इस उत्सव में साधारण क्या है .... !!! मुझे तो माँ सरस्वती के संग रहने का आनंद मिल रहा है . मैं तो एक डुबकी हर रोज लगाता हूँ और असली मोती लेकर आता हूँ . मैं तो हँस बन गया हूँ , मोतियों के खान से गुजर रहा हूँ . आज क्षणिकाओं के संग अविनाश चन्द्र को लेकर आया हूँ , ब्लॉग http://penavinash.blogspot.com/ .... मैं तो विस्मित हूँ ही , अब आपकी बारी -
क्षणिकाएं...(बीज..)
क्लेश....
आत्मा में तेरी,
या अंतर में मेरे.
संदेह का बीज,
कहीं भी पनपे.
फलित तो सिर्फ,
क्लेश ही होगा.
नजर....
तुम्हारी भीनी सी,
मुस्कराहट के बीज.
बोये थे कभी,
अपनी आँखों में.
फसल अब तक,
लहलहाती है.
मुझे सातवें दशक भी,
नंबर नहीं चढ़ा.
लवण...
पिता बहा पसीना,
ले आते हैं रोटी.
वरना माएं बिलख,
कर रो देती हैं.
दोनों ही सूरतों में,
बच्चों को मिल जाता है,
लवण..
फसल काट लो...
तुम्हारे दिए हुए,
शब्दों की फसल,
तैयार हो गयी है.
आओ काट लें,
प्रीत की फलियाँ.
पक गए तो,
बनेंगे नासूर.
याद....
तुम बेशक ना आओ,
इस बार भी.
हवा से भिजवा देना पर,
एहसास का एक बीज.
पनपें तो खिलें कम से कम,
गुलमोहर तुम्हारी यादों के.
भटकटेयाँ....
जाने कौन से,
पंछी लाते हैं.
बीज भटकटेयाँ के,
मिलते ही नहीं.
तुम भी कहाँ,
मिलते हो कभी.
याद तुम्हारी यूँ,
उगी हर ओर है.
स्वभाव...
उसे स्नेह सारे बीजों से,
अंतर से अनजान धरा है.
तेरा मेरा करके मरना,
अपनी ही बस परम्परा है.
कंटीली बाड़...
पिता की रोक-टोक,
जेनेरेशन गैप नहीं.
खेत किनारे कंटीली बाड़,
रखने वाला कृषक,
बीजों से बहुत,
प्रेम करता है.
माँ....
"इमली के बीज,
मत खा लेना.
पेट में वरना,
पेड़ निकल आएगा."
नहीं माँ, आत्मा ने,
आशीष के बीज खाए.
देखो ना श्रद्धा के,
कितने वृक्ष निकल आए.
उर्वरा...
डरना मत शम्भू,
अबकी रक्तबीज से.
हमने पूरी धरा,
निचोड़ ली है.
अब कोई बीज,
http://penavinash.blogspot.com/ .
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अविनाश चन्द्र की कविताओं के बाद आईए चलते हैं उत्सव के उन्नीसवें दिन प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों की ओर :
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अविनाश चन्द्र की कविताओं के बाद आईए चलते हैं उत्सव के उन्नीसवें दिन प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों की ओर :
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कहीं जाईयेगा मत, मिलते हैं एक अल्प विराम के बाद ....
उत्कृष्ट लेखन ...अपनी भावनाओं को इन्द्रधनुषीय कुची से उकेरते हैं ...अविनाश जी ..
जवाब देंहटाएंआज परिकल्पना पर इनकी रचनाएँ पढ़कर बहुत ख़ुशी हुई ...
आभार परिकल्पना का और ..अनेक शुभकामनायें ..अविनाश जी ..
सभी क्षणिकाएं ...एक से बढ़कर एक हैं इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये आभार ।
जवाब देंहटाएंwaah...bahut achha laga
जवाब देंहटाएंयाद....
जवाब देंहटाएंतुम बेशक ना आओ,
इस बार भी.
हवा से भिजवा देना पर,
एहसास का एक बीज.
पनपें तो खिलें कम से कम,
गुलमोहर तुम्हारी यादों के.
वाह बहुत खूब सभी बहुत बेहतरीन है ...
आपकी किसी रचना की हलचल है ,शनिवार (२३-०७-११)को नयी-पुरानी हलचल पर ...!!कृपया आयें और अपने सुझावों से हमें अनुग्रहित करें ...!!
जवाब देंहटाएंआज परिकल्पना पर अविनाश जी की रचनाएँ पढ़कर बहुत ख़ुशी हुई ...
जवाब देंहटाएंपरिकल्पना का आभार और बहुत सारी शुभकामनायें....
शानदार से भी परे है परिकल्पना की प्रस्तुति, अनुपम,अतुलनीय और अद्वितीय, आप सभी को एक सफल उत्सव की शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब,एक से बढ़कर एक...आभार !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंvery nice post,very nice compliation,thanx.
जवाब देंहटाएंबेहतर पोस्ट,अच्छी प्रस्तुति....इन रचनाओं को पढ़वाने के लिए आभार !
जवाब देंहटाएंआज 19- 07- 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएं...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
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तुम्हारी भीनी सी,
जवाब देंहटाएंमुस्कराहट के बीज.
बोये थे कभी,
अपनी आँखों में.
फसल अब तक,
लहलहाती है.
मुझे सातवें दशक भी,
नंबर नहीं चढ़ा.
बहुत खूब...
अविनाश जी की क्षणिकाओं ने फिर से बौद्धिक आनंद दिया.
जवाब देंहटाएंदिनांक गलत होने के कारण फिर से सूचित कर रही हूँ :)
जवाब देंहटाएंआज 22- 07- 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
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अद्भुत क्षणिकाएं हैं अविनाश जी की...
जवाब देंहटाएंविचारोत्तेजक...
सादर....
सभी क्षणिकायें अच्छी हैं
जवाब देंहटाएंबीज पर लिखी सारी क्षणिकाएँ एक से बढ़ कर एक ...
जवाब देंहटाएंअद्भुत !इतनी गजब की क्षणिकाएं मेने आज तक नहीं पढ़ी क्या बात हैं
जवाब देंहटाएंसभी क्षणिकायें एक से बढ कर एक हैं अविनाश जी को बधाई।
जवाब देंहटाएंसभी क्षणिकायें एक से बढ कर एक हैं अविनाश जी की …………बेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसभी क्षणिकाएँ खूबसूरत भाव लिए...
जवाब देंहटाएंसभी क्षणिकाएं बहुत उम्दा....
जवाब देंहटाएं