सर्दी की हो गर्मी की,
ये रातें बहुत सताती है
ये नींद  उचट जब जाती है
मन के कोने में सिमटी सी
दुबकी,सुख दुःख से लिपटी सी
चुपके चुपके,हलके हलके
आ जाती खोल,द्वार दिल के
कुछ खट्टी कुछ मीठी  यादें
चुभने वाली कडवी यादें
कुछ अपनों की,बेगानों की
गुजरे दिन के अफ्सानो की
कुछ बीती हुई  जवानी की
परियों की मधुर कहानी सी
कुछ कई पुराने बरसों की
कुछ  ताज़ी कल या परसों की
कुछ हमें गुदगुदाती है आकर,
कुछ आंसू  कई रुलाती है
ये नींद उचट जब जाती है
मन करवट करवट लेता है
तन करवट करवट लेता है
सुन तेरे साँसों की सरगम
छूकर रेशम सा तेरा  तन
ये हाथ फिसलने लगते है
 अरमान मचलने लगते है
आ जाते याद पुराने दिन
कटती थी रात नहीं तुम बिन
हम जगते थे,सो जाने को
हम थकते थे ,सो  जाने को
मन अब भी करता है लेकिन
देता है टाल यूं ही ये  तन
मन को मसोस कर रह जाते,
और हिम्मत ना हो पाती है
ये नींद उचट जब जाती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

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