एक मुट्ठी बादल एक मुट्ठी फुहार कुछ कदम गीली मिट्टी - हम और तुम और .... देखो तो, पढ़ो तो, जानो तो कौन है :
बुद्ध का चेहरा
जब रात काली छाई थी
भटके-बहके हम
अँधेरे में हाथ मारते थे
एक चेहरे पे उगा था सवेरा
और उस चेहरे पे साफ़-साफ़
लिखा था कि-
मानवता से बड़ा कोई
धर्म नहीं.
सुबह
गीतों में
सुरों में
जगती हुई सुबह
पर्दॉ पे फिसलती
चहचाहटॉ में खुलती
खूबसूरत नहीं
तुम्हारे पास हूँ,
तुम्हें छू सकती हूँ,
पर ये उतना खूबसूरत नहीं;
जितना खूबसूरत
तुम्हें पाने का ख्वाब था.
काबुलीवाले, ओ काबुलीवाले !
ना मुल्क की खबर
ना जुबां की सरहद.
उसका गली में आना
और इधर मिनी का चिल्लाना-
काबुलीवाले, ओ काबुलीवाले.
सूखा मेवा, नम जज़्बात
सालों दो शिकम
की खुराक बने रहे !
नमक
थोडा रोना लाजिम है ,
थोडा गम मनाना भी . .
पता तो होगा तुम्हें
कि बिना नमक की सब्जी
किसी को नहीं भाती !
दीपशिखा वर्मा
याद आती होंगी न मेरी.. वो दो पैसे की बातें!
http://intihajagjitsingh.blogspot.com/
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दीपशिखा जी की मासूम रचनाओं के बाद आईए उन्नीसवें दिन के द्वितीय चरण के कार्यक्रमों की ओर चलते हैं
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इसी के साथ विदा दीजिये, मिलते हैं कल फिर ११ बजे परिकल्पना पर
एक चेहरे पे उगा था सवेरा
जवाब देंहटाएंऔर उस चेहरे पे साफ़-साफ़
लिखा था कि-
मानवता से बड़ा कोई
धर्म नहीं.
बेहतरीन प्रस्तुति ।
बहुत बढिया आयोजन चल रहा है………शानदार लिंक्स्।
जवाब देंहटाएंएक माह बीत जाने के बाद भी उत्सव की गरिमा को बनाए रखना अपने आप में गौरव की बात है,रवीन्द्र जी,रश्मि जी और उत्सव से जुडी समस्त टीम को मेरा साधुवाद !
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब,एक से बढ़कर एक...आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंvery good prasantation, thanx.
जवाब देंहटाएंबेहतर पोस्ट,अच्छी प्रस्तुति....इन रचनाओं को पढ़वाने के लिए आभार !
जवाब देंहटाएंभोर की भांति भीगी भीगी, खुबसूरत कवितायें हैं...
जवाब देंहटाएं"भोर....
जिसके उजले आकाश पर
साफ़-साफ़
लिखा है-
मानवता से बड़ा कोई
धर्म नहीं."
सादर बधाई एवं आभार...
वाह बहुत मासूम सी क्षणिकाएँ हैं ...बेहतरीन प्रस्तुती
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचनाएँ...
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ बहुत सुन्दर हैं
जवाब देंहटाएंखुबसूरत नहीं ने दिल को छु लिया
सारी क्षणिकाएँ बहुत खूबसूरत ...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंआज अचानक महसूस होने लगा जैसे हम उत्सव मे बैठे हैं और सामने ही छोटी स्क्रीन पर नई नई रचनाएँ प्रस्तुत की जा रही हों...परिकल्पना टीम को शुक्रिया और ढेरों शुभकामनाएँ ...
जवाब देंहटाएंek se badhkar ek.
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