नाम के अनुरूप व्यक्तित्व, और भाषा भाव की अभिव्यक्ति - जिन्हें मैंने जाना है 

आशा चौधरी - भारतकोश - के नाम से।  शब्दों की गरिमा उनके 

व्यक्तित्व की रिमझिम बारिश है, उनका लेखन हो, या उनके कमेंट्स या उनके बच्चे  … सचमुच,

 शीतल चाँदनी में नहाने के आनंद जैसा है।  

जब प्राप्य को गर्व नहीं छूता 
तो उस प्राप्य का रस सभी पाते हैं - कुछ यूँ,


प्रेम 


जीवन प्रेम से प्रारम्भ 
और समाप्त भी प्रेम पर ही
अर्पण समर्पण भी प्रेम ही
और
तर्पण और तपस्या भी प्रेम 
प्रेम में विकल्प नहीं संकल्प है
स्वयं पर विश्वास है प्रेम
निष्ठा है स्वयं पर ही
कृष्ण! 
तुम हो या ना हो
मीरां तो है ही प्रेम दीवानी 
तुम पास हो कृष्ण! 
या ना हो
राधा तो भूली ही है सुधबुध 
लक्ष्मण! 
तुम रहो कर्तव्यरत
उर्मिला प्रेम में रही घर आँगन ही
और कृष्ण! 
तुम राग में हो या रास में 
रुक्मिणी तो मर्यादित ही रहेगी प्रेम में
प्रेम में कोई बिम्ब और आलम्बन नहीं
अभिधा लक्षणा व्यंजना भी नहीं
ना ही आभास और कल्पना 
एक ही रस है एक ही भाव है
एक ही सुर है एक ही ताल है
विराट हो या सूक्ष्म हो 
मुझमें हो या तुझमें हो 
प्रेम प्रेम है 
और बस प्रेम है...


नारी होना ही है विलक्षणता


नारी तुम केवल श्रद्धा हो
कभी गार्गी, उर्मिला, अहिल्या हो
कभी सीता, उत्तरा तो कभी राधा हो
विलक्षण हो असाधारण हो

पर जब तुम साधारण हो
तब क्या हो?
मात्र नारी हो, सरल हृदया हो
कुटिल हो या जो भी हो
तुम वो हो जो कोई अन्य नहीं है-

झुकना, मानना, समझना, मनाना
काम चलाना सब तेरा काम
तू सबके साथ खड़ी मिल
हर समय, हर मौक़े पर
कभी हाथ पकड़ कर,
कभी कंधा मिला कर,
और कभी हाथ जोड़ कर भी,

कल जो चीज़ें थीं अर्थहीन
आज वही ज़रूरी हो गयीं
एक बेवजह सी ज़िंदगी तेरी 
अब बेपरवाह भी हो गयी

बस अब नाम को होना ही ज़रूरत है तेरी,
रसोई में, घर में, कमरे में, आँगन में
वरना अब ज़रूरत ही क्या तेरी?
सब व्यस्त हैं अपनी अपनी ज़िंदगी में
और तू व्यस्त है उन सब में?

तेरी ख़ासियत तेरा होना है
और तेरी उपस्थिति
एक सामाजिक निर्वाह
जो तुझे करते ही जाना है...
तू नारी है, आम है या ख़ास
साधारण है या असाधारण 
बस नारी होना ही है विलक्षणता तेरी...

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