके दिल में भगवान् है? दोनों में हमेशा नोक-झोंक होते रहते मगर कभी तकरार नही होता क्योंकि माँ भी जानती थी कि हमारे रमजानी चाचा दिल के बुरे नही थे । बिना कुछ खिलाये अपने घर से नहीं जाने देती चाचा को मेरी माँ । ईद के पुर मुस्सरत मौक़े पर तो हमारे परीवार का बड़ी बेशब्री से इंतज़ार होता था रमजानी चाचा के यहाँ और होली में पूरे गाजे-बाजे के साथ शरीक होते थे जोगीरा गाते हुये रमजानी चाचा।
अनेक संस्मरण जूड़े है हमारे रमजानी चाचा के साथ, लेकिन आज यहाँ एक बात कहना उचित होगा कि हमारे रमजानी चाचा का इंतकाल ईद के हीं दिन बारह वर्ष पहले हुआ था , इसलिये आज के दिन मैं याद करताहूं अपने रमजानी चाचा को और सोचता हूँ कि काश! आज के साम्प्रदायिक युग में हर हिंदू- मुसलमान हमारे रमजानी चाचा के जैसा हो जाता तो दुनिया की तस्वीर ही बदल जाती ।
जब रमजानी चाचा हमेशा के लिए खामोश हुये तो मैंने उनकी स्मृति में एक कविता लिखी थी , दस- बारह साल गुज़र जाने के बाद भी यह कविता प्रासंगिक है या नही आप स्वयं निर्णय करें-

।। रमजानी चाचा।।

जहाँ शांति के उपदेशक
सत्य- अहिंसा में आस्था रखना छोड़ दिए हो
जहाँ की ज़म्हूरियत
खानदानी वसीयत का पर्चा बन गयी हो
जहाँ का सीपहसालार
कर गया हो सरकारी खज़ाना
सगे- संबंधियों के नाम
जहाँ संसद के केन्द्रीय कक्ष में
व्हीस्की के पैग के साथ
हो रही हो रामराज्य पर व्यापक चर्चा
जहाँ चंद सिक्कों पर
बसर करती हो हकीकत
और दाद के काबिल
नहीं समझी जाती हो कविता
वहां, देश- कल पर चर्चा करना
फ़िज़ूल है रमजानी चाचा !

जहाँ मसलों से पूरी तरह
ग्रस्त हो आम- आदमी
जहाँ चलने- फिरने - बोलने पर
लग चुका हो प्रतिबंध
जहाँ साहूकार का बेटा
नित नई मज़दूरनी के साथ
पगार बढ़ाने के एवज़ में
बुझा रहा हो अपनी हबस की आग
दो- जून की रोटी के लिए
बिक जाती हो प्रेमचंद की ''धनिया''
और कोई नही सुनाता हो ''होरी'' का चीत्कार
वहां कौन सुनेगा तुम्हारी बात
तुम्हारे समय की........ ।

बेहतर है-
चुप्पी ही साधे रहो रमजानी चाचा !
देखो न आने लगी आहट
अलगाववाद की
अपने भी गाँव में
बदल रहा यह गाँव बड़ी तेज़ी से
शहरी संस्कृति के नाम पर ।
कल तेरा ये-
प्यार से पुचकारना भी
फ़िज़ूल हो जाएगा रमजानी चाचा !


और हम-
मेरठ/ अलीगढ़/भागलपुर/सीतामढी
की तरह वंचित हो जायेंगे
ईद की सेबई से
और तुम होली के रंग से चाचा !

कल हमारा भी गाँव
शहर में तब्दील हो जाएगा
और तुम खामोश देखते चले जाओगे
बदलती हुई पीढी-दर-पीढी को ..... ।
() रवीन्द्र प्रभात

10 comments:

  1. मेरे कुछ मित्र होते थे हर ईद पर सिवैंयां खिलाने वाले। नयी जगह है। नये लोग। इस बार कोई नहीं है ईद की सिवईं वाला।
    सबको ईद मुबारक।

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  2. ईद की मुबारकबाद. हमने भी ईद की सिवैंया बहुत खाई. पोस्ट प्रेरणादायक है.

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  3. बहुत अच्छी पोस्ट लगी। ईद मुबारक!

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  4. अच्छा लगा आपके रमजानी चाचा के बारे में जानकर। ऐसे ही अपने संस्मरण बांटते रहिएगा। आपको ईद मुबारक।

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  5. पोस्ट वह कला है, जो विरले को ही प्राप्त होता है. मज़ा आ गया पढ़कर. हमेशा की तरह मजेदार रहा आपका यह पोस्ट भी, बहुत आनंद आया ! भाई वाह, क्या किरदार ढूँढा है आपने, वह भी रमजानी चाचा, बहुत खूब्॥धन्यवाद !

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  6. बहुत जोरदार लिखा है. बधाई
    दीपक भारतदीप

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  7. अगर अपने ब्लोग पर " कापी राइट सुरक्षित " लिखेगे तो आप उन ब्लोग लिखने वालो को आगाह करेगे जो केवल शोकिया या अज्ञानता से कापी कर रहें हैं ।

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  8. कविता मार्मिक है , मन को छू गई. बहुत अच्छा लगा आपका संस्मरण ..
    हम सबके नाम की ईद की सेवइयाँ अभी तक खा रहे हैं.

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  9. भाई आपने तो ईद के मौके पर रमजानी चाचा के जरिये से बहुत ही मार्के की बात की है. मजा आ गया पढ कर. काश हम ऐसे रमजानी चाचा के दिल के दर्द को समझ पाते.

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