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अत्यल्प को छोड़कर पूरे ब्लॉगजगत का लेखन स्तरहीन है
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चौंक गए न आप ? आपकी ही तरह मैं भी चौंक गया था , जब इस टिप्पणी को पढ़ा ......!


आज हम मुद्दों की बात करने वाले थे , कौन-कौन से मुद्दों पर हिंदी ब्लॉगजगत ने कैसी रणनीति बनायी, सार्वजनिक रूप से क्या कहा और भ्रष्टाचार आदि मुद्दों पर क्या प्रतिक्रिया रही हिंदी ब्लॉग जगत की
, किन्तु कल साहित्यिक गतिविधियों की चर्चा पर अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी की तीखी प्रतिक्रया आई । उन्होंने मूल्यांकन के साथ-साथ पूरे हिंदी ब्लॉगजगत के लेखन को ( अत्यल्प बेहतर लेखन को छोड़कर ) स्तरहीन की संज्ञा से नवाज़ा
उन्होंने कहा कि -"मठाधीसी , आंतरिक 'सेटिंग' , छपास-रोग का अन्धानुराग , विपरीत-लैंगिक खिंचाव में फालतू पोस्टों पर अधिक संख्या में फेंचकुर फेंकती टिप्पणियाँ , ठीक टीपों का खामखा 'डिलीटीकरण' , प्रतिशोधात्मक कीचड-उछौहल , मूल्यहीनता के साथ सम्मान वितरण और तज्जन्य वाहवाही .........आदि नकारात्मक सक्रियताएं हिन्दी ब्लॉग-जगत की मुख्यधारा की सच हैं ।"


मूल्यांकन को सतही कहने की उनकी टिप्पणी को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता, किन्तु उनकी टिपण्णी में ब्लॉगजगत और उससे जुड़े लेखकों के प्रति जो उत्तेजना परिलक्षित हुई है वह कहीं से भी जायज नहीं है । उन्होंने अत्यल्प की बात कही और यह दर्शाने की कोशिश भी की कि हिंदी ब्लॉगजगत में उन जैसे कुछ लेखकों के सिवा हर कोई स्तरहीन लिखता है ...यह आत्ममुग्धता नहीं तो और क्या है ?


खैर ये तो रही उनकी अपनी बात , अब ज़रा इन मुद्दों पर कुछ और ब्लोगरों की राय देखिये ....यानी वर्ष-२०१० में हिंदी ब्लोगिंग ने क्या खोया क्या पाया ?


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हिंदी के नए सूर और तुलसी ब्लोगिंग के जरीय ही पैदा होंगे यक़ीनन : रवि रतलामी

हिन्दी ब्लॉगिंग शैशवा-वस्था से आगे निकल कर किशोरावस्था को पहुँच रही है। अलबत्ता इसे मैच्योर होने में बरसों लगेंगे। अंग्रेज़ी के गुणवत्ता पूर्ण (हालांकि वहाँ भी अधिकांश - 80 प्रतिशत से अधिक कचरा और रीसायकल सामग्री है,), समर्पित ब्लॉगों की तुलना में हिन्दी ब्लॉगिंग पासंग में भी नहीं ठहरता. मुझे लगता है कि तकनीक के मामले में हिन्दी कंगाल ही रहेगी. बाकी साहित्य-संस्कृति से यह उत्तरोत्तर समृद्ध होती जाएगी - एक्सपोनेंशियली. हिन्दी के नए सूर और तुलसी ब्लॉगिंग के जरिए ही पैदा होंगे, यकीनन।

अगर आप फ़ालतू के हल्ला मचाते ब्लॉगों-पोस्टों से निगाह हटा लें, तो आप पाएंगे कि हर स्तर पर स्तरीय सामग्री, बल्कि बेहद प्रयोगधर्मी सामग्री की प्रचुरता है। लोग उपहास में कहते फिरते हैं कि जो चीजें प्रिंट में छपने लायक नहीं होतीं वो ब्लॉग में अवरतिर होती हैं। मगर दरअसल प्रिंट में छापने वाले कमजोर - कोवार्ड होते हैं जो ऐसी चीजें छाप ही नहीं सकते। ब्लॉग तो भाषाई एक्सपेरीमेंट का प्लेटफ़ॉर्म है जहाँ हर रूप और विचारधारा के लिए समान प्लेटफ़ॉर्म सदैव उपलब्ध रहेगा. देरी है तो इसके पूरे दोहन की।

रवि रतलामी
http://raviratlami.blogspot.com/
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ब्लॉग में कम से कम इमानदार अभिव्यक्ति तो पढ़ने को मिलती है : घनश्याम मौर्या
हिंदी ब्लोगिंग में ऐसे श्रमसाध्‍य और साहसिक प्रयास शायद पहले कभी नहीं किया गया इसके लिए आप बधाई के पात्र है । अमरेन्‍द्र जी की टिप्‍पणी भी पढ़ी उनकी बातें कुछ हद तक सही हो सकती हैं किन्‍तु अंतत: इस बात को स्‍वीकार करना पडेगा कि ब्‍लाग अभिव्‍यक्ति के एक सशक्‍त माध्‍यम के रूप में उभर कर सामने आ चुका हैा इसकी व्‍यापक पहुँच एवं उपयोगिता पर कोई संदेह नहीं किया जा सकता । रही बात गुणवत्‍ता की तो प्रिंट मीडिया में जो छप रहा है वह क्या है, ब्लॉग में कम से कम आपको ईमानदार अभिव्यक्ति तो पढ्ने को मिलती हैा

घनश्याम मौर्य
http://gmaurya.blogspot.com/
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हिंदी ब्लोगिंग तो फिर भी ठीक है ,साहित्य में तो आलोचना के नाम पर माफियागिरी होती है : गिरीश पंकज

कोईभी विधा या लेखक तभी चर्चा में आता है, जब उसे आलोचक मिलता है. साहित्य में अलोचना का बड़ा महत्त्व है. दुर्भाग्यवश हिंदी साहित्य में आलोचनके नाम पर माफियागीरी हो रही है. अच्छे लेखक जानबूझ कर किनारे कर दिए जाते है, और औसत दर्जे के ''प्रभावशाली'' (अपने पदों के कारण) लेखक चर्चा में रहते है. सौभाग्य की बात है कि ब्लॉग-जगत को रविन्द्र प्रभात जैसा आलोचक-विश्लेषक मिला है, जो माफिया नहीं है. सबकी खबर रखना और जिसका जो योगदान है, उसको उस रूप में रेखांकित करना, यही प्रयास है प्रभात भाई का. दावे के साथ कहा जा सकता है, कि अभी तक इतनी गहराई के साथ किसी ब्लॉगर ने मेहनत नहीं की है. तमाम ब्लॉगों तक पहुँचाना, उनके लिंक देना, यह घंटों मेहनत करने के बाद ही संभव हो सकता है. कोई एक शख्स अगर कर रहा है, तो उसकी सराहना मेरी तरह सभी जन करेंगे. और यह काम होना चाहिए. हिंदी ब्लॉग-जगत को एक तटस्थ ''ब्लागालोचक'' मिल गया है, यह अच्छी बात है. चिटठा-चर्चाओं के माध्यम से कुछ अन्य साथी भी यह काम कर रहे है. ये भी ''ब्लागालोचक'' है. इन सब के कारण ब्लाग-लेखन का उन्नयन होगा. ''परिकल्पना' का विशिष्ट योगदान इसलिये भी है, कि प्रभात भाई, एक साथ सैकड़ों ब्लागों के बारे में बताते है, उनका सटीक विश्लेषण करते है. मुझे उम्मीद है, इस बहाने अनेक ब्लागर प्रोत्साहित होंगे और नए लोगों को प्रेरणा भी मिलेगी.
गिरीश पंकज
http://sadbhawanadarpan.blogspot.com/

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आप जिस तरह का चश्मा पहनेंगे आपको वैसा ही दिखाई देगा : अविनाश वाचस्पति
साहित्‍य-संस्‍कृति और समाज का वर्तमान स्‍वरूप अनेक मायनों में बेहतर है और कई मायनों में बदतर है और ऐसा सदा ही होता है। कुछ चीजें सदैव अतीत की उत्‍तम प्रतीत होती हैं जबकि कुछ निरर्थक यानी कूड़ा। पर यह सब देखने उपयोग करने वाले और महसूसने वाले की नजर पर अधिक निर्भर होता है और तय होता है तत्‍कालीन स्थितियों और परिस्थितियों पर। वर्तमान में इसमें ब्‍लॉगिंग की भूमिका भी दिखलाई दे रही है। पहले जो अपनापन समाज में मौजूद रहा है, वो उस समय की साहित्‍य और संस्‍कृति में समाहित मिलता है परन्‍तु आज की स्थिति जैसी है, उसे वर्णन करने की जरूरत नहीं है। सब उसकी असलियत से परिचित हैं। फिर भी ब्‍लॉगिंग के आने से अजनबी संबंधों में गहन मधुरता आ रही है जबकि ब्‍लॉगिंग पर यह आरोप इसके आरंभ होने से ही लगने लगे हैं कि इससे साहित्‍य-संस्‍कृति और समाज में उच्‍श्रंखलता बढ़ रही है। पर मैं इसका विरोध करता हूं। सदैव तकनीक अपने साथ दोनों पक्ष लेकर चलती है। अब आप जिस तरह का चश्‍मा पहन कर देखेंगे, आपको तो वैसा ही दिखलाई देगा।

अविनाश वाचस्पति
http://avinash.nukkadh.com/

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ब्लोगिंग का उपयोग मर्यादित ढंग से होना चाहिए : डा दिविक रमेश
ब्लोगिंग एक नयी विधा है , इसीलिए इसमें साहित्य सृजन को लेकर काफी विवाद की स्थिति है , सृजन को लेकर बहुत सारे प्रश्नों का उभरना ऒर शंकाओं का जन्म लेना स्वाभाविक हॆ । यूं भी संस्कृति में बदलाव ज़रूर आता हॆ लेकिन उन बदलावों को आसानी से स्वीकार कर लेना आसान नहीं होता । ब्लोगिंग के कारण आज विश्व एक दूसरे की संस्कृति की पहुंच में हॆ अत: संस्कृतियों का एक दूसरे से प्रभावित होना सहज हॆ । सूचना का विस्फ़ोट भी कम उत्तरदायी नहीं हॆ । आज किसी भी संस्कृति की शुचिता की बात करना बेमानी ऒर ग़ॆरजरूरी हॆ ।हमें अपनी ऒर अपने आस-पास की जीवन शॆली पर भी ध्यान देना होगा ।।उसके तिरस्कार ऒर स्वीकार करने वालों के मंसूबों को समझना ऒर परखना होगा । यूं भी आज राजनीति पूरी तरह हावी हॆ ऒर उसका अधिकांश स्वार्थी ऒर मॊकापरस्त हॆ । उसने तो संन्यासियों तक को लपेटे में ले लिया हॆ । आदमी की तो क्या ऒकात हॆ। ऎसे में आदमी का क्या ठीक हॆ ऒर क्या गलत हॆ के द्वन्द्व में फंस जाना स्वाभाविक हॆ । अत: संस्कृति और सृजन के बारे में दो टूक बात करना असंभव सा हॆ । हां हमारे साहित्य, संस्कृति ऒर समाज की आशान्वित सोच हमारी बह्त बड़ी पूंजी हॆ । इसे हमें नहीं छोड़ना हॆ ।

हिन्दी ब्लोगिंग अभी, मेरी निगाह में, शिशु हॆ जिसे परवरिश की दरकार हॆ । इसे बहुत स्नेह चाहिए ऒर प्रोत्साहन भी ।अच्छी बात यह हॆ कि इसे पालने-पोसने वाले मॊजूद हॆं । मेरा स्वयं का ब्लाग हॆ ऒर उसे देखा-पढ़ा भी जा रहा हॆ । दशा अच्छी हॆ । गति भी दिशाहीन नहीं हॆ ।भविष्य बहुत उज्ज्वल हॆ । इसका अधिक से अधिक प्रयोग ही इसकी सफलता की कुंजी हॆ । हां इसका उपयोग मर्यादित होना चाहिए । मर्यादा मिल जुल कर निर्धारित की जा सकती हॆ । जानकारों ऒर विशेषज्ञों को सेवा भाव से भी सामने आना होगा । अभी तो खुलकर उपयोग हो । हिदी का महत्त्व जितना बढ़ेगा, हिन्दी का ब्लाग भी बढ़ेगा ।
डा0 दिविक रमेश
(सुपरिचित हिंदी कवि )
http://divikramesh.blogspot.com/

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शालीन तरीके से या सन्दर्भ टिप्पणियों का अभाव दिखा इस वर्ष : डा श्याम गुप्त
साहित्य समाज का का दर्पण होता है ब्लॉग, साहित्य की एक विधा है जो उन्नतोमुखी है अतः समाज में जो भी अच्छा -बुरा है उसका ब्लोग्स में प्रतिबिंबित होना अपरिहार्य है क्योंकि ब्लॉग अभी एक अग्रगामी विधा है अतः मूलतः उसमें खोने को क्या होसकता है ? हां पाने को बहुत कुछ है वर्ष २०१० तक आते आते जहां सांख्यकीय दृष्टि से ब्लोगों की अपार वृद्धि हुई है वहीं ब्लॉग 'विचारों का खज़ाना' भी बना है जो नए नए विचारों को ऊर्जस्विता व प्रवाह देते हैं और ब्लॉग-विधा को प्रगति व और ऊचाइयां आज ब्लॉग विभिन्न विचार , विचार विमर्श , नई नई व्यक्तिगत परिभाषाएं, ज्ञान , सुन्दर विचार, बोध कथाएँ, समाचार आदि के साथ साथ विभिन्न सामान्य, प्रोद्योगिक,प्रोफेशनल, व विभिन्न विद्याओं,स्थानों, वस्तुओं व विषयों पर जानकारियों का भी खज़ाना बन चुका है देश भक्ति,सामाजिकता , संस्कृति व प्राचीन ज्ञान के खजानों का पुनर्स्थापन एवं नवीन के साथ तादाम्य व प्रगति के साथ चलने वाले ब्लॉग भी प्रचुर मात्रा में स्थापित हुए हैं जो एक शुभ लक्षण है नारी ब्लॉग भी सामाजिक प्रगति के शुभ लक्षण हैं ।

हाँ इस वर्ष कुछ फूहड़ता, कटु व असामाजिक सन्दर्भ ,गाली-गलौज तक की बातें भी ब्लोगों पर देखी गईं जो अच्छे चिन्ह नहीं हैं पूर्वाग्रह से ग्रसित विचारों को भी प्रकट होना आवश्यक है यह विचार स्वतन्त्रता का विषय है अतः शालीन तरीके से सा सन्दर्भ टिप्पणियाँ होनी चाहिए जिसका कुछ अभाव दिखाई दिया वहीँ कुछ लोगों द्वारा टिप्पणियों पर की गयी टिप्पणियों पर भी अभद्रता हुई जबकि यह सत्य है कि निरर्थक विषयों, एक छोटी सी उक्ति, चार पंक्ति की बात घिसी -पिटीबात,सामान्य सन्दर्भ की पोस्टों पर( क्षमा याचना सहित महिलाओं द्वारा लिखी गयी पोस्टों पर भी) अधिकाँश व अधिक टिप्पणियाँ की गईं, जबकि सामाजिक सन्दर्भ, गंभीर विषयों पर टिप्पणियाँ न्यूनतम दिखाई दीं वाह -वाह, दीदी -भाई , गुरु-चेले, आदि रिश्ते-निभाने साहित्यिक ठेकेदारी की बातें व टिप्पणिया ब्लॉग-विधा को असाहित्यिक व निम्नगुणयुक्त बनाती हैं ब्लॉग व मिनी-ब्लॉग विधाओं पर अश्लीलता की पोस्टें भी उचित नहीं हैं एवं विचार व अभिव्यक्ति स्वतन्त्रता का गलत उपयोग है ।

एक और कमी अखरती है कि ब्लॉग पर उच्च कोटि के साहित्यकार,वैज्ञानिक, विचारक , विशेषग्य आदि अभी नहीं आ रहे हैं यद्यपि इसका कारण ,वरिष्ठ, अनुभवी , उम्रदराज लोगों में कम्यूटर -ज्ञान व ऑपरेटिंग ज्ञान का अभाव तथा अभी ब्लॉग की उच्च कोटि की क्षमता व प्रामाणिकता स्थित नहीं हो पाई है फिर भी अनेकों उच्च कोटि के ब्लोगर व ब्लॉग व युवा एवं प्रौढ़ विचारक इस वर्ष भी जुड़े हैं तथा अपने ज्ञान के आलोक से ब्लॉग-विधा को गौरवान्वित करने का प्रयास कर रहे हैं ।

हमने आलेख में जान बूझ कर किसी भी ब्लॉग या ब्लोगर का नाम नहीं लिया है , समझने वाले समझ ही जायेंगे हाँ श्री रविन्द्र प्रभात जी के प्रयास ,प्रेरणाप्रद कृतित्व व इस विषय पर अत्यंत श्रम से लिखे गए आलेखों व २०१० में ब्लोगरों व ब्लोगों की श्रमपूर्ण तालिका बनाए जाने व प्रकाशित किये जाने के कृतित्व को अवश्य सराहना व बधाई दी जानी चाहिए ।

डा0 श्याम गुप्त,
http://shyamthot.blogspot.com/

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गतिविधियाँ संतोषप्रद कही जा सकती है : उन्मुक्त
हिन्दी चिट्ठाकारी परिपक्व होती जा रही है। लेकिन जरूरत है अधिक विषयों पर लिखने की - जैसे तकनीक, चिकित्सा, विज्ञान, मैनेजमेन्ट। अभी भी, अधिकतर चिट्ठियां, कविताओं और विविध तक ही सीमित हैं।इस वर्ष भी ऐसी कमियाँ परिलक्षित हुई है , किन्तु गतिविधियाँ संतोषप्रद कही जा सकती है ।
जरूरत है अन्तरजाल पर हिन्दी के ऐसे लेखों कि यदि लोग किसी विषय पर सूचना ढ़ूंढ़ना चाहें तो वे हिन्दी में ढ़ूंढ़े न कि अंग्रेजी में और वे मिल सकें। इसका अभी आभाव है। मैं भी अपने लेखों के लिये अंग्रेजी में सूचना ढूंढ़ता हूं न कि हिन्दी में।

उन्मुक्त
http://unmukt-hindi.blogspot.com/

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हर तरह की विचारधाराओं का निरपेक्ष प्लेटफोर्म बनने में सफल हुई है हिंदी ब्लोगिंग : प्रमोद तांबट
मेरे मत में ब्लॉग जगत की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह विरोधाभासों और टकराहटों से युक्त हर तरह की विचारधाराओं और विधाओं के लिए एक निरपेक्ष प्लेटफार्म सा है। किसी विशाल पुस्तकालय में तो फिर भी पूर्वाग्रहग्रस्त नीतिगत दादागिरी के चलते ठेठ विरोधी विचारधाराओं का साहित्य नदारद मिल सकता है, लेकिन यहाँ इस प्रकार का कोई पूर्वाग्रह थोपा नहीं जा सकता है। किसी भी तरह की एकाकी प्रतिबद्धता अथवा राजनैतिक गुटबंदी से मुक्त इस स्थली पर दरअसल देखा जाए तो अभिव्यक्ति की विभिन्न विधाओं के ज़रिए विचारधाराओं का एक सत्संग अथवा शास्त्रार्थ सा चलता रहता है, जिसका माध्यम विभिन्न एग्रीगेटर बनते हैं। किसी ब्लॉग में अभिव्यक्त विचारों को पढ़ना या ना पढ़ना ब्लॉग प्रेमियों की अपनी पसंद-नापसंद और इच्छा पर निर्भर करता है लेकिन ऐसा नही है कि किसी विचारधारा विशेष की अभिव्यक्ति के लिए यहाँ कोई घोषित किस्म की पाबंदी लागू हो। ऐसे में विचारों के आपसी संघर्ष के ज़रिए 'सत्य' के लिए जगह बनाने का इससे अच्छा माध्यम और क्या हो सकता है। अभिव्यक्ति के अन्य सभी माध्यम पूँजीवादी घरानों और उनकी सत्तामार्गी विचारधारा विशेष के 'माइक' होने के कारण एक ही सुर में आलापते हुए खुद भी गुटों में बँटे हुए नज़र आते हैं और इनके सायास प्रयत्नों के चलते जनसाधारण भी वैचारिक स्तर पर आपस में बँटा हुआ आचरण करता प्रतीत होता है।

प्रमोद ताम्बट
http://vyangyalok.blogspot.com/
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संजीदगी से कोई भी ब्लॉग-धर्म का निर्वाह नहीं कर रहा :अमित कुमार यादव


आजकल हिंदी ब्लागिंग खतरे में हैं। पहले तो लोग बड़े जोर-शोर से ब्लॉगों से जुड़े, पर अब उत्साह ठंडा हो गया है. किसी की शिकायत है कि अब लिखने के लिए समय ही नहीं मिलता तो कोई मात्र पब्लिसिटी और चेहरा दिखाने के लिए तमाम ब्लॉगों से जुड़ता गया. कई लोग सामुदायिक ब्लॉग तो खोल बैठे हैं, पर अन्य ब्लॉगों पर झाँकने की फुर्सत ही नहीं. कई सामुदायिक ब्लॉगों पर तो महीने भर तक पोस्ट ही नहीं आती, आई भी तो 1-2, मात्र खानापूर्ति के लिए कि हम भी जिन्दा हैं. कुछ की शिकायत है कि कितना भी धारदार लिखो, कोई पढता ही नहीं या फिर टिपण्णी ही नहीं करता. लोग एक साथ कई ब्लॉगों से जुड़े हुए हैं, कईयों को फालो कर रहे हैं...पर संजीदगी से कोई भी ब्लॉग-धर्म का निर्वाह नहीं कर रहा है।

पोस्टें आती हैं, जाती हैं, पर कोई असर नहीं डालतीं। पढने के नाम पर इतना बड़ा मजाक कि टिप्पणियां उसकी गवाही देनी लगती हैं। इन टिप्पणियों पर कोई गौर करे तो अपने को दुनिया का सबसे बड़ा रचनाकार मानने की भूल कर बैठे। एक ही टिप्पणियां हर ब्लॉग पर विराजती हैं, फिर कहाँ से हिंदी ब्लोगिंग का विकास होगा। हिंदी ब्लागिंग के नाम पर लोग संगठन बनाकर और सम्मलेन कराकर अपनी मठैती चमका रहे हैं. यही कारण है कि कई पत्र-पत्रिकाओं ने बड़े मन से ब्लॉगों की चर्चा आरंभ की, पर फिर इसे बंद ही कर दिया। कई अच्छे ब्लॉग सरेआम पोस्ट लगाकर पूछ रहे हैं की क्या पोस्ट
न आने के कारण ब्लॉग बंद कर दिया जाय।

आज जरुरत हिंदी-ब्लागरों के आत्म विश्लेषण की है। हिंदी ब्लागिंग में अभी भी गंभीरता से देखें तो कुछ ही ब्लॉग हैं, जो नियमित अप-डेट होते हैं. ब्लॉग के नाम पर अराजकता ज्यादा फ़ैल रही है. यहाँ किसी पोस्ट का कंटेंट नहीं, बल्कि जान-पहचान ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई है, फिर गंभीर लोग इससे क्यों जुड़ना चाहेंगें. सुबह उठकर ही पचासों ब्लॉग पर बढ़िया है, लाजवाब है, बहुत खूब जैसी टिप्पणियां देकर लोगों को भरमाने वाले अपने ब्लॉग पर उसके एवज में टिप्पणियां जरुर बटोर रहे हैं, पर इससे ब्लागिंग का कोई भला नहीं होने वाला. ब्लोगों पर जाति, क्षेत्र, रिश्तेदारी, संगठन, सम्मलेन, राजनीति, विवाद सब कुछ फ़ैल रही है, बस नहीं है तो गंभीर लेखन और रचनात्मकता. कहीं यह ब्लागिंग से लोगों का मोह भंग होने का संकेत तो नहीं ??

अमित कुमार यादव
http://yuva-jagat.blogspot.com/

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रचनात्मक समृद्धि तो पायी मगर गुटवाजी और वैमनस्यता भी पा ली है : अलवेला खत्री
वर्ष २०१० अभी समाप्त नहीं हुआ है, पूरे १४ दिन अभी बाकी हैं, परन्तु आपने जब पूछ ही लिया है तो मैं वही बताना चाहूँगा जो कि मैंने अनुभव किया । यद्यपि मेरा आंकलन किसी और की कसौटी पर खरा उतरे ये ज़रूरी नहीं है क्योंकि मुझे तो जुम्मा जुम्मा अभी कुछ ही महीने हुए हैं ब्लोगिंग करते और वैसे भी मैं कोई पढ़ा-लिखा विद्वान तो हूँ नहीं, बस किसी तरह कर लेता हूँ ये सोच कर कि किसी बहाने हिन्दी का विस्तार हो......

तो जनाब खोने को तो यहाँ कुछ था नहीं,
इसलिए पाया ही पाया है .
नित नया ब्लोगर पाया है,
संख्या में वृद्धि पायी है
और रचनात्मक समृद्धि पाई है

लेखकजन ने एक नया आधार पाया है
मित्रता पाई है, निस्वार्थ प्यार पाया है
दुनिया भर में फैला एक बड़ा परिवार पाया है
इक दूजे के सहयोग से सबने विस्तार पाया है
नूतन टैम्पलेट्स के ज़रिये नया रंग रूप और श्रृंगार पाया है
रचनाओं की प्रसव-प्रक्रिया में परिमाण और परिष्कार पाया है
नये पाठक पाए हैं,
नवलोचक पाए हैं
लेखन के लिए सम्मान और पुरस्कार पाया है
नयी स्पर्धाएं, नयी पहेलियों का अम्बार पाया है

लगे हाथ गुटबाज़ी भी पा ली है, वैमनस्य भी पा लिया है
टिप्पणियाँ बहुतायत में पाने का रहस्य भी पा लिया है
बहुत से अनुभव हमने वर्ष २०१० में पा लिए
इससे ज़्यादा भला १२ माह में और क्या चाहिए....!

अलबेला खत्री
http://albelakhari.blogspot.com/
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इस वर्ष ब्लोगिंग ने एक क्रान्ति का रूप ले लिया है : उदय

सक्रीय ब्लागिंग में आये हुए मुझे ज्यादा समय नहीं हुआ है इस वर्ष ही ब्लागिंग की बारीकियों को जाना व समझा है, मेरा मानना है कि ब्लागिंग एक अंतर्राष्ट्रीय मंच है जहां एक आम लेखक बेख़ौफ़ व स्वतन्त्र रूप से अपने विचार प्रस्तुत करने में सक्षम है ब्लागजगत में जो लेखन कार्य युद्ध-स्तर पर चल रहा है लेख, कविता, कहानी, हास्य-व्यंग्य, कार्टून, चर्चा-परिचर्चा, गुफ़्त-गूं, क्रिया-प्रतिक्रिया, यह सभी समाचार के हिस्से हैं इन सभी के समावेश से "समाचार पत्र व पत्रिकाएं" साकार रूप लेती हैं .... "ब्लागजत" पर लेखन को मात्र शौक-पूर्ति नहीं कहा जा सकता यह एक "अंतर्राष्टीय मंच" है, यह सर्वविदित सत्य है कि आये-दिन ब्लागजगत के लेख इत्यादि "प्रिंट मीडिया" में समावेश हो रहे हैं, इस बात से कतई इंकार नहीं किया जा सकता कि आने वाले समय में ब्लागजगत "अंतर्राष्टीय पत्रकारिता" का मजबूत स्तंभ होगा .... इसका खुद का अपना एक "संघठन" होगा और सभी ब्लागर "सदस्य" होंगे, जो "अंतर्राष्ट्रीय पत्रकार" के नाम से जाने जायेंगे !

"ब्लागिंग" का क्रेज दिन-व-दिन बढ रहा है धीरे-धीरे "ब्लागिंग" का एक प्रभावशाली स्थान बनते जा रहा है बुद्धिजीवी वर्ग के लोग इसे लोकतंत्र का "पांचवा स्तंभ" भी कहने लगे हैं, कुछेक लोगों में ऎसी भी "सरसराहट" है कि जो काम "प्रिंट मीडिया व इलेक्ट्रानिक मीडिया" नहीं कर रही है वह काम "बेधडक व निष्पक्षरूप" से "ब्लागिंग" में हो रहा है तात्पर्य ये है कि "ब्लाग" में बिना मिर्च-मसाला, बिना जोड-तोड, बिना लाग-लपेट के अभिव्यक्तियां की जा रहीं हैं जिनकी प्रशंसा सभी वर्ग के लोग कर रहे हैं !

"ब्लागिंग" पर एक क्षेत्र विशेष अथवा किसी व्यक्ति विशेष का अधिकार नहीं है वरन लेखन की सभी विधाओं का समान रूप से अधिकार है कहने का तात्पर्य ये है कि कवि, लेखक, कहानीकार, व्यंग्यकार, पत्रकार, आलोचक, समालोचक, इतिहासकार, ज्योतिषाकार, कार्टूनिस्ट इत्यादि सभी के लिये यह एक "खुला मंच" है इसके माध्यम से सभी अपनी-अपनी राय व हुनर को सफ़लतापूर्वक अभिव्यक्त कर रहे हैं। निसंदेह "ब्लागिंग" ने एक क्रांति का रूप ले लिया है जिसके माध्यम से ऎसी-ऎसी प्रतिभाएं उभर कर सामने आ रही हैं जिन्होंने लेखन के क्षेत्र में स्थापित "महानुभावों" को भी संशय में डाल दिया है, कुक्षेक "ब्लागर्स" की लेखनी तो इतनी प्रभावशाली है कि आने वाले समय में उन्हें राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी सराहा जायेगा और पुरुस्कारों से नवाजा जायेगा !

श्याम कोरी 'उदय'
http://kaduvasach.blogspot.com/ ===============================================================
आप भी कुछ बोलिए , आपका क्या कहना है इस सन्दर्भ में .....?
.........जारी है विश्लेषण , मिलते हैं एक विराम के बाद

39 comments:

  1. आदरणीय प्रभात जी,
    विश्लेषण के तीन खंड और एक भ्रमित करने वाली टिप्पणी अमरेन्द्र जी के ! आपने उन्हें उनके ही वक्तव्य के चक्रव्यूह में समेट दिया, यही एक विश्लेषक या फिर आलोचक की विशेषता मानी गयी है , सचमुच कभी-कभी व्यक्ति उत्तेजना में ऐसी बात बोल जाता है जिसे बाद में उसे भी महसूस होता है, मेरे समझ से अमरेन्द्र जी को भी महसूस हुआ होगा कि मैंने ये क्या कह दिया ?
    अमरेन्द्र जी के बहाने ही सही, मगर विश्लेषण का यह भाग हमारे जैसे नौसिखुए ब्लोगर के लिए बड़े काम का है, इसके लिए आपका आभार !

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  2. बेशक किसी हद तक अमरिन्दर जी सही हैं लेकिन एक बात का उन्हें ध्यान रखना चाहिये कि ब्लाग जगत मे सभी साहित्यकार नही लेकिन ये भी तय है कि अच्छे साहित्यकार भी इन्हीं मे से बनेंगे। जिन्हें केवल साहित्य सृजन करना है उनके लिये ब्लागजगत उतना उपय्तुक्त नही। ब्लाग लेखन और टिप्पणियाँ समय माँगती हैं। इस स्वतन्त्र अभिव्यक्ति के माध्यम को सभी तरह के लोगों के लिये समझा जाये।नही तो हम जैसे टाईमपास लेखक कहाँ जायेंगे? रवि रतलामी जी ने सही कहा है--
    एक्सपोनेंशियली. हिन्दी के नए सूर और तुलसी ब्लॉगिंग के जरिए ही पैदा होंगे, यकीनन।
    बहुत अच्छा प्रयास है आपका। धन्यवाद।

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  3. मैंने पहले भी कहा है आज भी मेरा मानना है कि हिन्दी ब्लॉगिंग अपनी दिशा दशा तय कर लेगा ... यह इसका लचीलापन इसे बाक़ी सबसे बेहतर बनाएगा।

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  4. अमरेन्द्र जी का वक्तव्य उनका खुद का भोगा हुआ यथार्थ हो सकता है -दृष्टि भेद से दृश्य भेद होता है -मानी जानी बात है! हम जो कुछ उज्जवल है ,सार्थक है उसे क्यों नहीं देखते -ब्लॉग लेखन अपरिमित सम्भावनाओं से भरा है -हमें क्षणिक आवेश में नैराश्यपूर्ण प्रतिक्रियायों से बचना चाहिए -क्योकि इनसे निराशा और कुंठा का ही संचार होता है जो साहित्य का स्वयं अभीष्ट नहीं है !
    आप जो कर रहे हैं वह बहुत ही विशिष्ट और सार्थक है ,यह अप के ही बस का लगता है .हमें कर्मठता की एक खिंची रेख से बड़ी रेखा खींच कर दिखानी चाहिए न कि उसे मटियामेट करने पर उद्यत होना चाहिए !

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  5. मेरे विचार से त्रिपाठी जी कहीं से भी गलत नहीं हैं क्‍योंकि हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग चौथा पाठ है, पांचवां खंबा। जब वे इस और हो रहे समूचे विश्‍लेषण को पढ़-जान लेंगे, तो स्‍वयं ही इस पर अपनी संतुलित टिप्‍पणी अवश्‍य देंगे। ऐसा मेरा मानना है। और इस विश्‍लेषण के पूरा होने पर अमरेन्‍द्र जी का गहन विश्‍लेषण उनके ब्‍लॉग पर अवतरित होगा, आप और हम सब उस समय का इंतजार कर रहे हैं।
    गगनांचल में देखिए बलॉग की दुनिया का नक्‍शा :  नक्‍शे में आपके नैननक्‍श

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  6. रविन्द्र प्रभात जी , मेरे विचार से हिंदी ब्लोगिंग अभी एक प्रयोगात्मक प्रावस्था से गुजर रही है । अभी इसमें परिपक्वता और स्थायित्त्व आना शेष है । हिंदी ब्लोगरों में सभी न तो साहित्यकार हैं , न पत्रकार और न लेखक । बहुत से लोग हम जैसे साधारण नागरिक हैं , जिन्हें ब्लोगिंग के ज़रिये एक माध्यम मिला है , अभिव्यक्ति का । अभिव्यक्ति चाहे लेख से हो , कविता से या चित्रकारी द्वारा , सब अपनी पसंदानुसार लिखते हैं । हाँ , कुछ लोग धर्म सम्बंधित व्यर्थ की बहस में पड़कर वातावरण को प्रदूषित अवश्य करते रहते हैं , समय समय पर । व्यक्तिगत लांछन भी देखे गए हैं । इनसे बचना होगा । अनाम टिप्पणियां अब कम हो गई हैं । यह इस बात की ओर संकेत करता है कि यदि उपद्रवी तत्त्वों को नज़र अंदाज़ कर दिया जाए तो वे स्वयं ही कुंठित हो जायेंगे ।

    शुभकामनायें ।

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  7. पहली बात तो यह है कि जो भी हिन्दी ब्लागिंग में आता है उसे पता ही नहीं रहता की उसे क्या लिखना है। वह अपनी कविताओं के साथ आता है।
    फ़िर यहां की गधा पचीसी में फ़ंस जाता है। फ़िर कहीं बाद में उसे समझ में आता है कि वह क्या कर रहा है।
    अमरेन्द्र ने जो कुछ कहा उसके निजि वि्चार हैं। अगर हम विशुद्ध हिंदी मे अपनी पो्स्ट लिखते है तो बहुत सारे पाठक ऐसे हैं जिनकी समझ के बाहर हो जाता है।
    शब्दों की कलाबाजी की बजाए हम सरल भाषा में लिखें तो अवश्य ही पाठकों तक सही सामग्री पहचेगी।
    भले हमने साल भर घांस छीली हो कोई बात नहीं लेकिन कुछ तो लिखा है जो आत्म संतुष्टी प्रदान करता है। हमने किसी के लेख या किताब से चुरा कर कुछ भी नहीं लिखा। जो भी लिखा है अपना है।
    विश्लेषण के लिए आपका आभार

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  8. हिंदी ब्‍लॉगिंग में कुछ सामग्रियां तो निरर्थक मानी जा सकती हैं .. पर इन तीन वर्षों में सार्थक बहुत कुछ पढने को मिला .. पूरी दुनिया और पूरा जीवन धनात्‍मक और ऋणात्‍मक दोनो का मिश्रण होता है .. और ब्‍लॉग जगत भी तो दुनिया का प्रतिनिधित्‍व करती है !!

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  9. प्रिय भाई
    आपने यह एक ज़रूरी मुद्दा उठाया है और इस प्रकार के प्रश्न जहाँ एक ओर आत्मविश्लेषण का द्वार खोलते हैं वहीँ यह भी सूचित करते हैं की इस मार्ग में चलते हुए हम कहाँ और कैसे हैं
    जैसे आजकल व्यंग्य बहुत अधिक स्वतंत्रता ले रहा है , हमारे चैनल प्रजातान्त्रिक स्वतंत्रता का सदुपयोग कर रहे हैं वैसे ही बहुत कुछ ब्लॉग एखन के साथ भी है
    आपके ही ब्लॉग में मैंने एक साक्षात्कार में कहा था ---
    ब्लॉगिंग अभिव्यक्ति की एक नई तकनीक है, इसकी शक्ति एवं सीमाएं दोनों हैं। आवश्यक्ता है इनको जानने की। इसे हम तभी जानेंगें जब इसकी गहराई में जाएंगे। किनारे रहकर हम समुद्र की छोड़िए नाले तक की गइराई नहीं जान पाते हैं।
    जैसे पत्र पत्रिकाएं, रेडियो, दूरदर्शन आदि माध्यम हैं वेसे ही ब्लॉग भी वैचारिक अभिव्यक्ति का माध्यम है। माध्यम गंभीर या छिछला नहीं होता है आपके विचार हो सकते हैं। मैं उन लोगों में से नहीं हूं जो गंभीरता को ओढ़े स्वयं को महत्वपूर्ण दिखाने की नौटंकी करते हैं। एक व्यंग्यकार के रूप में तो मेरे अनेक सहयात्रियों ने इन तथाकथित साहित्य के ब्रहाम्णों की दृष्टि में स्वयं को शूद्र पाया है। हां ब्लॉग का व्यस्न की तरह प्रयोग नहीं करना चाहिए।
    जो ब्लॉगर बिना किसी चिंतन के अपनी बात को तुरत फुरत कहने के मोह में होते हैं, वो सतह पर ही रह जाते हैं। साहित्य एक गहरे चिंतन की मांग करता है और आप इसमें जितना डूबते हैं उतना ही इसकी गइराई तक जाते हैं, उसे समझते है। मैं यह नहीं मान सकता कि कागजों में लिखने वाले रचनाकार या ब्लॅाग में लिखने वाले ब्लॉगर की विचारधारा भिन्न होती है। यह नहीं हो सकता कि मैं कागज में लिखूं तो भिन्न विचारधारा रखूंगा, ब्लॉग में लिखूंगा तो भिन्न। मैं पुनः कहूंगा कि ये सब अभिव्यक्ति के विभिन्न माध्यम हैं।
    ब्लॉगिंग को दैनिक अखबारों में प्रकाशित हो रहे स्तंभ या फिर हमारे न्यूज चैनल की तरह का न बनाएं।समय है और उस समय या स्थान में कुछ भी कहना आपकी मजबूरी है अतः आप कुछ भी, बिना चिंतन के सतही कहे जा रहे हैं। ब्लॉगिंग की दुनिया एक मायानगरी है जो आपका महत्वपूर्ण समय नष्ट करने की ताकत रखती है। अतः ब्लॉगिंग को अपनी विवशता न बनाएं अपितु अपनी चिंतनशील वैचारिक अभिव्यक्ति की तीव्रता के लिए ब्लॉगिंग को माध्यम बनाएं। इस मायानगरी में खो न जाएं अपितु यदि इसका कोई तिलिस्म है तो उसे तोड़ें।

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  10. ब्लोगिंग सिर्फ़ अभिव्यक्ति का माध्यम है इसे क्यों घसीटा जा रहा है आलोचनाओ मे……………पता नही लोग कहीं भी किसी को चैन से जीता क्यों नही देखने देना चाहते ……………यहाँ सब अपने दिल की बातें लिखते हैं किसने कहा है कि उसे साहित्यकार बनना है और यदि बनना है किसी को तो बाहर के रास्ते बहुत पडे हैं वो वहाँ जा सकता है मगर कम से कम यहाँ का माहौल तो खराब ना करे……………हाँ इतना कहा जा सकता है कि जो भी प्रस्तुत किया जाये शालीन भाषा मे हो , किसी की आपसी दुश्मनी पर आधारित ना हो ……………बाकि ब्लोगिंग के माध्यम से काफ़ी बेहतरीन रचनाकार मिल रहे हैं जिन्हे सभी सराहते हैं तो इसका मतलब ये नही कि हर कोई उनके जैसा ही लिखे तो तभी उसकी पहचान बनेगी अन्यथा नही…………ये सिर्फ़ एक सरल माध्यम है अभिव्यक्ति का , उन लोगो के लिये जो कभी ज़िन्दगी से शिकायत नही कर पाये और आज उन्हे ये मंच मिला है तो दो पल जी लेते है वो सब अपने ख्वाबों को…………तो बताइये ज़रा इसमे क्या बुराई है। क्या कोई इंसान यहाँ भी जीने का हकदार नही है? यहाँ भी साहित्य के नाम पर उसकी भावनाओं की कुर्बानी ली जायेगी?
    सबसे यही प्रार्थना है---------

    जीयो और जीने दो
    यहाँ का माहौल मत खराब करो
    ब्लोगिंग को इस सब मे
    मत घसीटो जिससे
    आम इंसान
    एक बार फिर
    वंचित हो जाये
    जो खुलकर
    अपने मन की
    कह लेता था
    अब ना कह पाये
    बस ब्लोगिंग को
    ब्लोगिंग ही रहने दो
    इसे कोई नया नाम ना दो

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  11. ब्लोगिंग पर सभी मूर्धन्य साथियों के विचार पढ़े और लगा कि इसकी आलोचना करने में वे कहीं भी पीछे नहीं रहे हैं. मेरे विचार से ब्लोगिंग कहीं भी कोई साहित्य नहीं रच रहा है, हम नेट की सुविधा से कागज पर लिख कर बाहर जाकर पोस्ट करने के स्थान पर अपने घर में ही लिखा और पोस्ट दिया. बाहर प्रकाशन की अपनी सीमायें हैं और ये जरूरी नहीं की chhapane वाले हमारे विचारों से सहमत ही हो. कोई मुद्दा हम लेते हैं और राजनीति के प्रतिनिधि उसको बाहर आने ही कब देते हैं ? यहाँ तक कि अख़बार कुछ मुद्दों पर शिकायत तक दर्ज नहीं करता है. फिर अपनी अभिव्यक्ति को ब्लॉग पर डाल कर खुद तो संतुष्ट हो लेते हैं. लेकिन इसमें भी रचनाधर्मिता का पालन स्वतः करना चाहिए न कि दूसरों को गालियाँ और अपशब्द कहें. फिर वही बात आती है कि मेरा ब्लॉग मैं कुछ भी लिखूं. आप न पढ़ें. इसको ही कूड़ा कहा जा सकता है. वो कविता, कहानी, अनुभव या तथ्य जो कहीं गहरे उतर जाय भले किसी की नजर में साहित्य का हिस्सा न हो लेकिन वो उस ब्लॉग को सार्थक बना रही है. ब्लॉग की सार्थकता उस पर आई टिप्पणी या वाह वाह से नहीं बल्कि उससे अगर एक ह्रदय को स्पंदित करने की अभिव्यक्ति है तो वह सार्थक रचना है.
    ब्लोगिंग अभी शैशव काल में है और नए ब्लोगर खुद ही कुछ दिन बाद समझ जाते हैं की हमें किस दिशा में - क्या और कैसा लिखना चाहिए? जो वरिष्ठ हैं और साहित्यकार इससे जुड़े हैं वे नवोदित ब्लोगर का मार्गदर्शन कर सकते हैं . रवींद्र जी ने जो प्रस्तुत किया वह आलोचना के काबिल तो नहीं है लेकिन आलोचना न हो तो प्रस्तुति कि सार्थकता कैसे पता चलेगी? अभी कुछ गुजरा नहीं है , और भी विद्जन इसको परमार्जित कर नए रूप में प्रस्तुत करें कि ब्लोगिंग इतिहास को कैसे और किस सीमा तक न्यायपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया जाय.

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  12. .

    भाग एक -

    रविन्द्र जी ,

    सबसे पहले तो आपको बधाई की आपने निडर होकर अमरेन्द्र जैसे व्यक्तित्व को दुनिया के सामने रखा। वरना ज्यादातर लोग तो इन्हें लम्बी टीपों के चक्कर में अपने गुट में मिलाकर रखना पसंद करते हैं।

    आपकी पिछली पोस्ट पर , मनोज जी की समीक्षा और पूर्व में कई ब्लॉग-पोस्टों पर मैंने इनके तीखे तेवर पढ़े हैं। विवाद करना इनका प्रिय शगल है। ये अपने ब्लॉग पर कुछ रचनात्मक करने से असंतुष्ट हैं तो दूसरों के ब्लॉग पर उपद्र मचाकर सस्ती लोकप्रियता का शोर्ट-कट अपना रखा है।

    इनकी टिप्पणियां मुझे चिदंबरम के वक्तव्य - " भगवा आतंक " , या फिर दिग्विजय की घटिया बयानबाजी या फिर मंदिरा बेदी और राखी सावंत के बचकाने वक्तव्यों जैसी लगती है , जो बस चर्चा में बने रहना चाहते हैं, उसके लिए चाहे जो मार्ग अपनाना पड़े।

    इनके सिवा बहुत से लेखक एवं लेखिका है जो हिंदी भाषा और विभिन्न विषयों पर अच्छी पकड़ रखते हैं। लेकिन इतना अहंकार मैंने किसी में नहीं देखा की कोई , किसी को कहे अत्यल्प के सिवा सभी का लेखन स्तरहीन है। दूसरों स्तरहीन कहना इनके frustration को जग-जाहिर कर रहा है।

    यदि इन्हें लगता है की केवल इनका ही लेखन केवल स्तरीय है तो इनके अन्दर विनम्रता जैसा सदगुण भी होना चाहिए । वो कहते हैं न - " फल आने पर डालियाँ विनम्रता से झुक जाति हैं " लेकिन नहीं इनके जैसे हिंदी भाषा के शोधार्थी तो सभी को अपने से तुक्ष कहने में ही अपना बड़प्पन समझते हैं।

    खुद को बड़ा साबित करना है तो दूसरों को कमतर बताकर नहीं करना चाहिए अपितु खुद को इतना बुलंद कर लीजिये दूर दूर आपके नाम के डंके बजें।

    .

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  13. .

    @--किसी को सहज गद्य लिखना आता है वह कविता में शौकियाते हुए कृष्ण द्वैपायन की होड़ में महा-व्यास बनने लगेगा ! कोई 'विकीपीडिया' से अनुवाद छाप-छाप कर 'सेल्फ क्लेम्ड' फर्जी 'डॉक्टर' ( ज्ञाता अर्थ में ) बना हुआ है , बिना स्रोत को बताये हुए । और सबसे बड़ी बिडम्बना है कि अब कोई 'पाठक' नहीं रहा , सब 'लेखक' हो गए हैं .....

    उपरोक्त टिपण्णी भी अमरेन्द्र की है मनोज जी की १६ दिसंबर की समीक्षा पर। इन्हें लगता है की यदि कोई डाक्टर हिंदी में पाठकों की सुविधा के लिए लिखता है तो वो विकिपीडिया से अनुवाद करता है , और उस पर ये भी आरोप की लोग सवा-घोषित फर्जी डाक्टर हैं।

    धन्य हैं इनकी ईर्ष्या युक्त घटिया एवं नकारात्मक सोच। ऐसे लोग कभी भी किसी को सराहना नहीं जानते अपितु ईर्ष्या से स्वयं को भस्म करते रहते हैं। मैं तो हिंदी ब्लॉग में जितने डाक्टर्स को जानती हूँ [ डॉ महेश , डॉ दाराल, डॉ संजय दानी , डॉ अनुराग श्रीवास्तव, डॉ अमर, डॉ कौशलेन्द्र , डॉ मोनिका, डॉ नूतन निति ] , मुझे तो कोई फर्जी नहीं लगता और सभी के लेख मुझे अत्यंत सराहनीय लगते हैं।

    हाँ अगर डॉ दिव्या श्रीवास्तव फर्जी डाक्टर लगती है तो नाम लेकर निंदा करो । कम से कम असली डाक्टरों का तो अपमान मत करो। गेहूं के साथ घुन भी पिस रहा है बेचारा।

    ...........................................................

    .

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  14. .

    Part three -

    अफ़सोस है अमरेन्द्र की पहुँच सिर्फ स्तर-विहीन लेखकों तक ही है। चलिए इनकी सुविधा के लिए कुछ उत्कृष्ट ब्लोग्स का उल्लेख कर रही । आखिर इनकी समस्या का हल भी तो होना चाहिए।


    लेडीज़ फर्स्ट --

    * निर्मला कपिला जी
    * शोभना चौरे जी
    * संगीता पुरी जी
    * संगीता स्वरुप जी,
    * वंदना जी,
    * शिखा जी,
    * रचना जी
    * साधना वैद्य जी ,
    * आशा जी,
    * अंशुमाला जी,
    * रंजना जी
    * रश्मिप्रभा जी
    * सदा जी
    * डॉ नूतन निति
    * अजित गुप्ता जी
    * इस्मत जैदी जी
    * फिरदौस जी
    * वाणी गीत जी ,
    * रश्मि रविजा जी
    * गिरिजा कुलश्रेष्ठ जी
    * प्रतिभा जी

    .

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  15. .

    part four-

    पुरुष ब्लोगर्स -

    * मनोज जी
    * डॉ महेश सिन्हा
    * हरीश गुप्त जी ,
    * प्रकाश गोविन्द जी,
    * अरविन्द मिश्र जी
    * कुमार राधारमण जी,
    * अभियान भारतीय
    * अभिषेक जी,
    * रविन्द्र जी,
    * करण समस्तीपुरी जी
    * डॉ दाराल
    * डॉ अनुराग
    * सुरेश चिपलूनकर जी
    * अनूप शुक्ल जी
    * समीर लाल जी
    * गिरिजेश जी ,
    * राज भाटिया जी
    * शिवम् मिश्र जी
    * सुज्ञ जी
    * अमित शर्मा जी
    * प्रतुल जी
    * आशीष जी
    * कौशलेन्द्र जी
    * कुंवर कुसुमेश जी
    * भूषण जी
    * महेंद्र मिश्र जी
    * महेंद्र वर्मा जी
    * भारतीय नागरिक
    * स्मार्ट इन्डियन
    * राम त्यागी जी
    * गिरीश पंकज जी
    * रूपनारायण शास्त्री मयंक जी
    * गौरव जी
    * डॉ अमर
    * रविन्द्र जी
    * रवि रतलामी जी
    * प्रवीण त्रिवेदी जी
    * प्रवीण पाण्डेय जी
    * प्रवीण शाह जी
    * अजय झा जी
    * अविनाश जी
    * डॉ दिविक
    * घनश्याम जी
    * ललित शर्मा जी

    .

    जवाब देंहटाएं
  16. .

    part five-

    एवं अन्य बहुत से उत्कृष्ट लेखक हैं जिन्हें पढना चाहिए अमरेन्द्र जी को ताकि इनकी शिकायत दूर हो। ये लोग लिखते भी उत्कृष्ट हैं और टिपण्णी भी उत्कृष्ट करते हैं । चाटुकारिता से इनका कोसों दूर का भी नाता नहीं।

    इसलिए अमरेन्द्र जी को चाहिए की " सब धान २२ पसेरी" न करें। खुद की दृष्टि इतनी उज्जवल करें की उनकी अन्तरमा तृप्त रहे। बकिया एक्का-दुक्का नवोदित लेखकों को प्रोत्साहित करें तो ही हिंदी भाषा की सच्ची सेवा होगी।

    मैं तो प्रशंसा करती हूँ उन सभी छोटे-बड़े-नवोदित लेखक और लेखिकाओं की जो हिंदी भाषा के प्रति समर्पित हैं और यथा-शक्ति राष्ट्र-भाषा हिंदी की सेवा कर रहे हैं। सेवा-भाव ज्यादा बड़ा है , धनिकों का चढ़ावा नहीं।

    .

    जवाब देंहटाएं
  17. .

    part seven -

    रविन्द्र जी ,
    एक बार पुनः आपका आभार एवं बधाई इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा के लिए । जिस पर अधिकतर लोग कतरा कर निकल जाना पसंद करेंगे।

    लेकिन अफ़सोस की इस चर्चा पर भी चाटुकारों की भीड़ है , जो अमरेन्द्र जी को चाटुकार नहीं लगेंगे , बकिया सब तो हलाल होने के लिए तैयार रहे।

    " टपक गिरधारी " जी ने जो टिपण्णी की है वो प्रशंसनीय है। उनकी टिपण्णी तो बेहतरीन " प्रत्यक्ष प्रमाण" है । जो कोई नहीं सामने ला सका वो टपक गिरधारी जी ने ला दिया।

    ----

    खीर सर ते काटिए , मलियद नमक लगाए ,
    रहिमन कडवे मुखन की , होती यही सजाए।

    आभार ,
    दिव्या।

    .

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  18. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  19. हिंदी ब्लॉग जगत का क्या हाल है यह यहाँ कि टिप्पणियों से पढ़ कर जाना जा सकता है ...
    शुभकामनायें रविन्द्र प्रभात जी !

    जवाब देंहटाएं
  20. रविन्‍द्र जी, बहुत ही अच्‍छी रही आपकी यह चर्चा ...दिव्‍या जी आपने तो हमारी तरफ से भी सब कुछ कह दिया ....आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  21. एक आत्‍ममुग्‍ध व्‍यक्ति की नकारात्‍मक टिप्‍पणी के विरोध में जितना कुछ कहा जाना चाहिए, मेरी समझ से वह सब कहा जा चुका है।

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  22. pravisti evam pratikriya padhne ke
    uprant yahi kah sakte hain ke kum-se-kum blogjagat ko 2/4% stariya blogger
    ke karan bakiya ko dhakiyaya nahi
    jai.....

    yse vyaktigat anubhav ko samooh se
    jorna vidwan vyakti ke liye nakaratmak hote hain.............

    note: hindi blog ke kinhi 10 blog(vyaktigat/samoohik) me parikalpana ne apne seva-bhaw se
    apna sthan pa liya hai........

    mere samajh se sabse adhik blog ke
    link is blog se mil sakte hain ...
    uchit sthan ke saath aur kya chahiye kisi lekhak athva pathak ko

    sabhi ko pranam

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  23. हर किसी का अपना अपना पक्ष है ... क्यों नहीं अपना अपना काम किये जाएँ ... सब किसी न किसी रूप में लिखना चाहते हैं ... साहित्य से जुड़े रहना चाहते हैं तो फिर तकलीफ किसी को भी क्यों है ....

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  24. अभी हम सब को सब्र के पाठ पढ़ने की जरूरत है। बिना सब्र के कुछ सकारात्‍मक हासिल नहीं होने वाला है। सभी अपने धैर्य को बढ़ायें और दूसरों को सुनने और उस पर सही चिंतन करके ही निष्‍कर्षों तक पहुंचे, तो बेहतर होगा।
    गिरीश बिल्‍लौरे और अविनाश वाचस्‍पति की वीडियो बातचीत

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  25. सच है..हिंदी-ब्लॉगिंग की गंभीरता और परिपक्वता के वर्तमान स्तर का वास्तविक उदाहरण प्रस्तुत पोस्ट की टिप्पणियों से नजर आता है..!

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  26. रवीन्द्रजी,
    यह जान कर तकलीफ़ हुई कि किसी विद्वान आलोचक ने ब्लॉग जगत के अधिकांश लेखन को स्तरहीन और निरर्थक बताया ही नहीं बल्कि जताया भी है . हो सकता है, उन्हें ऐसा ही लगा हो..........मुझे तो नहीं लगता. भले ही ब्लॉग जगत का समूचा लेखन साहित्यिक कसौटी पर पूर्णतः खरा न उतरता हो, परन्तु केवल साहित्य ही जीवन नहीं है . जीवन के बहुत से आयाम हैं और ब्लॉग जगत उन तमाम आयामों से जुडा हुआ है.

    नवोदित और अपेक्षाकृत कम चर्चित लेखकों के लिए तो यह एक वरदान स्वरूप है कि उनकी रचना प्रकाशित भी हो जाती है और तुरन्त टिप्पणियां भी मिल जाती हैं जबकि प्रकाशन माध्यमों में तो वही गिनती के लेखक ही कुंडली मार कर बैठे रहते हैं जिनकी सम्पादकीय विभाग में गहरी पैठ होती है .

    मैं स्वयं अपनी बात करूँ तो बहुत सारे ब्लॉग मैंने बनाए हैं जिनमे से लगभग 10 लगातार अप डेट भी होते हैं और मंचीय व्यस्तताओं के बावजूद यदा कदा अपनी बेहतरीन कवितायें और अन्य पाठ्य सामग्री मैं पोस्ट करता रहता हूँ . ये अलग बात है कि जब तब विवाद में भी हाथ डालता रहता हूँ परन्तु हर विवाद के पीछे कुछ सकारात्मक सोच होती है . यह नहीं भूलना चाहिए .

    कितने ही उम्दा रचनाकारों की श्रेष्ठ रचनाएं इस वर्ष मैंने ब्लॉग पर ही पढ़ी हैं तो ये कैसे मान लिया जाये कि ब्लॉग पर पोस्ट हो रही सामग्री स्तरहीन है .

    मैं पूर्ण विश्वास के साथ ज़ोर दे कर कहना चाहता हूँ कि हिंदी ब्लॉग अपनी सही राह पर है और लगातार प्रगति पथ पर है . इसके वर्तमान को देख कर इसके भविष्य की विराट उपलब्धियों का अनुमान लगाया जा सकता है .

    शेष विस्तार से फिर कभी लिखूंगा ...अभी कवि-सम्मेलन का सीज़न है और मुझे प्रस्थान करना है .

    जय हिन्दी !

    जय हिंदी ब्लोगिंग !

    जय हिन्द !

    -अलबेला खत्री

    जवाब देंहटाएं
  27. रवीन्द्रजी,
    यह जान कर तकलीफ़ हुई कि किसी विद्वान आलोचक ने ब्लॉग जगत के अधिकांश लेखन को स्तरहीन और निरर्थक बताया ही नहीं बल्कि जताया भी है . हो सकता है, उन्हें ऐसा ही लगा हो..........मुझे तो नहीं लगता. भले ही ब्लॉग जगत का समूचा लेखन साहित्यिक कसौटी पर पूर्णतः खरा न उतरता हो, परन्तु केवल साहित्य ही जीवन नहीं है . जीवन के बहुत से आयाम हैं और ब्लॉग जगत उन तमाम आयामों से जुडा हुआ है.

    नवोदित और अपेक्षाकृत कम चर्चित लेखकों के लिए तो यह एक वरदान स्वरूप है कि उनकी रचना प्रकाशित भी हो जाती है और तुरन्त टिप्पणियां भी मिल जाती हैं जबकि प्रकाशन माध्यमों में तो वही गिनती के लेखक ही कुंडली मार कर बैठे रहते हैं जिनकी सम्पादकीय विभाग में गहरी पैठ होती है .

    मैं स्वयं अपनी बात करूँ तो बहुत सारे ब्लॉग मैंने बनाए हैं जिनमे से लगभग 10 लगातार अप डेट भी होते हैं और मंचीय व्यस्तताओं के बावजूद यदा कदा अपनी बेहतरीन कवितायें और अन्य पाठ्य सामग्री मैं पोस्ट करता रहता हूँ . ये अलग बात है कि जब तब विवाद में भी हाथ डालता रहता हूँ परन्तु हर विवाद के पीछे कुछ सकारात्मक सोच होती है . यह नहीं भूलना चाहिए .

    कितने ही उम्दा रचनाकारों की श्रेष्ठ रचनाएं इस वर्ष मैंने ब्लॉग पर ही पढ़ी हैं तो ये कैसे मान लिया जाये कि ब्लॉग पर पोस्ट हो रही सामग्री स्तरहीन है .

    मैं पूर्ण विश्वास के साथ ज़ोर दे कर कहना चाहता हूँ कि हिंदी ब्लॉग अपनी सही राह पर है और लगातार प्रगति पथ पर है . इसके वर्तमान को देख कर इसके भविष्य की विराट उपलब्धियों का अनुमान लगाया जा सकता है .

    शेष विस्तार से फिर कभी लिखूंगा ...अभी कवि-सम्मेलन का सीज़न है और मुझे प्रस्थान करना है .

    जय हिन्दी !

    जय हिंदी ब्लोगिंग !

    जय हिन्द !

    -अलबेला खत्री

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  28. रवीन्द्रजी,
    यह जान कर तकलीफ़ हुई कि किसी विद्वान आलोचक ने ब्लॉग जगत के अधिकांश लेखन को स्तरहीन और निरर्थक बताया ही नहीं बल्कि जताया भी है . हो सकता है, उन्हें ऐसा ही लगा हो..........मुझे तो नहीं लगता. भले ही ब्लॉग जगत का समूचा लेखन साहित्यिक कसौटी पर पूर्णतः खरा न उतरता हो, परन्तु केवल साहित्य ही जीवन नहीं है . जीवन के बहुत से आयाम हैं और ब्लॉग जगत उन तमाम आयामों से जुडा हुआ है.

    नवोदित और अपेक्षाकृत कम चर्चित लेखकों के लिए तो यह एक वरदान स्वरूप है कि उनकी रचना प्रकाशित भी हो जाती है और तुरन्त टिप्पणियां भी मिल जाती हैं जबकि प्रकाशन माध्यमों में तो वही गिनती के लेखक ही कुंडली मार कर बैठे रहते हैं जिनकी सम्पादकीय विभाग में गहरी पैठ होती है .

    मैं स्वयं अपनी बात करूँ तो बहुत सारे ब्लॉग मैंने बनाए हैं जिनमे से लगभग 10 लगातार अप डेट भी होते हैं और मंचीय व्यस्तताओं के बावजूद यदा कदा अपनी बेहतरीन कवितायें और अन्य पाठ्य सामग्री मैं पोस्ट करता रहता हूँ . ये अलग बात है कि जब तब विवाद में भी हाथ डालता रहता हूँ परन्तु हर विवाद के पीछे कुछ सकारात्मक सोच होती है . यह नहीं भूलना चाहिए .

    कितने ही उम्दा रचनाकारों की श्रेष्ठ रचनाएं इस वर्ष मैंने ब्लॉग पर ही पढ़ी हैं तो ये कैसे मान लिया जाये कि ब्लॉग पर पोस्ट हो रही सामग्री स्तरहीन है .

    मैं पूर्ण विश्वास के साथ ज़ोर दे कर कहना चाहता हूँ कि हिंदी ब्लॉग अपनी सही राह पर है और लगातार प्रगति पथ पर है . इसके वर्तमान को देख कर इसके भविष्य की विराट उपलब्धियों का अनुमान लगाया जा सकता है .

    शेष विस्तार से फिर कभी लिखूंगा ...अभी कवि-सम्मेलन का सीज़न है और मुझे प्रस्थान करना है .

    जय हिन्दी !

    जय हिंदी ब्लोगिंग !

    जय हिन्द !

    -अलबेला खत्री

    जवाब देंहटाएं
  29. रवीन्द्र जी ,निश्चय ही आपने जील का धन्यवाद किया होगा कि उन्होंने आपके समीक्षा कर्म में उल्लेखनीय सहयोग किया है ,महत्वपूर्ण संदर्भ प्रस्तुत कर ...आज ही देखा !

    जवाब देंहटाएं
  30. अरविन्द जी,
    इसमें कोई संदेह नहीं कि जील ने मेरा मार्गदर्शन किया है और तमाम सकारात्मक पहलूँ पर प्रकाश डालकर वास्तविक वस्तुस्थिति से अवगत कराया है , इसके लिए मैं कृतज्ञ हूँ उनका .....आपने भी मुझे जो साहस और धैर्य का पाठ पढ़ाया वह भी कम महत्वपूर्ण नहीं है । साथ ही उपरोक्त विद्वजनों के सुझाव तथा सकारात्मक वक्तव्य मेरे समीक्षा कर्म के आवश्यक पहलू है , एकबार पुन: आप सभी का आभार !

    जवाब देंहटाएं
  31. आप महारथियों के बीच लिखने का साहस कर रही हूँ , कुछ अनुचित कह जाऊँ ओ क्षमा प्रार्थी हूँ ।
    नये ब्लोगर्स लिखने की कोशिश करते है , कभी अच्छा लिखते है और कभी बहुत अच्छा नही भी होता ।
    ब्लाग जगत की गुणवत्ता बनाने के लिये आप लोगो (महान ब्लोगर्स , जिन्हे हिन्दी साहित्य का गहरा ज्ञान हो ) को यह दायित्व लेना चाहिये कि जहाँ पर लेखक का विधा ज्ञान कम जान पडे , टिप्पणी के माध्यम से सुधार भी बताना चाहिये ।
    हाँ यहाँ मै एक ब्लोगर का नाम लेना चाहूँगी "अमरेन्द्र त्रिपाठी" जिन्होने मुझे एक दो बर सुधार बताये
    अनुरोध करती हूँ कि यदि हमे कोई किसी सुधार का सुझाव देता है तो उसे विस्तृत हदय से लेना चाहिये ।
    क्योकि किसी भी विधा के साथ कुछ अनुचित करना शायद हिन्दी विधा का भी अपमान होगा ।
    और यह ब्लागिग का उद्देश्य कभी भी नही हो सकता

    जवाब देंहटाएं
  32. क्षमा करे पर मैं किसी व्यक्ति विशेष पर पोस्ट लिखने का विरोध करता हू फिर चाहे आप की बात सही ही क्यों न हो . अगर कोई मुद्दा है तो किसी को बिना घसीटे पोस्ट लिखी जा सकती है . अफ़सोस है की ब्लाग जगत में आम बात हो गयी है .
    मैं किसी का भी पक्ष नही ले रहा बस अपनी मन की बात रख रहा हू .

    जवाब देंहटाएं
  33. उसी के सुझाव सार्थक माने जाते हैं जिनके सुझाव में तर्क-युक्तियाँ शामिल हो, व्यक्तिगत आक्षेप और आत्ममुग्धता सुझाव की श्रेणी में नहीं आते......वे निंदा की श्रेणी में आते हैं ! सुझाव में विनम्रता दिखनी चाहिए न की उग्रता !

    जवाब देंहटाएं
  34. मिलते हैं सब गले
    छोड़ कर सारे गिले
    सब गीला सा है
    ठंडक लग रही है
    आओ कुछ देर
    धूपिया लें

    जवाब देंहटाएं
  35. ये तो वैसa ही बयान है / जो बेनज़ीर पुत्र ने भारत के लिए दिया ----------- अस्तु / निंदक नियरे राखिये :)

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