दृष्टिकोण अपना अपना होता है 
सही में गलत 
गलत में कुछ अलग नज़र आता है  … 
ऐसा ही कुछ एक लीक से हटकर आपके सामने है -

रश्मि प्रभा 



प्रभु मुझे शकुनी सा मामा देना
स्वप्न मञ्जूषा

प्रभु मुझे शकुनी सा मामा देना और मंथरा सी दासी
सोचोगे तुम विक्षिप्त हूँ मैं या हूँ अविवेकी जरा सी 
पर सोच के देखो तो समझोगे मैंने क्या समझाया है 
उन दोनों ने पूरा जीवन बस प्रेम में ही बिताया है 
शकुनी ने दुर्योधन प्रेम में अपना जीवन दैय डारि
और मंथरा कैकैये-भारत के प्रीत में हुई मतवारी 
ऐसा मामा कहो कभी कहीं भी तुम्हें नज़र आया
जिसने अपना सम्पूर्ण जीवन भांजे के सुख में गँवाया
मुझे जो ऐसा मामा मिलता मैं स्वयं को धन्य कहाती
हर जन्म में यही मामा मिले ह्रदय से कामना कर जाती 
गौर से गुणों महाभारत तो सबने सबको दिया है धोखा
धर्मराज युधिष्ठिर तक ने पत्नीव्रत का वचन कब रखा 
कृष्ण की तो बात ही छोडो न जाने कितने छद्म चलाये
अश्वस्थामा की झूठी खबर सुन गुरु द्रोण के प्राण गँवाए 
भीष्म पितामह को शिखंडी की ओट में हताहत कर दिया 
और कुंती ने कर्ण से सिर्फ अर्जुन वध का प्रण ले लिया 
इतने सारे पात्रों में मुझे बस एक पात्र ही भाया है 
शकुनी ने हर हाल में अपनी बहन से प्रेम निभाया है 
मत देखो उस प्रेम का प्रतिफल किसको क्या मिला है 
बस प्रेम को देखो ऐसा प्रेम दूजा नहीं कभी खिला है 
शकुनी के निश्वार्थ प्रेम को आज मलीनता से बचाऊँगी
बस यदि मेरा चल जाए मैं फ़िर महाभारत लिख जाऊँगी


आज उर्मिला बोलेगी...

सावधान ! हे रघुवंश
वो शब्द एक न तोलेगी
मूक बधिर नहीं,कुलवधू है
आज उर्मिला बोलेगी |

कैकेयी ने दो वरदान लिए
श्री दशरथ ने फिर प्राण दिए 
रघुबर आज्ञा शिरोधार्य कर
वन की ओर प्रस्थान किये 
भ्रातृप्रेम की प्रचंड ऊष्मा 
फिर लखन ह्रदय में डोल गई
मूक बधिर नहीं, कुलवधू है
आज उर्मिला बोलेगी |

रघुकुल की यही रीत बनाई 
भार्या से न कभी वचन निभाई
पितृभक्ति है सर्वोपरि
फिर पूजते प्रजा और भाई
पत्नी का जीवन क्या होगा
ये सोच कभी न गुजरेगी
मूक बधिर नहीं, कुलवधू है
आज उर्मिला बोलेगी |

चौदह बरस तक बाट जोहाया
एक पत्र भी नहीं पठाया
नवयौवन की दहलीज़ फांद कर
अधेड़ावस्था में जीवन आया
इतनी रातें ? कितने आँसू ?
की कीमत क्या अयोध्या देगी ?
मूक बधिर नहीं, कुलवधू है
आज उर्मिला बोलेगी |

हाथ जोड़ कर विनती करूँ मैं
सातों जनम मुझे ही अपनाना
परन्तु अगले जनम में लक्ष्मण
राम के भाई नहीं बन जाना 
एक जनम जो पीड़ा झेली
अगले जनम न झेलेगी
मूक बधिर नहीं, कुलवधू है
आज उर्मिला बोलेगी |

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