देख घटा सांवरी ,
है धरती पे उसके न पाँव ,
लौटा है शीत जब से गाँव ।
सुरमई उजालों में चुम्बन ले घासों को ,
बेंध रही हौले से गर्म-गर्म साँसों को ,
बहकी है पुरवाई, ले-ले के अंगडाई -
गेहूं की बालियों से छुए कुहासों को ,
चाँद की चांदनी ,
खो गयी रागिनी ,
आयी प्राची से सिंदूरी छाँव ,
लौटा है शीत जबसे गाँव ।
बांसों के झुरमुट से किरणें सजी-संवरी ,
निकली है स्वागत में गाती हुयी ठुमरी,
देहरी के भीतर से झाँक रही दुल्हनियां -
साजन की यादों में खोयी हुयी गहरी ,
शीत की भोर से,
धुप की डोर से ,
सात फेरे लिए हैं अलाव ,
लौटा है शीत जबसे गाँव ।
मौसम की आँखों में महुए सी ताजगी ,
दिखती है खुल करके धुप की नाराजगी ,
गुड की डाली खाके सोया है देर तक -
मतवाला सूरज है अलसाया आज भी ,
गा रही गीत री ,
बांटती प्रीत री ,
बंजारन गली-गली-ठांव ,
लौटा है शीत जबसे गाँव ।
() रवीन्द्र प्रभात
(सर्वाधिकार सुरक्षित )
bahut khubsurat shabdon aur ehsaas sundar badhai
जवाब देंहटाएंnazakat nfasaton ke shahar ke logon me itni nazakat hoti hai lekhan me muje to pata na tha.
जवाब देंहटाएंbahot hi umda lekhan maza aagaya ...
aap jaise guni logon ka hausala-afjai to preran ke kabil hai .. meri nai ghazal pe aapki upasthi chahta hun agar sambhav ho to...
जवाब देंहटाएंमौसम की आँखों में महुए सी ताजगी ,
जवाब देंहटाएंदिखती है खुल करके धुप की नाराजगी ,
गुड की डाली खाके सोया है देर तक -
मतवाला सूरज है अलसाया आज भी ,
..................
Waah ! kya kahun..... adbhud !Adwiteey !
shbdon me prakriti kee anupan sundarta ko baandhkar, aapne aur bhi adbhut, manohari banakar nayanabhiraam kar diya.
Sadhuwaad.
सुन्दर लिखा जी।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर भाई. बेहतरीन. जल्दी ही मुलाकात होने वाली है.
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना के लिये बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंकविता अच्छी लगी. कम शब्द.. सुंदर भाव..
जवाब देंहटाएं