भावनाओं की अपनी धुन, अपनी कशिश होती है जिसके आगे खुदा भी रुक जाता है और मैं तो साथ रहता ही हूँ , रश्मि की बाहें गहे ! ये रश्मि आज गोवा घूमकर आई है (यूँ तो घूमी नहीं है , ब्लॉग के जरिये बिना टिकट सबसे मिल आती है और सौगात भी लाती है....... कभी कुछ नज़्म, कुछ ग़ज़ल.... अच्छा लगता है मुझे भी


काँटा
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काँटा हूं मैं कि मुझ में बहुत तेज़ धार है
लेकिन मुझे भी सब की तरह गुल से प्यार है

शोहरह है इश्क़ का गुल ओ बुलबुल के चार सिम्त
क्या ख़ार सिर्फ़ फूल का इक पहरेदार है ?

क़िस्मत में गुल के इज़्ज़त ओ शोहरत हैं रात -दिन
काँटा सभी की नज़रों में हर लम्हा ख़्वार है

जब हाथ कोई दामन ए गुल की तरफ़ बढ़े
ये ख़ार ही तो तोड़ता उस का ख़ुमार है

गुल है मज़ार और शिवाले की ज़ेब ओ ज़ैन
उस के लिये मगर यही काँटा हिसार है

किस से कहे वो दर्द जो उस दिल में है नेहां
काँटे की हर ख़ुशी तो गुलों पर निसार है

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शोहरह= शोहरत ; ख़ार = काँटा ; ख़्वार = बेइज़्ज़त
ख़ुमार = नशा ; शिवाला =मंदिर ;ज़ेब ओ ज़ैन =शोभा
हिसार = सुरक्षा घेरा (चार दीवारी)
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ग़ज़ल
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कैसा ये ख़ौफ़ अब मेरी तनहाइयों में है
दिलदोज़ गीत आज की शहनाइयों में है

ये देख कर यक़ीन मेरा डगमगा गया
इक दोस्त भी मेरा इन्हीं बलवाइयों में है

दहशतगरी को जुर्रत ओ हिम्मत से मात दो
हम सब की जीत ख़ौफ़ की पस्पाइयों में है

क्या बात है लिबास की ,,किरदार शक़ हुए
शोहरत भी उन की आज तो रुस्वाइयों में है

शर्मिंदगी तुम्हारी न मुझ तक पहुंच सकी
लाश मेरी ज़मीन की गहराइयों में है

जब झूठ बोलता हूं तो बेचैन रहता हूं
हां ये सुकून ए क़ल्ब तो सच्चाइयो में है
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दिलदोज़ = दिल पर असर करने वाला ; जुर्रत =हिम्मत
पस्पाई = दमन ; शक़ = फटा हुआ ;रुस्वाई = बदनामी
क़ल्ब = दिल
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इस्मत जैदी 
http://www.ismatzaidi.blogspot.com/



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इसी के साथ आज कार्य संपन्न, फिर मिलते हैं कल, तबतक के लिए शुभ विदा !

10 comments:

  1. इसबार ब्लॉगोत्सव का रंग पिछले साल की तुलना में ज्यादा चढ़ा हुआ महसूस हो रहा है, रविन्द्र जी,आपका और आपकी टीम का बहुत-बहुत आभार !

    जवाब देंहटाएं
  2. इशमत जैदी जी की गज़लें बहुत उम्दा है, पढ़कर आनंद आ गया !

    जवाब देंहटाएं
  3. कैसा ये ख़ौफ़ अब मेरी तनहाइयों में है
    दिलदोज़ गीत आज की शहनाइयों में है

    बहुत खूब कहा है आपने ...बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  4. इस्मत ज़ैदी जी की दोनों रचनाएँ बहुत पसंद आयीं ...

    जवाब देंहटाएं
  5. जब हाथ कोई दामन ए गुल की तरफ़ बढ़े
    ये ख़ार ही तो तोड़ता उस का ख़ुमार है

    क्या बात है! कांटे का क़द इन पंक्तियों ने दिखा दिया.

    जब झूठ बोलता हूं तो बेचैन रहता हूं
    हां ये सुकून ए क़ल्ब तो सच्चाइयो में है
    एकदम सच्ची बात. इस्मत मेरी पसंदीदा शाइरा हैं. उनकी नज़्मों या ग़ज़लों पर बहुत कुछ कहने की योग्यता नहीं रखती मैं.
    परिकल्पना को बधाई और शुभकामनाएं.

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  6. इस्मत जैदी जी की दोनों ग़ज़ल खुबसूरत हैं...
    सादर...

    जवाब देंहटाएं

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