एक ख़त लेकर आया हूँ अनुराधा के आतंकवादियों के नाम .... जानता हूँ है ये कोशिश नाकाम , पर विस्फोट में क्षत विक्षत एहसासों के मध्य क्या क्या सोचता है इन्सान उससे एक छोटी सी मुलाकात - ...
ओ आतंकवादी
सोचती हूँ जिस दिलेरी से तुमने वो बम् छुपाया होगा,
घर जाके वैसे ही बिटिया को निवाला खिलाया होगा,
कौनसा बाकी रह गया काम अधूरा,
घर से निकलने का बहाना माँ को क्या बताया होगा,
घर से निकलते हुए बच्चे ने पकड़ ली होंगी तेरी टाँगे,
उसे कौन सा खिलौना देकर पीछा छुड़वाया होगा,
गली से गुज़रते हुए कैसे दोस्त की आँख में झाँका होगा,
दोस्तों ने तो आज किसी फिल्म और रात को खाने पे बुलाया होगा,
मिठाई की दुकान के सामने उस भोली सी नाज़नीन से मिली थी आँखे,
उस नज़र का खुमार कैसे खुद पर से मिटाया होगा,
अब्बा ने बोला होगा आते हुए दादी की दवाई लेते आना,
आते वक्त क्या तुमने वो वादा निभाया होगा?
आसान नहीं था आज का काम मेरे भाई,
काम पूरा होते ही काँधा खुद का थपथपाया होगा,
अपने मालिक को खुशखबरी दी होगी वापिस आते हुए,
और रास्ते के शायद किसी मन्दिर, मस्जिद या गुरुदुआरे पे शीश निवाँया होगा,
घर पहुँचते नतीजा देखा होगा टीवी पे,
उस बच्चे की चीखें सुन थोड़ा तुझे भी तो रोना आया होगा
चलो खैर छोड़ो....... जाने दो
अनुराधा शर्मा
'साई की बिटिया'
१४ जुलाई, २०११
कई छोटे छोटे ख्याल , किसी में मिल जाए संभवतः आपको अपना हाल -
मेरी कहानी
कोई कहता है किस्मत का खेल है
कोई कहता है यह थी मेरी नादानी
कोई तरस के दो बोल भी बोल गया
कोई हँस दिया सुनके मेरी कहानी
कोई हैरां सा रह गया
कोई बोला भूल जा बात हुई पुरानी
पर किसी से अब क्या कहना
..जब मेरी सच्चाई भी हुई मुझसे बेगानी
मंजिल
ढूँढ़ते रहे मंजिल कई खवाहिशें लिए
मिल ना सका किनारा भी एक पल के लिए
कहकशां से दूर चलते रहे एक सड़क पे
मंजिल से होते हुए ..मगर निकल पड़े फिर आगे
इस बार ना मंजिल की तलब है ना किनारे की
फिलहाल ..
कितनी करवटें बदली हमने
सुबह के इंतज़ार में
कितने चैन खो दिए
एक अफ़साने की याद में
कई पल गवां दिए
बस यूँही बेकार में
अब सोचती हूँ ..
जी लूँ यह पल फिलहाल में
अनुराधा शर्मा
http://radiant-raindrops.blogspot.com/
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और अब आईये आज ब्लॉगोत्सव के प्रथम चरण में प्रकाशित रचनाओं से रूबरू होते हैं :
….बरखा रानी जरा जम के बरसो
देश में मानसून आ गया है। छा गया है। लेकिन हमारे इधर अभी बारिश जम के नहीं हुई है। न सड़कें भरी हैं...
बरखा रानी
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लेखन की दुनियां में बस्तर सदैव लोगों के आर्कषण का केन्द्र रहा है। अंग्रेजी और हिन्दी में...
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक” की गज़लें
(एक) सुख में मुस्काता-दुख में आहत होकर रोता है पत्थर के तन में भी कोमल-कोमल मन होता है मन के उपवन..
कहीं जाईयेगा मत, हम फिर उपस्थित होंगे एक अल्प विराम के बाद .....
भावमय शब्दों के साथ सशक्त रचना ...परिकल्पना की इस प्रस्तुति के लिये आभार के साथ शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और चिंतन से भरपूर पोस्ट , बधाईयाँ !
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा पढ़कर !
जवाब देंहटाएंसचमुच अत्यंत सार्थक प्रस्तुति है आज की, आभार आप सभी का !
जवाब देंहटाएंपरिकल्पना की इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये आभार के साथ शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंआतंकवादी को संबोधित कविता उत्तम भाव प्रदर्शित कर रही है.
जवाब देंहटाएंआतंकवादी को ख़त...
जवाब देंहटाएंआह!! बहुत सादे अंदाज़ में ऐसी सशक्त भावनाएं अभिव्यक्त की गयी हैं कि खो सा गया.... वह दृश्य फिर आने लगे नज़रों में.... उम्दा लेखन
सादर...
घर पहुँचते नतीजा देखा होगा टीवी पे,
जवाब देंहटाएंउस बच्चे की चीखें सुन थोड़ा तुझे भी तो रोना आया होगा
-काश!! इसकी एक प्रतिशत भी संवेदना जो होती इनके दिल में...तो कभी न कर पाते ऐसा घिनोना कृत्य!!
दोस्तों
जवाब देंहटाएंआप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया ...
मेरे शब्दों का मर्म .. काश एक आंतकवादी तक पहुँच पाता.. अफ़सोस रहेगा
Anuradha
Sai ki Bitiya