तुम्हारी यादों का कश लेना 
जले को और जलाना 
रिश्ता ना कहो - कुछ तो है !  .... 

आज सोशल मिडिया से लेकर आई हूँ एस के अपाहिज को


            (1 )
माना तुम्हारी महफिल में
......अमीरोँ के जाम छलकते हैं,
बज़्म हमारी भी कम नहीं
.......गरीबों के दिल धड़कते हैं।
तुम चलते हो ग़र रौब से
........सब कहते नज़ाकत इसे,
हम चल दें जो बहक कर
........सब कहें नवाब चलते हैं।
तुम अदाओँ से गिराते हो जो
......सब नाम दें उसे बिजलियाँ,
हम जो गली से गुजर जायेँ
........बन के बादल बरसते हैं।
तुम्हारी निगाहों से बहती
.......माना है शराबोँ की मस्ती,
हम जो देख लें इक नज़र
........हुस्न वाले आह भरते हैं।
इश्क है इबादत ख़ुदा की
.......दिलवाले बस करते आये,
कुछ कदम तुम चले आओ
........हम इधर से निकलते हैं।.          

            (2 )

आहट हुई थी गली में
...कदमों के निशाँ भी पड़े थे,
चाँदनी थी रात मगर
....सितारे दिल थामे खड़े थे।
चरचा था हर तरफ
.......कि तूँ गुजरी है इधर से,
बिखरी सी खुशबुओँ ने
.......बहारोँ से नजारे करे थे।
हवाओं ने छेड़ा था राग
.....मोहब्बत की रागिनी का,
इरादे ख़ुदा के ना जाने
......किस कयामत पे अड़े थे।
ली ख्यालोँ ने करवट
....और मैं लिखने लगा तुम्हें,
अपाहिज ये लफ़्ज़ भी
............हरकतेँ करने लगे थे।


             (3 )

ख्वाहिशों के दौर से कुछ आगे
निकल आया हूँ,
तब जाकर तेरी अहमियत को
समझ पाया हूँ।
साँसेँ बहुत सी गँवाई तुझ तक
पहुँचने में,
कुछ बची थी बड़ी मुश्किल से
पकड़ पाया हूँ।
आ अब तो महका दे इन्हें खुशबू
से अपनी,
ज़िँदगी तेरी पनाह में खुद चल
कर आया हूँ।
है हर शर्त मंजूर मुझे जैसे चाहे
आज़मा,
ठहरे हुए वक्त को फिर चलता
कर लाया हूँ।

3 comments:

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