हिंदी साहित्य, हिंदी ब्लॉग, सोशल मिडिया फेसबुक पर एक जाना-माना नाम प्रतिभा कटियार !उनकी कलम की विलक्षण धार दिल के दरवाज़े को बड़ी आसानी से खोलती है - हाथ कंगन को आरसी क्या, ये रही उनकी कलम की एक खूबसूरत सी बानगी -
प्रतिभा कटियार
प्रतिभा की दुनिया ...
II घर उगने का इंतजार II
रोज सुबह
उगता है एक घर
सूरज के साथ,
कभी टहनियों पर
जा टिकता है,
कभी रास्तों पर साथ चलता है
कभी किसी मोड़ पर
छूट ही जाता है बस.
कभी किसी आंख में
बस जाता है
तो कभी किसी आवाज में ही
बना लेता है ठिकाना
कभी तो श्मशान के
किनारे धूनी सी रमा लेता है
घर, जहां मिलता है
वजूद को विस्तार ,
जहां हर सपने को
मिलता है निखार
जहां दु:ख की वीणा को
सुख के राग से
झंकृत किया जाता है
जहां पहुंचकर
जिस्म को अलगनी पर
टांगकर
रूह को कैसे भी विचरने को
आजाद छोड़ दिया जाता है,
ईंट, पत्थरों से घिरी दीवारों में
लौटकर रोज
आवाजों के वीतराग
में डुबो देती हूं खामोशियां
और अगली सुबह
सूरज के साथ
घर के उगने का
इंत$जार होता है.
II कोहरे की खुशबू में उसकी भी खुशबू है....II
याद है तुमको
कैसे हम दोनों मिलकर
कॉफी के कप में
सारे लम्हे घोल-घोल के पी लेते थे
याद है तुमको
कोहरे की खुशबू कितना ललचाती थी
देर रात भीगी सड़कों पर
मैं कोहरे की सुरंग में
भागी जाती थी
याद है तुमको
कोहरे की चादर कितना कुछ ढँक लेती थी
दिल के कितने जख्मों पर फाहे रखती थी
दिन के टूटे बिखरे लम्हों को
अंजुरी में भर लेती थी
याद है तुमको
एक टूटे लम्हे को तुमने थाम लिया था
भीगी सी पलकों को रिश्ते का अंजाम दिया था
वो रिश्ता अब भी कोहरे की चादर में महफूज रखा है
कोहरे की खुशबू में अब उसकी भी खुशबू है....
बहुत सुंदर रचनाऐं ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचनायएं
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