शक्ल जानी पहचानी क्यों लगती है ? 
दूर है  तो  पास इतनी क्यों लगती है?
लिख  चुके  हैं  कई, इसे पढ़ चुके कई, 
हर गज़ल, मेरी कहानी क्यों लगती है ?
 

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" मैं  तुमसे एक बिनती करना चाहता हूँ ।" तनय ने अपना बाईक, चौराहे के पास स्थित, चाय की एक छोटी सी दुकान के नज़दीक खड़ा करते हुए, मनोज से कहा ।
 
कॉलेज के दिनों से, तनय और मनोज, दोनों जिगरी दोस्त थे । कॉलेज में, दोनों दोस्त, अगर दिन में एक बार भी, एक दूसरे से न मिल पाएँ, तो दोनों के बीच लड़ाई छिड़ जाती थीं । पर, कॉलेज के दिन तो, जैसे," ते ही दिनों गतः ।" तनय और मनोज, अब तो शायद ही कभी मिल पाते थे ।  

दोनों मित्र,  चाय की दुकान  के पास फूटपाथ पर, एक बेंच पर यंत्रवत बैठ गए । चायवाला लड़का छोटू, बगैर माँगे दोनों को, दो कटींग चाय दे गया ।
 
तनय ने फिर से वही बात, मनोज से कही," मैं  तुमसे एक बिनती करना चाहता हूँ , तु  एक बार `उसे` मिल तो सही..!! वह भी, तेरी ही जाति की है । देख मलय, मेरी बात समझने की कोशिश कर । मेरी इच्छा है की, तुम `उसे` अपनी `बहन` मान लो..!! उसका अपना, इस दुनिया में कोई नहीं है..!!"
 
तनय की यह बात सुनकर भी, मनोज ने तनय को कुछ जवाब नहीं दिया । वह जैसे कुछ ग़हरी सोच में पड गया था..!! मनोज को विचारमग्न देखकर तनय भी मौन होकर चुपचाप चाय पीने लगा ।
 
कॉलेज की पढ़ाई खत्म होते  ही, जब दोनों दोस्त आर्थिक उपार्जन के बारे में सोच रहे थे कि, क्या काम किया जाए? उसी समय तनय को एक पार्टनर मिल गया,जो की पहले से ही गृह निर्माण (बिल्डिंग कन्स्ट्रकशन) के बिज़नेस में अपने पाँव जमा चुका था । उसी पार्टनर के साथ कंपनी के कामकाज में, तनय व्यस्त हो गया । 

इधर मनोज को भी एक प्रख्यात प्राइवेट कंपनी में नौकरी मिल गई और दिनभर के अति व्यस्त कार्यक्रम के चलते, अपने दोस्त तनय से मिलना करीब-करीब बंद ही हो गया ।
 
दोनों दोस्त को अपने-अपने जीवन में व्यस्त हुए, एक-डेढ़ साल हुआ होगा की, मनोज को किसी दूसरे मित्र द्वारा पता चला, तनय ने किसी बाँसुरी नाम की लड़की से प्रेम विवाह कर लिया है ।
 
हालाँकि मनोज,तनय की शादी में न जा सका था पर, तनय के घर जब बेटा पैदा हुआ तब उसके बेटे को आशीर्वाद देने के बहाने मनोज, तनय-बाँसुरी  को मिलने चला गया ।
 
कॉलेज से अलग होने के बाद, दोनों दोस्त करीब दो साल के पश्चात मिल पाए थे,अतः दोनों ने बीते दिनों को खूब याद किया, पर पता नहीं क्यों, मनोज को ऐसा महसूस हुआ की, तनय और उसकी पत्नी बाँसुरी के प्रेम विवाह होने के बावजूद,  उन दोनों पति-पत्नी के संबंध में, मानो  बहुत बड़ी सी कोई दीवार खड़ी हो गई हो?
 
मनोज को ऐसा भी महसूस हुआ जैसे, बाँसुरी भाभी, मनोज को अपने मन में दबी हुई, कोई बात कहना चाहती थीं, पर कह न पायी हो..!! वैसे भी,  कहते हैं ना, कोई भी समझदार इन्सान किसी भी पति-पत्नी के निजी मामलों में बिना पूछे अपनी राय नहीं देता..!! मनोज ने भी यही किया ।
 
तनय और उसकी पत्नी बाँसुरी के निजी मामले में बिना पूछे कुछ बोलना उचित न समझकर मनोज ने, तनय से इधर-उधर की कुछ गपशप करने के बाद, फिर से मिलने का वायदा करके विदा ली ।
 
तनय और मनोज, दोनों दोस्तों को, एक दूसरे से मिले, करीब एक साल के बाद आज मनोज की ऑफ़िस में, तनय ने फोन करके उसे तुरंत मिलने के लिए आग्रह किया ।  शाम को ऑफ़िस से छूटते ही, वही चाय की छोटी सी दुकान पर,तनय से मिलने का वायदा किया और मनोज ने फोन रख दिया ।
 
हालांकि, आज तनय से मिलने के बाद, उसने अपनी जो दास्तान, मनोज को सुनाई, उसे सुनकर मनोज को बहुत हैरानी हुई..!! तनय की बात सुनकर मनोज का मन जड़ सा,मानो विचार शून्य  हो गया..!!
 
तनय की उटपटांग हरकतों के बारे में, मनोज अक्सर सुनता रहता था, पर तनय के जीवन में इतनी बड़ी गंभीर समस्या पैदा हुई होगी, इस बात का मनोज को ज़रा सा भी अंदाज़ा न था ।

तनय ने मनोज को बताया की, पिछले साल, वह दोनों आखिरी बार जब मिले थे, उससे पहले से, तनय और बाँसुरी के बीच ,अपने-अपने व्यक्तिगत अहंकार को लेकर, बहुत ग़हरा मनमोटाव हो गया था । 

एक दिन दोनों पति-पत्नी के बीच झगड़ा सीमा पार कर जाने पर, तनय, नाराज़ होकर, बाँसुरी और अपने  एक साल के बेटे को, उसी बंगले पर छोड़कर, अपनी नयी स्किम के अपार्टमेन्ट में, अकेला रहने चला गया । ना कभी तनय ने अपनी पत्नी बाँसुरी का हालचाल पूछा, ना कभी  बाँसुरी  ने तनय के साथ सुलह करने का इरादा जताया । वैसे भी, वह बंगला, बाँसुरी के नाम पर था और तनय हर महिना एक बड़ी सी रकम ,अपनी पत्नी बाँसुरी  को निर्वाह के लिए, पहुँचा दिया करता था ।
 
तनय और बाँसुरी, दोनों के परिवारने उन दोनों में सुलह कराने की कोशिश करके देख ली,पर परिणाम शून्य..!! 

दोनों में से कोई भी अपनी जिद्द और अहंकार छोड़कर, थोडा सा भी  झूकने को तैयार ही न था..!! और फिर दोनों के परिवार,इस रिश्ते को लेकर पहले ही नाखुश थे,इसलिए उन्होंने दोनों को समझाने का प्रयत्न करना ही छोड़ दिया ।
 
तनय के कुछ व्यावसायिक मित्रों ने भी, पति-पत्नी, दोनों के बीच सुलह कराई, पर दो-तीन दिन साथ रहने के पश्चात, फिरसे वही झगड़े के चलते, तनय और बाँसुरी, दोनों फिर से अलग हो गए ।
 
हमारे शास्त्र में जैसे लिखा है," अकेला मन शैतान का बसेरा होता है..!!" इसी न्याय अनुसार, अब तनय के अपार्टमेन्ट पर, कुछ अय्याश बिल्डर दोस्तों के साथ खाने-पीने की महफिल रोज़ सजने लगी । सिर्फ ३५ साल की तनय की अनियंत्रित जवानी को, एक दिन ३२ साल की एक देहविक्रय करने वाली वेश्या का साथ भी अनायास ही मिल गया..!! तनय का एक अय्याश दोस्त उस वेश्यासे अपना पीछा छुड़ाना चाहता था, ऐसे में तनय नामक अकेला बकरा, उसी अय्याश दोस्त (?) के जाल में बुरी तरह फँस गया ..!!
 
तनय के जीवन में ये सारी घटनाएँ,इतनी जल्दी हो गई की उसे कुछ सोचने-सँभलने का मौका तक न मिला, जब तनय को ज़रा सा होश आया तब तक तनय उस वेश्या के मोहपाश में बंध चुका था और उसका मानो ग़ुलाम सा हो चुका था ।
 
तनय की इन अय्याश हरकतों के बारे में उसकी पत्नी बाँसुरी को जब पता चला,तब अपने सत्यवान पति को, सावित्रि बनकर, उस वेश्या से पीछा छुड़ाने में सहायता करने के बजाय बाँसुरी, तनय के उस अपार्टमेन्ट पर, वक़्त बेवक़्त जाकर, अपना और अपने बेटे का भविष्य सुरक्षित करने के बहाने, तनय से ढेर सारा रुपया ऐंठने लगीं, इतना ही नहीं तनय के रिश्तेदार,संबंधी,मित्र जो भी मिले उनके पास अपनी हालत का रोना बढ़ा चढ़ा कर बयान करके, तनय को बहुत बदनाम करने लगीं..!!
 
तनय दुःखी मन से बोला,"मनोज, तुम ही बताओ, अब मैं क्या करूँ?"
 
मनोज ने देखा, दुकान के अंदर से, छोटू ने कप रकाबी धोये और वही गंदा-मैला पानी,चाय की दुकान के बाहर, फूटपाथ पर बहता हुआ, कोने में टूटी हुई जाली से, गंदी नाली में बहने लगा, काश, तनय भी, वही गंदे-मैले पानी समान इस समस्या को इसी प्रकार धो कर खुद निर्मल हो पाता..!!
 
मनोज ने बड़े सोच विचार के बाद, तनय को अपनी राय दी,"  हमारे समाज का नज़रिया ऐसा होता है की, पति/पत्नी को छोड़कर अगर कोई पराए मर्द/औरत से,नाजायझ संबंध बनाता है तो लोग,उसी को कोस ने लगते है।"
 
पर, मनोज की बात, तनय ने अनसुनी सी कर दी और उसने फिर से, मनोज पर दबाव डाला,"मैं  तुमसे एक बार फिर, बिनती करता हूँ , एक बार `उसे` मिल तो सही..!! तुम दोनों एक ही धर्म- जाति के हो । देख मनोज, मेरी बात समझने की कोशिश कर । मेरी इच्छा है की, तुम `उसे` अपनी बहन मान लो..!!

मनोज ने, तनय की गंभीर समस्या को, बड़े ध्यान से सुनी थीं, मगर समस्या इतनी गंभीर थी कि अब वह चाह कर भी, उसे सुलझा नहीं सकता था । 

" ये बात कैसे संभव है? एक वेश्या और अपनी बहन?  तनय के कहने पर, एक वेश्या को अपनी बहन मान लेने से क्या, तनय की समस्या का समाधान हो जाएगा? उसे भी तो यही समाज में रहना है,उस वेश्या की पहचान अपने रिश्तेदार, दोस्तों से वह कैसे करा पाएगा?  क्या लोग  उन दोनों के, भाई-बहन के संबंध को मान्यता देंगे? या फिर तनय  के साथ-साथ, मनोज के चरित्र पर भी शक करेंगे कि, दोनों दोस्त एक ही औरत के साथ अय्याशी कर रहे हैं? इतनी सरल बात, तनय क्यों नहीं समझ पाता?" 

ज्यादा सोचने से, मनोज का सिर अब चकराने लगा ।

 " ज्यादा सोचता क्या है? चल, तेरी बहन से, मैं तेरा परिचय कराता हूँ..!!" इतना कह कर, तनयने मनोज का हाथ थामकर, उसे अपने बाईक पर बिठा दिया और मनोज कुछ कह पाये, उससे पहले ही तनय ने बाईक भगाकर, अपने अपार्टमेन्ट के नीचे लाकर बाईक खड़ा कर दिया । मनोज अब क्या कर सकता था?  प्यारे दोस्त को नाराज़ करना भी तो ठीक न था..!!
 
तनय ने अपने अपार्टमेन्ट की डॉर बेल बजाई और किसी  निस्तेज, रसहीन औरत ने दरवाज़ा खोला । तनय और मनोज अंदर दाखिल हुए, वह औरत, दोनों के लिए पानी लेने भीतर चली गई । उसके वापस आने पर, मनोज ने देखा, ये औरत करीब  ३२ साल की थीं, मगर ४०-४५ की लग रही थी, मानो काल के ज़ोरदार थपेड़ों ने, उसे अकाल ही  वृद्धावस्था की ओर धकेल दिया हो..!!
 
अपने परम मित्र तनय की अमीरी के भव्य नुमाइश जैसे, कीमती साजो सामान से लदे, अपार्टमेन्ट में, मनोज को  बेचैनी महसूस होने लगी । वैसे भी, वह अपनी मर्ज़ी से यहाँ आया नहीं था..!! चाहे वजह कोई भी हो, पर उसके सामने, देहविक्रय करनेवाली एक औरत खड़ी थी, जिसे तनय,  मनोज की बहन का  सामाजिक दर्जा देने के लिए, उसकी मर्जी जाने बिना ही, मनोज पर,  तनय दबाव डाल रहा था ।
 
मनोज और उसकी होनेवाली `बहन` आराम से कुछ बात कर सके इसलिए," मैं  फ्रेश हो कर अभी  वापस आया..!!" इतना कह कर तनय, उस औरत और मनोज को अकेला छोड़कर, भीतर के कमरे में चला गया..!!

मनोज के लिए ये स्थिति, "न निगलते बने, न उगलते बने" जैसी निर्माण हो गई थीं ।

अचानक, वह औरत मनोज के सामने वाली कुर्सी पर आकर बैठ गई और जैसे ही, उसने मनोज से कुछ कहने के लिए, उसने अपने बंद होठ खोले..!!

बिना कुछ सोचे समझे, 
बिना पीछे मुड़े, बिना वह औरत से नज़र मिलाए, बिना तनय की राह देखे, मनोज झट से खड़ा हुआ और अपार्टमेन्ट का दरवाज़ा स्फूर्ति से खोलकर, भागता-दौडता हुआ, बिल्डिंग की सीढ़ियां उतर गया..!! 

मानो उसने कोई भूत देखा हो?
 
दोस्तों, कहानी तो यहीं खत्म होती है । 

पर क्या कहानी का अंत यही होना चाहिए था? 

क्या मनोज ने जो किया सही किया था? 

क्या मनोज ने अपने मित्र की छोटी सी बिनती को न मानकर मित्रद्रोह किया था? 

मेरे मन में, अनगिनत सवाल उठ रहे हैं और शायद मनोज के मन में भी?

अगर, आप मनोज की जगह पर होते तो क्या यही करते, जो अंत में मनोज ने किया?

सवाल ज़रा टेढ़ा ज़रूर है पर, आप तो विद्वान हैं, आप सरल जवाब दे सकते हैं..!! 

हैं ना?
 
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कहानी-मर्म ।
 
" अगर कोई व्यक्ति स्वयं को कीड़ा बना लें तो, रोंदे जाने पर उसे शिकायत नहीं करनी चाहिए ।" --- कांत
 
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मार्कण्ड दवे । दिनांक- १४-०४-२०११.

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