भर दे जो रसधार दिल के घाव में ,
फ़िर वही घूँघरू बंधे इस पाँव में !
द्रौपदी बेवस खड़ी कहती है ये -
अब न हो शकुनी सफल हर दाव में !
बर्तनों की बात मत अब पूछिए-
आजकल सब व्यस्त हैं टकराव में !
मंहगाई और मेहमान दोनों हैं खड़े-
काके लागूं पाय इस अभाव में ?
है हरतरफ़ क्रिकेट की चर्चा गरम -
बेडियां हॉकी के पड़ गए पाँव में !
है सफल माझी वही मझधार का-
बूँद एक आने न दे जो नाव में !
बात करता है अमन की जो "प्रभात "
भावना उसकी जुडी अलगाव में !
(रवीन्द्र प्रभात)
बर्तनों की बात मत अब पूछिए-
जवाब देंहटाएंआजकल सब व्यस्त हैं टकराव में !
मंहगाई और मेहमान दोनों हैं खड़े-
काके लागूं पाय इस अभाव में ?
wah wah bahut khub
द्रौपदी से वर्तमान - सब हैं एक समान!
जवाब देंहटाएंप्रभात जी,
जवाब देंहटाएंबर्तनों की बात मत अब पूछिए-
आजकल सब व्यस्त हैं टकराव में !
मंहगाई और मेहमान दोनों हैं खड़े-
काके लागूं पाय इस अभाव में ?
बात करता है अमन की जो "प्रभात "
भावना उसकी जुडी अलगाव में !
हर शेर बरबस ही "वाह" कह उठने को मजबूर करता है। उपर उद्धरित शेर खास पसंद आये।
*** राजीव रंजन प्रसाद
www.rajeevnhpc.blogspot.com
मंहगाई और मेहमान दोनों हैं खड़े-
जवाब देंहटाएंकाके लागूं पाय इस अभाव में ?
मंहगाई और मेहमान दोनों हैं खड़े-
जवाब देंहटाएंकाके लागूं पाय इस अभाव में ?
बहूत सुंदर रवीन्द्र जी ,बिना गोलमोल सिधे मर्के कि बात और सीधी सादी भाषा मे.
द्रौपदी बेवस खड़ी कहती है ये -
जवाब देंहटाएंअब न हो शकुनी सफल हर दाव में !
मंहगाई और मेहमान दोनों हैं खड़े-
काके लागूं पाय इस अभाव में ?
क्या बात है.....
बेहद उम्दा भाव बेहद खूबसूरती से लिख दिये हुज़ूर आपने
दिल को छू गये...