रवींद्र जी को पुस्तक प्रकाशन पर बहुत-बहुत बधाई.. समाचार पढ़ा.. डी.के.श्रीवास्तव जी ने हिन्दी को रोमन लिपि में लिखे जाने की वकालत की वह बहुत ही हास्यास्पद है.. कोई भी भाषा का जानकार यह निश्चित ही जानता है कि उस भाषा की लिपि ही उसकी जान भी है और पहिचान भी.. उससे अलग कर देने पर भाषा का वही हाल होता है जो किसी जमे-जमाये बरगद को जबरदस्ती उखड़ कर कहीं और रोपने पर होता है.. हिन्दी के रोमन लिपि में लिखे जाने की बात एक बार असगर वजाहत सर भी कर चुके हैं, उनका तर्क भी बड़ा अजीब था कि, ''अगर भारत से बाहर के अभिनेता, अभिनेत्रियाँ बॉलीवुड में काम करने की मंशा रखते हैं(जैसे कि कैटरीना कैफ) तो क्यों ना हिन्दी को रोमन लिपि में ही तब्दील किया जाए, उनकी आसानी के लिए इतना तो किया जाना चाहिए..'' पहली बात तो उन कलाकारों की रूचि हिन्दी में नहीं बल्कि यहाँ की फिल्मों से मिलने वाली अकूत कमाई में है.. उसके बाद सोचने वाली बात है कि क्या सिर्फ चंद लोगों की सहूलियत के लिए हमें किसी भाषा को उसकी जड़ों से अलग कर देना चाहिए?? सुभाष राय जी से सहमत, साथ ही यह भी कि इंटरनेट से हिन्दी का नुक्सान नहीं हुआ बल्कि लाभ ही हुआ है.. मेरे पास प्रमाण भी हैं(मुद्रा जी के कथन के सन्दर्भ में).. हमारी एक बड़ी भूल यह भी है कि हिन्दी को बढ़ावा देने के नाम पर हम सिर्फ हिन्दी साहित्य और साहित्यकारों को आगे कर देते हैं.. हिन्दी सिर्फ साहित्य की भाषा तो नहीं.. कई बड़े विज्ञान लेखकों, विषय विशेषज्ञ अध्यापकों, गणितज्ञों, इतिहासकारों इत्यादि ने हिन्दी में अंग्रेज़ी से बेहतर पुस्तकें लिखी हैं.. उदाहरण के लिए कुमार-मित्तल की भौतिकी और रमेश गुप्ता की जीवविज्ञान की पुस्तकें.. लेकिन हिन्दीप्रेमियों द्वारा उनका सम्मान यदा-कदा ही होते देखा है.. पुनः बधाई..
दीपक जी, विचार विकास का बीज होता है ! हिंदी को रोमन में लिखने की वकालत उन्होंने पहली वार नहीं किया है. इसपर बहुत पहले से कई वरिष्ठ साहित्यकारों द्वारा वकालत की जा चुकी है ...अभिव्यक्ति के लोकतंत्र में सबकी राय महत्वपूर्ण होती है ...यह बहस का विषय है !इस पर मेरे समझ से एक व्यापक चर्चा-परिचर्चा की गुंजाईश है !
लोकार्पण की हार्दिक शुभकामनाएं, रही बात रोमन में हिन्दी लिखने की, तो फौज में सिपाहियों को रोमन पढ़ना लिखना सिखाया जाता है, उनकी निर्देशिका रोमन में ही छापी जाती है. आज मेरे पास हिन्दी लिखने का टूल नहीं है, इसलिए चैट पर अपनी बात रोमन में कह लेता हूँ. मेरा मानना है लिपि कोई भी हो सुचनाओं का आदान प्रदान होना चाहिए, लेकिन अपनी परम्परागत लिपि को बिसराकर नही.
इसी समारोह में डा. सुभाष राय ने कहा कि हिंदी विश्व की एक मात्र ऐसी लिपि है, जो बोली जाती,वही लिखी जाती है और वही पढ़ी भी जाती है ।यह सर्वाधिक वैज्ञानिक लिपि है। यदि रोमन लिपि में हिन्दी लिखी जाने लगी तो हिन्दी हिन्दी भी रहेगी इस में संदेह है। मुझे नहीं लगता कि इस मामले में किसी तरह के वाद विवाद की गुंजाइश है। हाँ जिसे लिपि नहीं आती वह उसे सीखने तक रोमन से काम चलाए वह दीगर बात है। वह तो चल ही रहा है, मजबूरी में।
दीपक मशाल जी से सहमत और द्विवेदी जी से भी। विकीपीडिया पर परमानंद पांचाल जी ने रोमन लिपि के पक्ष पर एक अच्छा लेख लिखा है। मूर्ख और शोषक मांग भी अक्सर मूर्खतापूर्ण करते हैं।
पहली प्रतिक्रिया... हार्दिक बधाई!
जवाब देंहटाएंhardik badhaiyan aur shubhkamnayein.
जवाब देंहटाएंढेर सारी बधाईयाँ और हार्दिक शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंकोटिश: बधाईयाँ !
जवाब देंहटाएंढेर सारी बधाईयाँ....!
जवाब देंहटाएंcongratulation .
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंरवींद्र जी को पुस्तक प्रकाशन पर बहुत-बहुत बधाई.. समाचार पढ़ा.. डी.के.श्रीवास्तव जी ने हिन्दी को रोमन लिपि में लिखे जाने की वकालत की वह बहुत ही हास्यास्पद है.. कोई भी भाषा का जानकार यह निश्चित ही जानता है कि उस भाषा की लिपि ही उसकी जान भी है और पहिचान भी.. उससे अलग कर देने पर भाषा का वही हाल होता है जो किसी जमे-जमाये बरगद को जबरदस्ती उखड़ कर कहीं और रोपने पर होता है.. हिन्दी के रोमन लिपि में लिखे जाने की बात एक बार असगर वजाहत सर भी कर चुके हैं, उनका तर्क भी बड़ा अजीब था कि, ''अगर भारत से बाहर के अभिनेता, अभिनेत्रियाँ बॉलीवुड में काम करने की मंशा रखते हैं(जैसे कि कैटरीना कैफ) तो क्यों ना हिन्दी को रोमन लिपि में ही तब्दील किया जाए, उनकी आसानी के लिए इतना तो किया जाना चाहिए..''
जवाब देंहटाएंपहली बात तो उन कलाकारों की रूचि हिन्दी में नहीं बल्कि यहाँ की फिल्मों से मिलने वाली अकूत कमाई में है.. उसके बाद सोचने वाली बात है कि क्या सिर्फ चंद लोगों की सहूलियत के लिए हमें किसी भाषा को उसकी जड़ों से अलग कर देना चाहिए??
सुभाष राय जी से सहमत, साथ ही यह भी कि इंटरनेट से हिन्दी का नुक्सान नहीं हुआ बल्कि लाभ ही हुआ है.. मेरे पास प्रमाण भी हैं(मुद्रा जी के कथन के सन्दर्भ में)..
हमारी एक बड़ी भूल यह भी है कि हिन्दी को बढ़ावा देने के नाम पर हम सिर्फ हिन्दी साहित्य और साहित्यकारों को आगे कर देते हैं.. हिन्दी सिर्फ साहित्य की भाषा तो नहीं.. कई बड़े विज्ञान लेखकों, विषय विशेषज्ञ अध्यापकों, गणितज्ञों, इतिहासकारों इत्यादि ने हिन्दी में अंग्रेज़ी से बेहतर पुस्तकें लिखी हैं.. उदाहरण के लिए कुमार-मित्तल की भौतिकी और रमेश गुप्ता की जीवविज्ञान की पुस्तकें.. लेकिन हिन्दीप्रेमियों द्वारा उनका सम्मान यदा-कदा ही होते देखा है..
पुनः बधाई..
दीपक जी, विचार विकास का बीज होता है ! हिंदी को रोमन में लिखने की वकालत उन्होंने पहली वार नहीं किया है. इसपर बहुत पहले से कई वरिष्ठ साहित्यकारों द्वारा वकालत की जा चुकी है ...अभिव्यक्ति के लोकतंत्र में सबकी राय महत्वपूर्ण होती है ...यह बहस का विषय है !इस पर मेरे समझ से एक व्यापक चर्चा-परिचर्चा की गुंजाईश है !
जवाब देंहटाएंलोकार्पण की हार्दिक शुभकामनाएं, रही बात रोमन में हिन्दी लिखने की, तो फौज में सिपाहियों को रोमन पढ़ना लिखना सिखाया जाता है, उनकी निर्देशिका रोमन में ही छापी जाती है. आज मेरे पास हिन्दी लिखने का टूल नहीं है, इसलिए चैट पर अपनी बात रोमन में कह लेता हूँ. मेरा मानना है लिपि कोई भी हो सुचनाओं का आदान प्रदान होना चाहिए, लेकिन अपनी परम्परागत लिपि को बिसराकर नही.
जवाब देंहटाएंइसी समारोह में डा. सुभाष राय ने कहा कि हिंदी विश्व की एक मात्र ऐसी लिपि है, जो बोली जाती,वही लिखी जाती है और वही पढ़ी भी जाती है ।यह सर्वाधिक वैज्ञानिक लिपि है।
जवाब देंहटाएंयदि रोमन लिपि में हिन्दी लिखी जाने लगी तो हिन्दी हिन्दी भी रहेगी इस में संदेह है। मुझे नहीं लगता कि इस मामले में किसी तरह के वाद विवाद की गुंजाइश है। हाँ जिसे लिपि नहीं आती वह उसे सीखने तक रोमन से काम चलाए वह दीगर बात है। वह तो चल ही रहा है, मजबूरी में।
बधाई स्वीकार करें.
जवाब देंहटाएंदीपक मशाल जी से सहमत और द्विवेदी जी से भी। विकीपीडिया पर परमानंद पांचाल जी ने रोमन लिपि के पक्ष पर एक अच्छा लेख लिखा है। मूर्ख और शोषक मांग भी अक्सर मूर्खतापूर्ण करते हैं।
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