कल मेरे शहर में थे समीर भाई , जी हाँ वही समीर लाल जी जिनकी "उडन तश्तरी " के दीदार के लिए वेचैन रहते हैं हिन्दी के कतिपय ब्लोगर । ठीक दोपहर के बारह बजे जब ताण्डव कर रहा था ग्रीष्म , चंद लमहात समीर भाई के साथ गुजारते हुए अच्छा लगा । हुआ यों कि अचानक सुबह नौ बजे के आस-पास मेरे मोबाइल की घंटी बजी और मैं हतप्रभ रह गया यह जानकर कि समीर भाई मेरे शहर में? थोड़ी देर के लिए कानों को यकीन ही नही हुआ मगर अगले ही क्षण दिल ने महसूस किया कि यह समीर भाई की ही आवाज़ है । मैंने झटपट अपने एक कवि मित्र राहुल सक्सेना को फोन किया और उसे अपने साथ लेकर पहुंचा समीर भाई के पास । एक संक्षिप्त मुलाक़ात समीर भाई के साथ इतना ऊर्जादायक रहा कि उसे वयान करते हुए मुझे शब्द कम पड़ रहे हैं । बस इतना ही कह सकता हूँ कि इस संक्षिप्त मुलाक़ात की तपीश में फीकी पड़ गयी ग्रीष्म की तपीश । मुझे ग्रीष्म में बसंत का एहसास होने लगा , मगर अगले ही क्षण जब समीर भाई से अलग हुआ महसूस करने लगा ग्रीष्म की तपीश ।
मैं पहली बार कल मिला समीर भाई से , अब तक केवल ब्लॉग पर पोस्ट पढ़ते हुए ही उनके व्यक्तित्व को महसूस किया था पर साक्षात मिलाने का आनंद ही कुछ और था । कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनके विचार तो महान होते हैं, पर व्यक्तित्व महान नही होता , कुछ ऐसे लोग होते हैं जिनका व्यक्तित्व महान होता है पर विचार महान नही होते । मगर मैंने समीर भाई के व्यक्तित्व को भी उतना ही उत्कृष्ट महसूस किया जितना उनके विचारों को महसूस करता था । मैं इस मुलाक़ात को एक सुंदर सुयोग की संज्ञा देता हूँ ।
अचानक बसंत ऋतु की विदाई के पश्चात् जब आगमन होता है ग्रीष्म का , तो मन किसी अनचाहे दर्द को महसूस करने लगता है अनायास हीं । मगर हवाओं का चुप होना वेहद सालता है जब तमाम दुश्प्रवृतियों को समेटे ताण्डव करने लगता है ग्रीष्म......लाल रेखाएं खींच जाती अचानक , लहर के लोल पर ....चिडियां नही करती किल-बिल, सुनाई नही देती स्पष्ट पक्षियों की चहचहाहट ....नही रम्भाती गायें खुलकर ....कि जैसे स्तब्ध हो जाती पृथ्वी हवाओं के चुप होने से ...!
यद्यपि गर्मी में प्रेम का भी एहसास उतना ही होता है जितना विरह का । बहुत पहले मैंने इसी एहसास पर एक कविता लिखी थी , उसकी चंद पंक्तियों का एहसास आप भी करें - " मैंने पहले भी तो बाँटीं थी / तुम्हारे अकेलेपन की शाम / जेठ की तपती धूप और गर्म साँसें / तुम्हारे सुख के लिए/ मगर- तुम्हारी नर्म उंगलियाँ / नही खोल पायी थी / मेरे मन की कोई गाँठ/ एक बार भी ......एक बार भी - सर्पीली सडकों पर सफर करते हुए / तुम्हारे पाँव नही डगमगाए थे और मैं- पहाडों की तरह पघलता रहा सारा दिन / सारी रात.....तुम्हारे साथ-साथ ....!"
चलिए जब समीर भाई के बहाने ग्रीष्म की चर्चा हो ही गयी तो क्यों न कुछ सृजन की भी बात हो जाए ? समय कम था और बातें बहुत करनी थी , उन्हें दोपहर के भोजन के पश्चात् कानपुर के लिए प्रस्थान करना था , इसलिए जी भर कर न तो बातें कर सका और न रचनाओं का आदान-प्रदान हीं , यानी की समंदर पीने के बावजूद भी मैं तीश्नालब (प्यासा) ही रहा , मगर इस तीश्नगी ने समीर भाई की प्रेरणा से कुछ दोहे रच डाले जिसे मैं समीर भाई को समर्पित करते हुए प्रसंगवश यहाँ उल्लेख कर रहा हूँ -
पहले ओला गिर गया, गडमड पैदावार !
कैसी गर्मी बेशरम, आयी है इसबार !!
झुरमुट-झुरमुट झांकता, रात में नन्हा चाँद !
पर ज्यों-ज्यों दिन चढ़ रहा, बढ़ा रहा अवसाद!!
धूप चढी आकाश में, मन में ले उपहास !
पानी-पानी कर गयी , रेगिस्तानी पियास !!
लहर-लहर के लोल पर, ललकी-ललकी धूप !
नदी पियासी ढूंढ रही, कहाँ गए नलकूप ?
लूट रही मंहगाई, आकरके बाज़ार !
मौसम सी बदली हुयी, दिखती है सरकार !!
() रवीन्द्र प्रभात

8 comments:

  1. aare wah samirji se aapki mulakat badi achhi rahi badhai,aur kavita bhi bahut sundar.

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  2. बहुत सुंदर लिखा है रवीन्द्र जी,
    लालाजी की बात ही निराली है ...

    "धूप चढी आकाश में, मन में ले उपहास !
    पानी-पानी कर गयी , रेगिस्तानी पियास"

    भाई आपके दोहे भी कुछ कम कमाल नहीं...बधाई

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  3. कुछ जबरदस्त चीज है श्री समीर लाल में। जहां जाते हैं, ब्लॉग-पोस्टें बड़ी सहजता से बन जाती हैं!

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  4. व्यक्तित्त्व और विचार दोनो के धनी समीर जी के बारे में पढकर अच्छा लगा. ग्रीष्म पर आपकी कविता पढ़कर तो घबरा उठे कि हम उसी ऋतु में अपने देश आते हैं...

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  5. आपने जिस उत्सुकता से लेख लिखा है उस से स्पष्ट होता है की वाकई ये मुलाकात आपके लिए बहुत रोचक रही होगी.. मैं तो राजस्थान का निवासी हू जहा बहुत गर्मी पड़ती है. ऐसे में आपने ब्लॉग के माध्यम से ही शीतलता प्रदान कर दी.. धन्यवाद..

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  6. chalye aap logo ki mulakaat hui ,achha laga ,bloging ki dunia ka yahi to fayda hai,saman vichar vale log aapas me milte hai to bhala lagta hai..

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  7. यादगार मुलाकात रहेगी हमेशा भाई!! आप लोगों से मिलकर बहुत आनन्द आया. वादे के मुताबिक जल्द ही मुलाकत फिर से होगी. :)

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  8. समीर जी से मुलाकात का विवरण बड़े रोचक ढंग से किया है जिस हेतु धन्यवाद .

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