चौबे जी की चौपाल
चौपाल आज चटकी हुई है । चुहुल भी खुबई है । पप्पू के पापा के तिहाड़ जाने की जबसे बात सुने हैं चौबे जी, फुलि के कुप्पा हैं । मनमोहनी मुस्कान बिखेरते हुए कह रहे हैं कि "हर पापात्मा को.....अरे राम-राम कीड़े पड़े मेरे मुंह में मेरा मतलब है कि हर भ्रष्ट पुण्यात्मा को एक बार तीर्थ स्थल तिहाड़ की यात्रा कर लेनी चाहिए ।"
"ऊ काहे चौबे जी ?" पूछा राम भरोसे ।
"देख बात ई हs राम भरोसे कि आम जनता खातिर गंगा गंगोत्री से निकलत है.....मैदानी भाग से गुजरत गंगासागर में मिल जात हैं । येही से कहल जाला कि सब तीरथ बार-बार गंगासागर एक बार । मगर भ्रष्ट पुण्यात्मा खातिर गंगा महत्वाकांक्षाओं के हिमालय से निकलत है बबुआ । अवसरवादिता के मैदानों से झरझरा के बहत-बहत नीचता रूपी समुन्दर में गिर जात हैं आउर स्वार्थ के डेल्टाओं से घिर जात है । जे पुण्यात्मा ई पूरी यात्रा निर्बिघ्न रूप से पूरा कर लेत हैं उनके मिलत हैं मोक्ष यानी तीर्थ स्थल तिहाड़ की गरिमामयी यात्रा कs लाभ .........!" चौबे जी ने कहा।
इतना सुनिके गजोधर से नही रहा गया, बोला " पुण्यात्मा आउर भ्रष्ट पुण्यात्मा में का अंतर होत है महाराज ?"
" पुण्यात्मा संकोची स्वभाव के होत हैं, गलत काम करे से उनके डर लागत हैं....अईसन लोग समाज में हाशिये पर रहत हैं, न खुद आगे बढ़त हैं ना घर-परिवार के आगे बढे देत हैं, उधार-पयिंचा ले-लेके जिंदगी गुजारत हैं, लईकन-फयिकन के रहमो-करम से एकबार गंगा सागर घूम आवत हैं । अईसन लोग समाज मा दोयम दर्जे के होत हैं, उनका के उल्लू के पट्ठा कहल जात हैं । मगर गजोधर जे समाज में एकम दर्जे के होत हैं उनके गुण कुछ विशेष होत हैं । अईसन लोग माननीय, श्रीमान, पूज्यनीय, श्रद्धेय कहल जात हैं । जैसे श्रीमान गुंडा जी, आदरणीय हिष्ट्रीशीटर जी,जिलाबदर महोदय,श्रद्धेय वारंटी जी, दसनंबरी जनाब,माननीय ठग साब,पूज्यनीय आतंकवादी जी । आदि....आदि....।" चौबे जी ने कहा ।
"एकदम्म सही कहत हौ महाराज, हमरे समझ मा आ गया कि भ्रष्ट पुण्यात्मा ऊ होत है जे प्यार के भूखे होत हैं आउर शान्ति के प्यासे होत हैं । यानी कि जईसे मंहगाई डायन खात हैं ससुरी, ये भी प्यार के खाए जात हैं,नफ़रत फैलाए जात हैं और जहां भी जात हैं शान्ति भंग करके शान्ति के साथ-साथ नज़र आवत हैं । आम इंसानों की आत्मा मरते ही ससुरी शरीर मर जाता हैं, मगर नेता रूपी पुण्यात्माओं की केवल आत्मा मरती है शरीर कुर्सी के साथ चिपका रहता है.....!" बोला राम अंजोर ।
इतना सुनके अपनी लंबी दाढ़ी सहलाया और रमजानी मियाँ फरमाया "निरमोहिया होते हैं सब घोटालेवाज़ नेता यानी भ्रष्ट पुण्यात्मा , उसका नस्ल भी दुसरे तरह का होता है...न ऊ आदमी होता है, न कुत्ता, न बन्दर ...वह मस्त कलंदर होता है, जितना जमीन से बाहर होता है उतना ही जमीन के अन्दर होता है, बयान बदलना उसका जन्म सिद्ध अधिकार होता है क्योंकि उनके लिए चरित्र से ऊँचा होता है पईसा..... मज़ा आता है उसे अपने बदले हुये बयान पर और फक्र करता है वह अपने खोखले स्वाभिमान पर......जरूरत पड़ने पर कभी धरती पकड़ तो कभी कुर्सी पकड़ बन जाता है अऊर कभी-कभी ऊ अपनी हीं बातों में जकड जाता है..... और तो और जब ऊ बहुत टेंशन में होता है तों रबड़ी में चारा मिलाता है , खाता है अऊर अकड़ जाता है ....भाई, मानो या न मानो मगर यह सच है ,कि-नेता बनना आसान नहीं है हिंदुस्तान में, क्योंकि उसे एक पैर जमीन पर रखना पड़ता है, तो दूसरा आसमान में....उसके भीतर कला होती है , कि- वह मास्टर को मिनिस्टर बाना दे और कुत्ता को कलक्टर बाना दे......कभी स्वाभिमान के नाम पर, तो कभी राम के नाम पर भीख मांग सके, अऊर जरूरत पड़ने पर हाई स्कूल फेल को वैरिस्टर बाना दे.....और जहां तक तिहाड़ जाने का प्रश्न है तो हम बस इतना जानते हैं कि तिहाड़ जाना तीर्थाटन करने के सामान होता है । तिहाड़ जाने वाला महान होता है,परम सौभाग्यवान होता है । तुम्हरे जानकारी खातिर बता दें कि जेल रूपी तीर्थस्थल ने ही गांधी को महात्मा बनाया....कृष्ण को पैदा करके परमात्मा बनाया...जवाहर,पटेल,लाल बहादुर, जय प्रकाश और अन्ना हजारे जैसे पुण्यात्माओं के चरण स्पर्श कर चुके इस स्थल को कौन चूमना नही चाहेगा ? हमारे आधुनिक भारत के कई बड़े लोग अभी भी तिहाड़ की शोभा बढ़ा रहे हैं ।"
सही कहत हौ रमजानी भैया हम्म तोहरी बात क समर्थन करत हईं कि यह मा कोई शक नाही कि बहुते लोग जेल गईला के बाद पूज्य भईले,महान भईले......चिन्तक,दार्शनिक और भगवान भईले । यानी सब तीरथ बार-बार तिहाड़ जेल एक बार...... कहली तिरजुगिया की माई ।
मगर चाची तिहाड़ में जाने का धंधा तब से जादा चमका है, जब से अपराधियों को राजनेताओं का संरक्षण मिला है ।अपराध से राजनीति के शिखर पर पहुंचने का रास्ता खुला है तब से यह धंधा चमकने लगा है । यही चमक नौजवानों को अपने तरफ खींचने लगी है । लोगों में जीतनी जादा दहशत होगी उतनी जादा कमाई होगी -उतनी ही शानदार गाडी होगी, उतने ही बैंक नोटों से भरे होंगे, उससे ही हम राज करेंगे । यही चार दिन की चकाचौंध इस काली दुनिया की संख्या लगातार बढ़ा रही है । पावरफूल बनने के लिए जिसके पास दो पैसे हैं उसे लूटो या मारो, राजनीति में चमकने के लिए जो सामने आये उसे हटा डालो की जो राह उन्होंने पकड़ी है उसकी वजह से ही हमरे गाँव के कुछ बच्चे भी धरम-करम के नाम पर जबरन वसूली में जुट गए हैं । न दो तो वे भी आँख दिखाने लगे हैं । न बड़ों की शर्म-न छोटों का लिहाज । आखिर ये सब बुरे कामों से क्या साबित करना चाहते हैं हम ? आखिर क्यों अपनी इस धरती को बदनाम करने पर तुले हैं हम ? कहते-कहते घिघी बझ गई बटेसर की । लगा अंगौछा से आंसू पोछने ।
माहौल गमगीन होते देख चौबे जी ने कहा कि " नेता फर्जी, जनता फर्जी, छात्र फर्जी, टीचर फर्जी, स्कूल फर्जी,परिक्षा फर्जी । देश बना खाला का घर जहां सब कर रहे मनमर्जी । आये दिन यह सच्ची फिल्म हमारी आँखों के सामने चलाती रहती है । कभी इस कोने में कभी उस कोने में । हम देखते रहते हैं और खुद को ही समझाकर आँखें फेर लेते हैं कि हमसे क्या मतलब ? हम सोचते रहते हैं और खुद को समझाकर लंबी टान लेते हैं कि हमारे घर से क्या जा रहा है ? हम कोसते रहते हैं और आखिर में खुद को ही यह समझाकर चुप करा देते हैं कि एक दिन सब ठीक हो जाएगा । पर आखिर कब ? कब आयेगा वो दिन ? क्या देखने,सोचने और कोसने से इस देश में आदर्श स्थिति पैदा हो जायेगी ? क्या इसके लिए कुछ करने की जरूरत नही है ? आखिर हम अपने गौरवशाली इतिहास के खाते से निकलकर कबतक खाते रहेंगे ? कबतक उसकी जय जैकार के नारे लगाकर अपना सीना चौड़ा करते रहेंगे ? ऐसा तो सब जगह होता ही रहता है,अभी हमारा बिगड़ा हीं क्या है ? आखिर कबतक हम इस मुगालते में जीते रहेंगे ? हमें उस खाते में कुछ डालने के लिए क्या किसी शुभ मुहूर्त का इंतज़ार है ? यदि हम चाहते हैं कि तिहाड़ आधुनिक भारत का तीर्थ स्थल न बने तो पहले जनता को बदलना होगा, फिर ऐसे पुण्यात्माएं अपने आप बदल जायेंगी । तो आईये हम सब मिलकर यह संकल्प लेते हैं कि पहले हम बदलेंगे फिर हमारा देश बदलेगा ।
इतना कहकर चौबे जी ने चौपाल अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया ।
रवीन्द्र प्रभात
(दैनिक जनसंदेश टाइम्स/११.०९.२०११)
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा दिनांक 12-09-2011 को सोमवासरीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ
जवाब देंहटाएंआज 11- 09 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएं...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
अच्छा व्यंग...
जवाब देंहटाएंबढ़िया व्यंग्य
जवाब देंहटाएंकभी छापा स्टॆटस सिंबल था और अब तिहार जेल हो गया :)
जवाब देंहटाएंआपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा दिनांक 12-09-2011 को सोमवासरीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ
जवाब देंहटाएंबढ़िया व्यंग्य .
जवाब देंहटाएंज़बरदस्त व्यंग
जवाब देंहटाएंब्लॉगर्स को भिजवाने का इरादा तो नहीं है न? :)
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क्यों डराती है पुलिस ?
घर जाने को सूर्पनखा जी, माँग रहा हूँ भिक्षा।
ई तौ पुण्यात्मा हैं भाई...पापात्मा तो अन्ना जैसे लोग हैं जो इनका सुख-चैन हरे लेति हैं !
जवाब देंहटाएंबहुतै सन्नाट हवै पर लागै तब ना !
बहुत खूब कहा है आपने ... ।
जवाब देंहटाएंलाजबाब और रोचक व्यंग्य ......
जवाब देंहटाएंतिहाड़ महिमा सुने ,पुन्य लूटें .बेहतरीन व्यंग्य विनोद .
जवाब देंहटाएंबढ़िया व्यंग्य
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