जैसा कि पिछले पोस्ट में मैंने ब्लॉग उत्सव की परिकल्पना करते हुए आपके सुझाव और रचनात्मक सहयोग की अपेक्षा की थी । अपेक्षा से कहीं ज्यादा आपके सुझाव और रचनात्मक सहयोग प्राप्त हुए हैं । जिनके द्वारा अभी तक रचनाएँ प्रेषित नहीं की गयी है उन्होंने भी इसे शीघ्र प्रेषित करने का विश्वास दिलाया है । श्री अविनाश वाचस्पति जी के द्वारा जो पञ्चलाईन इस उत्सव के परिप्रेक्ष्य में सुझाया गया है वह है- अनेक ब्लॉग नेक हृदय !
उत्सव के परिप्रेक्ष्य में आपकी सहमति, सुझाव और रचनात्मक सहयोग का वादा इसे आयोजित करने हेतु हमें प्रेरित कर रहा है । इसलिए मैंने यह निश्चय किया है कि इस उत्सव की शुरुआत हम अप्रैल के किसी दिवस में करेंगे . यानी शीघ्र !
ध्यान दें- उत्सव समस्त ऐंठन - अकडन भरी ग्रंथियों और खिंचाव - तनाव भरी मानसिक पीड़ा को दूर करने का एक सहज-सरल तरीका है। उत्सव पारस्परिक प्रेम का प्रस्तुतीकरण है ...!
कहा भी गया है कि प्रेम तभी शाश्वत है जब वह सार्वजनिक और सर्वजनहितकारी हो । किसी संप्रदाय विशेष, वर्ग विशेष या जाति विशेष से बंधा हुआ नहीं हो । यदि ऐसा हो तो उसकी शुद्धता नष्ट हो जाती है । प्रेम तभी तक शुद्ध है , जबतक सार्वजनिक, सार्वदेक्षिक, सार्वकालिक है । इसी प्रेम को पारस्परिक प्रेम की संज्ञा दी गयी है. पारस्परिक प्रेम जब सार्वजनिक हो जाता है तब उत्सव का रूप ले लेता है।
उत्सव के परिप्रेक्ष्य में आपकी सहमति, सुझाव और रचनात्मक सहयोग का वादा इसे आयोजित करने हेतु हमें प्रेरित कर रहा है । इसलिए मैंने यह निश्चय किया है कि इस उत्सव की शुरुआत हम अप्रैल के किसी दिवस में करेंगे . यानी शीघ्र !
ध्यान दें- उत्सव समस्त ऐंठन - अकडन भरी ग्रंथियों और खिंचाव - तनाव भरी मानसिक पीड़ा को दूर करने का एक सहज-सरल तरीका है। उत्सव पारस्परिक प्रेम का प्रस्तुतीकरण है ...!
कहा भी गया है कि प्रेम तभी शाश्वत है जब वह सार्वजनिक और सर्वजनहितकारी हो । किसी संप्रदाय विशेष, वर्ग विशेष या जाति विशेष से बंधा हुआ नहीं हो । यदि ऐसा हो तो उसकी शुद्धता नष्ट हो जाती है । प्रेम तभी तक शुद्ध है , जबतक सार्वजनिक, सार्वदेक्षिक, सार्वकालिक है । इसी प्रेम को पारस्परिक प्रेम की संज्ञा दी गयी है. पारस्परिक प्रेम जब सार्वजनिक हो जाता है तब उत्सव का रूप ले लेता है।
हम सभी को मिलकर ऐसा ही उत्सव जो प्रेम से लबालब हो मनाना है, क्योंकि आज के भौतिकवादी युग में हमारी पूर्व निश्चित धारणाएं और मान्यताएं हमारी आँखों पर रंगीन चश्मों की मानिंद चढी रहती है और हमें वास्तविक सत्य को अपने ही रंग में देखने के लिए वाध्य करती है । प्रेम के नाम पर हमने इन बेड़ियों को सुन्दर आभूषण की तरह पहन रखा है , जबकि सच्ची मुक्ति के लिए इन बेड़ियों का टूटना नितांत आवश्यक है। यानी हमारा उत्तम मंगल इसी बात में है कि हम समय-समय पर अपने-अपने वाद-विवाद को दरकिनार करते हुए उत्सव मनाएं । यही कारण है इस उत्सव की उद्घोषणा का ...!
इस उत्सव में हमारी कोशिश होगी कि हर वह ब्लोगर शामिल हो जिन्होंने कम से कम सौ पोस्ट के सफ़र को पूरा कर लिया है । इसके लिए जरूरी है कि सौ पोस्ट और उससे ज्यादा प्रकाशित करने का गौरव हासिल करने वाले हर ब्लोगर अपने ब्लॉग से एक श्रेष्ठ रचना का चयन करते हुए उसका लिंक ravindra .prabhat @gmail .com पर प्रेषित करें । हम आपके उस पोस्ट को प्रकाशित ही नहीं करेंगे अपितु विशेषज्ञों से प्राप्त मंतव्य के आधार पर प्रशंसित और पुरस्कृत भी करेंगे ।
इस लिंक में लेख भी हो सकते हैं, कहानी भी, कविता-गीत-ग़ज़ल और लघु कथा भी । साक्षात्कार , परिचर्चा , कार्टून, संस्मरण, यात्रा वृत्तांत के साथ-साथ ऑडियो/वीडियो के लिंक भी। यदि इसके संबंध में आपकी कोई अन्य जिज्ञासा हो तो उपरोक्त मेल पर आप मुझसे पूछ सकते हैं । समय कम है और काम ज्यादा करने हैं इसलिए संभव है कि अगले कुछ दिनों तक परिकल्पना पर पोस्ट की अनियमितता बनी रहेगी । अत: क्षमा कीजिएगा !
YALGHAAR ho !!!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंअब हम समस्त हिन्दी ब्लॉगरों के हृदयों को नेक बनाने की मुहिम चला रहे हैं। उसके बाद ब्लॉग पाठकों को और फिर समस्त संसार को। आप सब इस मुहिम में हमारे साथ हैं।
जवाब देंहटाएंजिनके सौ पोस्ट नहीं हो वे क्या करें?
जवाब देंहटाएंसुश्री पूर्णिमा जी,
जवाब देंहटाएंइस उत्सव में शामिल होने के लिए केवल एक शर्त है उसका ब्लोगर होना !
यदि आपके सौ पोस्ट नहीं हुए हों तो भी अलग से कोई सुन्दर रचना मेल के माध्यम से भेज कर आप शामिल हो सकती हैं ...!
ऑडियो/वीडियो भेजने की क्या शर्त है ?
जवाब देंहटाएंअविनाश जी ने जो पंच लाइन सुझाई है। बढि़या है। पर यह ऐसी भी हो सकती है - ब्लाग अनेक,हदृय नेक। या फिर अनेक ब्लाग,नेक राग।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुभकामनाएं।
सुश्री पूर्णिमा जी,
जवाब देंहटाएंकुछ महत्वपूर्ण चिट्ठाकारों की रचनाओं को स्वर देने वाले पुरुष या महिला ब्लोगर के द्वारा प्रेषित ऑडियो/वीडियो भी भेज कर आप शामिल हो सकती हैं ...!
राजेश जी,
जवाब देंहटाएंआपके सुझाव सुन्दर हैं और विचार योग्य भी, आपका आभार!
आज मुझे दही पोस्ट तो मिला लेकिन मैं तो नया हूँ जी ...
जवाब देंहटाएं...
यह पोस्ट केवल सफल ब्लॉगर ही पढ़ें...नए ब्लॉगर को यह धरोहर बाद में काम आएगा...
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_25.html
लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से....
Excellent...
जवाब देंहटाएंएक सराहनीय कोशिश प्रभात भाई।
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
अनेक ब्लॉग के लिए नेक पहल ....
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंअच्छा कार्य है आप को सहयोग अवश्य मिलेगा ,हार्दिक शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंबढ़िया सोचा है आप सब ने
जवाब देंहटाएंपरिकल्पना परिकल्पना की दे अमित आनंद.
जवाब देंहटाएंमिलें शतदल कमल से हम, गुँजा स्नेहिल छंद..
रचें चिट्ठों का अभी मिल, नया ही संसार.
बात हो केवल सृजन की, सब तजें तकरार..
गोमती से नर्मदा मिल, रचे नव इतिहास.
हर अधर पर हास हो, हर ह्रदय में हो प्यास..
स्वागत है।
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रयास
जवाब देंहटाएंरचना या उसके अंश की मौलिकता के बारे में पोस्ट पर ही स्पष्टीकरण होता तो बेहतर था
सराहनीय प्रयास है यह ..बहुत बढ़िया लगा यह शुक्रिया
जवाब देंहटाएंरविन्द्र जी
जवाब देंहटाएंहिन्दी ब्लॉगरों को एक नई दिशा व एक मंच देने की दिशा में आपके द्वारा किया जा रहा यह " परिकल्पना उत्सव " का प्रयास सराहनीय है ।
किसी तरह हाल ही में मैंने अपने ब्लॉग पर शतक लगा ही लिया है । फलत: मैं भी अब परिकल्पना उत्सव में शामिल होने का लाभ ले सकूंगी । मैं शीघ्र ही अपनी पोस्ट आपके मेल पर भेज दूंगी ।
चलिए हम तो अब अगले साल ही सोचेंगे क्योंकि हमने तो अभी शतक जमाया नहीं। जब आपका आकलन संख्याबल है तो फिर क्या कहा जा सकता है। आपको शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सराहनीय प्रयास है....यह उत्सव खूब सफल हो ..हमारी शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंaapakaa prayas sarahneey hai magar mere jaise technique se anajan blogger kya kya bhej sakate hain dekhti hoon. apako is mahatavpooran prayas ke liye badhai
जवाब देंहटाएंआपकी इस पहल के लिए शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंबढ़िया सोचा है आप ने
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