दैनिक जनसंदेश टाईम्स/१३ मार्च २०११
चौबे जी की चौपाल :
आज चौपाल में चौबे जी ने विज्ञापन बाबा से मिलवाया और फरमाया कि औरत हो या मर्द, गर्मी हो या सर्द,जो भी अपने चहरे पर देश-विदेश के सारे ब्रांड की क्रीम आजमा चुके हों ,उन्हें ये सात दिनों में गोरा बना देंगे, इनका पक्का वादा है राम भरोसे !"
अरे सत्यानाश हो, कैसे बाबा हैं ये .....हर रोज टेलीविजन पर झूठे-झूठे वायदे करके हम मिडिल क्लास वालों को लूटते हैं और बेहयाई के साथ कहते हैं सात दिनों में गोरा बनने के नुस्खे है इनके पास ! रहने दो महाराज ! हमको तो सांवली-सलोनी मेहरारू ही पसंद है !" राम भरोसे ने कहा !
विज्ञापन बाबा ने कहा अरे मूर्ख , नादान........अपनी भोली भाली पत्नी की आशा रुपी बतासा पर निराशा रुपी पानी फेरने वाले बेईमान, तुम्हारे सोचने न सोचने से क्या फर्क पड़ता है, हमरे चौबे जी महाराज भी यही सोचते थे पहिले कि विज्ञापन में अपनापन नहीं होता, मगर पंडिताईन को देखो , गोरी मेम बनने के फिराक में सिनेमा के हिरोईनों के द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले तमाम साबुनों को एक-एक करके बेदर्दी से चेहरे पर २० वर्षों से रगड़ती जा रही है.....रगड़ती जा रही है,बस रगड़ती ही जा रही है ! का गलत कहत हईं चौबे जी महाराज !
हाँ ठीक कहत हौ बाबा, अब जल में रहकर मगर से बैर नहीं कर सकते न ..... कौन समझाये तोहरी भाभी को कि गोरा रंग अगर सुंदरता का मापदंड है तो वर्ल्ड ब्यूटी कॉंटेस्ट में अफ्रीकन सुंदरियां क्यों भाग लेती है ?
कहते- कहते भावनाओं के प्रवाह में बहने लगे चौबे जी, कहने लगे कि हमके बहुत डर लागत है बाबा,कि कहीं कौनों दिन ऐसन अनहोनी न हो कि हमरी पंडिताईन की बाहर की चमड़ी साबुन में धुल जाए और भीतर की चमड़ी का गोरा रंग बाहरी सतह पर आ जाए ....!
तब तो रंग भेद ही मिट जाएगा बाबा ई दुनिया से, चुटकी लेते हुए बोला गुलटेनवा !
हो सकता है क्यों नहीं होगा, जब हमरे प्रोडक्ट में दम होगा ....गर्व के साथ मूछें फरफरा के बोले विज्ञापन बाबा !
हाँ, हाँ प्रोडक्टवा में केतना दम है हम नहीं समझते का ? अभी तीन हफ्ता हुआ शक्तिमान बनने के चक्कर में बिस्किट खा के राम खेलावन का पांच साल का बेटा गोलू बालकानी से छलांग लगा दिया, और हाँथ पैर तुड़वा लिए ....अब ई बताओ बाबा , कि बिस्किट खाने से यदि कोई शक्तिमान बन जाए तो हमरे पहलवान ओलंपिक से खाली हाँथ कईसे लौट आते हैं, उन्हें क्यों नहीं बिस्किट खिला-खिला के लड़वाती ई ससुरी केंद्र सरकार ! हमारा बस चले तो हम सारे विज्ञापनों का एक साथ नारको टेस्ट करबा दें, न रहे बांस न बाजे बांसुरी ! गुस्से में लाल होकर बोला बटेसर !
ठीक कहत हौ बटेसर, हमार पूर्ण सहमति है तुम्हारे साथ.....ई कलमुंहे विज्ञापनों के भ्रमजाल में उलझे हुए हम बेचारे मिडिल क्लास वालों को तो यह भी समझ में ही नहीं आता कि काले घने वालों का राज केश तेल है या शेंपू ? विज्ञापन में दिखाए जाने वाले साबुन-शेंपू जब औषधीय गुणों से लबरेज है तो लगने के बाद ससुर फोड़े क्यों निकल जाते ? टेलीविजन मईया के गोदी में बईठके बड़ी -बड़ी डींगे हांकते हैं कि इसमें विटामिन से लेकर सारे पौष्टिक तत्त्व है, तो इसका काढा बना के क्यों नहीं खिला देते बच्चों को, देश में कुपोषण की समस्या ही नहीं रहेगी .....प्रेशर कूकर और मसाले दोनों आजकल खाने के स्वादिष्ट बनाने की होड़ में लगे है जैसे तीसरे विश्व युद्ध की तईयारी चल रही हो और हिन्दुस्तान-पाकिस्तान मुकाबले में आगे हो गए हों......हवाई चप्पलें तो ऐसी हो गयी हैं जैसे पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण को भी चकमा दे जाए और पहनते ही लोग हवा में बातें करने लगे......टूथ पेस्ट और ब्रश के क्या कहने, दांतों से सडन और कीटाणु दूर हो न हो दांत जरूर दूर हो जायेंगे......वो तो भला हो सुप्रीम कोर्ट का जो गुटका पर पाबंदी लगा दिया,नहीं तो हमारे बच्चे झाड-झाड के, पाऊच फाड़-फाड़ के ऐसे खाए जा रहे थे, मानो राजदरबारी होकर महल में पञ्चपकवान खा रहे हों ....ठंडा-ठंडा कूल-कूल कहा जाने वाला कोल्ड ड्रिंक शरीर को ठंडा करने के बजाये उटपटांग जोश पैदा करता है और पीने वाला बन्दर की तरह उछल-कूद करने लगता है ....ये कलमुंहे विज्ञापन है या जेबकतरे, लुभावने वादे करके पहिले तो दिल कतराते हैं फिर जेब...इनका बस चले तो जादू की छडी घुमाके पल में सेव को बनादे अमरूद और अमरूद को बनादे सेब....हम आम उपभोक्ता की हालत उन आशिकों की तरह हो गयी है जो प्यार में लूटने के बाद भी शिकायत का साहस नहीं बटोर पाते....हम तो यही कहेंगे कि पहिले इनपर हो आचार संहिता तय तभी हम कहेंगे विज्ञापन बाबा की जय ....!
विज्ञापन बाबा को जोर का झटका धीरे से लगा ........वेचारे परिस्थितियों की नज़ाकत देख धीरे से खिसक लिए और संसद के शीत- कालीन सत्र की तरह बिना किसी निर्णय के चौबे जी की चौपाल स्थगित हो गयी अगली तिथि तक के लिए !
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बहुत सटीक!!
जवाब देंहटाएंभैया, चौबे जी की चौपाल में तो पार्लियामेंट की तरह विभिन्न मुद्दों पर खूब चर्चा हो रही है आजकल , विल्कुल सही कहा चौबे जी ने कि विज्ञापन में अपनापन नहीं होता , सार्थक व्यंग्य, बधाईयाँ
जवाब देंहटाएंहा हा हा , मस्त है सर जी ...अब तो हर रविवार को हम भी आयेंगे चौबे जी की चौपाल में
जवाब देंहटाएंमस्त व्यंग्य,बधाईयाँ !
जवाब देंहटाएं13 अप्रेल2011 का अखबार एक महीने पहले ही छप गया?
जवाब देंहटाएंएक दम झक्कास
जवाब देंहटाएंचौबे की चौपाल के क्या कहने। सटीक व्यंग। बधाई।
जवाब देंहटाएंकटोरे पे कटोरा,
जवाब देंहटाएंबेटा बाप से भी गोरा...
जय हिंद...
.हम तो यही कहेंगे कि पहिले इनपर हो आचार संहिता तय तभी हम कहेंगे विज्ञापन बाबा की जय ....!
जवाब देंहटाएंjai baba banaras...
विज्ञापन बाबा की जय ...
जवाब देंहटाएंखोटे से खोटा सिक्का भी चल जाता है इनकी बदौलत !
बहुत खूब ...।
जवाब देंहटाएंshandar vyangy...badhai ravindra bhai...
जवाब देंहटाएंआपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी
जवाब देंहटाएंकभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
http://vangaydinesh.blogspot.com/