हमारे एक मित्र हैं हरिश्चन्द्र शर्मा जी , कोई उन्हें गांधी, कवीर, विनोवा कहकर सम्मान देता है तो कोई नटवर लाल ,चार्ल्स शोभ राज की संज्ञा से नवाजता है । कभी उन्हें सम्मान स्वरूप फूलों के हार प्राप्त होते तो कभी जूतों के । वकौल शर्मा जी , ऐसा इसलिये होता कि वे सच बोलते हैं । यथा नाम तथो गुणः । अब बताईये जब सारी दुनिया इक्कीसवीं सदी में प्रवेश कर मशीनी ज़िंदगी जीने को मज़बूर है तो उन्हें सतयुग का हरिश्चन्द्र बने रहने की क्या ज़रूरत ? कौन समझाए उनको, वो तो बस एक ही बात कहेंगे - दिल है कि मानता नहीं !
कई बार उन्हें समझाने की कोशिश भी की , कि भाई शर्मा जी, ज़माना बदल गया है । हर चीज मशीनी हो गयी है , यहाँ तक कि भावनाएं भी । तपेदिक हो गया है सच को, कल्पनायें लूली-लंगडी हो गयी है , मर गयी है मानवीयता और दफन हो गयी है भावनाएं । भावनाओं की कब्र पर उग आये हैं घास छल- प्रपंच और बईमानी के , ऎसी स्थिति में सच से परहेज़ क्यों नहीं करते ? उनका बस एक हीं जबाब होता - दिल है कि मानता नहीं ।
भाई कैसा दिल है शर्मा जी के पास आज तक मैं नहीं समझ पाया । हालांकि शर्मा जी यह महसूस अवश्य करते हैंकि आजकल सबकुछ उलटा- पुल्टा हो गया है जसपाल भट्टी के व्यंग्य की मानिंद। आजकल अपाहिज खेलते हैं , गूंगे कॉमेंट्री करते हैं , अंधे तमाशावीन होते हैं और चयन समिति में होती है हिजडों की टोलियाँ ऐसे में हमारी- आपकी सच्चाई उसी प्रकार है जैसे चांदी की थाली में गोबर । मगर शर्मा जी का दिल है कि मानता नहीं । शर्मा जी यह भी महसूस करते हैं कि हादसों के पांव नही होते और न उसके आने की आहट हीं महसूस होती है , मगर आदमी को सतर्क ज़रूर रहना चाहिए । क्योंकि सतर्कता गयी दुर्घटना हुई । अफशोश तो यह है कि ऎसी सुन्दर- सुन्दर वातें करने वाले हमारे शर्मा जी हर दूसरे-तीसरे दिन सच बोलने के कारण किसी न किसी हादसे की चपेट में अवश्य आ जाते हैं । एक बार कॉलेज के कुछ मनचलों को राह चलते गांधी- दर्शन का पाठ पढाने के चक्कर में शर्मा जी ने अपने हाथ- पैर टूडवा लिए । जब अस्पताल में मैं इनसे मिलने गया और यह हिदायत दीं कि इसप्रकार राह चलते गांधी गिरी न किया करें । उन्होंने कराहते हुये कहा कि- यार दिल है कि मानता नहीं ।
न कोई दिखावा, न बनावटीपन फिर भी अक्सर हमारे शर्मा जी बन जाते पगले और बाजी हाथ लग जाती अगले को । पिछले दो अक्टूबर को ऐसा हीं हुआ शर्मा जी के साथ । उन्हें एक संस्था ने गांधी जयंती पर मुख्य अतिथि बनाया । जब शर्मा जी ने गाँधी बाबा की तारीफ़ में कशीदे काढ़ने शुरू किए कि तालिओं की गड़गड़ाहट से अचानक झूम उठा उनका मन । हौसला बढ़ता गया, बढ़ता ही चला गया और बढ़ते- बढ़ते पहूंच गया सातवें आसमान पर। शर्मा जी इतने उताबले हो गये कि उन्हे याद ही नही रहा कि गाँधी दर्शन पर व्याख्यान देने आएँ हैं या नाथु राम गॉदसे पर . बस क्या, जैसे ही चर्चा के क्रम में भारत - पाकिस्तान के बटवारे का ज़िक्र आया लगे ख़री- खोटी सुनाने गाँधीवादियों को. देने लगे ताने पर ताने . भाई साहब आप माने या ना माने मगर यह सच है कि अहिंसा के पक्षधर गाँधीवादियों ने उनकी ऐसी धुनाई की कि बत्तीसी बाहर हो गयी. बेचारे शर्मा जी सिविल अस्पताल के प्राइवेट वार्ड में कराहते हुए दिन गुज़ारने लगे . मैने पूछा भाई शर्मा जी, यह बताओ आप गाँधीवादी हो, समाजवादी हो, कम्युनिष्ट हो या फिर भाजपाई क्या हो भाई ? शर्मा जी ने कहा यही तो रोना है कि मैं सत्यवादी हूँ और इस देश में सतयवादियों की कोई पार्टी नहीं . मैने चुटकी ली कि यार जब सत्यवादी बनने में इतना बड़ा रिश्क है तो कोई और वादी क्यों नही बन जाते? शर्मा जी शर्माते हुए बोले- दिल है कि मानता नहीं !
आज सुबह -सुबह यह जानकारी मिली कि बेचारे शर्मा जी की नौकरी चली गयी। मैं हतप्रभ रह गया यह सुनकर।भागा-भागा आया शर्मा जी के पास तो उन्हे परेशान- हाल देखकर मुझे समझते देर न लगी कि फिर कुछ गड़बड़ किया होगा शर्मा जी ने।शर्मा जी बेचारे ख़ामोश थे, मैने जब उनकी ख़ामोशी तोड़ी तो उन्होने बताया कि, हुआ यों कि हमारे शर्मा जी के कार्यालय में कुछ लोगों ने पदोन्नत्ति पाई, जिसके एवज़ में एक पार्टी रखी गयी थी, हमारे शर्मा जी को भी बुलाया गया था। सभी को बारी-बारी से अपनी बात कहनी थी और बधाई देनी थी सहयोगिओं को । जब शर्मा जी की बारी आई तो आदत से मजबूर सतयवादी शर्मा जीअपने सत्य वचन कुछ इसप्रकार रखे-
'' मैने अपने अनुभव के आधार पर जो महसूस किया है वह यह है कि अब पदोन्नति के लिएयोग्यता नही जूगाड़ की ज़रूरत होती है. जूगाड़ नही तो पदोन्नति नही . पदोन्नति प्राप्त करने वालों की पाँच श्रेणियाँ होती है. कभी-कभी तो एक ही व्यक्ति इन पाँचो श्रेणियों में शामिल होता है और दो-तीन-चार-पाँच पद पदोन्नत हो जाता है यानी अल्लाह मेहरवान तो गदहा पहलवान. ऐसे लोगों को मेरी बधाइयाँ ! लोगों की जिग्यासा बढ़ती गयी, सामने बैठे बॉस ने भी गुज़ारीश की किशर्मा जी जारी रखें अपना व्याख्यान .... फूल कर बरसाती मेंधक हो गये हमारे शर्मा जी और चुतौती दे डाली पदोन्नति देने वाले अधिकारियों की योग्यता को हीं. लोगों ने फूलाना शुरू किया और फूलते चले गये हमारे शर्मा जी , बरसाती मेंधक की मानींद तरटाराते हुए गिनाने लगे पदोन्नति के पाँच सूत्र---

() पहला सूत्र- बने रहो पगले, काम करे अगले
() दूसरा सूत्र- बने रहो फूल, सैलरी पाओ फूल
() तीसरा सूत्र- यदि काम का लोगे टेंसन तो फ़ैमीली पाएगी पेंसन
() चौथा सूत्र- काम करो या न करो, काम की फिकर ज़रूर
() पाँचवाँ सूत्र- काम की फिकर करो या न करो मगर बॉस से जिकर ज़रूर करो ...! इसप्रकार सफलता के इन पाँच सूत्रों कोआपनाओ, पदोन्नति पाओ और बॉस के साथ- साथ आगे बढ़ते चले जाओ । ''
शर्मा जी के वक्तव्य से जहाँ गाल फूल गये उनके सहयोगियों के वही खीज़ गये अपने चयन की चुनौती देने वाले शर्मा जी से उनके बॉस भी। सच्चाई को पचाने का किसी ने नही दिखाया साहस, न सहयोगियों ने और न बॉस ने, हमारे सत्यवादी हरीशचंद्र ने खोल कर रख दिए बड़े ढोल में बड़ी पॉल और बजा लिया अपना ही बाजा । अब कौन समझाए शर्मा जी को। मुझे मेरेमित्र पर ग़ूस्सा भी आ रहा था और तरस भी । मगर अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत। मैने फिर हिम्मत करकेशर्मा जी से पूछा, अजी शर्मा जी ! ऐसा क्यों किया आपने? उन्होने अपनी पीड़ा छुपाते हुए भारी मन से कहा- दिल है मानता नही! सत्य बोलने का ख़ामियाज़ा भले ही शर्मा जी को बार-बार भुगतना पड़ा हो मगर शर्मा जी ठहरे जीवट वाले आदमी, कहतेहैं प्राण जाए पर सत्य वचन न जाए ! अब हम करुणानिधी थोड़े न हैं कि भगवान राम को पियक्कर कहें। मैने कहा चुप रहो शर्मा जी , कोई करुणानिधी का समर्थक सुनेगा तो फिर कोई मुसीबत खड़ी हो जाएगी। वैसे हमें गर्व है अपने शर्मा जी परजो आज के इस गंदे माहौल में भी सच्चाई का दामन नही छोड़ा।
कहते हैं शर्मा जी, कि आत्म ग़ौरव से बढ़कर कुछ भी नही होताक्योंकि जो आत्म ग़ौरव के साथ नही जीता , उसका जीवन जीवन नही होता !
शर्मा जी की पीड़ा महसूस कर मेरे होठों से फुट पड़े ये शब्द- दिल है कि मानता नही! कोई उगल देता है तो कोई निगल जाता है ।

5 comments:

  1. हरिश्चन्द्र जी में सत्य की कड़क शायद है पर व्यवहारगत दोष तो हैं ही। वे अपने रोल मॉडल नहीं हो सकते। सत्य भी तरीके से कहा जा सकता है - सत्य और प्रिय!
    पर आपने सही कहा - ऐसे चरित्र हैं और जीवन भर परेशान रहते हैं कि उनमें गलती क्या है?

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  2. अच्छा लगा आपकी प्रस्तुति देखकर,
    बहुत खूब्॥धन्यवाद

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  3. बहुत खूब!बहुत सुन्दर!!
    पढ़कर अच्छा लगा.

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  4. रवींद्रजी
    आपके शर्माजी की व्यथा पढ़कर बिना टिप्पणी किए दिल है कि मानता नहीं। और, आपके बताए हुए सफलता के सूत्र अपनाए बिना दिल है कि मानता नहीं।

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  5. ये सफ़लता के सूत्र मै तो खुद ही भूल गया था. आपने बहुत सुन्दर ढ्ग से बात कही है. गुरो दत्त जी ने ठीक ही लिखा है कि सत्य को प्रिय तरीके से भी कहा जा सकताहै.

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