कल दफ्तर से लौटा, निगाहें दौड़ाई ,हमारा तोताराम केवल एक ही रट लगा रहा था-"राम-नाम की लूट है लूट सकै सो लूट.........!" कुछ भी समझ न आया तो मैंने तोते को अपने पास बुलाया और फरमाया-मुंह लटकाता है , पंख फड फडाता है , कभी सिर को खुजलाता तो कभी उदास सा हो जाता है , तू केन्द्र सरकार का मंत्री तो नही ? फ़िर कौन सी समस्या है जो इसकदर रोता है ? तू तो महज एक तोता है , आख़िर क्यों तुम्हे कुछ - कुछ होता है?
तोताराम ने कहा , अब हमारे पास क्या रहा ? रोटी और पानी , उसमें भी घुसी- पडी है बेईमानी... लगातार मंहगी होती जा रही है कलमुंही ,नेताओं को न उबकाई आ रही है न हंसी ...सोंच रहे हैं चलो किसी भी तरह मंहगाई के चक्रव्यूह में भारतीय जनता तो फंसी ! अरे बईमान सत्यानाश हो तेरा , ख़ुद खाते हो अमेरिका का पेंडा और हमारे लिए रोटी भी नही बख्सते और जब कुछ कहो तो मुस्कुराकर कर कहते हो डोंट बर्री ! हो जायेंगे सस्ते ....! अरे क्या हो जायेंगे सस्ते फ़ूड या पोआईजन ? उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा- "दोनों "
हम जनता है, पर अधिकार नही है और उनका कहना है सरकार जिम्मेदार नही है ....रोटी चाहिए - न्यायालय जाओ ! पानी चाहिए- न्यायालय जाओ ! बिजली चाहिए- न्यायालय जाओ ! सड़क चाहिए- न्यायालय जाओ ! भाई , यदि इज्जत- आबरू और सुरक्षा चाहिए तो न्यायालय जाना ही पडेगा ....ज़रा सोचो जब जेड सुरक्षा में दिल्ली पुलिस का एसीपी राजवीर सुरक्षित नही रहा तो आम पबलिक की औकात क्या ? एक दरिया है यहाँ पर दूर तक फैला हुआ, आज अपने बाजुओं को देख, पतबारें न देख ! समझ गए या समझाऊँ या फ़िर इसी शेर को फ़िर से दुहाराऊँ ?
60साल में भारत का रोम-रोम क़र्ज़ में डूब गया है और हम गर्ब से कहते हैं कि भारतीय हैं.भारत का बच्चा-बच्चा जानता है कि भ्रष्टाचार की जड़ कहाँ है? उसे कौन सींच रहा है ? भाई यह तो हमारी मैना भी जानती है कि पानी हमेशा ऊपर से नीचे की ओर आता है . पिछले दिनों एक धर्मगुरू के धर्म कक्ष में अचानक फंस गयी थी हमारी मैना ......उसी धर्म कक्ष की दीबारों पर जहाँ ब्रह्मचारी के कड़े नियम अंकित किए गए थे , इत्तेफाक ही कहिये कि उसी फ्रेम के पीछे मेरी मैना गर्भवती हो गयी ...इस प्रसंग को खूब उछाला पत्रकारों ने , सिम्पैथी कम , उन्हें अपने टी आर पी बढ़ाने की चिंता ज्यादा थी ! चलिए इसपर एक चुराया हुआ शेर अर्ज़ कर रहा हूँ - दीवारों पर टंगे हुए हैं ब्रह्मचर्य के कड़े नियम, उसी फ्रेम के पीछे चिडिया गर्भवती हो जाती है ! भाई, कैसे श्रोता हो चुराकर कविता पढ़ने वाले कवियों की तरह बाह-बाह भी नही करते ? मैंने कहा तोता राम जी !चुराए हुए शेर पर वाह-वाह नही की जाती, इतना भी नही समझते ?
मैंने कहा - तोताराम जी, बस इतनी सी चिंता , वह भी उधार की ? तो क्या झूठे वायदों का करू और नकली प्यार की ? मेले में भटके होते तो कोई घर पहुंचा जाता, हम घर में भटके हैं कैसे ठौर-ठिकाने आयेंगे ? मैंने कहा तोताराम जी, दुनिया में और भी कई दु:ख है , तुम्हारे दु:ख के सिवा.....यह सुनकर हमारा तोता मुस्कुराया .....यह बात जिस दिन समझ जाओगे कि भूख के सिवा और कोई दु:ख नही होता , उसदिन फ़िर यह प्रश्न नही करोगे बरखुरदार ! मैंने कहा कि भाई, तोताराम जी , मैं समझा नही , तोताराम ने कहा भारत की जनता को यह सब समझने की जरूरत हीं क्या है? मैंने कहा क्यों? उसने कहा यूँ!" हम सब मर जायेंगे एक रोज, पेट को बजाते और भूख-भूख चिल्लाते, बस ठूठें रह जायेंगी, साँसों के पत्ते झर जायेंगे एक रोज !"
हमने कहा- यार तोताराम , आज के दौर में ये क्या भूख-भूख चिल्लाता है ?
तुझे कोई और मसला नज़र नही आता है?
उसने कहा कि तुम्हे एतराज न हो तो किसी कवि की एक और कविता सुनाऊं? हमने कहा हाँ सुनाओ! तोता राम यह कविता कहते-कहते चुप हो गया कि- " यों भूखा होना कोई बुरी बात नही है, दुनिया में सब भूखे होते हैं, कोई अधिकार और लिप्सा का, कोई प्रतिष्ठा का, कोई आदर्शों का और कोई धन का भूखा होता है, ऐसे लोग अहिंसक कहलाते हैं, मांस नही खाते, मुद्रा खाते हैं ......!!" मैंने कहा भाई, तोताराम जी ! ये तुम्हारी चोरी की शायरी सुनते-सुनते मैं बोर हो गया , ये प्रवचन तो सुबह-सुबह बाबा लोग भी देते हैं लंगोट लगाकर ! तुम तो ज्ञानी हो नेताओं की तरह , कुछ तो मार्गदर्शन करो भारत की प्रगति के बारे में....प्रगति शब्द सुनते ही हमारा तोता गुर्राया , अपनी आँखें फाड़-फाड़ कर दिखाया और चिल्लाया - खबरदार तुम आम नागरिकों को केवल प्रगति की हीं बातें दिखाई देती है, मुझसे क्यों पूछते हो , जाओ जाकर पूछो उन सफेदपोश डकैतों से , बताएँगे कहाँ-कहाँ प्रगति हो रही है देश में .....भाई, मेरी मानो तो छूत की बीमारी जैसी है प्रगति . शिक्षा में हुई तो रोजगार में भी होगी , रोजगार में हुई तो समृद्धि और जीवन-स्तर में लाजमी है , क्या पता कल नेता के चरित्र में हो ? वैसे देखा जाए तो भारत की राजनीति में एकाध प्रतिशत शरीफ बचे हैं , अर्थात अभी नेताओं के चरित्र में प्रगति की संभावनाएं शेष है ......चारा घोटाला के बाद चोरी के धंधे में भी नए आयाम जूडे हैं, पहले चोर अनपढ़ - गंवार होते थे, इसलिए डरते हुए चोरी करते थे , अब के चोर हाई टेक हो गए हैं . जितना बड़ा चोर उतनी ज्यादा प्रतिष्ठा . चारो तरफ़ प्रगति ही प्रगति है , तुम कैसे आदमी हो कि तुम्हे भारत की प्रगति दिखाई ही नही देती ? अरे भैया अब डाल पे उल्लू नही बैठते हैं, संसद और विधान सभाओं में बैठते हैं जहाँ घोटालों के आधार पर उनका मूल्यांकन होता है .....समझे या समझाऊँ या फ़िर कुछ और प्रगति की बातें बताऊँ ?
मैंने कहा भाई तोताराम जी, तुम्हारा जबाब नही , चोरी को भी प्रगति से जोड़ कर देखते हो ? तो फ़िर उन लड़किओं का क्या होगा , जिस पर लडके ने नज़र डाली और उसका दिल चोरी हो गया ? तोताराम झुन्झालाया ..पागल हैं सारे के सारे , ये दिल -विल चुराने का धंधा ओल्ड फैशन हो गया है । दिल चुराओ और फिजूल की परेशानी में पड़ जाओ. यह खरीद - फरोख्त के दायरे में भी नही आता , इससे कई गुना बेहतर तो लीवर और किडनी है। उनका बाज़ार में मोल भी है , चुराना है तो लीवर और किडनी चुराओ , दिल चुराने से क्या फैयदा ?
मैं आगे कुछ और पूछता इससे पहले , तोताराम ने मेरे हांथों पर चोंच मारा और बोला मेरे यारा ! नेताओं और धन पशुओं को अपना आदर्श बनाओगे प्रतिष्ठा को गले लगाओगे, खूब तरक्की करोगे खूब उन्नति पाओगे ......! मैंने कहा - जैसी आपकी मर्जी गुरुदेव ! चलिए अब रात्री विश्राम पर चलते हैं और जब कल सुबह नींद खुले तो बताईयेगा- यह प्रगति है या खुदगर्जी , इस सन्दर्भ में क्या है आपकी मर्जी ?
मगर जाते-जाते मेरे तोताराम जी का एक शेर सुनते जाइये....इसबार मेरा तोताराम नही कहेगा कि यह शेर मेरा है , दरअसल यह शेर दुष्यंत का है सिर्फ़ जुबान इनकी है - शेर मुलाहिजा फरमाएं हुजूर!
"सिर्फ़ हंगामा खडा करना मेरा मकसद नहीं!
मेरी कोशिश है ये सूरत बदलनी चाहिए !!"
मैंने कहा भाई, तोताराम जी , अब चलिए आप भी आराम कर लीजिये .....तोताराम ने कहा - हाँ चलिए हमारे देश में आराम के सिबा और बचा ही क्या है ! मैंने कहा - क्या मतलब ? उसने कहा- चलिए एक और शेर सुन लीजिये जनाब ! " किस-किस को गाईये, किस-किस को रोईये , आराम बड़ी चीज है मुंह ढक के सोईये !" मैंने कहा ये शेर तुम्हारा है ? उसने कहा- कल तक किसी और का था , अभी हमारा है और कल किसी और का .....हाई टेक सोसाईटी में सब जायज है ....!
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तोताराम वाला मोनोलॉग बढ़िया है।:)
जवाब देंहटाएंहमें यह भी लगता है कि वास्तव में तोता पाल लिया जाये तो अनेक कुण्ठाओं से मुक्ति मिल सकती है।
सामयिक प्रश्नों को बड़े ही मजेदार रुप से प्रस्तुत किया है… सच है जनाब कई ताले खोलने का प्रयास हुआ है…।
जवाब देंहटाएंआपने तो अपने व्यंग्य में पूरे भारत के दर्द को समेट लिया है , लेकिन यह दर्द ऐसा है जिसे केवल महसूस किया जा सकता है , आपने अपनी प्रस्तुति से मुझे महसूस करा ही दिया आख़िर .....मैं तो यही कहूंगा कि रविन्द्र बाबू , बढिया है !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति!!! मजा आ गया!!
जवाब देंहटाएंपढ़कर मज़ा आ गया!
जवाब देंहटाएंjis tarah aapne kuch kathin paristhitiyon ko tota-samvad ke madhyam se samne rakha hai usi tarah is shaili ko aage badhya jaa sakta hai , taaki kuch aur logon ki aankhen khul sake .
जवाब देंहटाएंbahut mast mast likha hai,enjoyed reading it.
जवाब देंहटाएंआपकी व्यंग्य शैली प्रभावी है। यह काफी चुटीली है और सीधे दिल पर असर करती है।
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