आओ आओ होनहारों प्यारे बच्चे उमर के कच्चे जीवन की एक बात सुनाऊं ... मुसीबतों से डरो नहीं बुजदिल बनके मरो नहीं , रोते रोते क्या है जीना नाचो दुःख में तान के सीना .... पर एक बात और जीवन की - मीठी मीठी बातों से बचना जरा दुनिया के लोगों में है जादू भरा .... इस काले जादू से बचना क्योंकि तू ही तो है मेरा सारा जहाँ जैसे ज़मीन पे है ये आसमान तू आगे आगे मैं पीछे पीछे छोटा सा अपना ये कारवां ............ चलो इस कारवां के संग गगन कि ओर उड़ चलें तू मेरा हाथ थाम ले मैं तेरा हाथ थाम लूँ , फिर तो एक दिन होंगे ज़मीं आसमां चाँद सितारे हाथों में होगी एक दिन बागडोर भरत की तुम्हारे हाथों में ........ है ना बोलो बोलो है ना बोलो बोलो ....
चलो मुझे घेरकर बैठ जाओ और सुनो मीठी मीठी अच्छी अच्छी बातें , एक नहीं ढेर सारी -

My Photoसबसे पहले अपनी प्यारी अम्मा से , जिनके पास बच्चों के लिए है ढेर सारा प्यार ....

(१)
तिनके-तिनके से गौरैया
अपना नीड़ बसाती है
संध्या होने से पहले ही
दाना लेकर आती है
नीड़ में बच्चे शोर मचाते
भूख लगी माँ दाना दो
खिला-पिलाकर बच्चों के संग
सपनों में खो जाती है

(२)
रोज सवेरे सूरज आता पूरब में
किरणों की झांझर झनकाता पूरब में
बहती लाली आसमान के परदे पर
समय नहीं यह लेटे रहना गद्दे पर !

(३)गिन्कू खिलौने घर का राजा
करता है मनमानी
लूसी बनती भोली-भाली
पर है बड़ी सयानी
दद्दे देखभाल करता है
लगता पंडित ग्यानी
गिन्कू,लूसी के कहने पर
कहता रोज कहानी !

My Photo
सरस्वती प्रसाद

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अब संगीता दीदी की सीख

सीख

टिक-टिक टिक-टिक घड़ी हमारी
हमको यही बताती है
पल -पल चलना ही जीवन है
यह हमको सिखलाती है .

गुन-गुन गुन-गुन करके भौंरा
यह सन्देश दे जाता है
वाणी के सुर में मिठास ही
सबके मन को भाता है .

टिप-टिप टिप-टिप बरखा बूंदें
धरती की प्यास मिटाती हैं
परोपकार की यही भावना
ये हमको सिखलाती हैं .

धूं-धूं धूं धूं जलती लकड़ी
राख यहीं रह जाती है
धुंएँ की लकीर उठ ऊपर
ऊँची मंजिल को पाती है .

खुद के कर्मों से ही मानव
जग में नाम कमाता है
जो करता है सतत प्रयत्न
वो ही मंजिल को पाता है ..

My Photo
संगीता स्वरुप
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किस साधन की बात करते हो बच्चों ?

तुम्हारे पास लकड़ी की नाव नहीं ,
तो निराशा कैसी?
कागज़ के पन्ने तो हैं !
नाव बनाओ और पूरी दुनिया की सैर करो..........
हर खोज,हर आविष्कार तुम्हारे भीतर है ,
अन्धकार को दूर करने का चिराग भी तुम्हारे भीतर है
तुम डरते हो कागज़ की नाव डूब जायेगी , पर
अपने आत्मविश्वास की पतवार से उसे चलाओ तो
हर लहरें तुम्हारा साथ देंगी.........

और तुम्हारे साथ मैं हूँ - अनवरत , बस पहचान ज़रूरी है . यदि तुमने मुझे पहचान लिया तो जीत ही जीत
.
वंदना दीदी तो चाहती हैं सबका मन बच्चों तुम्हारे जैसा हो जाए .... देखो उनकी चाह कितनी प्यारी है

बच्चों सा निर्मल जीवन होता............

बच्चे मासूम कोमल
जिनके मन होते निर्मल
दुनियादारी नहीं जानते
सबको अपना ही मानते
पल में लडाई पल में प्यार
यही है बच्चों का व्यवहार
भेदभाव करना नहीं सीखा
सबको अपना ही माना है
प्रेम बराबर सबको करते
कभी किसी से वैर ना रखते
एक मुस्कान से खिल जाते
एक मुस्कान से सबको अपना बना लेते
तभी इनमे भगवान हैं बसते
दोनों का है इक स्वरुप
निर्द्वंद, निश्छल , अनूप
कोई कितना भी बैर करे
पर ये बराबर सबसे प्रेम करें
कैसा अनुपम रूप है पाया
तभी तो बच्चो में है भगवान समाया
काश ! बच्चे कभी बड़े ना होते
तो जग में सभी लड़े ना होते
प्रेम सुधा बरस रही होती
मानवता शर्मसार ना होती
सबको अपना माना होता
कोई ना यहाँ बेगाना होता
कुछ बच्चों से सीखा होता
तो आज सृष्टि का दिव्य रूप होता
सभी का बच्चों सा निर्मल जीवन होता
बच्चों सा निर्मल जीवन होता............


साथ साथ उनकी भी एक सीख है, जिसमें है आशीष, दुआएं ....


कभी ना अधर्म के आगे झूल जाना............

कल मुझे मासूम गुडिया ने कहा
कोई कहानी सुनाओ ज़रा
जिसमे प्रेम प्यार की बातें हों
भेदभाव की दीवार ना हो
मुझे राम से बढ़कर ना कोई दिखा
उसे राम चरित्र सारा सुनाया
आपस में प्रेम करो सिखलाया
सीता मैया का बखान किया
कैसे अग्निपरीक्षा दी बतलाया
सुनकर बच्ची का दिमाग चकराया
ये कैसे लोग थे जो ऐसी परीक्षा लेते थे
और उसको मानवता कहते थे
उसके प्रश्न ने मुझे लाजवाब किया
मगर धैर्य धर उसे समझाया
अपने धर्म पर चलने वाला
ही महान कहलाता है
उसे ना कोई आँच जलाती है
वो तो कुंदन सा बन जाता है
तुम भी ऐसा काम करना
जग में रौशन नाम करना
सदा अपने धर्म पर चलना
इतना सुन गुडिया कहने लगी
क्या जो धर्म पर चलते हैं
उनका बुरा नहीं होता है
तो फिर बताओ क्यों
यहाँ धर्म पर चलने वालों पर
अत्याचार होता है
और जो रोज बुरे काम करते हैं
उनके पैर सब जग धोता है
बच्ची के प्रश्न मुझे कुलबुला रहे थे
जानती हूँ सब फिर भी
उसे समझा रही थी
धर्म पर चलने की
सदा सच बोलने की
अच्छा नागरिक बनने की
नाम रौशन करने की
यही शिक्षा दिए जा रही थी
जो संस्कार पड़े हैं मुझमे
वो ही तो मैं आगे दूंगी
मगर सच से कैसे अनभिज्ञ रखूं
कैसे उसे समझाऊँ
अपना हक़ पाने को
आवाज़ उठानी पड़ती है
अब ना यहाँ राम की
मर्यादा चल पाती है
फिर ये सच भी उसे
बतलाना होगा
आखिर इसी समाज में
उसे जीवन बिताना होगा
तो फिर उसे समझाया
बेटा वक्त आने पर
कृष्ण को भी आदर्श जानो
उनका कहा भी तुम मानो
जो अधर्म का कार्य करे
उसके खिलाफ आवाज़ उठाना
तुम ना कहीं अधर्म के आगे झुक जाना
तुम में ही भविष्य समाया है
कल की तुम ही शान हो
कल की तुम ही पहचान हो
तुम ही देश का मान बनोगे
सब जग तुम्हारा गुणगान करेगा
काम कोई ऐसा कर जाना
एक नया इतिहास लिख जाना
बस इस शिक्षा को याद रखना
कभी ना अधर्म के आगे झुक जाना
कभी ना अधर्म के आगे झूल जाना............

वंदना गुप्ता

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अब देखो तो ये सीमा दीदी क्या कहती हैं -

हंसता है बचपन हरदम,
शैतानियां लेकर
जब भी कोई लम्‍हा आता है धीरे से
उसकी हंसी का राज
मैं समझूंगी तो
तुमको भी बता दूंगी
कभी वह खुश होती है ...
आंगन में देख नन्‍हीं गौरेया को
उसके पीछे-पीछे
उसके वह डगमगाते कदम
जैसे उड़ रही हो हवा में
मैं डरती पल भर
कहीं यह गिर न जाये
पानी से भरा टब
और उसकी छपछप से भीगा चेहरा
जैसे कोई खजाना मिल गया हो
कभी वह खुश होती ....
मेरे दुपट्टे से अपना चेहरा ढंककर
जब उसे अपने पैरों पे खड़ाकर
मैं उसे झुलाती झूला
वह चहक उठती
उसकी खुशियों के पल
समेटती हूं तो
मेरा आंचल छोटा हो जाता है
हम बड़े क्‍या हुए ....
कोयल की कूक के साथ
अपनी आवाज का मिलाना
भूल गये तितली को देख मुस्‍काना,
पारले टॉफी का वह
खट्टा - मीठा स्‍वाद
क्‍या अब भी है तुम्‍हें याद ....

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मेरी बिटिया और उसकी गुडि़या
उसके संग उसकी बातें सुनती
मैं हैरां हो जाती हूँ
आओ तुमको भी सुनाती हूं .....

देखो मैने तुमको अभी
तैयार कर दिया है
अब तुमको गंदा नहीं होना है
जैसे मां मुझे तैयार करती है
तुम्‍हें पता है मां कहती है
हमें सुन्‍दर-सुन्‍दर दिखना है
खूब मन लगाकर पढ़ना है
और सच्‍ची बात कहने से
डरना भी नहीं
और रोना तो बिल्‍कुल भी नहीं
तुम बार-बार गिर जाती हो
संभल कर चलना चाहिये न
मैं कब तक
तुम्‍हारी उंगली पकड़कर चलूंगी
जो बच्‍चे पढ़ते हैं
वही आगे बढ़ते हैं
ऐसा मां कल भइया से कह रही थीं
चलो अब पढ़ाई करो
मुझे मां की रसोई मैं मदद करनी है
आज मां की तबियत ठीक नहीं
मैं उन्‍हें सामान लाकर देने में
मदद करती हूं
तुम अभी पढ़ाई करो
फिर मैं तुम्‍हारे लिये नाश्‍ता लाती हूं ...
देखो शैतानी मत करना
और कार्टून तो
बिल्‍कुल भी मत देखना टीवी पर
वर्ना मुझे वह चैनल लॉक करना पड़ेगा
यदि मैने देखा तुम्‍हें ऐसा करते ....
सीमा सिंघल


अंत में सुनो यह गीत और शब्द शब्द मन में उतारो:


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आईये अब आपको ले चलते हैं उत्सव के दूसरे चरण में प्रसारित कार्यक्रमों की ओर :

doll marriage

मैं जब छोटी थी (संस्मरण )

पहली कड़ी गुड़िया की शादी मैं जब छोटी थी धुन की बड़ी पक्की थी |मन में एक बार जो समाया वह पूरा होना...
Picture0040

सुमन मीत की दो कविताएँ

ढलती शाम अकसर देखा करती हूँ शाम ढलते-2 पंछियों का झुंड सिमट आता है एक नपे तुले क्षितिज में उड़ते...
Haitian_national_palace_earthquake

प्रथम अश्वेत गणतंत्र -हैती

कविता प्रथम अश्वेत गणतंत्र नए विश्व के समीकरण में नहीं उतरता कहीं खरा क्योंकि उसे चुकाना है...
nilesh mathur

निलेश माथुर की दो कविताएँ

जहाँ बिकते हैं जिस्म एक दुनिया वो भी है जहाँ बिकते हैं जिस्म अपने चेहरे से मुखौटे को उतार कर जाता...
narendra vyaas

नरेन्द्र व्यास की दो कविताएँ

(१) पल पल कुछ बीते पल कुछ भीगे कुछ सूखे मौसम से बीतकर भी कहा बीत पाते हैं ज़ख्म जो दिखाई नहीं देते वो...
उत्सव में कल अवकाश का दिन है, मिलते हैं फिर परसों,यानी बुधवार को सुबह ११ बजे परिकल्पना पर , तबतक शुभ विदा !

18 comments:

  1. अम्मा जी ,संगीता दीदी .....वंदना जी और सीमा जी की कवितायों से मन झूम उठा ...बच्चों का बच्चपन एक बार फिर से याद आ गया .....आभार आपका रश्मि दीदी ...जो आप यहाँ इस मंच पर सबके विचार साँझा करती है

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  2. बहुत दिन बाद थोड़ा सा वक्त मिला तो परिकल्पना पर ही आई . इसकी प्रस्तुति देख कर लगता की इसको कितने मनोयोग से संजोया गया है. बचपन को लेकर ढेर से प्यारी से कविताएँ जो संजोयी हैं वे बच्चों के लिए ही नहीं हमारे लिए भी सुंदर प्रस्तुति है.
    इस प्रस्तुति के लिए आभार

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  3. बचपन कितना मासूम होता है ...हर रचना बहुत ही सुन्दर है ...

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  4. सभी कविताय एक से बढ़कर एक है, बहुत बढ़िया !

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  5. मैं तो इन कविताओं को पढ़ते-पढ़ते बचपन में खो गया, आभार आप सभी का !

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  6. परिकल्पना की हर प्रस्तुति अद्वितीय होत्वी है, आज भी देखने को मिल रहा है !

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  7. इस सुंदर प्रस्तुति के लिए आभार !

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  8. सबकी इतनी सुन्दर बचपन सी मासूम कवितायें पढकर आनन्द आ गया……………तो ये कविता इसलिये लिखवाई थी और हमे पता भी नही था…………सच आप तो बेहद सराहनीय और प्रशंसनीय कार्य कर रही हैं…………जितनी तारीफ़ की जाये कम है।

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  9. आपके इस स्‍नेह भरे आंगन में यह चंचल बचपन फिर से कुछ यादें समेट लाया है ...जिसका माध्‍यम बनी हैं आप और पूरा श्रेय आपका ही है हर रचना के जन्‍म को क्‍योंकि सबको दी है आपने प्रेरणा इस लेखन की ....तो शुभकामनाओं के साथ आभारी हूं आपके इस प्रस्‍तुतिकरण की ... ।

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  10. वाह दी.... आज तो आनंद आ गया....कम्माल की रचनाएं हैं...
    सादर...

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  11. अम्मा की बाल कविताएँ और आपकी दी हुई प्रेरणा , वंदनाजी के आशीर्वाद और सीमा जी का कहना .. बहुत सुन्दर रचनाएँ हैं ..

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  12. bahut hi komal aur aanandmaee kavitayen...mza aa gya ..meri kavitaon ko sthan dene ke liye bahut bahut shukriya...

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  13. आज बच्चों के साथ आनंदित हो गया मन ...बहुत अच्छा लगा अम्मा जी ,संगीता जी ,वंदना जी और सीमा जी की कविताओं को पढ़ना और सुनना भी ...

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  14. सारी रचनाएं एक से बढ़कर एक....
    बहुत अच्छी लगीं....

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  15. रश्मि प्रभा जी हार्दिक अभिवादन -सुन्दर और सराहनीय मेहनत भरा कार्य आप का -सुन्दर संकलन

    -संगीता, वंदना जी और सीमा जी की प्यारी रचनाएँ

    सुन्दर रचनाएँ सुन्दर भाव -बधाई -शुभ कामनाएं
    शुक्ल भ्रमर ५
    भ्रमर का दर्द और दर्पण

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आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.

 
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