कैनवस पर अब चीड़ बना ,
घर को ही कश्मीर बना ।

सत्ता के दरवाजे पर ना -
बगुले की तसवीर बना ।

झूठ-सांच में रक्खा क्या -
मेहनत कर तकदीर बना ।

रोज धूप में निकलो मत -
चेहरे को अंजीर बना ।

ऐटम-बम से हाथ जलेंगे -
प्यार की इक तासीर बना ।

सूरज सिर पर आया है -
मन के भीतर नीर बना ।

अदब के दर्पण में "प्रभात"
ख़ुद को गालिब-मीर बना ।
()रवीन्द्र प्रभात



15 comments:

  1. सत्ता के दरवाजे पर ना -बगुले की तसवीर बना ।
    gazab gazab ka sher hai,bahut hi khubsurat gazal hai,ek mast mast andaz mein,bahut khub.
    झूठ-सांच में रक्खा क्या -मेहनत कर तकदीर बना
    ye baat sau anne sahi hai.

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  2. पेंटिंग और कविता दोनों लाजवाब.

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  3. पेंटिंग और कविता दोनों लाजवाब.

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  4. झूठ साँच मे रखा क्या
    मेहनत कर तकदीर बना ""

    क्या बात है रवीन्द्र साहब !!! मरहबा मरहबा

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  5. रोज धूप में निकलो मत -
    चेहरे को अंजीर बना

    वाह ! सरल भाषा में सुंदर बातें कह जाते हैं आप...

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  6. गज़ल अच्छी बन पडी है.
    एक-दो शेर इसी काफिया रदीफ पर पेश हं:

    कोई काम अनोखा कर
    अपनी नयी नज़ीर बना.

    नये नये रंगों को ढूंढ,
    एक नयी तस्वीर् बना

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  7. सरल भाव, अद्भुत प्रस्तुति! बहुत सुन्दर।

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  8. बहुत बेहतरीन:

    अदब के दर्पण में "प्रभात"
    ख़ुद को गालिब-मीर बना ।

    वाह!!!

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  9. रोज धूप में निकलो मत -
    चेहरे को अंजीर बना ।


    बहुत बढ़िया ओर पेंटिंग का भी जवाब नही......

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  10. सूरज सिर पर आया है -
    मन के भीतर नीर बना ।
    अदब के दर्पण में "प्रभात"
    ख़ुद को गालिब-मीर बना ।

    बहुत खूब ..अच्छा लगा...बधाई

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  11. aap jaise lakhanawi ki yah ghazal bahut umdaa hai...

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  12. प्रभात जी, आपने गजल विधा को नये आयाम दिये हैं, बधाई स्वीकारें।

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  13. झूठ-सांच में रक्खा क्या
    मेहनत कर तकदीर बना ।
    सही ...सुंदर !

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