काफी समय हम साथ रहे 
फिर मिलेंगे अगले वर्ष - उत्सव के नए रंगों के साथ। 
ऋतुओं की तरह 
हमारी परिकल्पना भी एक ऋतु है 
जिसमें रंग ही रंग हैं 
कुछ बसंत,कुछ ग्रीष्म,कुछ बारिश,कुछ अंगीठीवाली सर्दी 
सबकुछ हम लाते हैं आपके लिए 
.... 


उत्सव के अंत में हम कुछ प्रकाशित संग्रहों की झलक देंगे, ताकि आप अपनी रूचि के अनुसार चयन कर सकें अपने अनमोल समय को साहित्यिक स्पर्श देने के लिए - 

उससे पहले कुछ देर कवि सूरदास से मिलते हैं -


अब हों नाच्यौ बहुत गोपाल।
काम क्रोध कौ पहिरि चोलना, कंठ विषय की माल॥
महामोह के नूपुर बाजत, निन्दा सब्द रसाल।
भरम भर्‌यौ मन भयौ पखावज, चलत कुसंगति चाल॥
तृसना नाद करति घट अन्तर, नानाविध दै ताल।
माया कौ कटि फैंटा बांध्यो, लोभ तिलक दियो भाल॥
कोटिक कला काछि दिखराई, जल थल सुधि नहिं काल।
सूरदास की सबै अविद्या, दूरि करौ नंदलाल॥। …    

नंदलाल रीझें नहीं तो हर चोले में इतना नाचना सम्भव ही नहीं, साथ साथ तो नंदलाल ने भी ताल दिया है  … 
यह नंदलाल का ही सारथित्व होता है, कि हम जीवन की हरेक विधाओं में नाचते हैं, महामोह के नूपुर पैरों में बंधे होते हैं।  इसमें ही एक विधा है लेखन, हरी इधर से उधर रथ दौड़ाते हैं, और हम अपने कलम वाण से हर छोर को नापते जाते हैं।  उन्हीं छोरों के कुछ संग्रहों को देखिये और पढ़ने की उत्कंठा जगाइए  .... 






3 comments:

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