बहुत दिनों के बाद मेरे जेहन की कोख से फूटी है एक ग़ज़ल, पढ़ना चाहेंगे आप ?





ग़ज़ल
बिन पिए शराब यूं मदमस्त कैसे हो गए ?
आप ऐसे थे नहीं बेवक्त कैसे हो गए ?

याचना को धर्म की देहरी गयी थी कल-
मेरी गौरैया के पाँव सख्त कैसे हो गए ?

ढूँढते हैं जीत अपनी हर किसी की हार में-
हर कदम हर शख्स के कमबख्त कैसे हो गए ?

जिस शहर की धड़कनों में होठ-भर मुस्कान थी-
दायरे उस शहर के दरख़्त कैसे हो गए ?

सांझ में फिर से निशा ने गीत गाये हैं प्रभात -
मौसमों के चाल-चलन दुरुस्त कैसे हो गए ?
  • रवीन्द्र प्रभात

11 comments:

  1. बहुत सुंदर ग़ज़ल.... हर पंक्तियों ने दिल को छू लिया.....

    पर आप तो कल पोस्ट करने वाले थे ना?

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  2. कल व्यस्तता ज़्यादा थी महफूज़ भाई , इसीलिए पोस्ट नही कर पाया !

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  3. ग़ज़ल की रवानगी देखिये मस्त कैसे हो गए !

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  4. आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है। इस अवसर पर ये पंक्तियाँ दिल को छू गयी - "कल याचना को धर्म की देहरी गयी थी -मेरी गौरैया के पाँव सख्त कैसे हो गए ?"....सचमुच यह ग़ज़ल नही भावनाओं की धरातल पर उपजी हुई वह प्रासंगिकता है जो स्वयं में प्रश्न भी है और उत्तर भी ....बहुत अच्छी ग़ज़ल, ढेर सारी शुभकामनाएँ !

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  5. बहुत अच्छी ग़ज़ल,शुभकामनाएँ !

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  6. बेहतरीन गज़ल ! यह पंक्तियाँ तो खूब अच्छी लगीं -
    "ढूँढते हैं जीत अपनी हर किसी की हार में
    हर कदम हर शख्स के कमबख्त कैसे हो गए ?

    आभार ।

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  7. बेहतरीन ग़ज़ल तीसरा शेर तो कमाल का है...बहुत सुन्दर.

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  8. मैने तो पहली बार ही आपकी गज़ल पढी है । आप हर विधा मे बहुत अच्छा लिखते हैं मतला ही गज़ल का आगे बढने नही दे रहा लाजवाब और
    ढूँढते है----
    और हर शेर ही कमाल का है । आपसे अनुरोध है कि कमेन्टबा़ या तो उसी पेज पर लगायें या पोप अप विन्डो मे कई बार कोट करते हुये कविता या शेर भूल भी जाता है । मेरे जैसे कई और भी भुलक्कड हो सकते हैं। बहुत शानदार गज़ल है शुभकामनायें

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  9. जिस शहर की धड़कनों में होठ-भर मुस्कान थी-दायरे उस शहर के दरख़्त कैसे हो गए ?
    nice

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  10. बेहतरीन गज़ल, कमाल का शेर,शुभकामनाएँ !

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  11. वाह, मस्त ग़ज़ल. शुभकामनाएँ!

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