मौत को अब तू मनाना सीख ले
बुलाए मौत तुरंत जाना सीख ले
मैं तैयार हूं
आ मौत, कर मेरा सामना
मैं नहीं करूंगा तुझे मना
डर कर नहीं लूंगा नाम तेरा
जानता हूं, मारना ही है काम तेरा
डराना भी तूने अब सीख लिया है
डरना नहीं है, जान ले, काम मेरा
आए लेने तो करियो मौत
पहले तू सलाम
कबूल करूंगा सलाम तेरा, नहीं डरूंगा
भय की भीत पर भी मैं नहीं चढूंगा
बड़ा बनूंगा, आदर करूंगा
अनुभव रचूंगा
सिर्फ बूढ़ा होकर
मैं नहीं मरूंगा
सबकी अच्छाइयों को दूंगा विस्तार
भलाई को सबकी हरदम तैयार
सद्विचारों के साथ शिखर की ओर बढूंगा
ज्ञान को दूंगा सदा सम्मान
अच्छाइयां सबकी अपनाऊंगा मैं
उम्र, रुतवे, जलवे से नहीं
किसी के कभी घबराऊंगा
कौन हूं, क्या होऊंगा और क्या बनूंगा
कर्मों से सदा मैं यह साबित करूंगा
बुराइयां, बदनियतियां सबकी जाहिर करूंगा
नहीं डरूंगा, नहीं डरूंगा, नहीं डरूंगा
न डराऊंगा किसी को कभी
मदद करूंगा, देने पड़े निज प्राण भी
प्राणी हित में सहर्ष अर्पण करूंगा।
कर लिया है तय
डर कर मैं एक बार भी नहीं मरूंगा
मारना चाहेगी तू मुझे मैं तब भी नहीं डरूंगा
मरूंगा, तैयार हूं मरने को
लेकिन जी हुजूरी
कभी नहीं करूंगा
न मौत की
न बीमारी की
न सुखों को काटने वाली आरी की।
दुखों से करूंगा प्यार मैं, यारी करूंगा
लेकिन उधार लेकर नहीं मरूंगा
नियम यह मैंने तय किए हैं
तुझे न हों पसंद
नहीं पड़ता अंतर
जीवंतता से जीने का
यही है मेरा कारगर मंतर।
आपने लिखा....
जवाब देंहटाएंहमने पढ़ा....
और लोग भी पढ़ें;
इसलिए शनिवार 11/05/2013 को
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
पर लिंक की जाएगी.
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है .
धन्यवाद!
यह कविता सकारात्मक संदेश दे रही है, बधाइयाँ ।
जवाब देंहटाएंसकारात्मक संदेश देती सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत ही उत्साहवर्धक, जीवन जीवंतता से जीने के लिये ही मिला है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
प्रेरित करने वाली कविता
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