सबसे पहले परिकल्पना के समस्त सुधि
पाठकों ,शुभ चिंतकों को -
नव वर्ष-२००९ की मंगलकामनाएं !
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.......... पिछले भाग -२ से आगे बढ़ते हुए लोक संस्कृति से जुड़े ब्लॉग से इस पोस्ट की शुरूआत करते हैं .....
वैसे लोकरंग को जीवंत रखते हुए अपनी सार्थक उपस्थिति दर्ज कराने वाले चिट्ठों की श्रेणी में एक और नाम है- ठुमरी , जिसपर आने के बाद महसूस होता है की हमारे पास सचमुच एक विशाल सांस्कृतिक पहचान है और वह है गीतों की परम्परा । इसी परम्परा को जीवंत करता हुआ दिखाई देता है यह ब्लॉग। अपने आप में अद्वितीय और अनूठा ।
कहा गया है, की भारत गावों का देश है, जहाँ की दो-तिहाई आवादी आज भी गावों में निवास करते है । गाँव नही तो हमारी पहचान नही , गाँव नही तो हमारा अस्तित्व नही , क्योंकि गाँव में ही जीवंत है हमारी सभ्यता और संस्कृति का व्यापक हिस्सा । तो आईये लोकरंग- लोकसंस्कृति के बाद चलते हैं एक ऐसे ब्लॉग पर जो हमारी ग्रामीण संस्कृति का आईना है ….नाम है खेत खलियान ।
यद्यपि जहाँ गाँव है वहाँ खेती है और जहाँ खेती है वहाँ खलियान तो होगा ही , मैंने पूरी तरह जांचने-परखने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ की हिन्दी चिट्ठाजगत में इस ब्लॉग के अतिरिक्त और कहीं भी खेती की इतनी विस्तृत जानकारी नही होगी । खेती के हर पहलू पर बारीक नज़र है यहाँ । मैं जब भी इस ब्लॉग पर आता हूँ उत्साहित हो जाता हूँ । इसमें चलती- फिरती बातें नही है, जो भी है खेती से जुड़े तमाम तरह के दस्तावेज।
खेत-खलियान की सैर कराता यह ब्लॉग एक ओर जहाँ खेत-खलियान की सैर कराता है , वहीं मध्यप्रदेश के किसानों की आवाज़ बनकर उभरता भी दिखाई देता है । सिर्फ़ मध्यप्रदेश ही नही इसमें मैंने पंजाब के मालवा इलाके में कीट नाशकों के दुष्प्रभाव की पोल खोलते पोस्ट भी पढ़े हैं। कुल मिलाकर यहाँ बातें “ गेंहू , धान और किसान की है , यानी पूरे हिन्दुस्तान की है…॥!”
वैसे खलियान से जुड़े हुए एक और ब्लॉग पर नज़र जाती है , जिसके ब्लोगर हैं कुमार धीरज ,हालांकि ब्लॉग का नाम खलियान जरूर है , मगर ब्लोगर की नज़रें खेत- खलियान पर कम , राजनीतिक गतिविधियों पर ज्यादा है !वैसे इस ब्लॉग पर हर प्रकार के सामयिक पोस्ट देखे जा सकते हैं , लेखनी में गज़ब का धार है और हर विषय पर लिखते हुए ब्लोगर ने एक गंभीर विमर्श को जन्म देने का विनम्र प्रयास किया है ।
इनके ब्लॉग से गुजरते हुए सबसे पहले मेरी नज़र एक पोस्ट ओडीसा और कंधमाल के आंसू पर गयी और इस ब्लोगर की प्रतिभा के सम्मोहन में मैं आबद्ध होता चला गया । एह ब्लॉग गंभीर और संवेदनशील विषयों को बाखूबी वयां करता है !
खेत- खलियान के बाद आईये चलते हैं बनस्पतियों की ओर ….! पूरी दृढ़ता के साथ बनस्पतियों से जुडी जानकारियों का पिटारा लिए रायपुर के पंकज अवधिया अंध विशवास के ख़िलाफ़ मोर्चा खोले हुए हैं । विज्ञान की बातों को बहस का मुद्दा बनाने वाले अवधिया का ब्लॉग है मेरी प्रतिक्रया , जिसका नारा है अंध विशवास के साथ मेरी जंग।
पंकज की जानकारियां दिलचस्प है । पढ़कर एक आम पाठक निश्चित रूप से हैरान हो जायेगा कि जंगलों में पानी, रोशनी के लिए पेड़-पौधों में कड़ी स्पर्धा होती है । मैदान जितने के लिए वे ख़ास किस्म के रसायन भी छोड़ते हैं ताकि प्रतोयोगी की बढ़त रूक जाए।
वे बिमारियों के लिए पारंपरिक दबाओं का दस्तावेज भी बना रहे हैं। साईप्रस, कोदो और बहूटी मकौड़ा आदि के माध्यम से अनेक असाध्य वीमारियों पर की भी बातें करते हैं जो ब्लोगर की सबसे बड़ी विशेषता है।
सचमुच मेरी प्रतिक्रया एक ऐसा ब्लॉग है जो हमें उस दुनिया की जानकारी देता है जिसके बारे में हम अक्सर गंभीर नही होते। कृषि वैज्ञानिक पंकज अवधिया हमें अनेक खतरों से बचाते हुए दिखाई देते हैं। ख़ास बात यह है की उनका हर लेख एक किस्सा लगता है,किसी विज्ञान पत्रिका का भारी-भरकम लेख नही….अपने आप में अनूठा है यह ब्लॉग !
ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित एक और ब्लॉग है बिदेसिया जो एक कम्युनिटी ब्लॉग है और इसके ब्लोगर हैं पांडे कपिल, जो भोजपुरी साहित्य के प्रखर हस्ताक्षर भी हैं, साथ ही इस समूह में शामिल हैं प्रेम प्रकाश , बी. एन. तिवारी और निराला ।
है तो इस ब्लॉग में गाँव से जुड़े तमाम पहलू मगर एक पोस्ट ने मेरा ध्यान बरबस अपनी और खिंच लिया था वह है नदिया के पार और पच्चीस साल । १९८२ में आयी थी यह फ़िल्म जिसे मैंने दर्जनों बार देखी होगी उस समय मैं बिहार के सीतामढी में रहता था और उस क्षेत्र में नदिया के पार की बहुत धूम थी , पहली बार मेरे पिताजी ने मुझसे कहा था रवीन्द्र चलो आज हम सपरिवार इस फ़िल्म को देखेंगे …..फ़िर उसके बाद अपने स्कूली छात्रो के साथ इस फ़िल्म को मैंने कई बार देखी … आज भी जब इस फ़िल्म के ऑडियो कैसेट सुनता हूँ तो गूंजा और चंदन की यादें ताजा हो आती है । ब्लोगर ने इस फ़िल्म के २५ साल पूरे होने पर गूंजा यानी साधना सिंह के वेहतरीन साक्षात्कार लिए हैं ।
बहुत कुछ है विदेसिया पर, जो क्लिक करते ही दृष्टिगोचर होने लगती है । सचमुच लोकरंग के चिट्ठों में एक आकर्षक चिट्ठा यह भी है। अगर कहा जाए की लोक संस्कृति को जीवंत रखने में विदेसिया की महत्वपूर्ण भुमिका है तो न किसी को शक होना चाहिए और न अतिशयोक्ति ही …!
वैसे एक और ब्लॉग है दालान ,नॉएडा निवासी रंजन ऋतुराज सिंह जी द्वारा मुखिया जी के नाम से लिखित चिट्ठा। जो पढ़ने से पहले महसूस होता है की जरूर यह ग्रामीण परिवेश से जुडी हुयी बातों का गुलदस्ता होगा , मगर है विपरीत इसमें पूरे वर्ष भर ग्रामीण परिवेश की बातें कम देखी गयी , इधर – उधर यानी फिल्मी बातें ज्यादा देखी गयी । मुखिया जी का यह ब्लॉग अपने कई पोस्ट में गंभीर विमर्श को जन्म देता दिखाई देता है ।
वर्ष के आखरी कई पोस्ट में उनके द्वारा अमिताभ और रेखा के प्रेम संबंधों से कई भावात्मक बातों को उद्धृत करता हुआ पोस्ट महबूब कैसा हो ?कई खंडों में प्रकाशित किया गया है, जो मुझे बहुत पसंद आया …….शायद आपको भी पसंद आया हो वह आलेख और उससे जुडी तसवीरें …..कुल मिलाकर यह ब्लॉग सुंदर और गुणवत्ता से परिपूर्ण है ….इस ब्लॉग को मेरी शुभकामनाएं !
नोएडा के मुखिया जी के ब्लॉग दालान की चर्चा के बाद आईये चलते हैं बाबा विश्वनाथ की नगरी वाराणसी । वाराणसी वैसे पूर्वांचल का एक महत्वपूर्ण शहर है , जहा का परिवेश आधा ग्रामीण तो आधा शहरी है । मैं इस शहर में लगभग पाँच वर्ष गुजारे हैं । खैर चलिए यहाँ के एक अति महत्वपूर्ण ब्लॉग की चर्चा करते हैं, नाम है सांई ब्लॉग । हिन्दी में विज्ञान पर लोकप्रिय और अरविन्द मिश्रा के निजी लेखों का संग्राहालय है यह ब्लॉग, जो पूरी दृढ़ता के साथ आस्था और विज्ञान के सबालों के बीच लड़ता दिखाई देता है . इस सन्दर्भ में ब्लोगर का कहना है, की उन्होंने जेनेटिक्स की दुनिया की नवीनतम खोज जीनोग्राफी के जांच का फायदा उठाया है।
एक पोस्ट में ब्लोगर मंगल ग्रह पर भेजे गए फिनिक्स की कथा मिथकों के सहारे कहते हुए दिलचस्पी पैदा करते हैं . कई प्रकार के अजीबो-गरीब और कौतुहल भरी बातों से परिचय कराता हुआ यह ब्लॉग अपने आप में अनूठा है । सुंदर भी है और इसकी प्रस्तुति सारगर्भित भी ।
अपने ब्लॉग के बारे में अरविन्द मिश्रा बताते हैं, की “ डिजिटल दुनिया एक हकीकत है और यह ब्लॉग उस हकीकत की एक मिशाल है …..!”
……..अभी जारी है……../
रोचक! इनमें से कई ब्लॉग/साइट्स मैने देखी न थीं। धन्यवाद जी, परिचय के लिये।
जवाब देंहटाएंआपका यह प्रयास सराहनीय है। इसे जारी रखें। नये साल की बधाई।
जवाब देंहटाएंदीपक भारतदीप
साईब्लाग के जिक्र के लिए ह्रदय से आभारी हूँ !
जवाब देंहटाएंप्रशंसनीय विश्लेषण. साधुवाद
जवाब देंहटाएंdaalaan post ke baare main bhi aap se hi pataa chlaa dhanyvaad aur jaankaari ke liye aabhaar
जवाब देंहटाएंbahut badhiya charcha chal rahi hai yahan.. vaise meri dastak lagbhag har blog par kabhi na kabhi ho chuki hai.. :)
जवाब देंहटाएंप्रभात जी आपने अपने ब्लांग पर हमारे ब्लांग की विशेषता के बारे में लिखा है और यह दिखलाने की कोशिश की है कि कौन-कौन से लोग किस मुद्दे को तरजीह दे रहे है । उसमें मै अपना नाम पाकर बहुत खुश हुआ । उम्मीद यह जगी है कि आप मेरे विचार को जरूर पढ़ेगे और अपना कमेट भी देगें । आपका बहुत-बहुत शुक्रिया
जवाब देंहटाएंsachmuch adbhut aur advitiya ....achchhee jaanakaariyon ke saath....jaaree rahe yah kram
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत प्रशंसनीय....
जवाब देंहटाएंरवीन्द्र जी,
जवाब देंहटाएंपरिकल्पना में मेरे ब्लाग पर आपकी टिप्पणी देखकर अच्छा लगा। आपने हिन्दी के तमाम अच्छे ब्लॉगों को तलाशकर एक जगह लाने की कोशिश की है। यह आपका बढ़िया प्रयास है। बधाई। कभी लखनऊ आना हुआ तो आपसे मुलाकात होगी। धन्यवाद।