अनुप्रास हुआ मन-मन्दिर , जीवन मधुमास हुआ !
भ्रमरों के ओठों पे वासंती गीत , मनमीत हुए सरसों में -
मादक एहसास हुआ .......अनुप्रास हुआ ...!!
प्रीति की ये डोर बांधे , पोर-पोर साँसों को ,
सुबह में शीत जैसे चुम्बन ले घासों को ,
आम्र की लताओं पे बैठी-बैठी कोयलिया -
गीत बांचे गोविन्दम , ओढ़ के कुहासों को ।
नगमों की वारिश में भीगा है बदन -
मन हुआ कबीर तन औचक बिंदास हुआ .....अनुप्रास हुआ ......!!
झूम करके साँवरी घटा चली है रातों में ,
चूम करके चाँद को रिझा रही है बातों में,
सुरमई सी आंखों में श्याम की छवि आयी -
बावरी हुयी मीरा, खो गयी है यादों में ।
बांसों की झुरमुट से निकला है स्वर -
डर गयी है सुर-पंचम कैसा उपहास हुआ ......अनुप्रास हुआ ...!!
झमक - झिमिर , तिपिर -तिपिर होने लगा छप्पर से ,
धमक-धिमिर , धिपिर-धिपिर बजने लगा अम्बर से ,
देहरी के भीतर से झाँक रही दुल्हनियाँ -
साजन की यादों में खोई हुई अन्दर से ।
आंखों में सपने हैं, ह्रदय में हहास-
साँसों में अनायास बृज का मधुर वास हुआ .....अनुप्रास हुआ ....!!
() रवीन्द्र प्रभात
(कॉपी राइट सुरक्षित )
सुंदर उपमायें लिये आपकी कविता अच्छी और सराहनीय है..बधाई
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!! अति सुन्दर..
जवाब देंहटाएंbahut khubsurat alfazon ke saath shrungarit kavita,beautiful.
जवाब देंहटाएंझमक - झिमिर , तिपिर -तिपिर होने लगा छप्पर से ,
जवाब देंहटाएंधमक-धिमिर , धिपिर-धिपिर बजने लगा अम्बर से ,
देहरी के भीतर से झाँक रही दुल्हनियाँ -
साजन की यादों में खोई हुई अन्दर से ।
आंखों में सपने हैं, ह्रदय में हहास-
साँसों में अनायास बृज का मधुर वास हुआ .....अनुप्रास हुआ ....!!
भावों के साथ ध्वनि और शब्दों का सुंदर चुनाव - सराहनीय है। बधाई!