.......गतांक से आगे बढ़ते हुए .....
आईये अब वर्ष की कुछ यादगार पोस्ट की चर्चा करते हैं , क्रमानुसार एक नज़र मुद्दों को उठाने वाले प्रमुख ब्लॉग पोस्ट की ओर-
ब्रजेश झा के ब्लॉग खंबा में ०१ जनबरी को प्रकाशित पोस्ट "आखिर भाजपा में क्यों जाऊं ? गोविन्दाचार्य " , जंगल कथा पर ०२ जनवरी को प्रकाशित ऑनरेरी टाईगर का निधन , नयी रोशनी पर ०२ जनवरी को प्रकाशित सुधा सिंह का आलेख स्त्री आत्मकथा में इतना पुरुष क्यों ? ,तीसरा रास्ता पर 02 जनवरी को एक कंबल के लिए ह्त्या, अपराधी कौन ? , इंडिया वाटर पोर्टल पर पानी जहां जीवन नहीं मौत देता है , नुक्कड़ पर ०४ जनवरी को प्रतिभा कटियार का आलेख नीत्शे,देवता और स्त्रियाँ ,
हाशिया पर ०४ जनवरी को प्रकाशित प्रमोद भार्गव का आलेख कारपोरेट कल्चर से समृद्धि लाने का प्रयास , ०६ जनवरी को अनकही पर रजनीश के झा का आलेख बिहार विकास का सच (जी डी डी पी ) , ०७ जनवरी को उड़न तश्तरी पर सर मेरा झुक ही जाता है, ०७ जनवरी को चर्चा पान की दूकान पर में बात महिमावान उंगली की , ०७ जनवरी को नारी पर दोषी कौन ?,०८ जन
वरी को निरंतर पर महेंद्र मिश्र का आलेख बाकी कुछ बचा तो मंहगाई और सरकार मार गयी , ०८ जनवरी को भारतीय पक्ष पर कृष्ण कुमार का आलेख जहर की खेती ,शोचालय पर चांदी के चमचे से चांदी चटाई ,हिमांशु शेखर का आलेख कब रुकेगा छात्रों का पलायन ,१० जनवरी को आम्रपाली पर हम कहाँ जा रहे हैं ? , १० जनवरी को उद्भावना पर थुरुर को नहीं शऊर , हाहाकार पर अनंत विजय का आलेख गरीबों की भी सुनो , अनाम दास का चिट्ठा पर १७ जनवरी को पोलिश जैसी स्याह किस्मत , टूटी हुई बिखरी हुई पर मेरी गुर्मा यात्रा ,१२ जनवरी को ज़िन्द्ज्गी के रंग पर पवार की धोखेवाज़ी से चीनी मीलों को मोटी कमाई, अज़दक पर प्रमोद सिंह का आलेख बिखरे हुए जैसे बिखरी बोली ,
विनय पत्रिका पर बोधिसत्व का आलेख अपने अश्क जी याद है आपको , पहलू पर २६ जनवरी को ठण्ड काफी है मियाँ बाहर निकालो तो कुछ पहन लिया करो , १२ जनवरी को तीसरी आंख पर अधिक पूँजी मनुष्य की सामाजिकता को नष्ट कर देती है , १३ जनवरी को उदय प्रकाश पर कला कैलेण्डर की चीज नहीं है , भंगार पर ९१ कोजी होम , कल की दुनिया पर बल्ब से भी अधिक चमकीली, धुप जैसी सफ़ेद रोशनी देने वाले कागज़ जहां चाहो चिपका लो , १० जनवरी को दोस्त पर शिरीष खरे का आलेख लड़कियां कहाँ गायब हो रही हैं , १२ जनवरी को हमारा खत्री समाज पर अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है 'कडा' शहर , १८ जनवरी को संजय व्यास पर बस की लय को पकड़ते हुए , नुक्कड़ पर कितनी गुलामी और कबतक , २१ जनवरी को गत्यात्मक चिंतन पर चहरे, शरीर और कपड़ों की साफ़-सफाई के लिए कितनी पद्धतियाँ है ?, ज़िन्दगी की पाठशाला पर किसी भी चर्चा को बहस बनने से कैसे रोकें ?, १८ जनवरी को क्वचिदन्यतोअपि..........! पर अपनी जड़ों को जानने की छटपटाहट आखिर किसे नहीं होती ? ,२१ जनवरी को प्राईमरी का मास्टर पर प्रवीण त्रिवेदी का आलेख यही कारण है कि बच्चे विद्यालय से ऐसे निकल भागते हैं जैसे जेल से छूटे हुए कैदी , २६ जनवरी को नुक्कड़ पर प्रकाशित अमिताभ श्रीवास्तव का आलेख मुश्किल की फ़िक्र और ३० जनवरी को मानसिक हलचल पर रीडर्स डाईजेस्ट के बहाने बातचीत ........
हाशिया पर ०४ जनवरी को प्रकाशित प्रमोद भार्गव का आलेख कारपोरेट कल्चर से समृद्धि लाने का प्रयास , ०६ जनवरी को अनकही पर रजनीश के झा का आलेख बिहार विकास का सच (जी डी डी पी ) , ०७ जनवरी को उड़न तश्तरी पर सर मेरा झुक ही जाता है, ०७ जनवरी को चर्चा पान की दूकान पर में बात महिमावान उंगली की , ०७ जनवरी को नारी पर दोषी कौन ?,०८ जन
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जनवरी महीने के प्रमुख पोस्ट के बाद अब उन्मुख होते हैं फरवरी माह की ओर , प्रतिभा कुशवाहा की इस कविता के साथ
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ओ! मेरे संत बैलेंटाइन
आप ने ये कैसा प्रेम फैलाया
प्रेम के नाम पर कैसा प्रेम "भार" डाला
आप पहले बताएं
प्यार करते हुए आप ने कभी
बोला था अपने प्रिय पात्र से
कि .....
आई लव यू...
यह कविता १४ फरवरी २०१० को ठिकाना पर प्रकाशित हुई , शीर्षक था वो मेरे वेलेन्टाय़इन .... यह दिवस भी हमारे समाज के लिए एक मुद्दा है , नि:संदेह !०२ फरवरी को आओ चुगली लगाएं पर गंगा के लिए एक नयी पहल ,०३ फरवरी को भारतनामा पर रहमान के बहाने एक पोस्ट संगीत की सरहदें नहीं होती , ०३ फरवरी को यही है वह जगह पर प्रकाशित आलेख राष्ट्रमंडल खेल २०१०-आखिर किसके लिए? ,खेल की खबरें पर शाहरूख का शिव सेना को जवाब , रोजनामचा पर अमर कथा का अंत , ०४ फ़रवरी को अजित गुप्ता का कोना पर अमेरिकी-
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मार्च में हिंदी ब्लॉग पर महिला आरक्षण की काफी गूँज रही । समाजवादी जनपरिषद, ध्रितराष्ट्र ,नया ज़माना आदि ब्लॉग इस विषय को लेकर काफी गंभीर दिखे । ०५ मार्च को नारी में ना..री..नारी ,०९ मार्च को वर्त्तमान परिस्थितियों पर पियूष पाण्डेय का सारगर्भित व्यंग्य आया मुझे दीजिये भारत रत्न .......,०६ मार्च को प्रतिभा की दुनिया पर बेवजह का लिखना, १० मार्च को यथार्थ पर क़ानून को ठेंगा दिखाते ये कारनामे ,१० मार्च को अक्षरश: में महिला आरक्षण ,१२ मार्च को ललित डोट कौम पर महिला आरक्षण,१४ मार्च को साईं ब्लॉग पर अरविन्द मिश्र का आलेख बैंक के खाते-लौकड़ अब खुलेंगे घर-घर आकर , १५ मार्च को प्रवीण जाखड पर उपभो
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ये तो केवल तीन महीनों यानी वर्ष के प्रथम तिमाही की स्थिति है , क्या आपको नहीं लगता कि हिंदी ब्लॉग जिसतरह मुद्दों पर सार्थक बहस की गुंजाईश बनाता जा रहा है , यह समानांतर मीडिया का स्वरुप भी लेता जा रहा है ? आईये इस बारे में प्रमुख समीक्षक रवीन्द्र व्यास जी की राय से रूबरू होते हैं ।
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आज की चर्चा को विराम देने से पूर्व आईये चलते-चलते एक नए ब्लॉग पर नज़र डालते हैं ...
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.....जारी है विश्लेषण मिलते हैं एक विराम के बाद .......!
हमेशा की तरह परिकल्पना का यह अंक भी संग्रहनीय है .. आपका प्रयास सार्थक सिद्ध हो रहा है !!
जवाब देंहटाएंआपने ब्लॉग विश्लेषण में जो मेहनत की है उसकी कोई दूसरी मिसाल पूरे ब्लॉग जगत में नहीं मिलती. आपका ये प्रयास स्तुत्य है.
जवाब देंहटाएंनीरज
फिर एक बार श्रेष्ठ विश्लेषण, ढेर सारी बधाईयाँ और शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंsir u r great....ur dedication is truely adorable
जवाब देंहटाएंनीरज जी, संगीता जी, पाण्डेय जी, सुमन जी और विक्रम जी,
जवाब देंहटाएंआभार आप सभी का इस प्रोत्साहन हेतु ...!
single award ...ravindra ji ke naam
जवाब देंहटाएंबहुत श्रमसाध्य काम ...बहुत से महत्त्वपूर्ण लेख मिले ...आभार ..
जवाब देंहटाएंआपके अथाह परिश्रम को प्रणाम.
जवाब देंहटाएंvery nice
जवाब देंहटाएंसुन्दर,सारगर्भित और अद्वितीय
जवाब देंहटाएंसार्थक विश्लेषण, बधाईयाँ !
जवाब देंहटाएं... saarthak charchaa ... prasanshaneey lekhan !!!
जवाब देंहटाएंश्रीमान जी
जवाब देंहटाएंआपके लेखन को शत -शत नमन .....बहुत - बहुत आभार ...अगली कड़ियों का इन्तजार रहेगा .....हार्दिक शुभकामनायें
रविंद्र भाई ,
जवाब देंहटाएंएक परंपरा बन रही है और जब इस परंपरा को आगे बढाने वाले आएंगे और फ़िर जब इन विश्लेषणों के प्रति लोगों की स्पष्ट मानसिकता सामने आएगी तो यकीनन बाद के दिनों में यही कहा जाएगा कि वार्षिक विश्लेषण जैसे दुरूह कार्य की शुरूआत ..एक ब्लॉग दीवाने ने की थी ..आपके जज्बे को सलाम । जारी रखिए ..तब तक की जब तक विरोध का एक भी सवर उठता रहे ....शुभकामनाएं
देखिए न मेरी साईट
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंएक आत्मचेतना कलाकार
वाकई बहुत मेहनत भरा सरहनीय कार्य है ...
जवाब देंहटाएंआभार !
परिकल्पना का हर अंक बहुत ही सुंदर होता है. ये अंक भी काफी सुंदर लिंकों से भरा हुआ है. अच्छे विश्लेषण के साथ अच्छी पोस्ट........
जवाब देंहटाएंफर्स्ट टेक ऑफ ओवर सुनामी : एक सच्चे हीरो की कहानी
हर बार की तरह इस आठवें अंक में भी आपका किया गया प्रयास जो कि सराहनीय होने के साथ-साथ विचारणीय भी है ...ब्लाग जगत में सबको अपने साथ लेकर चलना ..यह सिर्फ आप ही कर सकते हैं ...आभार इस प्रस्तुति के लिये ।
जवाब देंहटाएंयह तो संदर्भ ग्रंथ होता जा रहा है।
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