जल-शब्द ही जीवन में रोमांच कर देता है , क्यों न करे मनुष्य का शरीर ही ७० प्रतिशत जल का दिया हुआ है । वास्तव में जल हाईड्रोजन के दो अणु और ऑक्सीजन के एक अणु का मिश्रण है । चूँकि ऑक्सीजन जीवनदाता है तो नि:संदेह जल ही जीवनदाता हो जाता है । यदि जल की कमी हुई तो मनुष्य का जीवन ही नहीं पूरी श्रृष्टि का अर्थतंत्र ही बिगड़ जाएगा ।
जल हमारे जीवन के लिए कितना मायने रखता है , कि हम मुहावरों और लोकोक्तियों में उसका कई प्रकार से प्रयोग करते हैं , यथा- तुम्हारी आँखों का पानी मर गया है......तुम बहुत पानीदार हो हम जानते हैं.....आदि ।
आज समाज में हमारी छोटी- छोटी गलतियों के कारण जल की समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं ......आप भी अपने आसपास इस प्रकार की समस्याओं से आये दिन रूबरू हो रहे होंगे ? मेरे समझ से जल पर व्यापक बहस होनी चाहिए कि इसके संरक्षण के लिए कौन-कौन से उपाए किये जाएँ ? कैसे इसके संरक्षण के लिए लोग हाथ से हाथ मिलाकर प्रयास करे ? कैसे समाज के कुछ कथित ठेकेदारों को जल के संरक्षण हेतु उत्प्रेरित किया जाए ? कैसे बचाया जाए कुएं और नलकूप के पानी को ? कैसे रोका जाए जल की आपदा को ? आदि-आदि ....!
इसी विषय पर केन्द्रित होगा परिकल्पना का आगामी माह जुलाई । हम पूरे महीने इसी विषय पर वार्ता करेंगे ....परिचर्चा के माध्यम से । इसमें से तीन श्रेष्ठ कृतियों का चयन कर क्रमश: १०००/- ५००/- और २५०/- रुपये का पुरस्कार प्रदान किये जायेंगे ।
अत: आप सभी से विनम्र निवेदन है कि जल के संरक्षण हेतु उपायों, सुझावों, आलेखों, कहानियों, कविताओं, गीतों, ग़ज़लों आदि को " जीवन सबका पानी है" शीर्षक के साथ दिनांक २५.०६.२०१० तक आवश्यक रूप से निम्न ई-मेल आई डी पर अपने एक फोटो तथा संक्षिप्त परिचय के साथ प्रेषित कर दें -
भवदीय-
रवीन्द्र प्रभात
भेजती हूँ ....धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंमैं गीत भेज रहा हूँ जल के संरक्षण पर , स्वीकार कर कृतार्थ करें
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रयास
जवाब देंहटाएंएक सकारात्मक पहल
जवाब देंहटाएंआपकी हमेशा ही कुछ अलग से कर दिखाने की हिम्मत की दाद देती हूँ। कोशिश करती हूँ कुछ लिख सकूँ 3-4 माह से कुछ लिखा नही इस लिये अभी मूड नही बन रहा। कोशिश करती हूँ धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा प्रयास है.
जवाब देंहटाएंखंडहर हुए शब्द भी किसी शानदार ईमारत को भी मात दे देते हैं.
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